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सातवां अध्ययन
-(.)अर्मियों का वर्णन
- श्री सुधर्मास्वामी कहने लगे
.. कितने ही मनुष्य गृहसंसार का त्याग करके सन्यासी बन जाने . पर आग जलाते रहते हैं और मानते हैं कि उससे (यज्ञादि या धूनी .. तापने से) मोक्ष मिलेगा। परन्तु इस प्रकार तो वे अज्ञानवश भयंकर हिंसा ही करते हैं। उन्हें भान नहीं है कि अंडज, जरायुज, स्वेदज ।
और रसज प्रादि वस (जंगम) जीवों के . समान पृथ्वी, जल, अग्नि, __ वायु और तृण, वृक्ष आदि भी जीव हैं। श्राग सुलगाने से अग्नि,
पृथ्वी तथा श्रास-पास के अनेक उड़ते हुए जीव नाश को प्राप्त होते हैं। लकड़ी-कंडो में रहने वाले जीव भी आग सुलगाने में मर ही जाते हैं । इस प्रकार, वे मूढ़ मनुष्य अपने सुख के लिये अनेक जीवों का नाश करके, पापकर्म बांधकर, मुक्त होने के बदले संसार को ही प्राप्त होते हैं और अनेक योनियों में स्थावर या त्रस
रूप में जन्म लेकर अपने पाप-कर्मों का फल भोगते हुए, ( स्वयं ने - जिस प्रकार अन्य जीवों का नाश किया उसी के समान या अन्य . प्रकार से) विनाश को प्राप्त होते हैं [१-८ E... और भी उन लोगों की मूढ़ता को क्या कहा जाय? सुबह-शाम
भाग सुलगाने या धूनी तापने से यदि मोक्ष मिलता हो तो लोहार - श्रादि तो पूरे सिद्ध ही कहे जावें! [१८]