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सूत्रकृतांग सूत्र
को जिसने यथाशत्ति रोक दिया हो, सर्वथा पाप रहित हो वही शुद्ध, . परिपूर्ण और उत्तम धर्म का उपदेश दे सकता है । वही भिक्षु संसार . प्रवाह में फंसे हुए और अपने कार्यों से दुःखी प्राणियों को जगत के निर्दिष्ट स्थान निर्वाणद्वीप को बता सकता है [ २३-४] __ इस को न जानने वाले और स्वयं अज्ञानी होने पर भी अपने को ज्ञानी मानने वाले और लोगों को ऐसा प्रकट करने वाले मनुष्य समाधि को प्राप्त नहीं कर सकते । वे चाहे जैसा निपिद्ध अन्न स्वीकार कर लेते हैं और फिर ध्यान करते वैठते हैं। किन्तु इन् मिथ्यामति अनार्य श्रमणों का ध्यान बुगला श्रादि की भांति विषय· प्राप्ति के लिये ही होता है, अतएव वह पाप-पूर्ण और अधम होता है । ऐसे अनुभवहीन लोग समाधि को प्राप्त नहीं कर सकते। शुद्ध, मार्ग का उल्लंघन करके, उन्मार्ग पर चलने वाले वे लोग दुःख
और विनाश को ही प्राप्त होते हैं। फूटी नाव मैं बैठ कर पार जाने के इच्छुक जन्म से अन्धे मनुष्य के समान वे अध-बीच में ही संसार प्रवाह में पड़कर नाश को प्राप्त होते हैं । [२५-३१] . .
परन्तु, काश्यप (महावीर) के उपदेश दिये हुए इस धर्म की । शरण लेकर मतिमान भिक्षु संसार के महा प्रवाह को पार कर : जाता है। वह तो अपनी आत्मा की रक्षा करता हुअा, छोटे-बड़े विघ्नों के सामने मेरू के समान अकल्पित रहता हुआ, और मृत्यु की प्रतीक्षा करता हुअा अानन्द से विचरता हैं । [३२, ३७, ३८ ।
-~~-ऐसा श्री सुधर्मास्वामी ने कहा ।