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सूत्रकृतांग सूत्र
मोहमार्ग का
श्रद्धालु से
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मर्यादा का उल्लंघन न हो ऐसा उपदेश दे । इस उपदेश कैसे दिया जाय, इसको जो जानता है, उस सिद्धान्त को कोई हानि नहीं होती [ २४-२५]
जो सत्य की चोरी नहीं करता, उसको छुपाता नहीं, ग्रल्प अर्थ की वस्तु को महत्व नहीं बताता, तथा सूत्र या उसके अर्थ की बनाके वट नहीं करता, वही मनुष्य सिद्धान्त का सच्चा रक्षक है । गुरु प्रति भक्तिपूर्ण वह शिष्य गुरु के कहे हुए विचारों को सोचकर बराबर कह सुनाता है । [ २६, २३]
जो शास्त्र को योग्य रीति से समझता है, जो तपस्त्री है, जो धर्मं को यथाक्रम जानता है, जिसका कथन प्रामाणिक है, जो कुशल और विवेक युक्त है, वही मोक्षमार्ग का उपदेश देने के योग्य है । धर्म का साक्षात्कार करके जो उपदेश देते हैं, वे बुद्धिमान् संसार का अन्तकरा सकते हैं। अपनी तथा दूसरों की मुक्ति को साधनेवाले वे कठिन प्रश्नों और शंकाओं का समाधान कर सकते हैं । [ २७,१८ ]
ज्ञानी पुरुष ज्ञान के बदले में मान श्रादर या चार्ज निका की कामना न करे | सत्य को न छुपाचे और न उसका लोप ही करे । अनर्थकारक धर्म का उपदेश न दे; झूठे सिद्धान्तों की तिरस्कारपूर्वक हंसी न करे; सत्य को भी कठोरता पूर्वक न कहे और अपनी प्रशंसा न करे । अपने को जिस बात की शंका न हो, उसके विषय में दुराग्रह न रखे और स्याद्वाद ( विभज्यवाद ) का अनुकरण करे । प्रज्ञावान् पुरुष समतापूर्वक प्रत्येक विषय में, यह श्रसुक दृष्टि से ऐसा है, और श्रमुक दृष्टि से ऐसा भी है, । इस प्रकार अनेकान्त वाणी बोले । [ १६-२२ ]
अपने उपदेश को शिष्य कदाचित् उलटा समझे तो भी उसे बिना कठोर शब्द कहे शांति पूर्वक उसको फिर समभावे, परन्तु कभी भी अपशब्द कह कर उसका तिरस्कार न करे | [ २३ ]
- ऐसा श्री सुधर्मास्वामी ने कहा ।