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ग्यारहवाँ अध्ययन
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मोक्ष मार्ग
श्री जम्बू स्वामी ने पूछा
है महामुनि ! सब दुःखों से मुक्ति देने वाला, भगवान् महावीर. का बताया हुआ उत्तम मार्ग आप जैसा जानते हैं, हमें कह सुना।
श्री सुधर्मास्वामी कहने लगे. काश्यप ऋषि (महावीर) का बताया हुआ वह महा विक्रट मार्ग मैंने जैसा सुना है, वैसा ही क्रमशः कह सुनाता हूँ। उसके अनुसार . चलकर अनेक मनुष्य, दुस्तर समुद्रों को ज्यों व्यापारी पार कर जाते है, उसी प्रकार अपार संसार को पार कर गये हैं और भविष्य में भी करेंगे। [१-६
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और ब्रस; जीवों के ये छै भेद हैं। ये आपस में एक दूसरे के प्रति हिंसा परिग्रह आदि के कारण कर्मबन्धन के निमित्त बनते हैं। बुद्धिमान् मनुष्य अपना उदाहरण लेकर सोचे कि मेरे समान अन्य प्राणी को भी दुःख नहीं सुहाता, इस लिये किसी की हिंसा नहीं करनी चाहिये । ज्ञानी के ज्ञान का सार यही है कि वह किसी की हिंसा नहीं करता। अहिंसा का सिद्धान्त भी यही है; इसी को शांति या निवार्ण कहते हैं। [७-११]