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स्वी-प्रसंग
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[१] परिणाम में आग के पास रखा हुआ लाख का घडा ज्यों 'पिघलकर नष्ट हो जाता है, वैसे ही वह विद्वान् भिक्षु उनके सहवास से अपने समाधि योग से भ्रष्ट हो कर नाश को प्राप्त होता है। ... [१६-२६]
विपमिश्रित दूध पीने वाले के समान अन्त में वह भिक्षु बहुल पछताता हैं । इसलिये, प्रथम से ही भितु स्त्रियों के प्रसंग का त्याग करे । कोई स्त्री, भले ही वह पुत्री हो, पुत्र-वधू हो, प्रौढा हो या छोटी कुमारी हो. तो भी वह उसका संसर्ग न करे। किसी कारणवश उनके निकट प्रसंग में न आना पडे इस लिये उनके कमरों में या वर में अकेला न जावे । [१०-१३] कारण कि स्त्री-संग किये हुए
और स्त्री चरित्र के अनुभवी बुद्धिमान् पुरुष तक स्त्रियों से संसर्ग रखने के कारण थोडे ही समय में भ्रष्ट होकर दुराचारियों की श्रेणि के बन जाते हैं ६ १२-२०]
फिर तो हाथ पैर काटो चमडी-मांस उत्तार डालो, जीतेजी अग्नि में सेको, शरीर को छेद-छेद कर ऊपर तेजाब छिडको, नाककान काट डालो, गरदन उडा दो पर चे उनका साथ नहीं छोड़ सकते। वे पर-स्त्री संग करनेवाले को होने वाले दण्ड को सुनने पर भी, तथा काम-शास्त्रों में कुटिल स्त्रियों के हावभाव और मायाचार जानने पर भी और अब नहीं करेंगे, ऐसे संकल्प करते हुऐ भी इस नीच कर्म को करते हैं। [२१-२४]
- ऐसा भिनु बाहर तो सदाचार और मोक्ष मार्ग की बातें दूने · · जोर से किया करता है क्योंकि दुराचारी का जोर जवान में ही होता .. है। परन्तु उसका सच्चा स्वरूप अन्त में प्रकट हुए बिना नहीं रहता।