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पन्द्रहवाँ अध्ययन
-(6)उपसंहार
.. श्री सुधर्मास्वामी बोले.. हे आयुष्यमान् ! अब तक मैंने तुझे भगवान् महावीर के .. उपदेश दिये हुए संयमधर्म के विषयमें कहा है। सारांशमें अब कहता हूँ कि
- भगवान् महावीर अतीत, वर्तमान और भविष्य को जानते हैं क्योंकि उन्होंने सत्य दर्शन (और ज्ञान) के अन्तरायभूत कर्मों का अन्त कर दिया है। संशय का अन्त करने वाले भगवान् महावीरने इस अनुपम धर्म को कहा है। ऐसे उपदेशक जगह-जगह नहीं होते। उन्होंने प्रत्येक विषयमें यथार्थ उपदेश किया है। वे सदा सत्य से सम्पन्न और जीवों के प्रति मैत्रीयुक्त थे। [१-३]
जीवों के प्रति द्वेप न करना ही संयमी मनुष्यों का सच्चा धर्म है। बुद्धिमान् इस जगत् के पाप को जान कर उससे मुक्त हो जाते . हैं क्योंकि वे कर्म का यथार्थ स्वरूप समझ कर नया कर्म नहीं करते . .
और इस प्रकार उनको नया कर्म-बन्धन नहीं होता। बारह भावना के योगसे विशुद्ध हुए अन्तःकरण वाला संयमी पुरुप नाव के समान . किनारे पहुँच कर सब दुःखों से मुक्त हो जाता है। [४-७]
अर्भ-बन्धन मी पुरुष मा-1