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सोलहवाँ अध्ययन --(०)गाथाएँ
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श्री सुधास्वामी आगे कहने लगे--. ... इस प्रकार जो इन्द्रियनिग्रही हो, मुमुक्षु. हो, तथा शरीर पर ममता न रखने वाला हो, वही ब्राह्मण, श्रमण, भिन्नु, या निर्ग्रन्थ कहलाता है। . वह ब्राह्मण इस लिये कहाता है कि वह रागद्वेष, कलह, झूठी .. निंदा, चुगली, 'श्राक्षेप, संयम में अरति, विषयों में रति, मायाचार
और झूठ आदि सब पाप कर्मों से रहित होता है; मिथ्या मान्यता के कांटे से रहित होता हैं; सम्यक् प्रवृति से युक्त होता है; सदा यत्नशील होता है; अपने कल्याण में तत्पर. होता है; कभी क्रोध अथवा अभिमान नहीं करता । [१]
वह श्रमण इस लिये कहाता है कि वह विघ्नों से नहीं हारता, और सब प्रकार की आकांक्षा से रहित होता है। वह परिग्रह, हिंसा, भूल, मैथुन, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग तथा द्वेपरूपी पाप के कारण जिन से पाप का बन्ध होता है और जो आत्मा को दूपित करते हैं उन सब से पहिले से ही विरत होता है। [२]
चह भिक्षु इस लिये कहाता है कि वह अभिमान से रहित नम्र ___ होता है और गुरु का आज्ञानुवर्ती, होता है । वह विविध प्रकार के