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भिक्षु-जीवन के विघ्न .
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..परतीथिक द्वेप के कारण उसको नीचा दिखाने के लिये उसके श्राचार-विचार पर चाहे जैसे आक्षेप करते हैं । ऐसे समय बुद्धिमान् भिक्षु घबराये विना, चित्त को शांत रखकर अनेक गुणोंसे सम्पन्न युक्ति संगत वाणी में उसका प्रतिवाद करे । अनेक परतीर्थिक जैन भिक्षुओं पर आक्षेप करते हैं कि, " तुम अपने संघ के किसी भिक्षु के बीमार पडने पर उसके लिये भिक्षा लाकर खिलाते हो; इस प्रकार तुम एक दूसरे में प्रासक्ति रखते हो तथा तुम पराधीन हो ।” ऐसे समय वह उत्तर दे कि, " तुम तो उससे भी बुरा करते हो । ऐसे समय तुम तो गृहस्थियों के पास से बीमार के लिये ही भोजन तैयार कराके .
मँगवाते हो और उनके वर्तनों में खाते-खिलाते हो । इस प्रकार . .. अपने लिये खास तैयार किया हुआ निषिद्ध भोजन करना अच्छा या
अपने साथी द्वारा गृहस्थ से बचा-खुचा माँग कर लाया हुआ निर्दोष .. .. ' भोजन करना अच्छा ? " यो उनको कारा जवाब मिल जाता है, -'. और वे अागे वोल नहीं पाते ! तब वे गाली गिलौज करने लगते .. हैं । पर बुद्धिमान भिक्षु शान्त रहते हुए, सामने का वादी उग्र न . हो उठे इस प्रकार योग्य उत्तर दे। [८-१६] . .
- दूसरे अनेक पर तीर्थक से आप करते हैं-" बीज धान्य खाने
में तथा ठंडा पानी पीने में तुमको क्या बाधा है जो तुमने इनको - त्याग दिया है ? विदेह के राजा नभि तथा रामगुप्त आदि बीज- धान्यादि पदार्थ खाने पर भी सिद्धि को प्राप्त हुए । बाहुक तथा . नारायण ऋपि ठंडा पानी पीते थे । और असित, देवित, द्वैपायन
तथा पाराशर आदि तो ठंडा पानी, वीज-धान्य के सिवाय शाक भाजी का भी उपयोग करते हुए भी मुक्ति को प्राप्त हुए । तब तुम · इन सब पदार्थो का त्याग करके किस लिये दुःख उठाते हो ? "[१-५].