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सूत्र कृतांग सूत्र
टिप्पणी- - पहिले पांच प्रकार के स्थावर जीव और पिछले हैं त्रस के भेद एक में, यों भेद । अंडज-ग्रंडे में जन्म लेने वाले; पोतज - बच्चे के रूप में जन्म लेने वाले जैसे हाथी । जरायुजखोल में लपटे हुए जन्म लेने वाले जैसे गाय | रसज- दही आदि रस वाले पदार्थों में पैदा होने वाले जीव । स्वेदज-पसीने से पैदा होनेवाले जैसे जूं । उद्भिज्ज - साधारणतः इससे जमीन फोडकर पैदा होने वाले वृक्षादि (वनस्पति) का अर्थ लिया जाता है पर कोई श्राचार्य ' कुछ फोडकर निकलने वाले जीव' जैसे मेंढक आदि का अर्थ करते हैं।
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ने
छोड भी
कर देना
कर्म-बन्धन
टिप्पणी-२ सूत्रकृतांग में स्थान स्थान पर जाता है कि भगवान् पृथ्वी आदि जीवों के छ: प्रकार को कर्म बंधन का निमित्त कहा है ।" पुनरावृत्ति से बचने के लिये अनुवाद में इस स्थान पर इसको संक्षिप्त कर लिया है अथवा कहीं २ दिया है । फिर भी एक जगह इसका स्पष्टीकरण जरूरी है । पृथ्वी आदि छ: प्रकार के जीवों का का निमित्त होना, उनके प्रति किसी प्रकार का द्रोह अथवा हिंसा करना है; कोई भी पाप किसी प्राणी के प्रति ही होता है 1 मतलव यह कि यों प्राणी पाप कर्म में निमित्तरूप होते हैं; इसी लिये जैन हिंसा व्रत में ही सब पाप कर्मों का त्याग समा सब प्रकार के पाप कर्मों का त्याग किये बिना पूर्ण रीति से पालन होना सम्भव नहीं है । श्रतएव, ही एक मात्र धर्म है। सूत्र में सब जगह ही सम्पूर्ण समाधि, मोक्षमार्ग अथवा धर्म के लिये श्रहिंसा को ही प्रमुखता दी गई है।
प्रत्येक
धर्म के
जाता है ।
अहिंसा का
हिंसा
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