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सूत्रकृतांग सूत्र -
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त्याग दिया होता है; वह तो सब जीवों को अभयदान देने वाला और निर्मल अन्तःकरणवाला होता है; वह तो अपनी पाप वृत्तियों से संग्राम . में आगे लड़नेवाले वीर की भांति युद्ध करता है और अपना पूर्ण पराक्रम दिखाता है। ऐसा करते हुए वह सब तरफ से ( अांतर-बाह्य . शत्रुओं से) पटिये के समान भले ही छिल जाय, या मृत्यु भी . श्रा खड़ी हो, पर फिर भी एकबार कर्मों को विखेर देने पर, धुरी टूटी हुई गाड़ी के समान वह तो फिर संसार की ओर नहीं बढता। [२१-३०]
-ऐसा श्री सुधर्मास्वामी ने कहा ।