________________
VVVVirvairo.fulsre-raw
at...
.......
.
............
.n.in.vuAANu'v."
... कर्मनाश
[१५
.....
.
..
...
.."
Ara
-
-
-
-
- मोह को दूर करके, क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रमाद या शिथिलता
का त्याग करके, तथा व्यर्थ की बातचीत, पूछताछ, वाचालता आदि निरर्थक प्रवृत्तियों में समय बिताना छोडकर अपने कल्याण में तत्पर बनो। धर्म साधने की उत्कण्ठा रखो और तप आदि में प्रबल पुरुपार्थ दिखाओ। जिसने मन, वचन और काया को वश में नहीं किया, उसके लिये अात्म - कल्याण की साधना करना सरल नहीं है। . महर्षि ज्ञातपुत्र (महावीर स्वामी) आदि ने जीवों पर दया .. करके, जगत् के सम्पूरी तत्त्व जान कर जिस परम समाधि (धर्म-मार्ग)
का उपदेश दिया है, वह अद्भुत है। इसलिये, .सद्गुरु की आज्ञानुसार इस मार्ग के द्वारा इस संसार रूपी महा प्रवाह का अन्त
(२२-३२]
.
इसी विपय भी चर्चा . करते हुए श्रीसुधर्मास्वामी आगे कहने लगे-.
. . कामों को रोग के रूप में समझकर जो स्त्रियों से अभिभूत नहीं होते हैं, उनकी गणना मुक्त पुरुषों के साथ होती है। जो काम-भोगों को जीत सकते हैं, वे ही उनसे पर वस्तु को प्राप्त कर सकते हैं। परन्तु कोई विरले मनुष्य ही ऐसा कर सकते हैं। बाकी दूसरे मनुष्य तो काम भोगों में श्रासकत और मूढ बन जाते है। यही नहीं, चे इसमें अपनी बडाई मानते हैं। वे तो वर्तमानकाल को ही देखते हैं, और कहते हैं कि परलोक देख कर कौन आया है ? ऐसे मनुष्यों को चाहे जितना समझाया जावे पर ये विपय-सुख नहीं छोड़ सकते । कमजोर वैल को चाहे जितना मारो-पीटो पर वह तो आगे चलने के बदले पड जावेगा।