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भगवान महावीर
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रहित थे; मुक्त थे; परिपूर्ण पराक्रमी थे; पर्वतोंमें उत्तम सुदर्शन (मेरू) के समान और श्रानन्द के स्थल देवभूमि के समान अनेक गुणों से सम्पन्न थे। [७-१४]
... लम्बाई वाले पर्वतों में निषध के समान, घेरे वाले पर्वतोंमें रुचक .
के समान, ये दोनों पर्वत जम्बुद्वीप के पार माने जाते हैं ] वृत्तों में सुरण देवों के क्रीडास्थान शाल्मलि वृत के समान, बनों में नन्दनवन के समान, शब्दों में मेधगजेना के समान, तारों में चन्द्रमा के समान, सुगन्धी पदार्थों में चन्दन के समान, सागसें में स्वयंभूरमण महासागर
के समान, नाग में. धरणेन्द्र के समान, रसों में ईख (ग) __के रस के समान, हाथियों में ऐरावत के समान, पशुओं में सिंह .. के समान, नदियों में गंगा और पक्षियों में गरुड के समान, योद्धाओं
में कृष्ण के समान, पुष्पों में कमल के समान, क्षत्रियों में दंतवक .. (महाभारत के सभापर्व में वर्णित क्षत्रिय ) के समान, दानों मे अभ
यदान और सत्य वचनों में दूसरे को पीडा न पहुंचाने वाले वचन के . . समान, तपों में ब्रह्मचर्य के समान, अधिक जीवित रहनेवालों में लव- . . . सत्तम ( देव जो सात लव अधिक जीवें तो मोक्ष को प्राप्त हों) के
समान, सभाओं में सुधर्म-कल्प स्वर्ग के शक्रेन्द्र की सभा के समान, तथा सब धर्मोमें निर्वाण, के समान वे ज्ञातपुत्र ।
महामुनि महावीर सव मुनियों तथा मनुष्यों में ज्ञान, शील, और ..तप में सर्वोत्तम थे। [१५, १८-२४ ]
- इस लोक तथा परलोक के सब काम-भोगों का त्याग करके,
. . दुःखों का नाश करने के हेतु से इन्होंने अति कठोर तपस्या की थी ... और स्त्री-भोग, रात्रीभोजन तथा समस्त भोग-पदार्थों का सदा के लिये