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सूत्रकृतांग सूत्र mmmmmmmmmmmmmmmmarwarmr.mmmcimminer
कितने ही मृद तो ऐसा तक कहते हैं कि,-"नमक का त्याग करने . . से मोत मिलता है । वे नमक तो छोड़ देते हैं, पर मदिरा, मांस और लहसुन तो उड़ाया ही करते हैं ! जिनकी. बुद्धि, इस प्रकार सर्वथा. मंद हो जाती है, ऐसे ही मनुष्य अपने लिये मोक्ष से उल्टी गति को तैयार करते हैं । [ १२-१३]
___ आगे, कितने ही ऐसा भी मानते हैं कि ठंडे पानी से (सुबहशाम नहाने-धोने से) मोक्ष मिलता है । सुबह-शाम पानी में नहाते रहने से ही यदि मोक्ष प्राप्त होता हो तो पानी में रहने वाले .. मच्छी आदि जीव तो तुरन्त ही मोक्ष को प्राप्त हो! पानी से . पाप-कर्म धुल जाते हो तो साथ में पुण्य-क्रम भी धुल जावेगे न? . इन लोगों ने इस प्रकार के सिद्धान्त बिना विचार कर बना लिये हैं। इनके आधार पर सिद्धि तो प्राप्त होगी ही नहीं पर इससे उल्टे वे . अज्ञानी अनेक प्रकार से अग्नि, जल, आदि जीवों की हिंसा करके संसार को ही प्राप्त होंगे। अपने सुख के लिये दूसरों की हिंसा . करने वाला कैसे सुखी होगा? इसलिये, बुद्विमान् मनुष्य स-स्थावर प्राणियों की हिंसा से सर्व प्रकार से दूर रहे. और दूसरे पापक्रमों से भी अपनी प्रात्मा की रक्षा करे क्यों कि किसी पाप को भी: . करने वाले को अन्त में रोना और मींकना पड़ता है। [१४-२०] .
___ यह तो विधर्मियों की बात हुई । परन्तु सद्धर्भ रूपी मार्ग को प्रात हुए अनेक जैन भिक्षुओं में से. भी कोई, किसी बाहरी प्राचार का पालन करके दूसरी ओर अनाचार का सेवन करते हैं । वे भी अधर्मी ही हैं । उदाहरण के लिये, अनेक भिक्षुक कंद, बीज आदि सजीव ग्राहार का त्याग कर देते हैं और निर्जीव तथा दूसरे ने अपने
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