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सूत्रकृतांग सूत्र
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लगता है और कामना से उत्पन्न गड़े में फँसता ‘ जाता है, पापकर्म इकट्ठा करता जाता है। इससे परिणाम में वह दुस्तर नरक को प्राप्त करता है । इस लिये बुद्धिमान् भिक्षु धर्म को अच्छी तरह समझ कर, सब ओर से निःसंग होकर, कहीं भी आसक्त हुए बिना विचरे और सब प्रकार की लालसा का त्याग करके, सब जीवों के प्रति समभाव-पूर्ण दृष्टि रखकर किसी का प्रिय या अप्रिय करने की इच्छा न रखे । [१-५, ७-५०]
___ वह निपिद्ध अन्न की कदापि इच्छा न करे और ऐसा करने वाले की संगति तक न करे। अपने अन्तर का विकास चाहने वाला वह भिन्नु किसी वस्तु की आकांक्षा रखे विना तथा जरा भी खिन्न हुए बिना, बाह्य शरीर को जीर्ण-शीर्ण होने दे पर जीवन की इच्छा रखकर पापकर्म न करे । वह सदा अपनी असहाय दशा का विचार । करता रहे; इसी भावना में उसकी मुक्ति है ।
यह मुक्ति कोई मिथ्या वस्तु नहीं है, पर सर्वोत्तम वस्तु है। किन्तुं चाहे जो उसको प्राप्त नहीं कर सकता। स्त्री संभोग से निवृत्त हुआ, अपरिग्रही, तथा छोटे-बड़े विषय असत्य, चौर्य आदि पापों से रक्षा करने वाला भिनु ही मोक्ष के कारण समाधि को निःसंशय प्राप्त करता है। इसलिये, भिनु प्रीति और अग्रीति पर विजय प्राप्त करे; घास, टंड, गरमी, दंश (कीडों का काटना) आदि शारीरिक कष्टों से डरे विना, मन, वचन और काया को. (पाप कर्मो से) सुरक्षित रख कर समाधि युक्त बने और इस प्रकार निमलचित्त वाला होकर मौका पाने पर अपना पालन किया हुआ उत्तम धम दसरों को भलीभांति समझाता हुया विचरे । [११-१५]