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सूत्र कृतांग सूत्र
सचित्त पदार्थों से लगा हुआ । (३) निक्षिप्त- सचित्त पदार्थों के ऊपर अथवा बीच में रखा हुआ । (2) पिहित थाहार चित्त हो पर सचित पदार्थो से ढंका हुआ हो ( अथवा इससे विपरीत ) । (५) संहत - सचित पृथ्वी श्रादि पर से एकट्ठा किया हुआ । (६) दायक- -अयोग्य अवस्था के दाता के पास से लिया हुआ । (७) उन्मिश्रितसचित पदार्थों से मिश्रित | ( ) ग्रपरिणत - बराबरं न पका हुग्रा अथवा दो मालिक का होने से एक की सम्मति के विरुद्ध दिया हुआ । (६) लिप्त दही, दूध आदि इत्य - जिनसे हाथ, वर्तन आदि भर जावें और बाद में हाथ धोने का कर्म करना पडे । (१०) छर्दित देते-देते डुलता हुआ लेना |
परिभोगपणा के चार दोप—
(१) संयोजना - दूध, शकर, घी आदि स्वाद के लिये जितना ग्राहार लेने की ( ३ ) इंगाल- धूम - अच्छा बुरे थाहार देनेवाले की प्रकारण - शास्त्रों में कहे हुए
मिला कर खाना । (२) श्रप्रमाण विधि हो उससे अधिक खाना । आहार देने वाले की स्तुति और निंदा कर के खाना । ( ४ ) प्रसंगों के बाहर स्वादु आहार खाना |
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फिर वह भिक्षु पहिले से ही यह इच्छा नहीं रखता कि मैं ने जो कुछ देखा है, सुना है, चिंतन किया है, जाना है उसके द्वारा, श्रथवा विधिपूर्वक किये हुए तप, नियम, ब्रह्मचर्य या संयम के निर्वाहार्थ ही जीवन व्यतीत करने से मैं इस देह को त्याग कर, सव