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.. वादियों की चर्चा
... किन्तु, जगत् का सत्य विचार करने वाले श्रमण और ब्राह्मण ऐसे ही कहते हैं कि दुःख तो अपने किये से ही होता है, दूसरे के किये से नहीं । इसी प्रकार मोक्ष भी ज्ञान और उसके अनुसार यांचरण से ही प्राप्त होता है । [११]
.. प्रजा को जो मनुष्य ऐसा हितकर उपदेश देते हैं, वे ही इस
जगत् के चक्षुरूप नायक हैं। उन्होंने इस संसार को भी शाश्वत · कहा है, जिसमें राक्षस, देव, सुर, गान्धर्व से सेकर आकाशगामी
या पृथ्वी पर : रहने वाले जीवों को अपने अपने
कर्म के अनुसार सुख-दुख भोगते हुए जन्म-मरण प्राप्त होता रहता . है । इस चक्र में से महा कष्ट से छुटकारा मिल सकता है । विषयों : तथा कामभोगों में श्रासक्त अज्ञान प्राणी बारवार उसी को प्राप्त करते
रहते हैं क्योंकि कर्म से कर्म का क्षय नहीं हो सकता । कोई बिरला . . बुद्धिमान् मनुष्य ही अकम से कर्म का नाश करके इस चक्र का ___ अन्त कर सकता है । [१२-१५] .
- जिसको इस चक्रमें से छूटना हो वह वैसे ही जगत् के ज्योति-स्वरूप और धर्म का साक्षात्कार करके उसे प्रकट करने वाले महात्माओं के निकट रहे क्योंकि वे ही अपने को तथा संसार को जीवों की गति ( भविष्य की जन्म-स्थिति ) और अगति (मुक्तावस्था) को, जन्म तथा मरण को, शाश्वत तथा अशाश्वत को और मनुष्य के पर जन्म को जानते हैं। वे प्रास्रव (आत्मा में कर्मों का प्रवेश)
संवर, (कमी को प्रात्मा में प्रवेश होने से रोकना) और निर्जरा . (कर्म-नाश) को जानते हैं। वे जगत् के अतीत, वर्तमान और अनागत ... के स्वरूप को यथार्थ जानते हैं, वे ही इस जगत् के नेता हैं।
उनका नेता कोई नहीं है। [१६, १६-२१ ]