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मानव-जीवन का ध्येय मानव, अखिल संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है । परन्तु जरा विचार कीजिए, यह सर्व श्रेष्ठता किस बात की है ? मनुष्य के पास ऐसा क्या है, जिसके बल पर वह स्वयं भी अपनी सर्वश्रेष्ठता का दावा करता है और हजारों शास्त्र भी उसकी सर्वश्रेष्ठता की दुहाई देते हैं।
क्या मनुष्य के पास शारीरिक शक्ति बहुत बडी है ? क्या यह शक्ति ही इसके बडापन की निशानी है ? यदि यह बात है तो मुझे इन्कार करना पड़ेगा कि यह कोई महत्त्व की चीज नहीं है। संसार के दूसरे प्राणियों के सामने मनुष्य की शक्ति कितना मूल्य रखती है ? वह तुच्छ, है, नगण्य है। मनुष्य तो दूसरे विराटकाय प्राणियों के सामने एक नन्हासा-लाचार सा कीड़ा लगता है। जंगल का विशालकाय हाथी कितना अधिक बलशाली होता है ? पचास-सा मनुष्यों को देख पाए तो सूंड से चीर कर सबके टुकड़े-टुकड़े करके फेक दे। वन का राजा सिंह कितना भयानक प्राणी है ? पहाड़ों को गुजा देने वाली उसकी एक गर्जना ही मनुष्य के जीवन को चुनौती है। आपने वन-मानुपी का वर्णन सुना होगा ? वे श्रापके समान ही मानव-याकृति धारी पशु है। इतने बड़े लवान कि कुछ पूछिए नहीं। वे तैयो को इस प्रकार उठाउठा कर पटकते और मारते हैं, जिन प्रकार साधारण मनुष्य रबर की गेंट को ! पूर्वी यांगों में एक मृत वनमानुष गो तोला गया तो या