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सूत्रकृतांग सूत्र
त्याग किया था। पश्चात् सर्वोत्तम शुक्ल-ध्यान प्राप्त करके वे महामुनि सिद्धि को प्राप्त हुए। अपने समय में प्रचलित क्रियावादी, अक्रियावादी, वैनयिक, और अज्ञानवादियों के सत्र विरोधी वादों को जानते हुए भी उन्होंने जीवन-पर्यंत संयम धर्म का पालन किया। इसके सिवाय, सब पदार्थों का स्वरूप जानकर, लोगों के कल्याण में हितकारी धर्म को दीपक की भांति प्रकट किया । तेजस्वी भाग के समान वह धर्म . सब कर्मों को नष्ट करने वाला है। [१५-१७-२६-२८]
शुद्ध युक्तियों से संस्थापित उस धर्म को तुम भी प्रमांदरहित होकर श्रद्धापूर्वक अनुसरण करो । उस धर्म को बराबर समझकर . श्रद्धापूर्वक चलने वाले पूर्ण सिद्धि को प्राप्त होते हैं अथवा देवों के अधिपति इन्द्र के समान उत्तम पद प्राप्त करते है। [२६]