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पुंडरीक
वह श्रेष्ट: बड़ा कमल राजा, विभिन्न वादी (मत-प्रचारक) चे चार . पुरुष हैं और वह भितु दूसरा कोई नहीं पर सद्धर्भ ही है । . किनारा
संघ है, भिनु का बुलाना धर्मोपदेश और कमल का श्राजाना निर्वाणप्राप्ति है। मतलब यह कि सद्धर्म के सिवाय अन्य कोई इस संसार
में मोक्ष नहीं दिला सकता। चे सब वादी खुद ही कर्भ और काम.भोगों में फंसे हुए होते हैं। वे दूसरों को निर्वाण प्राप्त करावें, उसके
पहिले वे ही इस संसार में डूब मरते हैं। [-] ... . इस संसार में सब दिशाओं में अनेक मनुष्य अपने कर्मानुसार . ऊंच-नीच जाति या गोत्र में कम-ज्यादा विभूति के साथ उत्पन्न होते • हैं। उन सब में अधिक रूप, गुण, बल, और वैभव युक्त ऐसा एक .. .: राजा होता है, वह अपनी प्रजा के भीतरी- बाहरी शत्रुओं से उसकी
रक्षा करता हुआ प्रजा का पालन करता है । . ( मूल में राजा को कितने ही विशेषण लगाये हैं, जैसे माता-पिता से सुपालित, मर्यादा को कायम रखने वाला और स्वयं मर्यादाशील, 'प्रजा का पिता, पुरोहित, सेतु और केतु, धन की प्राप्ति और उसके व्यय में कुशल, बलिष्ट, दुर्बलों का रक्षक, विरोधी और शत्रुओं का नाशक, महाभारीदुष्काल से प्रजा को भयमुक्त करनेवाला, अपनी परिषद् में 'इक्षु
ज्ञातृ-कौरव-उग्रं आदि वंश के. क्षत्रिय, ब्राह्मण सेनापत्तियों और ..मंत्रियों को रखने वाला । ) उसकी सुख्याति सुनकर अनेक पंथ के
श्रमण ब्राह्मण ऐसा सोचकर . कि उसको अपने मत में मिला लेंगे
तो. सारी प्रजा अपने मत में आ जावेगी और वह उसकी सुख-सामग्री ' को अपने लिये मना न करेगा; वे उसके पास जाते हैं और कहते हैं . कि अमुक धर्म को भलीभांति जानते हैं। हमारा धर्म इस प्रकार हैं
पैर के तले से ऊपर और सिर के बालों की जड़ से नीचे ... तथा चमड़ी तक जो शरीर है वही जीव है । शरीर के टिकने तक