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समाधि
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संसार में नाना प्रकार की मान्यता को मानने वाले लोग विचरते हैं, उनमें से अनेक निष्क्रिय पारमा, क्रियावाद. .. या प्रक्रियावाद की चर्चा करते हैं और मोक्ष का भी उपदेश
देते हैं। परन्तु वे मोक्ष के साधन धर्म को नहीं जानते। वे तो . मानो अजर-अमर ही हों इस प्रकार अनान और मुहता पूर्वक पाप से जरा भी डरे विना, कुटुम्बियों तथा धनादि के मोह में बंधे रहते हैं और रातदिन दूसरों के शरीर को कष्ट हो ऐसी प्रवृत्तिया असंयम से करते रहते हैं। परन्तु बुद्धिमान् मनुष्य तो सद्धर्भ को समझ कर, बन के प्राणी ज्यों सिंह से दूर रहते हैं, वैसे पाप से दूर रहे | कारण यह कि समस्त पाप की प्रवृत्तियों में हिंसा अनिवार्य है । और हिंसा में वैर बढ़ाने वाले, महापाप के कारण पापकर्मी का निश्चय ही बंध होता है, जिनके परिणाम में मनुष्य की दुःख से मुक्ति नहीं होती। इस लिये, भिक्षु जीवन या मरण की चिन्ता क्रिये बिना, किसी फल की इच्छा रक्खे बिना तथा शरीर ' की ममता छोड़ कर, मतिमान ब्राह्मण (पवित्र और ज्ञानी का तात्पर्य ... है) महावीर के बताए हुए मार्ग पर निष्कपटता से चलकर, इस . पापचक्ररूप दुस्तर संसार को पार करने का प्रयत्न करे। [१६-२४]
ऐखर श्री सुधर्मास्वामी ने कहा.।।
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