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सूत्रकृतांग सूत्र
अब न तो वह पीछा ही लौट सकता था और न पार ही जा सकता था । इस प्रकार वह सरोवर के बीच में ही कीचड़ में फंस . . गया । [२]
फिर दक्षिण दिशा से एक दूसरा पुरुष अाया; उसने उस कमल . और उसको लेने के लिये गये हए उस पुरुष को बीच में फैसा .. हुआ देखा । पर उसकी अपेक्षा अपने को अधिक जानकार और अनुभवी मानकर खुद वह उस कमल को लेने के लिये उतरा पर : वह भी पहिले रुप की तरह बीच में ही रह गया । [३]
इसी प्रकार पश्चिम दिशा से तीसरा और उत्तर दिशा से.. . चौथा पुरुष श्राया पर वे भी उनके समान बीच में ही फंसे रह गये । [४-५]
बाद में राग द्वेष से रहित, (संसार को) पार जाने की इच्छा वाला, जानकार, कुशल...ऐसा कोई भिक्षु किसी दिशा या.. कोने में . . से वहां चला पाया । उसने उस कमल तथा फँसे हुए उन चारों को देखा । वह समझ गया कि चारों अपने को जानकार तथा कुशल . मानकर उस कमल को लेने जाते हुए कीचड में, फंसे रह गये। इस कमल को लाने के लिये इस प्रकार न जाना चाहिये। ऐसा . विचार करके उसने किनारे पर से ही कहा-' हे सफेद कमल ! . उड़ कर यहां आ।' इस पर वह कमल उसके पास था गिरा । [६] .
इस कथा का तात्पर्य कोई साधु-साध्वी के न समझ सकने पर, . : भगवान् महावीर ने स्वयं ही इसका रहस्य इस प्रकार समझाया था !
इस दृष्टान्त में सरोवर तो यह संसार ही है; उसका पानी कर्भ और कीचड कामभोग हैं। सब सफेद कमल, जन-समुदाय और