Book Title: Rushidattras
Author(s): Jayvantasuri, Nipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JAYAVANTA SŪRI'S RSIDATTĀ RĀSA EDITED BY L. D. SERIES 53 GENERAL EDITOR DALSUKH MALVANIA NIPUNA A. DALAL भारतीय 3) L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD 9 Selain Education International अहमदाबाद Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JAYAVANTA SŪRI'S RŞIDATTĀ RĀSA EDITED BY L. D. SERIES 53 GENERAL EDITOR DALSUKH MALVANIA NIPUNA A. DALAL HREIRO HL, D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD - 9 स्मटाना Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Printed by (1) Text only Time Printers Pvt. Ltd. Binani Chambers, Opp. Ellisbridge Station Ahmedabad-9. (2) Introduction, etc. Swami Tribhuvandas Shastri, Shree Ramananda Printing Press Kankaria Road, Ahmedabad-22. Published by Dalsukh Malvanja Director L. D. Institute of Indology Ahmedabad-9. FIRST EDITION August, 1975 “Published with the financial assistance from the Government of India, Ministry of Education and Social Welfare (Department of Culture)." PRICE RUPEES Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतरि रचित ऋषिदत्ता रास संपादक नेपुणा अ. दलाल प्रगती लिपलमाल [प्रकाशक 'लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर अहमदाबाद-६ अस्मदाबाद Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरोवचनं ऋषिदत्ता रासनं प्रकाशन भारत सरकारनी सहायताथी करवामां आव्युं छे. ते सहाय माटे अमे भारत सरकारना शिक्षाविभागना आभारी छीए. कवि जयवंतसूरिए अनेक ग्रंथोनी रचना सं. १६१४ थी १६५२ना गाळामां करी हशे एवं तेमना केटलाक ग्रंथोने अंते आपेल रचना संवत उपरथो जणाय छे. प्रस्तुत रचना ऋषिदत्ता रासनी जूनामां जूनी प्रति सं. १६५९मां लखायेली मळे छे. परंतु ते सुवाच्य न होवाथी प्रस्तुत संपादनमां सं. १६६५ मां लखायेल प्रतनो मुख्यपणे आधार लेवामां आव्यो छे. तेथी आपणे कही शकीए के लेखकना समयनी भाषाथी वहु दूर नहि एवी जूनी गुजराती भाषानुं रूप आपणने प्रस्तुत कृतिमां प्राप्त थाय छे. कृतिना संपादक डो. निपुणा दलाले घणी काळजी लह अनेक प्रतोनां पाठांतरोनी नोंध लीधी छे अने कवि जयवंत तथा तेमनी कृतिओनो विगते परिचय आप्यो छे. प्रस्तुत ऋषिदत्ता कथानु मूळ छेक १३मा सैकामां मळे छे अने ते आख्यानकमणिकोषनी वृत्तिमां छे. ते पछी प्रस्तुत कृति सिवाय २८ ऋषिदत्ता विषेनी कथाओ अने रास आदि रचाया तेनी नोंध संपादके लीधी छे. आ उपरथी सूचित थाय छे के आ कथा केटली लोकभोग्य बनी छे. आमां सतीचरित्रनु चित्रण छे अने अनेक कष्ट पडवा छतां ऋषिदत्ता पोतानुं शील अने प्रतिष्ठा केवी जाळवी राखे छे तेनुं निदर्शन छे. एक ज कथामां जुदा जुदा लेखकोने हाथे केवां केवां परिवर्तनो थतां रह्यां छे तेनी पण नोंध संपादके लीधी छे. छंद अने अलंकार उपरांत आ कृतिगत कहेवतोनो संग्रह पण परिशिष्टमां संपादके करी दीधो छे. नमूनारूपे जुदा जुदा लेखकोनां वर्णनो पण तारवी आप्यां छे अने शब्दसूची पण आपी छे. आशा छे के जूनी गुजरातो भाषना अभ्यासोने आ कृति बहु उपयोगी थई पडशे. आ कृतिनुं संपादन करी डॉ निपुणा दलाले एस. एन. डी. टी. युनिवर्सिटी (मुंबई) नी पीएच. डी. नी पदवी प्राप्त करी छे. आ कृतिना प्रकाशननी मंजूरी आपवा माटे उपर्युक्त युनिवर्सिटीना अमे आभारी छीए. ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर अमदावाद ३८०००९ १५ ओगस्ट १९७५ दलसुख मालवणिया अध्यक्ष Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपादकीय निवेदन एस. एन. डी. टी. युनिवर्सिटी (मुंबई) मांथी इ. स. १९७० मां मने गुजराती विभागमांथी पीएच. डी. नी पदवी प्राप्त थई. पीएच. डी माटे में जूनी गुजरातीमां लखायेल कवि जयवंतसूरिनी " ऋषिदत्ता रास" नामनी हस्तप्रत पसंद करेल. कवि जयवंतसूरि मध्यकालीन गुजराती साहित्यमा अगत्यना कवि थइ गयां छे अने एमणे नानी मोटी अनेक कृतिओ रची छे " ऋषिदत्ता रास" मां कविए एक सतीनुं जीवनचरित्र आलेख्य छे अने में आ रासनु संपादन कर्युं छे. आ संपादन कार्यमा मने घणी व्यक्तिओ तेम ज संस्थानी किंमती मदद मळी छे. हस्तप्रतोने माटे मारे अमदावादना ला. द. भा. संस्कृति विद्यामंदिरना संचालकोनो, देवसानापाडाना उपाश्रयमां आवेला भंडारना व्यवस्थापकनो, श्री गोडीजीना उपाश्रय ( मुंबई ) ना भंडारना व्यवस्थापकनो अने महावीर जैन विद्यालयना संचालकनो आभार मानवानो छे. इस्तप्रतोना वाचनमा अत्यन्त मदद रूप बननार पंडित श्री अंबालाल प्रेमचंद शाहनो तथा संस्कृत हस्तप्रतना वाचन अने अनुवाद माटे स्व. मुनिश्री पुण्यविजयजीनो मारे अत्यंत आभार मानवो घटे में तैयार करेल शब्दकोष काळजीपूर्वक जोइ जई केंटलांक उपकोगी सूचनो अने सुधारा करी आपवा बदल हुं वयोवृद्ध पंडित श्री बेचरदास दोशीनी ऋणी छु. गुजरात युनिवर्सिटी, गुजरात विद्यापीठ, फार्बस गुजराती सभा ( मुंबई )नां पुस्तकालयोनो में कचारेक उपयोग कर्यो छे अने ते संस्थाओनी हुं आभारी छु अते आ पुस्तकना प्रुफ वांचीने सुधारी आपवामां मदद करनार पं० श्री बाबुभाई तेम ज आखाये पुस्तकने झीणवटथी तपासी जनार ला. द. विद्यामंदिरना नियामक श्री मालवणियासाहेबनुं ऋण स्वीकार्या विना केम ज चाले ? आ रासना संशोधनकार्यमा मने प्रोत्साहन आपी संशोधननी आंटी घुटीथी पूरती माहितगार करीने मारुं कार्य झपाटबंध पूरुं कराववामां मददरूप थनार डॉ. श्रीमती अनसूयाबहेन त्रिविदी तथा भूपेन्द्रभाई त्रिवदीनो हुं अत्यंत आभार मानुं छु बदल भारत सरकारनो पण आ पुस्तकना प्रकाशन माटे मोटी रकमनी सहाय आपवा अंतःकरणपूर्वक आभार मानुं बुं. निपुणा अ. दलाल Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयनिर्देश १. प्रस्तावना २. ऋषिदत्ता रास ३. पाठांतर ४. परिशिष्ट - १ 'ऋषिदत्ता रास'ना छंद ५. परिशिष्ट - २ 'ऋषिदत्ता रास 'मांना केटलाक अलंकारो ६. परिशिष्ट - ३ 'ऋषिदत्ता रास 'मांथी सूक्तिओ अने कहेवतो ७. परिशिष्ट - ४ 'ऋषिदत्ता रास'मानां केटलांक वर्णनोनी सूची ८. परिशिष्ट - ५ जयवंत सूरिमां न होय तेवां पुरोगामीओए आपेलां वर्णनोमांथी किंचित्१०९-११६ ११६-११७ ९. परिशिष्ट - ६ जीमूतवाहननी कथा १०. परिशिष्ट - ७ कविजयवंतसूरिए काव्यप्रकाशनी टीकानी नकलने अंते आपेल प्रशस्ति ११८ ११. शब्दसूची १२. शुद्धिपत्रक १३. संदर्भग्रंथसूचि ११९-१३३ १३४- १३६ १३७-१३८ पृष्ठ १-५३ १-६० ६१-१०० १०१-१०२ १०३-१०४ १०५-१०७ १०८ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना प्रतपरिचय १) अ-ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरना हस्तप्रत.संग्रहनी १५२६५ क्रमांकवाळी प्रत, पत्र ३२, पत्रदीट पंक्ति १२, पंक्तिदीठ अक्षरो आशरे ४०. लेखन वर्ष वि. स. १६६५. पानानु माप २६.१४११ से.मी. छे. बन्ने बाजु हांसियो ३ से.म.ना राखेलो छे. उपर-नीचे १.२ से.मी. जग्या कोरी राखेली छे. __ आ प्रत कोई विद्वान लहियाना हाथे लखायेली लागे छे, जेथी वाक्यरचना सुसंगत छे अने अर्थ काढवामां मुश्केली नथी पडती. अनी पुष्पिका नीचे प्रमाणे छे : “संवत १६६५ वर्षे वैशाख वदि १२ दिने श्री गंधारवास्तव्य पटुआ पासवीरलिखित सकलवाचव.मंडलीतिलकायमान - वाचकचक्रचक्रवर्ति-महोपाध्यायश्रीविमलहर्ष. गणिचरणवञ्चरीकायमाण-देवविजयामिवाचवार्थ शुम भवतु ॥ कल्याणमस्तु ॥ श्रीस्तु श्रीश्रमणसंघस्य" (२) ब-देवसाना पाडाना भंडार संग्रह, अमदावादनी प्रत. पत्र २१, पत्र दीठ पंक्ति १२, पंक्तिपीठ अक्षरी ४०. (३) क–देवसाना पाडाना भंडार संग्रह, अमदावादनी प्रत. पत्र ३०, पत्रदीठ पंक्ति १४, पंक्तिदीठ अक्षरो ३५. पानानु मा५ २२.३४१०.२ से.मी. छे. ड–महावीर जैन विद्यालय, मुंबईना ह.लि. प्रतिभंडारनी प्रत. क्रमांक सं. ४४२, पत्र २७, पत्रदीट पंक्ति १३, पंक्ति दीठ अक्षरो ३७. (५) ई-महावीर जैन विद्यालय, मुबईना ह.लि. प्रतिभंडारनी प्रत, क्रमांक ४४३, पत्र २६ पदीट पंक्तिओ १३, पक्तिदीठ अक्षरो ४५. पानानु माप २६.२४११.२ से.मी. छे. (६) फ-गोडीजी उपाश्रयना ह.लि. भंअर, मुंबईनी प्रत, क्रमांक १२०३, पत्र २५, पत्रदीट पंक्तिओ १३ थी १४, पंक्ति दीठ अक्षरो ४०, लेखन वर्ष १६५९. पानानु माप २६४११.१ से.मी. छे. उपलब्ध प्रतोमां आ प्रत सौथी जूनी छे, परंतु एनी स्थिति सामान्य छे. प्रत पाणीथी भीजायेली छे, जेथी पत्रोनु लखाण झांखु अने आछु थई गयु छे, क्यांक अक्षरो पण भुंसाई गया छे, छतां बीजी प्रतना आधारे वांची शकाय, Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनी पुष्पिका नीचे प्रमाणे छे : इति सतीशिरोमणि ऋषिदत्ता आल्यान सपूर्णमिति ॥ भद्र महोपाध्याय श्री कल्याणविजयगणि पंडित श्री शुभविजयगणि शि. लालविजय लिखित ं । स्वपरोपकाराय स्तंभतीर्थे ॥ श्रीः ॥ संवत १६५९ वर्षे पोष सुदि ४ दिने चिरं जय ॥ श्री ॥ "" (७) ग-ला. द. भा. संविद्यामंदिर, अमदावादना ह. लि. भंडारनी प्रत, क्रमांक ३३६८, पत्रसंख्या ४४, पत्रदीट पंक्ति २४, पंक्ति दीट १३ अक्षरो. आ प्रतनां पत्रो छूटां नथी. गुटका * साइझमां बीजी अनेक प्रतोनी साथे ग्रंथाकारे धाली छे. प्रतनां पृष्ठ नंबर ५४ थी ९८ छे. पानानु माप २२.१×१२.७ से.मी. छे. अंते पुष्पिका नीचे प्रमाणे छे : "भट्टारक श्रीविजयदेवसूरीश्वर आचार्य श्री विजयसिंहसूरिराज्ये पंडित श्री सुपतिगणिशिष्य हीरसारेण लिखित श्रीगलकुंडानगरे आशीर्वाद पंचमीदिने श्री । " संपादनमां पाठनिर्णय अने पाठसंकलन " ऋषिदत्ता रास "ना संपादन माटे जे सात प्रतोनो उपयोग कर्यो छे तेमांथी अक प्रत 'अ' ने आदर्श गणी बीजी छ प्रतोना पाठभेद नोंध्या छे. मूळ लेखकना हाथे ज लखायेली प्रत पत्र * आ गुटकामां नीचे प्रमाणे बीजी कृतिओ छे : ( १ ) शाश्वत जिन स्तवन- कर्ता लक्ष्मीविजय, (२) विक्रमादित्य पंचदंड चोपाई -रचना संवत १५५६,,, (३) पार्श्वनाथगीत —नन्नसूरि ( ४ ) कायागीत - पद्मतिलक (५) मुनिपति चोपाई - रचना संवत १५५०, (६) नेसराजुल बारमास - जयवंतसूरि (७) स्थूलभद्रकोशा प्रेमविलास फाग -- (८) कुनार छंद (९) शंखणी छंद (१०) सीमंधर गीत नन्नसूरि (११) नेभिगीत ( १२ ) पद्मावती स्तोत्र (१३) हंसाउली असाईन (१४) दिनराचिनां चोघडियां आदि (१५) माधवानल कामकंदला चोपाई - (१६) बेताल पंचविंशतिका चोपाई - ज्ञानचंद्र ले. स. १७०८ - कुशललाभ "" 33 22 " " " "3 33 37 23 י, " " "" " १० - १२ संपूर्ण छे. २१-५३ ९८ دو १-४८ ४८-५५ ५५-५८ ५८ ५८-५९ ५९-६० ६० ६०-६३ ६३-९४ ९४-९५ ९५-१३५ १३५-१९३. "" Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मळे तो पाठांतर लेवानी जरूर न पडे, पण लेखकनी पछी 10-1५ के ५० वर्ष लखायेली प्रतोमां लहियानी योग्यता सभजीने तेने महत्त्व आप पडे. सांय योग्यता न जणाय तो पाठो माटे तत्कालीन भाषाप्रवाहने ध्यानमा राखी बीजी प्रतो उपरथी मूळ पाठने शुद्ध करवो पडे. उपलब्ध प्रतोमांथी समयनी, जोडणीनी के भाषानी प्राचीनताना धोरणे प्राचीनतम टरावी शकाय तेवी तेज ते सुवाच्य हाय अवी प्रतने मुख्य प्रत गणी छे अने संपादित ग्रंथपाट तेने आधारे तैयार करवामां आव्या छे. आ प्रत ला.द. विद्यामंदरना ह.लि. भंडारनी छे. आना करता जूनी प्रत गोडीजी उपाश्रयना ह.लि. भंडारमांनी छे, परंतु ते प्रत पाणीथी भींजायेली छे अने तेमां क्यांक अक्षरो भुंसाई पण गया छे. प्राचीन गुजराती कृतिओना संपादनमा पाठांतरोनी नेांध ओक खूब ज गूंचवे अवा प्रश्न छे. अनेक कारणे प्रतोमा जोडणी बाबत संपूर्ण अराजकता प्रवर्तती जोवामां आवे छे. घणी वार अर्बु बने छे के लहियो जो विद्वान न होय अने मळ पाठ बराबर ऊकल्यो न होय तो पोतानी समज प्रमाणे अणे फेरफार करीने प्रत उतारी होय छे अटले लहियाओनी मर्यादाओ स्वीकारी लईने मूळ पाठने शुद्ध करवानो प्रयत्न को छे. बीजी छ प्रतोनां पाठांतरो कृति पूरी थतां पाछळ ओक साथे ज आप्यां छे. संदर्भ माटे आवश्यक होय ते तेम ज बीजी प्रतामा सळता वधाराना पाठने पण त्यां नेांध्या छे. मुख्य प्रतनी अक के वधारे व.डीओ बीजी काई पण प्रतमा न मळती होय तो पण ते कडी संपादित ग्रंथपाठमां औचित्यपुरःसर ते ते रथळे मूकी छे... कवि जयवंतसूरिनुं जीवन ऋषिदत्ता रासना कर्ता कवि जयवंतसूरि आचार्य विनयमनसूरि स्थापित वृद्धतपगच्छनी पर. परामां थई गया जेवी माहिती तपागच्छ पट्टावलीमांथी मळे छे.* ___लगभग चौदमा सैकानी शरूआतमां वृद्धपौषालिक तपागच्छ अने लघुपोषालिक तपागच्छ अम बे गच्छो विचारभेदना कारणे अस्तित्वमां आव्या हता. तेमांथी वृद्धपौषालिक तपागच्छनी स्थापना संवत १३०० थी १३२५ना गाळामां थई हती. कवि जयवंतसूरिना जीवन उपर प्रकाश पाडे तेकी कोई सामग्री हजी सुधी उपलब्ध थई नथी. संसारीपणाना त्याग करी दीक्षा लई लेनार जैन साधुओ पोताना पूर्वजीवन उपर भाग्ये ज प्रकाश पाडे छे-अमना दीक्षित जीवन विषे पण बहु आछी माहिती मळी शकती होय छे. कवि जसवंतसूरिओ पोताना गीतसंग्रहमां पाताने माटे नीचे मुजब लब्यूछे अने तेने आधारे आपणे कही शकीए के तेओ बाळब्रह्मचारी हता: " नेमिनाथ जयंती राजलि पुहती गढगिरनारी रे, जयवंतसूरि सामी तिहां मिलीट, आबाल ब्रह्मचारी रे." * : श्री तपागच्छ पट्टावली, भाग १ले '-कर्ता-उपाध्याय श्री धर्मसागरजो, संपादक-पन्यास श्री कल्याणविजयजी महाराज, प्रकाशक-श्री विजयनीतिसूरिश्वरजी जन लाइब्रेरी, अमदाबाद, इ.स. १९४०, पुष्ट ५-६. 'शत्रुजय तीर्थोद्धार प्रबंध'नी प्रस्तावना-वतश्री जिनविजयजी, आत्मानन्द प्रकाश, माघमासनो अंक, पृष्ठ १५६. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीक्षा लेतां पहेलां तेमणे केटलो अने कोनी पासे अभ्यास को हतो ते बिले शुजाणवा मळतु नथी, पण अमनी कृतिओ जोला अमनो अभ्यास सारो अवो हशे अम अनुमानी शकाय. मम्मट आचार्यना 'काव्यप्रकाश' उपर लेमणे संस्कृत टीका लखेली होईने सेओ संस्कृतना सारा विद्वान हता अने अलंकारशास्त्रना सिद्धांताथी सुपरिचित हता अन निःसंकोचपणे कही शकायकवि जयवंतसूरि पोताना गुरु विनयमंडन उपाध्यायनो उल्लेख पोतानी कृतिआमां करता रहे छ : " वडतपगच्छ सोहाकरू हो, श्री धिनयमंडन गुरुराजि; रत्नत्रय आराधकी हो, जे जगि धर्मसहाय, टक जे जगि धर्मसहाय गुणाकर, सुविहितनई धुरि किध; तस सीस गुणसोभाग सुलामई, जयवंतसूरि प्रसिद्ध." -ऋषिदत्ता रास ह. लि. प्रत, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, क्रमांक १२१८, पृष्ठ ३१. “श्री विनयभंडन उवझाय अनोपम, तपगच्छ गयणचंद, तसु सीस जयवंतसूरिवर, वाणी सुणतां हई आणंद." -नेमराजुल बारमास वेल प्रबंध ह. लि. प्रत, ला. द. विद्यामंदिर-गुटको " श्री विनयप्रमोदमुरु सीस, इम बुझबई वचन रसाल जयवंतपंडित बीनवेई, इम जापी रे विषयरस टालि." -राजुलगीतानि-इतिस्पर्केन्द्रियजीत. ह. लि. प्रत, ला. द. विद्यामंदिर-गुटको. " साधु सिरामणि जाणीइतु, श्री विनइमंडन उवझाया रे तास सीस गुण आगला तु, बहुला पंडितराया रे." - श्री सीमंधरस्वामी लेख. "फल लीउ नरभवतरुतणां, श्री विनयभंडण गुरु सीस जयवंत पंडित वीनवई, कर सफल धर्षिइ देह रे..? ___ -- गीतसंग्रह-इति अंतरंग गीत. कवि जयवंतसूरिख पाताना ग्रंथ शृङ्गारमंजरीमा जे केटलीक विशेष माहिती आपी छे ते उपरथी नीचेनी बिगतो जाणी शकाय छे : श्री विनयमंडन उपाध्यायने विवेकधीरगणि अने जयवंतसूरि बे शिष्या हता. अमां विवेकधीरगणि शिल्पशास्त्रमा अत्यंत निपुण हता अने तेमणे शत्रुजयतीर्थोद्धारना कार्यमां Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिल्पोआना निर्माण पर पूरी देखरेख राखी हती. शत्रुजय तीर्थोद्धास्की प्रशस्ति तेमणे. संस्कृतमा रची छे. तेमना गुरुभाई जयतवसूरिनु अपरनाम गुणसौभाग्यसूरि हतुं. अमणे गुरुपरंपरानो उल्लेख नीचे मुजब शृङ्गारमंजरीमां को छे : " श्री तपगछ उद्योतकर, श्रीविजयधर्मसूरिंद जिम सुरपति सुरबन्दमां, जिन ग्रहगणमां चंद श्री विजयरत्न सूरिंद गुरु, पट्ट महोदय भाण श्री धर्मरत्न सूरीश्वर, केतू करु वखाण श्री विद्यामंडन सूरीश्वर, श्री विनय मंडन स्वज्झाय श्री सौभाग्यरत्न सूरीश्वर, विजयमान गुणधार विजयमान कुलपंडनह, श्री विवेकम उन उवझाय श्री सौभाग्यमंडन पंडितह, चतुर सौभागी सार. श्री विनय उन मुणींद, लघु सीस भूमिप्रसिद्ध, जयवंतपंडित अभिनवी, शृङ्गारमंजरी कीद्व." उपरना अवतरणने आधारे गुरुपरंपरानु वृक्ष नीचे मुजब थाय : विजयधर्मसूरि विजयरत्नसूरि धर्मरत्नसूरि है विद्यामंडनसूरि . विनयमंडन उपाध्याय विक्कधीरगणि जयवंतपंडित (1) जयमंडन (२) विवेकमंडन (३) रत्नसागर (४) सौभाग्यरत्नसूरि (५) सौभाग्यमंडन Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कवि जयवंतसूरिनी कृतिओ “षिदक्ता रास" उपरांत नानी मोटी थईने जयवंतसूरिनी नव-नस कृतिओ उपलब्ध छे, जमांधी बे-अक जैनगृहस्थोना जीवनप्रसंगने लाती छे, तो ये-ओक जैन संतो-साधुपुरुषो विषे छे. तदुपरांत बे-त्रण कृतिओ स्तबन अने सज्झाय रूपे छे, जेनां जैनतीर्थ करनु गुणदर्शन करेलुछे, आ सर्व कृतिओझा "ऋषिदना" म ज "शद्वारमजी, बन्ने कृतिओ सारी रीते मोटी तेम ज कविनी कवित्वशक्तिने छती करती, तेमनी विद्वत्ताने नवाजती मुंदर कृतिओ छे. कृतिओनां नाम नीचे प्रमाणे छ : (१) शुद्भारपञ्जरी (शीलवती चरित्र) स. १६१४. (२) स्थूलभदकोशा प्रेमविलास फाग-1६१४ आसपास २९ कडी (३) ऋषिदत्ता रास-स. १६४३ (४) नेम राजुल बारमास वेलप्रबंध (५) सीधर स्तवन (६) राजुलगीतानि (७) स्थूलभद्र मोहनवेलि-ग्रंथान ३२५ (८) सीधरना चंद्राउला-२७ कडी (९) गीतसंग्रह (10) लोचन-काजल संवाद-1८ कडी (११) नेमनाथ स्तवन. कृतिपरिचय (१) शृंगारमंजरी : जयवंतसूरिओ “ शृङ्गारमन्जरी(अपर नाम "शीलवतीचरित्र )नी रचना स. १६१४मां अटले के अमना यौवनकाळ दरम्यान करेली छे. लगभग साडाबारसा लोकमां रचायेली आ कृतिनां कवि अक सती स्त्रीन जीवनचरित्र सचोट शब्दोमां आलेखवानो प्रयास को छे. शील अ स्वोनु सौथी वधारे मूल्यवान रत्न छे अने अने कोई पण संजोगोमा साचवी राखत्रु ओ स्त्रीना जीवननु कर्तव्य थई पडे छे अ दविवाने कविना उद्देश छे. कविले नायिका शीलवतीना शृंगारनु वर्णन तेज ते समयनु जीवनदर्शन, राजकीय स्थिति, लोकोनी धर्मभाबना बगेरेनु पण वर्णन कर्यु छे. " संवत सोल चौदोतरइ, आसो सुदि गुरु बीज .. कवि कीधी शृंगारमंजरी, जयवंत पंडित हेज." (२) स्थूलिभद्रकोशा प्रेमविलास फाग : प्रस्तुत "स्थूलिभद्र-कोशा प्रेमविलास फाग" कविओ सं. 1६१४नी आसपास स्च्या छे. आ ४५ कडीनी अमनी संक्षिप्त पण रसपूर्ण कृति छे. आ काव्यमां कवि जैन समाजमां खूब ज प्रसिद्धि पामेला श्रावक स्थूलिभद्र अने वेश्याकोशाना जीवननु वर्णन कर्यु Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छे. पाटलिपुत्रना राजा नद महाराजना मंत्री शकटालना पुत्र स्थूलिभद्र गृहत्याग करीने वार वर्ष सुधी कोशा नाजनी वेश्याने घेर प्रेमविलासमां जीवन व्यतीत करे छे. पिताना मृत्यु पछी नाना भाईने मंत्रीपद सोंपे छे अने पोते संसार प्रत्ये वैराग्य उत्पन्न थतां साभु पासे दीक्षा ग्रहण करे छे. दीक्षा दरम्यान अपना गुर असना चारित्रनी परीक्षा करवा वेश्या कोशाने त्यां चातुर्मास गाळया ओकले छे. ज्यां स्थूलिभद् वेश्याली साथ रहेब उतां पण जळालवत् रही पोतार्नु शुश्च चारित्र स.बित करे छे. ते दरम्यान स्थूलिभदना वियोग साये कोशाने ऋतुओ केवा संताप आपे छे तेनु वर्णन अने स्थूलिभद्रना मिलने अनु हेयु केQ काल समान विकसित थाय छे ते वर्णव्यु छे. आ फागमा ४१मी कडी सुधीनां स्थलिभद्र के कोशान नाम पण आवत नथी. त्यां सुधीनी रचना सांसारिक प्रेम काव्यनी ज छे. पात्र छेवटनी चार कडीओमां ज कवि अछडतो उल्लेख को छे अने रचनाने जैन फागुनी परंपरागत कोटिमा मूकबाना औपचारिक प्रयत्न को छे. (३) ऋषिदत्ता रास : स. १६४३ मां रचायेल ४१ ढाळना आ रासनु संाइन अही कर्यु छे अटले ओ अंगे विगतवार माहिती पछीनां प्रकरणोमां आपी छे.. (४) नेमराजुल बारमास वेल प्रबंध : ___ आ बारमासी काव्यमां कवि जैनोना बावीसमा तीर्थकर ने प्रनाथे मुक्तिरूपी स्त्रीने मनमा धारण करी राजुलकुमारीने परणवा जतां अनो केवी रीते त्याग को तेनु वर्णन कर्यु छे. नेमनाथना विरह दरम्यान बारे ऋतुओ राजुलने केवी रीते विरहथी सतापे छे अने अन्यने सोहामणी लागती ऋतुओ राजुलकुमारीने केवी पीडा आपे छे ते वर्णव्यु छे. "बीजलीयां चरत कि कलपल हाइ हइयां रे दाधा उपरि लूण लगावइ बप्पैयां रे." अंते नेमनाथे जे मुकितना गुण गाया ते सांभळीने राजुले पण जिनेश्वर पामे सयमनी याचना करी अने शिवपुरीने वरी. (५) सीमंधर स्वामी लेख : __ ३९ कडीना आ स्तवनमां कविश्रे हालमां महाविदेहक्षेत्र बिचरता जैन तीर्थङ्कर सीमधरस्वामीनी स्तुति की छे : “भारः गुणवान अदा सीमधर स्वामी : तर नाम बोलतां मोढानांथी अमृत झरे छे, तेमज तारः गुणरूपी काले मारः अनरूपी भ्रपरने वीध्यो छे. तने मकवाने मारु मज खूब ज विहवळ छे पण शु कर? तु खूब ज दूर छे. तारा मुखरूपी चंद्रने जोवा जाटे मारा नयनो आतुर छे. तारा गुण गावा माटे तो मारी पासे अक्षर पण ओला छे." " अक्षर बावन गुण घणा तु, केता लखीइ लेख रे थोडइ घणउं करी मांनयो, सुख होसिइ तुम्ह देखिई रे." Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ (६) राजुळावतातिः : आ गीतमां नेमनाथ विना राजुल केवी झूरे छे अने अने विरह केव बाळे छे ते कवि वर्णव्युं छे. कवि सलाह आपे छे के हे भविक जनो! तमे विषयमां विलुब्ध न यो विषयने उत्पन्न करनारी आ पंचेन्द्रिय उपर संयमः केळवो: कारण, विषय तो कषाय करावे छे. नाक, कान, आंख, जीभ अने स्पर्श आ सर्वे इन्द्रियो विषयरसने वधारनारी छे तेथी सुख पामवा सेना उपर जीत मेळवो. कविअ आ गीतने पांच जुदां गीतोमां वच्युं छे. प्रथम गीतमां कवि नेमनाथना विरहमां राजलना मुखे बोलावे छे के जे माणस स्नेहथी बंधायेला होय तेने विरह सहेवो मुश्केल छे. बीजा गीतमां चक्षुने दोष दइ कवि कहे छे के "पापी अवां नयनोने धिक्कार हो ! जेने स्वप्नमां पण मल्यां न होय तेने जोईने स्नेह घरे छे अने अना विरहथी झूरी मरे छे." वीजा गीतमां भ्रमर नासिका द्वारा रखनी सुगंध माणी केवी रीते कमलना बंधनमां जकडाय छे ते वर्ण व्यु छे. चोथा गीतमां हाथीनुं दृष्टांत आपीने कहयुं छे के स्पेर्शेन्द्रियथी हाथिणीओ जे विलास रच्यो तेयां हाथी सनडाई गयो, मांट तमे विषयरसने टाळो. पांचमा गीतमां पोपट प्रतीक · लइ कवि कहे के फरुनी आशाओ ते पिंजरां पुरायो आम जाणी विषयरस त्यागो. आम मोह ज आपणने दुःखी करे छे जेवी रीते नेमनाथना स्नेहमां राजुल दुःखी थाय छे तेवी रीते. माटे इन्द्रियोना सुखनेा त्याग करो अवो कविना उपदेश छे. ( ७ ) " स्थूलभद्र मोहन वेलि" -- प्रथाय ३२५ : आ कृतिनी हस्तप्रत प्राप्त थई नथी. (८) सीमंधरना चंद्राउला : आ २७ कडीनु काव्य छे. आमां पण कविओ हालमां महाविदेहक्षेत्रमां विहरता जैनोना तीर्थ कर सीमंधरस्वामीनी स्तुति करी के. "सुणज्ये! वीनतीरे, ओलगाडी रे सौंदेसे मान्यो दूरिथी रे अतिशय सयल अलंकार, सीमंधर जिनरायेो: " ( ९ ) गीतसंग्रह : आ गीतसंग्रहमां कवि रचेलां ५३ गीतानो संग्रह छे: कविअ सरस्वती - लक्ष्मी पद्मावती वगेरे देबीओना गुणगान गातां गीतो रच्यां छे, तो केटलाक तीर्थ करान वर्णन क छे तदुपरांत प्रख्यात श्रावकोनां चरित्रो उपर पण गीत रच्यां छे. सरस्वती देवीनी महत्ता गातां कवि कहे छे के “वांणी निर्मल आपती रे, कापती अस्तिणां मूल महीअलि महिम वधारती रे, शारदा थई सानुकूल. चोथा गीतमां चोवीसमा तीर्थंकर. "महावीरस्वामी" नी स्तुति करो छे : "उघड्या आनंद रहां हाट, तुं दोटई सवि व्ल्यारे उचाट." Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमा गीतमां जैनोना महातीर्थ शत्रजयगिरिनु वर्णन करतां कवि कहे छे: ____“कणेय भुवनमा विमला चल जंबु कोई तीर्थर थान नथी. यां देवं स जिनेदर समोसर्या छे अने पांचकोडि मुनिओ परिवर्या छे." सोळा गीतमा कवि तृष्णानो त्याग करवा विनवे छे. अकत्रीसमा गीतमां कवि नेमनाथना विचारे चढती राजीमतीनी व्यथा वर्णवे छे. ते बिचारे छे के “ मारा नेमजी आवशे त्यारे अमने थाळभरी मातीथी वधावीश. जे मारा वालिभनी वात करशे तेने वधामणी रूपे हार आपीश." तेवीसना गीतमां स्थूलिभद्र ज्यारे पाछा कोशाने त्यां आवे छे त्यारे कोशाना दिलमां जे आनंद थाय छे ते व्यक्त को छे. अंते वेपनमा गीतमां कविले राजुलनी नेमनाथनां दर्शन करवानी अभिलाषा वर्णवी छे. आप गीतसंग्रहमां अनेक छटांछवायां गीतानी लहाण कविओकरी छे.. (१०) लोचनकाजल संवाद : आ अढार कडीन सुंदर गीत छे. आमां कवि लोचन अने काजल बच्चेनो सुंदर संवाद रजू को छ : " नयणारे गुण रयणां नयणां, मणघटती जोडि, काला कज्जल केरइ कारणि, तुझनइ मोटी खोडि रे." आ उपरांत, कवि काव्यप्रकाशनी टीका संस्कृतमां लखी छे तेनी प्रशस्ति नीचे प्रमाणे छे: " टीका काव्यप्रकाशस्य आलिलेख प्रमोदतः । गुणसौभाग्यसुरीणां गुरूणां प्राप्य शासनम् ॥ संवत १६,२ वर्षे पोष सुदि १३ बुधे समाप्तोयं ग्रन्थः ॥ आम कवि पद्यसाहित्यना विविध प्रकारो जेवा के रास, बारमासी, फागु, स्तबनो, गीत वगेरे खेड्या छे. (११) नेमनाथ स्तवन : ४. कडीनी आ नानकडी कृतिन संशोधन करी मुनिश्री संपतविजयजीना शिष्य मनि धर्मविजये ओ कृति ताजेतरमां बहार पाडी छे अम जाणवा मल्यं छे. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रास ( संक्षिप्त स्वरूपचर्चा ) : . प्राचीन गुजराती साहित्यमा 'रास', 'फागु', प्रबंध, पवाड, बारमासी, पद वगेरे जे अनेक साहित्यप्रकारो खेडाया छे तेमां रासप्रकारने आपणे सोथी धारे महत्त्वनो रणी शकी. ‘रास' के 'रासा' अटले प्रासयुक्त पद्यमां (दुहा, चोपाई के 'दशी' नामे ओळखाता विविध रागोपांना कोईमा) रचायेलु, धर्मविषयक ने कथात्मक के चरितात्रक, सामान्यतः काव्यगुणी थोडे अंशे होय छे तेवु, पण समकालीन देशस्थिति तथा भाषानी माहिती सारा प्रमाणमां आपणने आपतुं, लांबु काव्य. * 'रास' काव्योनो अध्यकालमा मोटो प्रचार हतो. 'रास' रमत्रो अने 'रास' रचवो अस वे भिन्न भिन्न क्रियाओं परत्वे रास शब्दना भिन्न भिन्न अर्थ थाय छे. 'रास' रनवो अटले रास नामना नृत्यप्रकारका समारंभभां भाग लेवो ते. ने 'रास' स्चवो अटले रास नामनो काव्यप्रकार रचवो ते. आज 'रास' नृत्यप्रकार छे तेल काव्यप्रकार पण छे. x आ रथळे आपणे रासना काव्यप्रकारने दिचारीशु. 'रास' के 'रासा' नामथी ओळखाता आ काव्यप्रकारनो प्रयोग सौथी पहेलो जैन मुनिओओ करेलो जणाय छे. अपभ्रंश भाषामां महाकाव्यो स्चातां तेने रथाने मध्यकालीन गुजरातीभां रास' रचावा सांड्या. महाकाव्योनी सर्गनी पद्धतिने बदले कडवां, भासा, ठवणी के काळमां विभाजित अवो आ गेय काव्यप्रकार हतो. अम जणाय छे के आरंभमां · रास'नु स्वरूप अभिकाव्य जवु हशे. पण पछीथी ते विस्तृत वर्णनात्मक काव्यस्वरूप बनी गयु अने 'रासउ' के 'रासो'नी संज्ञा पाम्यु. ___ मध्यकालीन गुजरातीमां जूनामां जूनो उपलब्ध रास ते सं. १२४ १मां रचायेल शालिभद्रसूरि कृत "भरतेश्वर बाहुबलि रास'. _हेमचंद्र आचार्यता समयमां रास अथवा रासक ओक गेयरूपक तरीके लोकोने परिचित काव्यप्रकार हतो. उत्सव टाणे मंदिरोमां तथा जैन देरासरोमां रास रमाता अने गवाता. खास प्रसंगने माटे जैन साधुओ नवा नवा रास लखी पण आपता. "ताल रासक' अने “लकुटा रासक" ओ बे नामो उपरथी लागे छे के रास गेय अने अभिनयक्षम साहित्यप्रकार ज हतो. भजवाता रासने समयमर्यादा नडे अटले ते ट्रॅका गीत जवा होय; परंतु तेमां कथानु तत्त्व खधु ने बधु प्रमाणां उमेरातां ओ प्रकार वर्णनात्मक अने पाठ्य बनी गया. गेयता भले कायम रही पण अभिनयक्षता घटी गई. आ काव्यप्रकार विस्तृत बनता रचनाबंध कोई पण अेक ज ढक पुरता मयादित न रहयो, रचनाना खंड पड्या अने ते खंडो भास, ठवणी, हाळ इत्यादि नामो पाम्या अने तेमनी गेयता दर्शाववा भाटे लोक प्रचलित दशीओनो उल्लेख खंडोने मधाळे थवा मांड्यो. * वेद्य विजयराय क. : “गुजराती साहित्पनी रूपरेखा" आवृत्ति १ली, १९४३, पृष्ट १०-२०. x ठाकर धीरुभाई : “ गुजराती साहित्यनी विकासंग्खा" (ख १ --मध्यकाळ), चाथी आवृत्ति, १९.९, पृष्ठ 110-11१. Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ जे विस्तृत रासाओ जैनमुनिओ द्वारा रचाया तेमां जन आगमो सूत्रो अने अंगोनां आवतां पौराणिक पात्रोने अनुलक्षीने कथानको रचेलां मळे छे. घणा रासोमा दीपक शङ्गाररसनां वर्णनो मळे छे, पण तेनी साथे कविने उपदेशवानो होय छे विषयोपभोगतो त्याग ओटले काव्यो अंत हमेशां शील अने सात्त्विकताना विजयां आवे छे रासनी रचनानो उनो बोध होय छे अने अमां संयमश्रीने बरवानी वात आवती होय छे. - रासाओनो मुख्य हेतु धर्मोपदेश आपवानो रोचक कथानक द्वारा जो थे कार्य थई शके तो जनता उपर से उपदेशनी सचोट असर थाय बळी घणा रासाओ तीर्थकरो, राजवंशी जैन साधुओ के जैन श्रेष्ठीओना जीवनचरित्रने विषय बनावे छे. कोईक रास तीर्थनु साहात्म्य पण वर्णवतो होय छे. आय जैन मुनिओओ रचेला रासमां जैनधर्मनुं माहात्म्य बताववु अ ज प्रधान हेतु छे. वर्णनो, प्रसंगो अने धर्मोपदेश उपरांत साहित्यनुं तत्त्व पण घणा रासाओमां सळे छे. संस्कृतमां प्रवीण सेवा घणा साधुओओ रचेल रासाओमां शब्दालंकार ने अर्थालंकार बन्ने मोटा प्रमाणम मळे छे. आ रासाओमां कर्मनो सिद्धांत टसावना सारे आगळपाळना भवनी कथा कवि आपे छे. कविभां पांडित्य होय पण कवित्वनी ऊणप होय त्यां अनी कृति रोचक न बने ने केवळ धर्म कथा ज बनी रहे अ पण अट ज साधुं छे. पाळधी रचायेला केटलाक रासाओभां परिस्थितिले आवो वळांक लीधो होवानुं जणाय छे. सामाजिक दृष्टि पण रासाओ उपयोगी बने छे, केस के तेमां व्यक्तिगत, अतिहासिक, सामाजिक, भौगोलिक के राजकारण संबंधी उपयोगी माहिती पण भरवामां आवी होय छे. आ हिसाबे जैन रासा - साहित्यनु अंतिहासिक दृष्टिले पण सहत्त्व छे.* श्री जयवंतसूरिओ रचेल " ऋषिदत्ता रास "नु कथावस्तु ( ढालानुक्रमे ) : पंच परमेष्ठीने नमस्कार. सरस्वती ऋषिदत्ताना आख्यानदी रचना साठे निर्मळ वाणी आपो. रसिकजनोना आग्रहे ऋषिता चरित्र आलेखवानो आ उस कीधा छे. (१) रथमर्दनपुर नामे अक सुंदर शहेर हतु त्यां हेमस्थ नामे राजनीतिमां निपुण राजा राज्य करतो हतो. तेने सुयशा नापनी रूपवती पटराणी हती. तेनो दीकरो कनकरथ कांतियां कामदेव सरखो हतो. (२) कावेरी नामनी अक रमणीय नगरीनां सुंदरपाणि नामे बळवान राजा राज्य करतो हतो. तेनी पटराणी वसुधाने रुखमणी नामनी स्वरूपवती दीकरी हती. ते उम्मरलायक थाने तेने लायक वर शोधवानी चिंता थई. कतकरथ ज वर तरीके सर्वोत्तर लगता हेमरथ राजा पात कृतिनुं संपादन अहीं प्रधान होई तेना प्रकार अंगे आटली संक्षिप्त चर्चा उचित गणी छे. डॉ. भारती वैद्यकृत “ मध्यकालीन रास साहित्य ". डॉ. संजुलाल मजमुदार गुजराती साहित्यनां स्वरूप " डा. चंद्रकान्त महेतानु " मध्यकाळा साहित्यप्रका" श्री के. का. शास्त्रीनुं " गुजराती साहित्यनुं रेखादर्शन " तथा डी. हरिवल्म्स नादागीना देखी रासना स्वरूप अने विकासनी विगते चर्चाविचारणा नही रहे छे. - Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ मारकते मागं सोकल्यु पितानी आज्ञा माथे चडावी कुंवर कनकरथ रूखमणीने परणवा सैन्य साथे कावेरी जवा शुभ शुकन जोई नीकल्या. आगळ जतां मार्गभां अक जंगल आव्युं त्यां पीवाना पाणीनी मुरकेली ऊभी थई. पाणी शोधवा गयेला सेवको अक असंभव वात लइ आल्या. (३) कनकरथने तेओ कहेवा लाग्या : पाणीनी शोधसां भटकतां अमे अक पाणीथी भरेलु विशाल सरोवर जोयुं जात जातनां पंखी त्यां खेलतां हतां अने अनेक जळचरो पाणीमां विहरतां हां, सरोवरने किनारे आम्रवन हतु तेषां हृींचके होंचती अक अदभुत सुंदरीने अमे जोई. अमने जोड़ने ते तरत ज अलोप थई गई. बहु बहु शोधवा छतांय से अमने न मळी. कोनी आ बात सांभळी कुंवर आश्चर्यचकित था अने ते सुंदरीने जोवा मांट सेवकोओ देखाडेल मार्गे आतुरताथी आगळ वध्या. रस्ते येणे वृक्षो अने फळफूलोथी सभर अवो अक सुंदर बगीचा जोयो. बगीचानी शोभा जोतो ते ओक आंबाना झाड तळे आराम करवा बेठो त्यां अकाओक तेणे ते सुंदरीने जोई. रूपरूपना अंबार समी ते सुंदरी नजरे पडतां कुंवर तेना पर मोही पड्यो. अने शी रीते बोलावत्री अनो विचार करतो हतो त्यां पाउल आवता सैन्यनो कोलाहल सांभळी ते सुंदरी अदृश्य थई गई. कुंवर बहावरो बनी गयो. सैन्यने त्यां ज उतारो आधी ते सुंदरीने शोधवा, कुंवर ते काननमा फरवा लाग्यो. दूर अंक सुंदर मंदिर नजरे पडतां ते त्यां जई मंदिरमां पेटो मंदिरला गर्भागारनुं सौन्दर्य निहाळी हर्ष पामेला तेणे तेनी प्रदक्षिणा करी. ( ४ ) F " गभारामां ऋषभदेवनी मूर्ति जोई स्तवन गाई तेणे पूजा आदरी ने ते पावी रंगमंडपां बेठो, त्यां कोई तापस पेली कुमारिकानो हाथ झाली आवी पहांच्या कुंवरे तापसने प्रणाम कर्या. ऋषि आशिष आपी समाचार पूछ्या बंदीजनोओ कुंवरनी वंशावलि कही संभळावी. विनयपूर्वक कुमार तापसने तेनी साथै आवेली कन्या अंगे प्रश्न कये. जिनपूजा पतावीने अ लांबी कथा कुमारने संभाववानी तापसे खातरी आपी. तापसे स्तवनसहित जिनेश्वरनी पूजा आदरी. (५) पूजा पूरी करी ते ऋषि राजकुवर बेठो हतो त्यां रंगमंडपमा आव्यो. तेनी साथेनी सुकोमल सुंदरी स्नेहपूर्वक कुंवरने जोई रही. कुंबरे पण तेना प्रत्ये जबरु आकर्षण अनुभव्युं कुंवरने पोतानी साथ लई तापस पोतानी पडीओ आव्यो अने विधिपूर्वक तेनो सत्कार करो. पछी तेणे पोतानो वृत्तांत कहेवा मांड्यो : " मित्रकावती नामनी नगरीमां राज करता हरिषेण राजानी राणी हती प्रियदर्शना तेनो पुत्र अजितसेन भेटमां मळेला अक सफेद अथ पर सवार थई राजा हरिषेण दूर दूर फरवा नीकली पड्यो. (६) अवने रोकी न शकातां हरिषेणे मार्गमांना ओक वृक्षनी डाळी पकड़ी लीधी अने घोडाने दोडी जवा दीवे. झाड परथी ऊतरी वनवां फरतां तेणे अक सरोवर जोयुं त्यां पहांची हाथपग अने में धोई पाणी पीधु, वनफळ खाघां. आगळ जतां ते तापस विश्वभूतिने आश्रमे जई पहोंच्यो. ऋषि प्रणाम कर्या ऋवि आशीर्वाद आप्या. त्यां तो अनु सैन्य अने शोधतु आवी पहोंच्य. मुनिसेवा करा ते त्यां अक मास रह्यो, अने वनमां सुंदर ऋषभेश्वर मंदिर बंधात्र्यं मुनिओ खुश थई हरिषेण राजाने शेर उतारवानो मंत्र आप्यो राजा ते पछी पोताने महेले पाछो फर्यो. (७) अक दिवस सभा भरी ते बेठो हतो त्यां येक दूत आव्यो, कहेवा लाग्यो : " मंगलावती नगरीयदर्शन राजानी दीकरी प्रीतिमतीने नाग करड्यो छे. बापने दीकरी प्राणधी पण वधु Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ प्यारी छे. वैदोना इलाज निष्फळ गया छे. तमे परोपकारी छो अटले राजाओ मने तमारी पासे मोकल्यो. तमे आवी मंत्रबळे तेनु झेर उतारो. सज्जनो पारका माटे जवरो भोग आपता होय छे.. विलंब न करतां आप अबळानी बहारे धाओ.' __ हरिषेणे जईने प्रीतिमतीनु झेर उतार्यु. प्रियदर्शन राजाओ खुश थई प्रीतिमतीने तेनी साथ परणावी. हरिपण सुखी दांपत्यजीवन गुजारवा लाग्यो. केटलेक काळे तेने पुत्र थयो, ते जुवान थतां तेने राज्यभार सांभी दंपती तापसव्रत लीधु ने विश्वभूति मुनिना आश्रममां नई रहयां. सपये प्रीतिमतीने गर्भवृद्धि थती जणाई. आश्रममां आव्या पहेलांनो गर्भ रहयो होवो जोईले अम प्रीतिमती) हरिषणने समजावू. पण बीना तापसो आघाना नियनो भा थयेको गणी आश्रम छोडी. जता रहया. आश्रनने निर्जन जोई दूर जई रहेला अक वृद्ध तापसने राजाले प्रश्न को अने तणे तापसो चाल्या गया तेनु कारण दव्यु. राजा खिन्न थई गयो. जेमतेम चार मास विताच्या अने पूरे दहाडे निषिदत्ता जन्मी. सूआरोगमां प्रीतिमती मृत्यु पामी. बापे ज दीकरीने उछेरीने भणावी. दीकरी आठ वर्षनी थई त्यारे अना रूपने कारणे ने माटे कोई दुष्ट विचार न करी शके अटला खातर तेणे अदृष्टीकरणनु अंजन कयु. ते प्रषिक्त्ता ते आ कन्या, अने हुज तेनो बाद छु. ते तन जोईने मोह पामी छे. ” (७) कुंवर कनकरथ पण ऋषिदत्ताना प्रेममा पड्यो. बन्नेनो परस्पर प्रेत जोईने तापस हरिषणे वन्नेनां लग्न कया. आनंद बा. पुत्रीनो विरह नहीं ज सहेवाय अम मानीन हरिषेणे बळी मरी आपघात कॉ. कल्पांत करती ऋषिदत्ताने कनकरथे समजावी, मनावी लीधी. काळवळ आगळ कोईनु कशु चालतु नथी, माटे झाझो शोक न करवानु तेने कहयु. (८) प्रषिक्सा जवी सद्गुणी अने र नेहा 2 पत्नी मळतां कनकर धन्यता अनुभवी. पुण्यमहिमा अने प्रीतनी रीत दर्शावतां कवि बहुपत्नीत्वनी टीका करतां जणावे छे के अवे प्रसंगे पुरुष करतां स्त्रीनी दशा बूरी थाय छे. शोकयना सालना विचार आवतां कनकरथे रुखमणीने परणवा जवान मांडी वाळयु ने रथमर्दनपुर पाछा फरवानो निर्णय लीधो. ( आ प्रसंगे कवि शाकुंतलमांना “ शकुंतलानी विदाय" ना प्रसंगर्नु स्पष्ट स्मरण करावे ओ रीते ऋषिदत्ताने वननां वृक्षो, पशुपक्षीओ, लतावेलीओ वगेरेनी विदाय लेती चीतरी छे.) हवे स्थमर्दनपुर जतां ऋषिदत्ता रस्ते थोडे थोडे अंतरे सदा फूलनां बी रोपती चाली. (९) कनकरथ-ऋषिदत्ता केटलेक दिवस रथमर्दनपुर पहेांच्यां त्यारे राजा हेमरथे नगरमा मोटो उत्सव कराव्यो. बन्ने मुखथी रहेवा लाग्यां. उत्तरोत्तर अमना स्नेहमां वृद्धि थती गई. (१०) कनकरथनां ऋषिदत्ता साथेनां लग्ननी बात केटलेक बखते कावेरी नगरीनां पहेांची. सुंदरपाणि राजाने झाळ लागी. रखमणी स्टी. पाताना पतिने भोळवी, तेने परणी बेसनार ऋषिदत्ता उपर पूर वेर लेवानी अणे निर्णय कर्या. कूडकपटमां कुशल अवी मुलसा योगिणीने तेणे साधी. ऋषिदत्ता उपर खाटु आक आवे अने ते दुःखी दुःखी थई जाय अबु करवा सुलसा कबूल थई. रथमर्दनपुर जई तेणे पहेली तक ऋषिदत्ताने जोई लीधी. (११) Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ रथमदनपुरमा आवी मुलसा त्रास फेलाववा मांड्यो घेर घेर लोको मरवा लाग्या. शेरीमे शेरीओ हाउकांना गंज खडकाया. नगरमां रोककळ थई रही. आाहेर मुडदांनी दुर्गन्धे भराई गयु. बाळको, वृद्धो, युवानो, स्त्रीओ कोई बाकी न रहयु. ऋषिदत्ताने अबस्वापिनी निद्रा आपी माणसोने मारी तेमने कनकरथना आवासमां नांखवा मांड्या. ऋषिदत्ताना होठ अने वस्त्रो लोहीथी रयां अने तेनी शय्या पासे मांसथी भरेल करंडिया गोटव्या. बारणे लोकोनो हाहाकार सांभळतां सवारे जागेला कुंवरे ऋषिदत्ताना मां पर लोही जोयु, हाथ लोहीवाळा दीठा, मांसना करंडिया तेनी पथारी पासे दीठा अने ते वहेमायो. पोतानी निर्मळ पत्नीनी बाबतमा शंका जागी. ऋषिदत्ताने तेणे जगाडी. ते जागी. (१२) कनकरथे तेने प्रश्नो का. साची हकीकत संकोच वगर कही देवा फरमाव्यु. ऋषिदत्ताओ दुःखपूर्वक जणाव्यु के पोते कोई इन्द्रजाळनो भोग थई पडी छे. लोहीथी जने ऊलटी आवे, मांसनी गंधमात्रथी जे दूर नासे, छरी देखतांय जेने डर लागे ओवी ते जन्मथी दयाळु अने धर्मवंत होई कोई पूर्वकर्मना परिणामे आ पीडा सही रही छे अने पति इच्छे ते कसोटीओ चडी शकशे मेवी खातरी आपी. पति अने अपराधी गणतो होय तो पोताने हाथे अनो शिरच्छेद करी शके छे अम कहा. कनकरथने पत्नीनी निर्दोषतानी प्रतीति थई. पोताने हाथ पत्नीनां आंसु लछी तेने आवासन आप्यु. (१३) नगरमां मचेला हाहाकारने कारणे गुस्से थग्रला हेमरथ राजाओ नगररक्षकने बोलाव्यो अने तेने सखत ठपको आपी विगतो मांगी. भयथी थरथर कांपता तलारे पोतानी बधी शक्ति कामे लगाड्या छतां तपासमां निष्फलता मळी होवान जणाव्यं. राजाओ ढंढेरो पिटावी नगरमांधी बधा पाखडीओ अने कामणटमण करनारा, जोषी, दरवेश, गणिका, सन्यासीओ वगेरेने काढवा मांड्या. आ तकनो लाभ लई, मुलसा राजसमामा पहेांची अने निषोने सजा न करवा तथा पोते गुनेगारने शोधी आपशे अम राजाने कहेवडाव्यु. राजाओ अने बोलावी. (११) __भयंकर देखाववाळी सुलसा योगिनी राजसभामा गई अने आडंबरपूर्वक राजाने संन्यासीओने हेरान न करवा जणाव्यु. स्वप्न आव्यु तेमां राजकुंवरनी बहु ज आ उपदवन कारण छे अम स्वानमा आवेली देवी कहीने अदृश्य थई गई-वी मुलसानी वाणी सांभळी राजा चकित थयो ने तेने मानपूर्वक विदाय करी. (१५) राजाओ ते राते कुंवरने पोतानी पास राखी पुत्रवधनु चरित्र जोबा अंक माणसने छानो तेने घर भोकल्यो. पत्नीनु हवे शुं थशे तेनी फिकर करतो कुंवर रात्रे ऊंघी शक्या नहीं. तेने घर जासूस पहांच्यो ते समये सुलसा तेने कोइ देखे नहीं ले रीते मांस वगेरे राज्यु. जासूसने अम ज लाग्यु के आ बधां कारस्तान ऋषिदत्त नां ज छे. तेणे राजा पासे जईने ते प्रमाणे जाहेर कर्यु. राजा कोप्यो. कुंवरने तेणे सखत ठपको आप्यो. कुंवरे ऋषिदत्तानो बचाव को त्यारे राजा वधु गुस्से थयो. खिन्न बदने कुंवर पाताने आवासे आव्यो. आत्रीने तेणे योगिणीओ राजाने जे कहूयु हतु तेनी तथा राजा चर भारफते करावेली तपासनी बात ऋविदत्ताने करी. पोते 'मषिदत्तानु दुःख देखी नहीं शके ने प्राणत्याग करशे अब कंबरे कहय त्यार ऋषिदना तेने धीरज आपी. (१६) Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ गुस्से थयेल हेमरथे पोताने सेवकोने ऋषिदत्ताने केश झाली पकडी, बांधी अने गाम बहार काहबानो हुकम को, तेने स्थळे स्थळे फेरवीने, तेनु खूब अपमान करी अते स्मशानमां लई जई हणवानी आज्ञा करी. ते प्रमाणे ऋषिदत्ताने विकृत करी गधेडे बेसाडी गाममां फेरव्या पछी स्मशानमां लड़ गया. तेने हणवाने माराओ तलवार काढी. तेणे ऋषिदत्ताने अंतकाळे इष्टदेवने स्मरी लेवा कहयु. आकुळव्याकुल श्रयेली ऋषिदत्ता ते समये मूर्छित थइ जमीन पर पड़ी. तेने मरेली जाणी राजाना माणसो चाल्या गया. थोडी बार पछी ऋषिदत्ताने भान आव्यु अने ते नाठी. (१७) पतिनु वहाल संभारी विलाप करती ऋषिदत्ता पोताना कर्मने दोष देवा लागी. (१८) भलभला राजा, ऋषिवरो ने तीर्थरोने पण कर्म नयां छे अम मानी आश्वासन मेळव्यु. (१९) अथडाती-कुटाती, अनेक कष्ट वेठती ऋषिदत्ता दक्षिण दिशामां आग वधी. मार्गमा पोते रोपेलां वृक्षो जोतां तेने कांइक शांति थई. ओ अंधाणी ते पिताना आश्रममा आवी. (२०) आश्रममां पिताने संभारी ते खूब रडी. पोते अकली केवी रीते रहेशे मे प्रश्न भयो विचार करवा लागी. पिताओ बतावेल अक औषधि अवी हती के जेनी मददथी स्त्री पुरुष बनी जाय. ते औषधि कानमां घाली ऋषिदत्ता नररूप बनी गई ने आश्रममां धर्मध्यान करती रहेवा लागी. (२१) ऋषिदत्ताने संभारी कनकरथे पुष्कळ विलाप कर्या अने तेनी पाछळ पोते मरवा तैयार भयो. कुंटुबीजनोभे रोक्यो. (२२) पत्नीना गुण संभारी कनकरथ दुःखमां दिवस गाळवा लाग्यो. (२३) सुलसा योगिनीले पोते करेल ऋषिदत्तानी अवदशानी वात रुखमणीने करी. ओ वात जागी सुंदरपाणि राजाओ हेमरथ राजा पासे दूत मोकल्यो. दूते हेमरथने पूछयु के तमारो पुत्र परणवा आवतो हतो ते पाछो केम वळी गयो ? अमारा राजा तो वाट जुबे छे, भाटे कनकरथने विवाह माटे मोकलो. हेमरथे कुटुंबीओने भेगां करी पुत्रने वारंवार समजाव्यो. छेक्टे, मन मानतुं न हतु छतां, कनकरथ पितानु वचन टेली न शक्या. (२४) पोतानी जातनो तिरस्कार करतो कनकस्थ सैन्य साथे काबेरी तरफ चाल्या. मार्गमां शुभ शुकन थया. मनमां धीरज धरतो ते ते ज वनमां आव्या ज्यां पोते ऋषिदत्ताने परण्यो हतो. (२५) ते वन जोतां कुंवरनु मन भराई आव्यु. वनमा जुदा जुदा स्नेहसंभारणा रूप रथको जोई तेने घरो विषाद थयो. (२६) प्रियाना समागमने सूचत्रता इंगितो कुंवरने थता रह्या. कनकस्य जिनमंदिरमा गयो. त्यां रहेती मुनिषधारी ऋषिदत्ता तेना हाथमां पुष्पादिक मूकतां थयेल स्पोथी कुंवरने आनंद थयो. कुंवर रुखमणीने परणवा जाय छे से वात ऋषिदत्ता समजी गई. जिनसेवा पतावी बन्ने आश्रममा आया. कुमरे पूछ परछ की. मुनिवेषधारी ऋषिदत्ता राजा हरिषेणनो उल्लेख की पते पांच वर्ष तीर्थयात्रा करी पाछो फर्या छ अम जगाव्यु. (२७) Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिने मल्याथी पोताने घणो आनंद थयो छे अने मुनिने जोतां पोतानी आंख धराती ज नथी अम कुंबरे मुनिवेशधारिणी ऋषिदत्ताने कहयु. तेणे पूर्वजन्मना ऋणानुबंधनी वात करी. कुंवर तेने पोतानी साथ कावेरी नगरी आववा आग्रह को. ऋषिदत्ताओ ना पाडी. (२८) । कुंदरनो अति आग्रह जोई ऋषिदत्ता जवा कबूल थई. बन्ने काबेरी पहच्या. सुंदरपाणि समाओ कुंबरनो सारो सत्कार को. जोषीओओ आनंदपूर्वक कनकरथ अने रुखमणीनां लग्न कराव्यां. सुंभरपाणिजे थोडा दिवस कुंवरने पोताने त्यां राज्यो. (२९) हवे प्रिय पति पोताने वश छे अम मानती रुखमणी अक वार हर्षथी कुंवरने पूछ्यु के तसे ते तापसकन्याने कम पाया हता? तेनामां शु दीठु के मने त्यजी दीधी ? (३०) कुंबरे जगाव्यु के पोते ऋषिदत्ताना गुणोने वश हतो. ऋषिदत्ता जेवी रूपाळी स्त्री जगतमां नथी ज. कयां रत्न ने क्या कांकरा अमृत न मळे तो कांजी पीने संतोष लेवो पडे तेम ऋषिदत्ताना बिरहे रुखमणी जेवी पत्नी देवसंजोगे अने मळी. (३१) रुखमणी आ सांभळी कोपी. गुर सामां ने ईष्यांने कारणे ते बोली गई के ज्यारे ऋषिदत्ता तेना मार्गमां आवी ने तेनी कुबरने परणवानी आशा कापी नाखी त्यारे पोते तेने केवी दुःखी दुःखी करी दीधी ! वेर वाळवा पोते ज तेना पर हिंसानु आळ चडावेलु. ऋषिदत्ता गमे तेवी कुलीन पण तेनु शु वन्यु माता सुलसाने धन्य के तेणे पोताने माटे बधा ज उपाय कर्या ने ऋषिदत्ता कलंकिणी सावित थई. (३२) रुखमणीना बोल सांभळी कनकरथ गुस्से थई गयो. स्वार्थी रुखमणीने सखत शब्दोमां तेणे टपको आप्यो. रुखमणी ऋषिदत्ताने आम हणी तेथी ते कुंवरनी वैरण थई चूकी. जो ऋषिदत्ता रबर्ग सिधानी तो पोताने जीवीने हवे शुकाम छे अम करी कुंवर चिता खडकावी बळी मरवा तैयार थयो. बंध कोलाहल मची गयो. राजा सुंदरपाणि आव्यो. तेणे कुवरने वार्या पण ते क्यो नहीं त्यार मनिवेशधारी ऋषिदत्ता तेने आपघात न करवा मीठाशपूर्वक समजाववा मांड्यो. जीवतो नर भद्रा पामे अम कहयु. (३३) कुंवरे ऋषिदत्ता माटेना पोताना उत्कट प्रेमनो अकरार को अने तपनी शक्तिथी मुनि ऋषिदत्तानो मेटाप करावी दे तो पोते तेनो दास बनी जशे अम जणाव्यु. (३४) मुनिवेशधारी ऋषिदत्ताए कुवरने कहा के ज्ञानना प्रभावे पोताने त्रिभुवन प्रत्यक्ष छे अने ऋषिदत्ता यमने घेर कल्लोल करे छे. कुंवरे पोतानी पासे ते केवी रीते पाछी आवे ते पूछ्यु. जब व मल्यो के हुं त्यां जई तेने तारी पासे मोकलं छु. कुंवरे अधीराईथी ते प्रमाणे करवा कहय. मुनिवेषधारी ऋषिदत्ता पूछयु के अधी तेने शो लाभ ? कुंबरे कहयु के मित्रप्रेमने कारणे माणस शु. नथी करतो ? तार माटे हु प्राण आपवा पण तैयार छु. प्राण आपवानी जरूर नथी अम कहीने पोते भविष्यमा जे मागे ते आपत्रानु बचन लई मुनिवेशी ऋषिदत्ता पडदा पाछळ गई. (३५) ते पछी ऋषिदत्त पोताने असल स्वरूप प्रगट थई. अनां रूप अने कांति जोई बंदीजना अने लोको जय बोलावी प्रशंसा करवा लाग्या. अनी सरखामणीमां रुखमणी दासी जेवी छ अम जणावी लोको कुंवरना ऋषिदत्ता माटेना प्रेमने योग्य गणवा लाग्या. (३६) Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषिदत्ता मळी ते समाचार जाणी सुंदरपाणि आनंद पाम्यो. कुंवर तथा ऋषिदत्ताने हाथी पर बसाडी पोताने मंदिर लाव्यो. रुखमणीने अपराधी गणो तेने खूब उपको आध्यो. सुलसानु नाक कापी तेने देशबहार काडी मूकी. (३७) अंक दिवस कुंवर पोताना मुनिभित्रने संभारवा लाग्यो ने तेनो विरह पोताने खूब साले छे अम ऋषिदत्ता ने कहा. कुंवरना प्रेमनी परीक्षा करवा पोते ज मुनिवेष धारण को हतो अम जणावी ऋषिदत्ताओ कुंवरने तेना वचननी याद आपी अने रुखमणीने माफ करी तेने पोताना सरखी ज गणवा मागणी करी. कुंवरने आनंद थयो ने तेणे रुखमणीने स्वीकारी. ससराने घेर थोडा दिवस रही हवे तेओ रथमर्दनपुर गया. हेमरथे तेमना सत्कारमा मोटो उत्सव कर्या ने दान आप्यां. सुलसाना कपटनी वात सांभळी हेमरथे पोतानो अपराध संभारी फरी फरीने ऋषिदत्तानी क्षमा मागी. पछी शुभमुहूर्तमा कनकरथने गादी बेसाठी तेने सपकी संपत्ति सांपी हेमरथे भद्रयशोसूरि पासे दीक्षा लीधी ने त्रिकरणशुधियी संयन पाळी नोक्षने वो. राजा तरीके कनकरथे उत्तम रीत राज्य चलाव्यु अने ऋषिदत्ता थी तेने सिंहस्थ नामनो कांतिवान पुत्र थयो. (३७) अक दिवस कनकस्थ ऋषिदत्ता साथे आनंइपूर्वक नगरनी शोभा जोतो हतो तेवामां अंका - ओक आकाश वादळांथी छवायु अने थोडी ज वारमां वादळ चाल्यां गयां. आ वाते कनकरथने वैराग्य आण्यो. संसारनु स्वरूप पण आQ ज क्षणभंगुर छे अम अने थई गयु.. अ समये मुनि भद्रयशो वनमां आव्या. ऋषिदत्ता सहित कन्करथ तेमने वांदवा गयो, ओ सनये ऋविदत्ता पोताने कयां पूर्वकर्मो नड्यां हतां ते मुनिने पूछ्यु. (३८) गणधरे कहा: "जम्बूद्वीपमा भरतक्षेत्रमा गंगापुर नामे नगर छे. त्यां राजा गंगसेन अने राणी गंगादेवीनी तु गंगसना नामे पुत्री हती. त्यां चंद्रयशा नामे महासती हती. तेमना उपदेशनी असर व्यापक हती. (३९) तेमनी पासे हती ते संगा नामनी गुणवान साध्वीना लोको घणां वखाण करता हता. ते सांभळी तने ईर्ष्या थई. ते आळ चढाव्यु के ते दिवसे तप करे छे पण रात्रे मांसनो आहार करे छे. सतीने आवु कलंक लगाड्यु तेनु पाप तने लाग्यु अने तेनु आवु भयंकर परिणाम तारे भोगवयु पड्यु. कर्म कोईने छोडतां नथी. पापर्नु प्रायश्चित्त ते न कर्यु, तेथी अनेक भव तारे दुःख वेठवु पड्यु. ते गंगसेना तरीके दीक्षा लई तप कर्यु हतु अने अनशनथी तार मृत्यु थयु हतु भेटले ते पछी तुं ईशानेन्द्रनी इन्द्राणी थई हती. ते पछी तुं हरिषेणनी पुत्री थई अने कर्मनो लवलेश बाकी हतो ते ते भोगव्या.” (४०) ___ गुरुना उपदेशथी ऋषिदत्ताने जातिस्मरण ज्ञान थयु. कर्मनो भयानक विपाक जोई डरी जइने तेणे गुरु पासे सीधी दीक्षा ज लीधी. कनकरथे पण तेन कयु. तेनो पुत्र सिंहस्थ राजा थयो. ऋषिदत्ता ने कनकरथ गुरु साथे भद्दिलपुर जई रहयां. त्यां तप तपी केवळज्ञान पामी' मोक्ष गया. निर्मळ जनोनी आवी कीर्ति अने अमनु उत्तम चरित्र सांभळतां मानवी पवित्र थाय छे, अने शुभ धर्मने अपनावी ते आ लोक अने परलोकमां बधां सुख पामे छे. .' Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ तपागच्छना गुरुराय श्री विनय मंडनना शिष्य गुणसौभाग अथवा जयवंतसूरिओ, रसिक जनोना आग्रहथी, सतीनु आ चरित्र सं. १६४३मां मांगशर सुद चौदसने रविवारे पूर कर्यु. कवि अंतमां लखे छे : 46 न्यून अधिक जे हुई आगमथी, मिच्छा दुक्कड तास, कविता वक्ता श्रोता जननी, फलयो दिन दिन आस. ( ४१ ) ऋषिदत्ता रास " मांना कथाघटको अने तेमनो रसलक्षी विस्तार (१) अमुक राजकुंवरी साथे लग्न करवानुं नक्की थया पछी लग्न माटे जतां वाटमां प्रथम दृष्टि प्रेम थतां राजकुवरना अक तापस कन्या साथे लग्न. (२) दीक्षित साधु-साध्वीने पेटे जन्मेली तापसकन्या. (३) राजानुं अजाण्या घोडा पर बेसवुं ने अजाण्या आश्रममां जई चडवु मुनिसेवा ने जिनमंदिरनी स्थापना. मुनिओ आपेल विषहर मंत्र. ( ४ ) विषहर मंत्रने बळे कोई राजकुंवरीनुं झेर उतार्या बाद तेनी ज साथ लग्न सवाळे दीक्षित थया बाद आश्रममां पुत्रीजन्म अने ऋषिभाना आश्रम त्याग, ने मातानु मृत्यु. ( ५ ) कन्याना रक्षण माटे अदृष्टीकरणनु अंजन. (६) कन्याना लग्न बाद तेने प्रतिबोध अने भावी पुत्रीवियोगने कारणे पितानी आत्महत्मा. (७) धनार पति अन्य कोईने अने ते पण तापसकन्याने परणी बेठो ते जाणतां ते कन्या पर वेर लेवानी इच्छाथी राजकुवरीओ मेली विद्यानी साधक योगिनीने साधवी. (c) दुष्ट योगिनी द्वारा मचेलो उत्पात अने ते कारणे नायिकाने माथे मांसभक्षी राक्षसी होवानु आवेल आल. ( ९ ) न्यायप्रिय राजा द्वारा कलंकिनी साबित थड़े चूकेली पुत्रवधूने अपमानित करी स्मशाने हगवानो हुकम . (१०) स्मशाननां नायिका असहाय दशानां बेमान थई पडी जतां ते मृत्यु पानी छे अम मानी माराओ चाल्या जवु . (११) मूर्छामांश्री जागेली नायिकानी अकलवायी दशा अने तेने वेठवी पडती हाडमारी तथा तेनु कल्पांत. (१२) अगाउ रोपेलां वृक्षोने आधारे नायिकानु पिताना आश्रममां जवु तथा त्यां औषधीना बळे पुरुष बनी रहे. Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९ (१३) पत्नी विरहे झूरता राजकुंवरनी आत्महत्या करवानी इच्छा अने कुटुंबीजनोथे तेने फरी संसाराभिमुख करवो अने फरीवार मूळ राजकुंवरीने परणवा मोकलबो. (१४) रस्ते फरी अंक वार नायक अने पुरुषवेषी नायिकानु मिल्न अने आकर्षण. पुरुषदेषी नायिकाने आग्रह करी साथे लेवी. (१५) लग्न बाद, पोते तापस कन्याने केवी रीते महात करी धाये पति मेळव्यो तेनी राजकुवरीओ कुंवर आगळ हांकेली बडाश. (१६) कुंवरनो गुस्सा, कुंबरे करेलो राजकुंबरीनो तिरस्कार अने कुंवरनो आत्महत्यानो प्रयास. पुरुषद्वेषी नायिकाओ वच्चे पडी तेने वाखो अने पोते नायिकाने यमने घेरथी, पोते त्यां रही जई, मोकली आपशे ओम कही कुंवरना मन्नु समाधान करी तेनी पाथी अक वचन मागवु. (१७) कोई न जाणे अ रीते औषधिनी असर दूर करी नायिका असलना नारी रूपे छती थई सौ कोइने आनंद आपवो. (१८) प्रसंग मळतां राजकुंवरी प्रत्ये पण कुंवर पोताना जेवा ज भावधी जुओ भेवं वचन नायिका मागी लेवु. ( १९ ) संसारनी क्षणभंगुरता समजातां, उमरलायक पुत्रने राज सोपी राजाराणीओ दीक्षा लेवी. (२०) आ जन्मे आवेला आळ माटे पूर्वजन्मे कोइक साध्वी उपर चढावे अ ज आळ कारणभूत छे भेवी गुरुनी स्पष्टता. (२१) नायक-नायिकाने गुरुउपदेशथी केवलज्ञान अने मुक्ति. आ सौ कथाको कवि केवी रोते रसान्वित कर्या छे तेनो ख्याल आपत्रा, पुनरुक्तिने भोगे पण अमांना थोडांक घटको विस्तारथी लइओ. वर-कन्यानां मातापिताओ नक्की कर्या प्रमाणे राजकुंवर कनकरथ राजकुंवरी रुखमणीने परणवा रथमर्दनपुरथी काबेरी जवा नीकळे छे. रस्ते पाणीनी तंगी पडतां पाणीनी शोधमां गयेला सेवको समाचार लावे छे के तेमणे वनमां अप्सरा जेवी अक कन्या जोई जे तरत ज अवश्य थई गई. कुतूहलप्रेये राजकुंवर सेवको निर्देशेल मार्गे आगळ गयो. तेणे पण ते कन्याने जोई, ने ते तरत ज अदृश्य थई गई. कन्यानी शोधमां आगळ गयेला राजकुंवरे ऋषभेश्वर ओक मंदिर जो अने प्रदक्षिणा करी रंगसंमां बेटो. त्यां कोई वृद्ध तापस पेली कन्यानो हाथ झाली आव्यो. आछा परिचयविधि बाद कुंवरे कन्यानी बाबतमां पृच्छा करतां, पोते जिनपूजा पतावी बिगतो आपसे अम तापसे जणाव्यं तापसे उदार जिन स्तवन सहित जिनपूजा करी अने पछी कुंवरने लई पोतानी झुपडीओ गयो. अ गाळामां तो कुंवर अने कन्या परस्पर प्रत्ये प्रबळ प्रेमे आकर्षाई चूकयां हतां तापस पासेथी कन्यानो वृतांत सांभळया बाद कुंबरे ते कन्याने परणवानी इच्छा Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CC दशवित अनेकन्या पण लज्जित मुख जोत तापसे बन्नेनां लग्न करावी दीघां अने पुत्रीने सासरवासने उचित उपदेश कये. पुत्री परणी गये पोताना जीवननो हवे शो खप छे करी तापसे अग्निमां झंपला. पिता पाछळ पुत्री रोई, खूब रोई. कुवर मनावी. वननां पशुपंखी ने लता - वेलीओनी दर्दभरी विदाय लई नवोडा ऋषिदत्ता कनकरथ साथे चाली. कनकरथे विचार्य : समजु पुरुषे क ज लग्न करवु जोईओ, जेने गुणनी परीक्षा न होय ते ते कांई माणसमां ? सोमानी जगाओ रत्ननी प्राप्ति थई तो हवे फफडाट शाने ? बे नारीनो वल्लभ साचो प्रेमी न होई शके. शोकयनुं साल स्त्रीना जीवनने दुःखी दुःखी बनावी दे मांटे हवे राजकुंवरी रुखमणीने परणवा काबेरी जव योग्य नथी ज" ऋषिदत्ता साथै कनकरथ रथमर्दनपुर पाछो फये. छे २० तापसकन्या ऋषिदत्तानां कनकरथ साथैनां लग्न, तापसनो नवोढा पुत्रीने उपदेश अने वनमांना संगीओनी विदाय लेती ऋषिदत्ता आपणी समक्ष कण्वमुनिना आश्रममाथी विदाय लेती शकुंतलानुं कालिदासे शाकुंतल नाटकमां करेल आलेखन खडुं करे छे. ऋषिदत्तानी जन्मकथा पण नधिपात्र छे. मानाने गर्भ हतो अ न जाणतां पिता-माताओ दीक्षा लीधी अने आश्रममां बाळकी जन्मी परिणामे ऋषिओ आश्रम छोडी गया. में तापस मातापिता कोण तेनी कांईक अवान्तर लागती कथा कवि मूलकथानां सरस रीते वणी ले छे. कनकरथनी तापसकन्या अंगेनी पृच्छाना अनुसंधानां तेनो तापस पिता पूर्ववृत्तांत रजू करे छे : मित्रतावती नगरीना हरिषेण राजाने कोइके अक उत्तम सफेद अश्व भेट आप्यो. तेना पर राजा सवार थयो त्यां तो अब पवनवेगे दाड्यो अने रोक्यो रोकाया नही. रस्ते जंगल आब्युं. हरिषेणे मार्गमांना ओक वृक्षनी डाळी पकड़ी लीधी अने अवने जवा दीघा वृक्ष परथी नीचे ऊतरी आगळ जतां ते मुनि विश्वभूतिना आश्रममा आव्यो ने सत्कार पानी त्यां रोकायो. पोते त्यां महिनो रहयो अने मुनिसेवा करी. ऋषभेश्वरनु अक मंदिर पण त्यां बंधाव्यु विश्वभूति प्रसन्न धया अने तेने विषहर मंत्र आप्यो. हरिषेण पोतानी नगरीमां पाछो फर्यो. अक दिवस सभा भरी ते बेठो हतो त्यां अक दूत आव्यो. कद्देवा लाग्यो, मंगलावती नगरीना प्रियदर्शन राजानी दीकरी प्रीतिमतीने नाग करड्यो छे, वैदोनुं कशु वळयुं नथी. आप परोपकारी छो तो आवीने मंत्रबळे कुंवरीनु शेर उतारो. " हरिषेणे जई प्रीतिमतीनुं झेर उतार्यु. प्रियदर्शन राजा खुश थइ गयो अने तेणे प्रीतिमतीने हरिषेण साथै परणावी. दंपतीना दिवस सुखपूर्वक वीतवा लाग्या. केटलेक समये प्रीतिमतीने पुत्र थयो. ते युवान थतां तेने राज्यधुरा सोंनी दंपती तापसदीक्षा लेवा विश्वभूतिने आश्रमे गया बेमांथी अकेने ख्याल न हतो के प्रीतिमतीने फरी गर्भ रहयो छे. दीक्षा लोधी ते पछी केटलेक वखते ख्याल आव्यो हवे शुं थाय ? समय पूरी थतां पुत्री जन्मी राजाराणीने कुकर्सनु भ्रष्टतानुं कलंक चांटयु ऋषिओ आश्रम छोडी गया. प्रीतिमती पण सुवारोगमां गुजरी गइ. तापस पिताने माथे पुत्रीना उछेरनो बोजो आत्री पड्यो अने ते तेणे निष्ठापूर्वक उठाव्यो. कन्या मोटी थती गई अने रूपसुंदर थती चाली हवे. लोलुप पुरुषोनी नजरथी अने बचावत्रा अने भयमुक्त राखवा पिताओ से कन्याने अष्टीकरणनु अंजन कर्यु जेथी इच्छे त्यारे ते अदृश्य थई जाय. अ कन्या ते ऋषिदत्ता अने पिता ते तापस हरिषेण. 66 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ ऋषिदत्ताना जन्मनी आ कथा "वल्कलचीरी"नी कथा साथे साम्य धरावे छे. ओ कथालां पण मातापिता दीक्षा ले छे अने तेनने दीक्षा पूर्वे रहेला गर्भथी पुत्र थाय छे अने वल्कलचीरीने जन्म आपी तेनी माता मृत्यु पामे छे अटले तेनो उछेर पण आश्रमणां थाय छे. अक मुद्दो अहीं ज चर्चको ठीक लागे छे. ते ओ के ऋषिइत्ताने परणाव्या बाद, तेने शीख आपी, तापस हरिषेण जे आत्महत्या करे छे थे योग्य छे ? जैनधर्वानी दृष्टिले तो आ रीतनी आत्महत्या सर्वथा अयोग्य. पण कविने तो पाछळथी पतिथी विखूटी पड़ती ऋषिदत्ताना अव.लवाया पणानु सचोट आलेखन करवानु छे भेटले अमणे आ परिस्थिति रसदृष्टिले योजी जणाय छे. अदभुत. शृङ्गार अने करुण बणे रसने सुग्रथितपणे निरूपबा मथता कवि अहीं धार्मिक मान्यतानो विचार करवा थोभना जणाता नथी. धर्मोपदेशाने असणे अन्तमा प्रवविवाना उपाम केशांतरसने माटे संघरी राखेलो गणवामां बाध नहीं आवे. पोताने वरवा आवतो कनवः । बीजी ज कोई कन्याने परणी जाय अने ते पण तापसकन्याने, अq ते कुंवरे ऋषिदत्तायां शुं दो के पोते खानदान राजकुळनो उता ओक तापसनी कन्याने परणी बेठो ?-आप्न विचारती रुखमणी इाथी स ठगी ऊठी. तेणे ऋषिदत्ताने जेर करवा सुलसा योगिनीने साधी, ताडना त्रीजा भाग समी, भयानक देखाववाली, मुलसा खुशीथी ऋषिदत्तानी खानाखराबी करवाजु काल स्वीकार्यु. रथमर्दनपुर जई तेणे हाहाकार मचाव्यो. सरकीथी माणसो टप मरवा लाग्यां. शेरीमा शबोना ढगला थया अने नगर आखु दुर्गधथी धगधणी ऊठ्य. ऋषिदत्ताने अवस्वामिनी निद्रा आपी सुलसा तेना होठ लोहीथी रंग्या, तेनां करडां पर लोहीना डाघ पाड्या, तेना ओशीका आगळ मांसथी भरेल करंडिया मूकया. सवारे जागेल कमकरथ पत्नीनी आ स्थिति जोई गभराई उठ्यो. तेने उठाडी प्रश्नो कर्या. ऋषिदत्ताजे पोते सर्वथा निर्दोष होवान जणाव्यु. कहयु, जन्मथी ज कोई जीवने पोते पीडा आपी शकती नथी, लोहीमांसनी गंध खमी शकती नथी, खुल्ली पाळी जोईने पण अने डर लागे छे तो अ आत्री हिंसा कई रीते आदरे ? नक्की पूर्वजन्मनां कोई कर्म नडतां होवाथी कोई अने आवी पीडा आपी रहथु छे. कुंवर मानी गयो. सुलसा नगरमां महा उत्पात मचाव्यो. राजाने बहेम आवतां तेणे पाखंडीओ, साधको ने संन्यासीओने नगर बहार कढाववा मांड्या. सेवा निर्दोष मानवीओना बचाव अर्थे अने खरा गुनेगारने शोधी आपवाने बहाने सुलसा हेमरथ राजा समक्ष गई. पोताने स्वप्न आव्यु हतु तेमां कोई देवी अवु कही गई के राजानी पुत्रवधू राक्षसी छे अने तेणे ज आ उत्पात मचाव्या छे अवु राजाने तेणे कहथु. राजाओ राजकुवर कनकरथने बोलावी पोतानी पासे राज्यो अने राते ऋषिइत्ता पर नजर राखवा चर मोकल्यो. सुलसाओ अदृश्य रही मांसना करंडिया, लोही, वगेरेनी योजना ऋषिदत्ताना आवासमां की अने चरने ऋषिदत्ता गुनेगार भासी, अने राजाने तेणे ते प्रमाणे कहयु. राजा कोप्यो. विचारो कनकरथ ! ओ शो जवाब आपे ? पत्नी निर्दोष छे से जाणवा छतां से परिस्थितिमां तेनो बचाव पण शी रीते थाय ? हेमरथ राजाओ ऋषिदत्ताने अपमानित करी रमशानमां लई जई तेनो वध करवा फरमाव्यु. रांक स्वभावनी असहाय ऋषिदत्ता राजाला खोफनो भोग थई पडी. तेने विरूप करी गधेडे बेसाडी गाममां फेरववामां आवी. अंते तेने स्मशानमा लई गया, माराओओ तेने इष्टदेवनु र मरण करी Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेवा जगान्पु थाक अने बीकनी सारी ऋषिरता मूर्छित भई भय उपर पडी. साराओने लाग्य के अना राम स्त्री गया छे. तेओ पाछा फरी गया. . २२ ऋषिदत्ता मानवां आवी अने निर्जनतानो लाभ लई नासवा मंडी. री पीडा पापती, असहाय अने क्षेकाकिनी ते रुदन करती आगळ वध वृक्षो आववा लाग्यां थे अवाणीओ आगळ वधती ते विताना आश्रम संभारी संभारी तेणे कल्पांत की मूकयुं न वृक्षवेलीओ अने पशुपंखी पण अना रुदन साथे रडी ऊठ्यां. जेम तेम शांत पडी. विचारखा लागी : " अकली स्त्रीने सतत भय. स्त्रीने अकली जोतां पुरुषोनी डाढ सकवळे. शुकवु ? याद आयु के पिताओ अक औषधि बतात्री छे जे कानमां राखवाथी स्त्री पुरुष बनी जाय. अने ऋषिदत्ता पुरुष तापस बनी ध्यान करती आश्रममा रही. हरिपेण पक्षे रौद्र, गुलसाने पक्षे भयानक, अभुत अने वीभत्स, ऋषि दत्ताने पक्षे करुण अने छेत्रटना भागतां अद्भुत अने शांत अम रसयोजना करी छे. "" कथानकता आ खंडां कवि जगतां साचो प्रेम घणीये वार आकरी कसोटीओ चढे छे. वनकरथनो प्रेम पण कसोटीओ चडवो. प्रियाविरहे प्रीतम विलाप करी रहयो. कांतानां रूप अने सद्गुणोने संभारी संभारी, तेदी साथे गाळेला सुखना दिवसोने याद करतो ते देवनी निन्दा करवा लाग्यो. विरहनी पीडा न सहेबातां ते मरवा तैयार थयो त्यारे समांसबंधीओओ जेनतेन समजावी रोकी राख्यो. पण तेनी स्थिति दयाजनक थई पडी दुःखधी दळता तेने आनंद मोहनी कोई बात रुचती न हती. नहोतो ते खाई शकतो, नहोतो सुखे सूई शकतो. प्रियतमानु स्मरण करी करीने पोतानी जातनो तिरस्कार करी रहेता तेने सौ धीरज आपवा लाग्या. अथदाती-कुटाती, अनेक मार्गां पोते रोपेलां पहोंची गई. पिताने अ गाळामां सुलसा पहोंची रुखमणी पासे अने तेने बधी वातथी वाकेफ करी, कुंवरीओ राजाने वात की अने तेणे फरी वार परणवा आववानुं कनकरथ माटे कद्देण मोकल्यु. हेमरथे पुत्रने खूब समजाव्यो ने पितानी आज्ञा माथे चडावी फरी अक वार कलकरथ रुखमणीने परणवा चाल्यो मार्गमा शुभ शुकन थया. रस्ते जतां पोते ऋषिदत्ताने परण्यो हतो ते आश्रम आव्यो. पूर्वनां स्मरण जागृत थयां हैंयु फाटवा लायु वन खावा धायुं धीमे धीमे ते जिनमंदिर पासे आव्यो. प्रियसंगल-सूचक इंगितो अनुभवतां विचारमां पड्यो. त्यां तो तापसवेषी ऋषिदत्ता पुष्पादिक लईने आवी. कनकरथने ते आपतां हाथनो स्पर्श थयो ने बनेने रोमांच थयो कुंवर तेने जोई रहयो. पत्ता समजी गई के प्रीतम हत्रे रुखनगीने परणवा जाय हे प्रश्नोत्तर था. ऋषित्ताओ तापस तरीके ज पोतानो परिचय आयो, तापसने जोतां पोतानी आंख घराती ज नथी म कुंबरे कह ने पूर्वजन्मना स्नेहने कारणरूप गणी तापसने पोतानी साथे कावेरी नगरी आवा दाण क. ऋषिरता मूंझाई. कारी कसोटीनां मूकाई गई. बहानां काय पण आखरे कुंवरना आग्रह वश थई ज ज पड्यु प्रीतिबद्ध से वे जीवो कावेरी पहोंच्या. विप्रलंभ शृंगारने पडखे कवि अहीं करुणनो पण असरकारक साक्षात्कार करावी दीघो छे. कनकरथ अने रुखमणी परण्यां ससराओ आग्रह करी जमाईने रोक्यो पियु पोताने हवे वश छे अम जाणी मदमत्त रुखमणी पतिने प्रश्न करी वेठी के ते मार्गमां तापसकन्याने कां परणी बेटो हतो ? अवु ते तेनामांशु हतु के कांचनीचनो भेद पण न परखायो ? जेने कारणे काबेरी जवानुं ज मांडी वाल्यु. ते तापसकन्या अवी ते केवी हती ! उदास हैये छतां अंतरना Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ प्रेमे प्रेरेली उत्कटताथी कुंवरे ऋषिदत्तानां रुखमणी आगळ भारोभार बखाण कयां अने रुखमणीने हलकी पाडी. क्रोधाग्निथी धगधगती रुखमणी हवे पोत प्रकाश्यु ने पोते ऋपिवत्ताने केवी ने केटली संतापी ते वात खुल्ली करी दीधी. मुलसा भजवेला भागनो पण स्पष्ट उल्लेख को. ते सांभळी कनकरथ कोप्यो. तिरस्कारना आकरा शब्दो तेणे रुखमणीने कहया. ऋषिदत्ता जेबी निरपराध स्त्रीने भयानक संकटमा सपडाववाने कारणे रुखमणीने वैरिणी ठरावीने पोते चिता रचावी बळी सरवा तैयार थयो. ऋषिदत्ता माटेना साचा प्रेमनो परिचय फरी ओक वार अणे आप्यो. ऋषिदत्ता निष्पाप हती से वात जाहेर थई गई. ऋषिदत्ताने परिस्थिति समजाई जतां पोताने साथ लु उलंक दूर थयु जाणी तेने आनंद थयो. __ ऋषिदत्ताने संभारी तेनी पाछळ आत्महत्या करवा तत्पर थयेलो कुंवर ससरा मुंदरपापिलो अटकाव्यो पण अटकतो न हतो त्यारे तापस ऋषिदत्ताजे मीठाशथी तेने समजाधवा मांड्यो अने पोते जीवतो रहे शे तो क्यारेक पोतानी प्रियाने मेलबशे अव आश्वासन आप्यं. मला ते कई पाछा आवे ?-कुंवरनी शंका ओ हती. विरहनी वेदना हवे केभ वेठवी ? तापस पोतानी दानी शक्तिथी जो प्रियाने मेळवी आपे तो तेना दास बनी रहेवानी तयारी बतावी. प्रसन्न थयेला तापसे कुंवरना ओ साहसथी तेनी प्रियतमा प्रसन्न थई छे अन जणावतां कुंवर पूछयु के तापसे तेने क्यांय दीठी छे ? ज्ञानना बळने आगळ की तापसे जणाव्यु के तेनी नियतमा यमने घेर कल्लोल करी रही छे. कुवरने अक ज रढ हती.-त पाठी केम आवे ? तापसे जणाव्यु के पोते त्यां जई तेने मोकलशे-कुंवरने सुखी करवा पोते अटलो भोग आपशे. पण अन कर्ये अने शो फायदो ? कुवर पोताना प्राण पण आपी छूटवानी वात करवा लाग्यो त्यारे समय आध्ये पोते जे मागे ते तेणे आपवु अवु वचन तापसे कुबर पासे लीधु'. कुबरे आप्यु. तापस ऋषिदत्ता पडदा पाछळ गई. परिणाम जाणवा सो अधीरा बन्या. ऋषिदत्ता “निजरूपे" पाछी फरी. रूपरूपना अंबार समी तेने जोईने सौ अंजाई गयां. रुखमणी पण झारखी पडी गई. बंदीजनो जयजयकार करवा लाग्या. कुंवर माटे ऋषिदत्ता ज सर्वथा योग्य छे ओम सोने लाग्य. समाचार राजा सुधी पहोंच्या. सुंदरपाणि जाते आवी, कुंवर ने ऋषिदत्ताने हाथी पर बेसाडी पोताने मंदिर लई गयो. पोतानी दीकरी रखमणीने तेणे सखत टपको आप्यो अने सुलसानु नाक कापी तेने गाम बहार तगेडी काडी. अक दिवस कुवरने परोपकारी तापस भित्र बाद आव्यो अने तेनो विरह अने संतापत्रा लाग्यो. ऋषिदत्ताने अणे वात करी. तापस रूपे प्रीतमना स्नेहनी परीक्षा पोते करी हती अवी चोखवट ऋषिदत्ताओ करी. कुंवरनु हैयु आनंदथी नाची ऊठ्यु. सज्जन ने दुर्जननी तुलना करवा लाग्यो त्यां ऋषिदत्ताजे वचन्नी याद आपी मागी लीधु के कुवर, पोतानो गुस्सा छोडी. रुखमणीने पण पोताना सरखी ज गणी अपनावी ले. कुबरे तेम कयु ने थोडा दिवस पली स्थमर्दनपुर चाल्यो. कथानकना प्रणयत्रिकोणना कोण बनतां त्रण पात्रोना मानसनो कविओ आ विभागमां खूब अच्छो परिचय आपी दीधो छे. गुस्साने कारणे थती पतिपत्नी वच्चेनी तातडीने कुटुबां प्रगटता रोदरसना उदाहरण रूप लेखी शकाय. साचो प्रेम प्रिय पात्रने सुखी जोवामां ज संतोष माने छे. स्वार्थी प्रेम दखत आव्ये प्रिय पात्रना विनाशने नोंतरे छे. साचो प्रेमी प्रेगनी कसोटीमा केली Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ दे भोग आपी शके तेनो चितार पण अही. छे. नायक-नायिका मल्यां त्यां मर्यादित संयोग शृंगारनु निरूपण छे. कनकस्थ वे पत्नी सार्थ पाछो फरतां रथमर्दनपुरमा माटो उत्सव थई रहयो. हेमरथे मुलसानी वात जाणी. पोताने अपराधी गणी तेणे फरी फरी ऋषिदत्तानी क्षमा मांगी. साची सतीने सौ कोई नमे. शुभ मुहर्त कनकरथना राज्याभिषेक बरी हेमरथे भद्रसरि पास दीक्षा लई लीधी ने विकरणशुद्धिी संयम पाळी मुक्तिने वो. बखत जतां कनकरथने ऋषिदत्ताथी पुत्र थयो सिंहस्थ. वर्षा वीत्या. अंक दिवस नगरनी शोभा जोतो कनकरथ ऋषिदत्ता सार्थ गोखमां बेठो हतो. त्यां तेणे आकाशमां वादळ आवी थोडा वखतमा विखराई जतु जोयु. आ दृश्य तेना वैराग्यनु कारण बनी गयु. भवन स्वरूप पण आयुज क्षणभंगुर छे अबु भान तेने थयु. संसारसुखनी क्षणिकताने ते विचारता हता त्यां वनमां गुरु भद्रयशो आव्या. कनकरथ अने ऋषिदत्ता हरखथी तेमनी पासे पहेांची गया. गुरुचरण वांदी सघळां पाप धोई नात्यां. ऋषिदत्ताओ पोताने लागेलां कलंकनु कारण पूछच. गुरुओं पूर्वभवनी कथा कही. ऋषिदत्ताने तमणे कहा : “ गंगापुरमां गंगदत्त राजा ने गंगा देवीनी दीकरी तुं गंगसेना हती. ते नगरमां चन्द्यशा नामे महासती हती. तेनी देशना सांभळदा तु साध्वीओ भेगी बेसती, त्यां आवती वैरागण संगानां लोको बहु वखाण करता. तेनी तने ईषा थई. ते तेना पर आक चढाव्यु के ते संगा मांसभक्षिणी छे. अत्री सतीने ते आळ चढाव्यु तेथी तारी आ दशा थई. रागद्वेषथी साधुने संतापे तेने अबदशा आवे. कया कुकर्मनां फळ भोगववां ज पंडे. निंदा करनार सहुथी मोटो चांझल छे. गंगापुरमा ते जिनदीक्षा लोधी, तप कर्यु', अनशनथी मरी, इशानेन्द्रनी इन्द्राणी थई ने ते पछी हरिषेणनी पुत्री थई. कर्मनो जे लवलेश रयो ते कारणे तार आयु अहित थयु." गुरुनां वचन सांभळी ऋषिदत्ताने जातिस्मरण थयु. कर्मनो विपाक जोई ते भय पामी. गुरु पास तेणे दीक्षा लई लीधी. कनकरथे पण सिंहस्थने गादी) बेसाडी दीक्षा लई, संयम पाळी, तप आर्यु. गुरु साथे फरतां फरतां बन्ने भदिलपुर आव्यां ने त्यां ध्यानाग्निथी कर्मनिकायने भस्मीभूत करी केवलज्ञान पामी मुक्तिओ गया. कथाना आ अंतिम भागमा धपिदेश, संसारत्याग ने तप महत्त्वनो भाग भजवे छे. कर्मनो नियम अफर छे. तेथी कुकर्मथो सर्वथा दूर रहेवु से सलाह दुन्यवी गमे ते मानवीने आपी शकाय, पण संसारनी क्षणभंगुरता समजी चूकेली व्यक्तिने दीक्षित थये ज साचो धर्मलाभ. उपशमने आलेखता आ अंत अन्य अनेक जैन रासाओनी माफक अंते शांतरसने ज आगळ करे छे. अहिक बंधनो तूटी जतां, कर्मनी आसक्ति भस्मीभूत यतां अंत मां, जीवनमां शांत सिवाय बीजो कयो रस संभवे? रसप्रद रीते अने पुरता विवैध्य समग्र दृष्टिले अवलोकतां वार्तामानां घटकोने कवि सहित रजू कर्या छे अम कही शकाशे. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषिवाथानी परंपरा * [1] 'भारल्यानकमणिकोष' मां (कर्ता नेमिचन्द्रसृ]ि दृष्टिकर्ता आम्रदेवसूरि १३मा सेकामां २९ भावाल्याना लोचनदोषाधिकारमां ऋषिदत्ताचरित्र प्राकृतमां ९१मी कथारूपे ५४० गाथामां रखेल छे. प्रकाशन - प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, बनारस सं. २०१८. [२] 'विवेकमंजरी' [कर्ता - कवि आस २. सं. १२४८]ना वृत्तिकर्ता बालचंद्रसूरिये ऋषिदत्ताकथा संस्कृतमां लखी छे. प्रकाशन-सौं. १९७५. [३] भज्ञातकविकृत संस्कृत - प्राकृत मिश्र भाषामां लखायेल ऋषिदत्ताचरित्र लख्या स. १८२४. प्राप्तिस्थान -ला, ६ मा सं. विद्यामंदिरमां विजयदेवसूरि संग्रहमा ह. प्र. क्रमांक १०४७ अने ९१८७, अज्ञात कवि कृत ऋषिदत्तारास - सं. १५०२. 'ऋषिदत्ता चउपई' : कर्ता देवकलश. स. १५६९, पत्र १३, कडी ३०१. प्राप्तिस्थान - [१] हालाभाई मगनलालनो भंडार, पाटण. [२] ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर, अमदावादक्रमांक १२५१. [३] लींबडी भंडार. [४] कोडाइकेनालनो भंडार. [ ४ ] [ ५ ] २५ [६] 'तास': कर्ता सहजसुंदर. सं. १५७२. प्राप्तिस्थान-ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर, क्रमांक १०४२. प्राप्तिस्थान - जोधपुर . [७] 'ऋषिदत्तासती चोपाई' : कर्ता रंगसार. सं. १६२६ [C] 'ऋषिदत्ता रास' कर्ता जयवंतसूरि. सं. १६४३. प्राप्तिस्थान - ( १ ) ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर. (२) महावीर जैन विद्यालय, मुंबई, (३) श्री गोडीजी उपाश्रय ( मुंबई ). [९] 'ऋषिदत्तारास ' कर्ता - मतिसार, र, सं. १६४३. प्राप्तिस्थान —डहेलानो उपाश्रय : [अमदावाद]. [१०] 'ऋषिदत्तारास ' : कर्ता गुणसौभाग्य. र. सं. १६४३. प्राप्तिस्थान * कोडाइकेनाल. [११] 'ऋषिदत्तारास ' : कर्ता- सरवण (पायच दगच्छना) र. सं. १६५७. प्राप्तिस्थान - अभयसागरनो भंडार, पाटण. आ परंपरानी यादी बनाववा माटे नीचेना ग्रंथो उपयोगमां लीधा छे : " जैन गुर्जर कविओ - भाग १, २, ३ : देसाई मोहनलाल दलीचंद लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरना हस्तप्रत भंडारनी यादी. (३) उहेलाना उपश्रयना हस्तप्रत भंडारनी यादी. • श्रीमद् राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ सं. नाहटा अगरचंद. • आनंद काव्यमहोदधि नाग १ : सं. झबेरी जीवणलाल साकरचंद. (1) ( २ ) (५) Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२] 'ऋषिदत्ता चोपई' : कर्ता-गुणविनय, र. स. १६६३. प्राप्तिस्थान-ममयसागरनो भंडार. मंदार [१३] 'ऋषिदत्ता चउपई' : कर्ता-विनयशेखर, र. स. १६५७ ले. स. १७०९. प्राप्तिस्थान -ला. द. भा. स. विद्यामंदिर. [१४] 'ऋषिदत्ता चउपई' : कर्ता दयाचंद्र. र. स. १६९९. प्राप्तिस्थान-ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर. [१५] 'ऋषिदत्ता चोपई' : कर्ता चोथमल, र. स. १६८४. [१६] 'ऋषिदत्ता चोपई' : कर्ता वेगडगच्छीय महिमसमुद्र. र. स. १६९८ [१७] 'ऋषिदत्तानो रास' : कर्ता विजयशेखर. र. स. १७०७. प्राप्तिस्थान-महावीर जैन विद्यालय. [१८] 'ऋषिदत्ता रास' : कर्ता जिनहर्ष. र. सं. १७४९. प्राप्तिस्थान-पाटण. [१९] 'ऋषिदत्ता चोपई' : कर्ता वीरमसागर. र. स. १७५१. प्राप्तिस्थान-जेसलमेर. [२०] 'ऋषिदत्ता चोपई' : अज्ञातकविकृत. र. स. १७५२. प्राप्तिस्थान-विजयधर्मसूरिनो भंडार, बेलनगंज, आग्रा. [२१] 'ऋषिदत्ता चोपई' : कर्ता गुणसागरना शिष्य ज्ञानचंद. र. स. १७९७. प्राप्तिस्थान-सुरत. [२२] 'ऋषिदत्ता रास' : कर्ता मेघराज ऋषि पार्श्वचंद्रीय, र. स. १७मो सैको. प्राप्तिस्थान -ला. द. भा. स. विद्यामंदिर, अमदावाद. [२३] 'ऋषिदत्ता स्वाध्याय' : कर्ता सुमतिमाणिकय, र. सं. १७मा सको. प्राप्तिस्थान-ला. द. भा. स. विद्यामंदिर (न.)ना भंडारमां. क्रमांक १३७३ छे. [२४] 'ऋषिदत्ता चउपई' : कर्ता सिंहसौभाग्यना शिष्य सुमतिगणि. र. सं. १८३३. प्राप्तिस्थान -ला. द. भा. स. विद्यामंदिर. [२५] 'ऋषिदत्ता चौपाई : कर्ता चौथमल, र. सं. १८६४. देवगढमां रचना करी छे.. [२६] 'ऋषिदत्ताचरित्र' : कर्ता बालचंद्रसूरि. संस्कृत भाषा. प्राप्तिस्थान-ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर. (पु.) क्रमांक १४५६. [२७] 'ऋषिदत्ता चउपई' : कर्ता शिवकलश. प्राप्तिस्थान-ला. द. भा. स. विद्यामंदिर. (पु.) क्रमांक ६२१८. [२८] 'ऋषिदत्ता कथानक' : अज्ञातकविकृत. प्राप्तिस्थान-ला. द. भा. स. विद्यामंदिर. क्रमांक ५३९२. नोंध : ज्यां भाषानो उल्लेख नथी त्यां भाषा मध्यकालीन गुजराती समजवी. ' Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ जयवंतसूरि अने अमना पुरोगामीओओ रचेल ऋषिदत्ताना कथानकमां देखाता केटलाक आगळ पडता वस्तुविषयक फेरफारो : जयवंतसूरिओ ऋषिदत्ता रासनी रचना संवत १६४३मां करी. प्रथम ढालनी सातमी नाडीमां ओ लखे छे: “पूर्वई छई सुकवि कर्या, अहनां चरित प्रसिद्ध, तउ हई रसिकजन आग्रहई, मई मे उद्यम कीद्ध.' आगळ ऋषिदत्ता कथानी जे परंपरा आपवामां आवी छे ते जोतां सती ऋषिदत्ता उपर संस्कृत प्राकृत अने गुजरातीमा सातेक कृतिओ जयवंतसूरि पूर्वे रचाई चूकी हती. अमांथी नीचेनी पांच मळी शकी छे जेने आधारे अहीं नेांधेला फेरफारो दर्शाववामां आव्या छ : (१) 'आख्यानक मणिकोष' : कर्ता नेमिचंद्रसूरि (तेरमी सदी पूर्वे). २९ भावशल्यानालोचन दोषाधिकारमा ९१मी कथा ऋषिदत्ताचरित्र प्राकृतमां ५४० गाथामां. (२) 'विवेकमंजरी' : कर्ता कवि आसड. र. स. १२४८. संस्कृत गद्यमां ऋषिदत्ताकथा. ... (३) 'ऋषिदत्ता चरित्र' : कर्ता अज्ञातकवि भाषा संस्कृत-प्राकृत. गद्य-पद्य मिश्र, . .. (४) 'ऋषिदत्ता चरित्र' : कर्ता देवकलश. र. स. १५६९. (५) 'ऋषिदत्ता चउपई' कर्ता सहजसुंदर. र. स. १५७२. कथाना आरंभमां ज केटलाक फेरफारो मळे छे. आचार्य नेमिचंद्रसूरिसे आ रासनी शरूआत कोई पण आराध्य देवदेवीने प्रणाम कर्या वगर ज करी छे. अज्ञातकविले पांच महातीर्थङ्कर ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ अने सुमतिनाथ वगेरेने प्रणाम करीने करी छे. जयवंतसूरिओ पंचपरमेष्ठिने नमस्कार करीने ज्यारे सहजसुंदर अने देवकलशे सरस्वती देवीनी आराधना करी तेमने प्रणाम करी पोतानी कृतिनी शरूआत करी छे. सहजसुंदरे पोतानी कथानो आरंभ आ प्रमाणे को छ : " जंबूद्वीपमा राजगृही नगरी छे. त्यां इन्द्र समान श्रेणिक राजा राज्य करे छे. अना राज्यमां अक वार वीर भगवान समोसा. श्रेणिक महाराजा वीर भगवाननी समक्ष धर्म सांभळवा बेठा. वीर भगवाने देशना आपवा मांडी : “ कर्म आगळ राजा ने रंक बधां ज सरखां छे. कर्या कर्मथी कोई ज छूटतु नथी. कर्म राजा हरिश्चंद्रने पण रोळयो ने भलभला बळवानने पण ना छोड्या.” श्रेणिक महाराजाओ प्रश्न पूछ्यो : “कूड-कलंक कया कर्मथी चडे ? ” महावीर भगवाने कथु, “ ऋषिदत्ता सतीने कूड-कलंक चढथु हतु." आ पछी ऋषिदत्तानु कथानक आवे छे. अज्ञातकविनी कथामां कनकरथनो जन्मोत्सव तेम ज केळवणीनी विस्तृत विगतो आरंभमां मळे छे. कनकरथ रुखमणीने परणवा जाय छे त्यारे मार्गमां अने युद्ध करवु पडे छे अने शत्रुओने ताबे करवा पडे छे अनुं वीररस-सभर वर्णन अहीं तेम ज आख्यानकमणिकोशमां मळे छे. बीजा कविओओ आ विगतो आपी नथी, कारण तेओने रसदृष्टि से ठीक नहि लाग्यु होय. जैनकनिओ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ युद्धमा थती हिंसाने कारणे युद्धप्रसंगोना वर्णनोने टाळे ते समजी शकाय तेवुं छे. परंतु कनकरथना जन्मसमयना उत्सवनी के अनी केळवणीनी विगतोने, ते अगाउनी कृतिओमां होवा छतां तेमणे पोतानी कृतिमां स्थान नथी आप्यु. अनु कारण से होई शके के ते ते कविओओ कनकरथना प्रथमे ज महत्त्व आपी भिन्न भिन्न पात्रो द्वारा से प्रणयनीज मीमांसा करवानुं इष्ट गण्यु होम भने अ परिस्थितियां मदरूप न थई पडनार विगतोने बाजु पर राखी होय. कनकरथकुंवरना जन्मोत्सवनी विगत अज्ञातकविकृत रचनाओंां आ प्रमाणे सछे छे : 'कुंवरनो जन्म थयो छे ते जाणी राजाओ जन्मोत्सव कराव्यो. याचकोनी निर्धनता हरी लीधो मागनारने इच्छित दान अपायु नाचनारीओने नृत्य कर्या. गवैयाओओ गीत गायां बंदीजना द्वारा राजानां वखाण थयां ब्राह्मणो वेदोच्चार की कुलीन स्त्रीओ आशीर्वाद आप्या. मोती माणेक होरा वगेरे रत्नो दानमां अपायां हाथी-घोडाथी रमतो, सोनाना अलंकारो धारण करतो अने धात्रीओधी सचवातो से पांच वर्षनो थयो . ८८ कनकरथनी केळवणी अंगे अज्ञात कवि नीचे मुजब बयान आपे छे : " अभ्यासलायक कुंवरने थयेलो जाणी पिताओ ने ज्ञान आपवानो विचार कये. निशाळे. मूकवानो दिवस नजदीक आव्यो. जे दिवसे अने तेल चोळवामां आव्यु सुगंधित द्रव्यो वडे स्नान करायुं. सारां वस्त्रो पहेराव्यां कनकरथे माथा उपर कीमती रतनी कलगी धारण करी सातापिताने प्रणाम कर्या. गळा हार, हायें मुक, कवन कुंड दगेरे आभूषणो पर्या. ब्राह्मणे शांतिकर्म पतान्यु. मांगलिक आचार थयो. कुंवर पालखीमां बेटो माथे छत्र राज्य. रस्तामां सेवको बे बाजुओ चामर वींझवा मांडया. प्रधानो, अमात्यो, सामंतो बधा अनी साथे चालवा. निशाळमां प्रवेश कर्यो. गुरु पासे शास्त्र अने शस्त्रनी कळा, छेद, व्याकरण, अलंकार, रथशास्त्र, प्रमाणशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र वगेरे बोंतेर कला शीरुया. " कनकरथ उमरलायक थाय छे। अने यौवनवय पामेलो जोई छेमरथ राजाने चिंता थाय छे के लेने लायक कन्या कोण हशे ? सेना पाणिग्रहणनी चिंतानी वात मात्र देवकलश आपे छे. खमणी यौवन वय पामी छे भेटले व्यवहार माता अने अलंकारोथी सज्ज करी पिता पाखे मोकले छे. पिता पुत्रीने जुझे छे अने विचारे छे : " अहो ! मारी पुत्री आटली बधी मोटी थई गई ! हवे अने लायक वरनी तपास करवी पडले. " मंत्री राजाने चिंतित जोई कारण पूछे भाटचारणोथी गवातो अने लायक वर सांभळयो छे. राजा मंत्रीने ज मागुं करवा मोकले छे. आ प्रमाणे अज्ञात कवि त्रणेय आपे छे. जयवंतसूरिनी कथामां << 31 छे, राजानो जवाब सांभळी मंत्री कहे छे : ते कनकरथ छे. अने माटे मार्ग मोकलो. सविस्तर कथन नेमिचन्द्र, आसड कवि अने आटलो विस्तार नथी. कनकरथे रुखमणीने परणवा काबेरी तरफ प्रयाण · त्यारे चालता चालतां ते अरिदमन राजाना प्रदेशमां पांच्यो राजाओ ज्यारे जाण्यु के कुंवर पोताना प्रदेशमां प्रवेश्यो छे त्यारे अने देवा " तु मारा देशनी सीमामा प्रवेश नहीं करी शके तेमज पडाव पण नहीं नाखी. आवां र वचनो सांभळी कुंवर खूब ज गुस्से थयो ने युद्ध माटे तैयार थयो. 1: Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युद्धनुं वर्णन : " अकाळे युद्ध थयु. झुलवाळा हाथीओनो समूह परर पर भीडायेलो छे. घोडानी खरीओथी धूल उडतां सूर्य ढंकाई गयो छे. वेगथी रथो चालता होवाथी दिशाओ बहेरी थई गई छे. खडगथी कपायेला हाथीना कुंभरथलोमांथी गळता लोहीनी नदीनी अंदर यान अने जंधान तरे छे. जय मेळववा माटे लुब्ध सेवा बन्नेनु युद्ध अनेक जीवोनो जान लेनार थयु. भयंकर विनाश सायलो जोई दयालु अंवा कुमारे बाहुयुद्ध करवा अरिदमनने समजाव्यो. तेमां कनकरथे अरिदमन उपर विजय मेळव्या. नागपाशथी राजाने बांधीने वश करी दीधो. अरिदमन हारी गयो. हवे राज्यमा शु मोढुं बताक्वु ! तेने वैराज्य उत्पन्न थयो ने दीक्षा ग्रहण करी." आ वर्णन नेभिचन्द्र, आसड अने अज्ञात कवि ऋणेय लगभग सर आपे छे. अरिदमनना पुत्र श शल्ये उगारे जाण्यु के पिता दीक्षा लंधी छे त्यारे से अमनी पासे गयो. पिताने विनंति करी, “ राज्य पार्छ ग्रहण करो ने शांतिथी जीवो.'' पिता जणावे छे के " संसार कडवो झेर जेवो छ अने लक्ष्मी अस्थिर छे माटे मने अनो खप नथी." तिानी वाणीथी मे पण जिनधर्ममां रत थाय छे अनो राज्याभिषेक थाय छे अने से राज्य करे छे. भेना राज्याभिषेक वखते घणा राजाओ. मंत्रीओ हाजर रहे छे. हरिषेण राजा अजाण्या घोडा उपर सवार थईने जाय छे त्यारे घोडो मेने छोडी दे छे. से विश्वभूति तापसना आश्रममां जाय छे. त्यां विश्वभूतिने पूछे छे के “ मारे पैसानो सदुपयोग करवो छ तो केवी रीते कर" विश्वभति समजावे छे के मोटा मोटां मंदिरो बंधाववाथी प्रतिम पधराववाथी, जिनप्रासाद बंधाववाथी, प्रभावना करवाथी पैसानो सदुपयोग थाय छे. आ प्रमाणे यायथी पैसा कमाई जे मंदिर बंधावे तेने साम्राज्य प्राप्त थाय अने तेनु कल्याण थाय धनश्रेष्ठीनी जेम. अज्ञात कवि अही धनश्रेष्ठीनी अवान्तर कथा रज़ करे छे. हरिषेण राजा मंगलावती नगरीमां प्रीतिमतीनु विष उतारवा जाय छे. मंत्रथी विष उतारे छ त्यारे पुत्री आळस मरडीने ऊभी थाय छे. प्रियदर्शन राजा पुत्रीने खोलामा बेसाडी पूछे छे : “तने शी तकलीफ थाय छे।" पुत्रीओ कहा: “मने कांई ज थतु नथी. बधां भेगां केम थयां छो?', " हे पुत्री ! तु मृत्यु पामी छे अम जाणी तने स्मशानमा लाव्यां ने चिता तैयार करावी छे. आ अकारण परोपकारी राजाओ तने प्राण पाछा आप्या छे." पुत्री) कहथु : “ मारा पुण्यने लीधे अणे मने सारी करी. में पण मारा प्राण अने आप्या छे." राजाओ कहा : " ते योग्य ज कर्य छे." आ सांभळी हरिषेणे जवाब आप्यो, “ह तो दीक्षा लेवानो छ ने तपोवनमां जवानो छं. तारी कन्या वीजाने आप." प्रीतिमती) कहयु : “ मारे कोई बीजो माणस अग्नि समान छे. " आ उत्तर सांभ की हरिषेण प्रीतिमतीने परण्यो. आ विगत आख्यानकमणिकोशमा छे. हरिषण राजा पुत्र अजितमेनने राज्यभार सेपी दीक्षा ग्रहण करवानो विचार करे छे. तेणे राणीने कहयु: "तु पैसा जेटला जोइओ तेरला ले ने घरमां रहे. हु संसारथी विरक्त थई गयो छु ने तापसव्रत ग्रहग करवानो छु.” राणी आंखमां पाणी लावी बोली : “ वृक्षनी छाया वृक्ष वगर रही शक नहीं, मेवी ज रीते तमारा बगर हुपण घरमां रहीश नहीं. हे स्वामी ! Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तमारी गति ते मारी गति." आम कही बन्ने तापसवन ग्रहण करे छ. आ वात आख्यानकमणिकोशमां आपी छे. कनकरथ हरिषेण तापसना आश्रममां आवे छे. ऋषिदत्ताने जूझे छे. कनकरथ अने ऋषिदत्ता बन्ने वच्चे परस्पर प्रेम जाग्यो छे से जाणी हरिषेण ऋषभदेवना मंदिर पासे बन्नेने परणावी दे छे. लग्न थया पछी कनकरथ हरिषेणने ऋषिदत्ता विषे वृत्तांत पूछे छे. हरिषेण सर्व हकीकत जणावे छे. आम सहजसुदरकृत कथामां प्रथम कनकस्थ ऋषिदत्ताने परणी जाय छे ने पछी मे कोनी पुत्री छे ते हकीकत जाणे छे. आ तो “ पाणी पीने पूछे घर ' तेना जेवी वात छे. हरिषेण तापस कनकरथने ऋषिदत्ता विषे वृत्तांत कहे छे तेमां प्रथम अबु जणावे छे के " मत्तीयावई नगरीनां हरिषेण राजा राज्य करे छे, अनी पत्नीनु नाम प्रियदर्शना छे. अने मेक पण पुत्र नथी तेन राजाने असहय दुःख छे. दुःखी थयेलो राजा उगवाळो छे. पतिने दु:खी थयेला जाणी राणी सचन करे छे के “ पुत्रनी प्राप्ति माटे कुलदेवीनी आराधना करो." राजा शुद्ध श्वेत वरत्रो पहेरी, ब्रह्मचर्यव्रत धारण करी, हाथां माळा लई कुळदेवीना शिरमां गयो, त्यां अभनी पथारीनां सूतो. त्रण दिवस उपवासवत आदर्य. तपथी प्रसन्न थयेली कठदेवीने कह: मने पत्र आप" देवी कहय : जे आपवानं विधिले निर्माण कयुज न होय ते देवो आची शकता नथी.” राजा कहा: मारा वडीलोनी तारा तरफनी भक्ति याद कर ने पुत्र आप, नहीं तो तलवारथी हुमार मस्तक उडावी ईश". राजाओ तलवार खेंची माथु उतारवानी तैयारी करी त्यारे प्रसन्न थई देवी कहथु : “ तने पुत्र थशे." आम अजितसेन नामनो पुत्र जन्म्यो . आ विगत आख्यानकमणिकोशमां ज आपी छे. . कनकरथ ऋषिदत्ताने परणीने आश्रममांथी विदाय ले छे त्यारे ऋषि पासे शिखामण मागे छे. ऋषि कहे छे : “ तु रुखमणीने परणवा जा." कुमार जवाब आपे छे : “ हमणां तो तमारी पुत्रीथी. ज स्त्रीना संबंधमां कृतार्थ थयो.छु'. अने तेथी रखमणीने परणवानो विचार मथी." आ सांभळी ऋषि जमाईने शिखामण आपे छ : “ हे कुमार ! तु लक्ष्मीथी ठगातो नहीं. विद्यानो अहंकार करीश नहीं. गुणनो गर्व न करतो. मारी पुत्री भोळी छे, ते आश्रमभां उछरी छे अने शहेरना कपटथी अज्ञात छे तेथी अना उपर गुस्सो करीश नहीं. मारी दीकरीने छोडी न देतो." जनाईने आ जातनी तापस हरिषेणे आपेली शिखामण मात्र आल्यानकमणिकोषमा ज छे. . ऋषिदत्ताने परणावी हरिषेण तापस अग्तिप्रवेश करे छेतेन ज, अषिदत्ताना जन्म पछी अनी माता सूआरोगथी मृत्यु पानी छे अघी विगत लगभग बधी ज कथामां आवे छे. ओक सहजसुंदर ज अत्री विगत आपे छे के ऋषिदत्ता स्मशान पांथी सीधी ज ऋषिपिताना आश्रमे आशा आवे छे के अने मातापिता मळशे अने अनी सारसभाळ लेशे. परंतु ज्यारे अणे त्यां जई जाण्यु के ओ तो परलोक सिधाव्यां छे त्यारे मे कल्पांत करे छे. आ तद्न भिन्न हकीकतथी आपणे अटलं तारवी शकीओ के ऋषिदत्ता सासरे विदाय थई ने विपरीत संजोगोमां पाछी आवी ओ गाळामां अना मातापिता मृत्यु पाम्यां हशे. अज्ञातकविकृत कथामां अवु आवे छे के हरिषेणना मृत्यु पछी भेना जमाई कनकरथे तापस ससरानो यादमा चैत्यस्तंभ बनाव्यो Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... कनकरथ ऋषिदत्ताने परणी गयो छे से वात ज्यारे रुखमणीना काने पहांची त्यारे ते गांडी जेवी बनी गई. सुलसा योगिणी रस्तामा रुखमणीने मळी जाय छे. रुखमणी पोताने घेर अने' लावे छे. पिता सुदरपाणि अने आश्रय आपे छे अने सार सार खावापीवान आपे छे. पछी रुखमणी अने ऋषिदत्ता उपर आळ चढाववानु कहे छे. आवी विगत विवेकमंजरीमां आवे छे. नेमिचन्द्रसूरि अवु जणावे छे के सुलसा योगिणी फरती फरती रुखमणी पासे आवे छे. रुखमणीने उदास जोई पूछे छे के “ तु रति जेत्री सुदर छे छतां वर वगरनी कम छे ? देवोने दुर्लभ अवु यौवन अळे केम जवा दे छे ? ” रुखमणी जवाब आपे छ : “ मारा पतिने तापस कन्याओ वश को छे, तो हवे हुं शुं करे?" सुलसा पूछे छे : “ हु अवो प्रयत्न कर जेथी कनकरथ तारे वश थाय ?" आम सुलसा सामेथी रुखमणीने पूछे छे. ... कनकरथ ऋषिदत्ताने - परणी जाय छे से वात रुखमणीना काने पहोंचे छे त्यारे रुखमणी त करे छ. मे विचारे छ: “जो अपने मारा उपर शाक्य लावली हती तो परमेश्वरे ने । शा माटे में कोई कई करस कीध हतके कोईना पर आळ चहाव्यं हतु के कोई बाळकने विछोड्यां हतां के पछी काची डाळो मोडी हती, जथी मारे नशीब आबु बन्युं ? अल्यारे वेश धारण को छत गसतो नथी. मस्तक जे मोड घाल्यो छे ते माथे झाड जेवो लागे छे. पटोलु जे शरीरे धारण कयु छे ते जाणे संतापर्नु मूळ होय अम लागे छे. बळी चूडो तेम ज सर्वे शणगारनो भार लागे छे." आयु अनु कल्पांत सांभळी सर्व सखीओ टोळे मळी. पछी सखीओना कहेवाथी मुलसाने साधे छे. आवी विगत सहजसुंदर कवि आपे छे. . रुखमणी मोकलेली मुलसा रथमर्दनपुरमां आवे छे. ऋषिदनाने ओळखी ले छे. अनु अप्रतिम सौदर्य निहाळी मुग्ध थई. जाय छे. विचारे छे, “ आवी सौदर्यवती निखालस स्त्रीने केम सराय ? पाछी हठी जाय छे. वळी पाछो विचार आवे छे, . " रुखमणी आ. कार्य सेप्यु छे तो करी ज नाखु. नहीं तो मेने शु मोटु बतावीश?' आम विचारी ऋषिदत्ताना अधर लोहीमांसथी खरडे छे. आवी विगत विवेकमंजरीमां आपीछे. सुलसा योगिणी ऋषिदत्ता पर आळ चढाववा माटे अना मुख उपर लोहीमांस खरडे छे. आ वातनी राजाने खबर पडे छे. चरो पासे तपास करावे छ ने ऋषिदत्ता ज राक्षसी छे अर्बु साबित थाय छे. राजा अने मारी नांखवानो हुकम आपे छे. राजानी आज्ञाथी सेवको मेने शूली पासे लावे छे. चोरने जेन बांधवामां आवे तेम अने बांधवामां आवी. लोको हाहाकार मचाव्यो. आ शोरबकोर सांभळी ऋषिदत्ता मूळ पामी. लोकोओ मेने मरेली जाणी छोडी दीधी, आकी वात सहजसुंदरनी कथामां आवे छे. आख्यानकमणिकोषमां अवु आवे छे के ऋषिदत्तानो विकृत वेश करी अने स्मशानमा लाववामां आवी. ज्यारे माराओमांयी ओके तलवार खेंची त्यारे ओ विनंति करवा लागी. “ हे पिता ! हे भाई ! हुं तमने पगे लागु छु. मने ना मारो. मारां घरेणां लई लो ने मने जीवती मूको." आ सांभळी एक चांडाळे कहा, " आ छोकरी दुष्ट काप्त करे तेवी लागती नथी. माटे मारो जीव लई लो ने अने छोडी दो." आ सांभळी बधाओ ऋषिदत्ताने कहा: " अमे तने छोडी दईओ छीओ. पाछी देखाती नहीं. तु ज्यां जाय त्यां तारी कोईने जाण न थाय. जो तु देखाशे Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो राजा अमारो जीव लई लेशे.". आम कही ऋषिदत्ताने छोडी दीधी, अने चांडाळो राजा फासे गया ने ऋषिदत्ताना जेवू ज बीज़ा कोईनु मडदु बताव्यु, जेधी राजा समजी गयो के ऋषिदत्ता मृत्यु पामी छे. -- कनकरथ ऋषिदत्ता मृत्यु पामी छे अम जाणी रुखमणीने परणवा जाय छे. पोते सुलसा योगिणीने पण पोतानी साथे ज लई जाय छे. कनकरथनो तापसमुनि ऋषिदत्ता साथे मेळाप थाय छे. अने ऋषिदत्ता पर स्नेह जागे छे. मित्रभावे पोतानी साथे का बेरी आववा आमंत्रण आपे छे ने पोताना निवासस्थाने चाल्यो जाय छे. त्यार बाद मुलसा योगिणी आश्रममा प्रवेशे छे. तापस. रूप ऋषिदत्ताने पूछे छे, " हे भगवन् ! तारी आवी प्रथम युवावस्था होवा छतां भयंकर वनमां तु ओकलो कर रहे छ?" आ प्रश्न सांभको तरत ज कनकरथे वर्णवेला वर्णन परथी ऋषिदत्ताने अनुमान थई जाय छ के आ पेली ज योगिगि छे जेणे मारा पर आळ चढाव्युं छे. मे कहे छे : " हुँ गुरुना उपदेश प्रमाणे वर्तु छु'. सारा उपर औषधि-तप-विद्या कोईनु कई ज चालवानुनथी." अणे योगिणीनो भाव जाणवा पूछ्युं. “ तुं पण अकली शा माटे फरे छे ? कोनी चेली छे ?" सुलसा विचारे छे, “हुं आने कहुं तो मने अनी पासे जे विद्या हशे ते आपशे." अटले अणे कहा, “मारी पासे अवस्वापिनी तेम ज तालोद्घाटनी विद्या छे. जो तुं मने तारी पासे जे विद्या होय ते आपे तो हूं तने आ बे विद्या आपु." ऋषिदत्ता अबे विद्यार्नु माहात्म्य पूछ्यु. तेना उत्तरमा सुलसाओ जवाब आष्यो, " मारी विद्याथी हु रथमर्दनपुर आवी अने त्यां अवस्वामिनी विद्याथी कुमार कनकरथनी पत्नी ऋषिदत्ताने राक्षसी टेरवी मारी नखावी. हवे हं कुमार साथै आवी छु अने कुमार रुखमणीने परणवा मने साथे लई जाय छे से माहात्म्य छे." आ जवाब सांभळी ऋषिदसाओ कह यु. "मारे तारी आवी पापी विद्या नथी जोईती." सुळसा निराश थई चाली जाय छे. आबी बधाथी तद्वन जुदी विगत आख्यानकमणिकोशमां आपी छे. आम अधवच्चे ऋषिदत्ता जाणी जाय छे के पोते साचे ज कलंकरहित छ ज, अने सुलसा अना आळ माटे जवाबदार छे तो मेने जिज्ञासा न ज रहे, अने से बधु जाण्या पछी मे कनकरथ साथे काबेरी जाय से स्वाभाविक नथी लागतु. जयवंतसूरिसे आलेखेल विगतो ज योग्य लागे छे. कुमारे तापस मुनिने पोतानी साथे आववानु आमंत्रण आप्यु. बहु समय सुधी अनी प्रतीक्षा करी तो पण से आव्यो नहि. अटले कुमार अने बोलावबा गयो. जईने जुझे छे तो मुनि ध्यानमां बेटेलो हो. कनकरथ विवेकपूर्वक अने पोताना पडावमां लई जाय छे. रात्रे बन्ने पासे पासे सूई जाय छे अने खूब स्नेहथी वातो करे छे. आ सनये तापस ऋषिदत्ताओ कुमार कनकरथने पूछ्यु, " ते ऋषिदत्ता केवी हती जेना माटे तने आटलो बधो स्नेह छे अने तुं दुःख पामे छे?" कुमारे कयु, “अक जीभवी वर्णवी न शकाय अवी अने प्रजापतिले वनावेली छे." आम वातो करता करता प्रातःकाळ थयो ने तापस ऋषिदत्ता कनकरथ साथे काबेरी तरफ प्रयाण करे छे. आवो प्रसंग अज्ञातकविकृत कथामां आवे छे. रुखमणी कनकरथने परणे छे. प्रियतम पोताने वश थयो छे जाणी ऋषिदना उपर पोते ज आळ चढाव्यु ने मारी नांखी छे अबु अ स्पष्ट कद्दे छे. कनकरथ आ सांभळी खूब ज गुस्से शय छे. रुखमणीने कहे छे, " तेज मारी प्रियाने मारी नांखी छे तो तुज हवे मने पाछी आप. नहि तो तारा हाथ कापी नांखीश." कुंधरे तो कागारोळ करवा आंडी. कोईनु कह माने Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ ज नहि. मोटे सादे रुखमणी पण रडे छे ने लोकोने कहे छे, “कोण से मनुष्य छे जे मारा कथने वारशे ? जे वारशे तेने हु मनवांछित फळ आपीश." ते वखते तापस ऋषिदत्ता बोले छे, " हुँ तारा भरथारने वाळीश. " आवी विगत सहजसुंदरे आपी छे. अज्ञातकविकृत कथामां अबु आप्यु छे के रुखमणी कनकरथने वात करे छे त्यारे तापस (ऋषिदत्ता) त्यां हाजर नथी. परंतु कनकरथ अने बोलावीने पोते सांभळेली सर्व हकीकत कहे छे. ओ समये ऋषिदत्ता पोते निदप साबित थई तेथी खुश थाय छे. जेवी रीते माणस कड़वी औषधिने फेकी दे छे तेवी ज रीते कनकरथ रुखमणीने काढी मूके छे. त्यार पछी कनकरथ मनमां विचारे छे, “ भारी पत्नी प्राषिदत्ता निंद ष हावा छतां में अनो त्याग कयेो. तेथी हु नरकमां पडीश, मारे हवे चिला सळगावी बळी ज सरवं जोई ओ." आस विचारी चितामां पडवा जाय छे त्यारे सुंदरपाणि राजा वीनवे छे उतां ते मानता नथी. त्यारे लोको तापस (ऋषिदत्ता ने अने मनाववा कहे छे. तापस आने सनजावे छे, “ स्त्रीनी पाछळ पुरुषे मरी न जवु जोईओ. जो तारामां सत्त्व होय तो स्त्री मरेली होबा छतां पण पाली आवी जाय. भानुमंत्रीने बन्यु तेम. अने ते पछी भानुमंत्रीनी आडकथा कवि आपे छे. ___ कनकरथ ऋषिदत्ता तेम ज रुखमणी साथे रथमर्दनपुर पहांच्यो. बन्ने सुखपूर्वक दिवसो व्यतीत करवा लाग्यां. ऋषिदत्ताने गर्भ रहयो. पोताने पुत्र जन्मवानो छे अवु स्वप्न आव्यु. स्वप्नमां जोयु के खोलामा रहेलु शरदऋतुना चंदना जेवु वेत अने जेना अग उपर भूरा रंगनी केशवाली फेला येली छे अबु सिंहनु बच्चं अना स्तनमाथी दूध पी ले. आ स्वप्नफळ उपरथी राजाओ जाण्यु के अने पराक्रमी पुत्र थशे ने पुत्र थया बाद सिंहस्थ अबु नाम पाड्यु. सिंहरथनो जन्मोत्सव तेमज केळवणी प्रसंग : नव महिना ने साडा सात दिवस पछी पुत्र जन्म्यो. मे दिवसे सारा ग्रहो हता ने बधी दिशाओ प्रकाशित थई हती. प्रियवचनिका दासीओ राजाने पुत्र जन्मनी वधा पणी आपी. कनकरथे दासीने खूब ज दान आप्यु. ढोल बगडाव्यो. गंभीर वाजां वाग्यां. लोको नवां रंगेलां वस्त्रो धारण कर्या . वधूओ सुंदर रीते नृत्य करवा लागी तमाम नागरिकोनु सन्मान करवामां आव्यु. जग्याओ जग्याजे रासडा लेवाया, ठकठकाण दान लेवा लोको भेगा मल्या. घर घेर मूसळ ऊभां कर्या तोरणो बंधायां, परस्पर आभरणो अपायां. वधामणीमां रत्नो अपायां. अभयदान अपायु. शुक्लपक्षना चंद्रयानी जेन सिंहस्थ मोटो थयो ने गुरु पासे भणवा मोकल्यो. ते सर्व कळामां पारंगत थयो. आ सर्व हकीकत आख्यानकमणिकोषमा छे. अज्ञातकविकृत कथामां नीचे प्रमाणे छ : " पुत्रनो जन्म नव महिना ने साडा सात दिवस पछी थयो, वीटी-परवाळां, सोनु, चांदी वगेरेनु दान अपाय आखाय गानमा तोरण बंधायां. जेलमाथी केदीओने छुटा करवामां आव्या. बीजा राजाओने भोजन कराव्यां. वस्त्रो अपायां. सिंहरथने माटे पांच धात्री राखवामां आवी. शास्त्र अने शस्त्रनी कळा शीखवा तेने उपाध्याय पासे मोकल्या. केटलाक गौण फेरफारो : सहजसुंदरनी कथामां ऋषि कनकरथ साथे ऋषिदत्ताने मंदिर पासे परणावी दे छे. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ त्यारपछी कनकरथ ऋषिदत्ता कोनी पुत्री छे अवो वृत्तांत पूछे छे ने हरिषेण सघळी हकीकत जणावे छे. आ योग्य नथी. बीजी कथाओमां कनकरथ प्रथम सघळी हकीकत जाणे छे पछी ज ऋषिदत्ताने परणे छे. राजकुंवर होवाथी राजकुंवरीने ज परणी शके. राज्यना कायदाकानून मुजब, तेथी पहेलां परणी जाय ने पछी मे कोई सामान्य मातापितानी पुत्री होय तो मुश्केली ऊभी थाय. पाणी पीने पछी घर पूछवानो शो अर्थ ? ऋषिदत्ता पिताना आश्रममां आवे छे त्यां पोते स्त्री होवाथी अकली ना रही शके. कोईपण पुरुषनी दानत बगडे माटे पिता बतावेलो औषधि जांघ चीरीने तेमां मूकी दे छे आ योग्य नथी. बीजी कथाओमां कानमां घाले छे अवु दर्शाव्युछे, ज्यारे आख्यानकमणिकोशमां अवं दर्शाव्यु छ के डाबो साथळ चीरीने अणे तेमां औषधि मूकी, सामान्यतः पुरुष साथळमां मूके तो ते समजी शकाय. सहजसुंदरे आपेला कथानक प्रमाणे कनकस्थ भद्रयशो गुरुने पूछे छे, “मारी पत्नी ऋषिदत्तासे पूर्वभवमा कयां पाप कर्या हतां जेथी आ भवे अना कर्मे कलंक चांटयु?" जयवंतसूरिकृत व.थामां ऋषिदत्ता पोते ज गुरुने पूछे छे, “ मने पूर्वभवनां कयां कर्म नड्यां, जेथी आ भवे आQ कलंक चड्यु?" अज्ञातकविकृत ऋषिदत्ताकथामां आवती वे दृष्टांतकथाओ : हरिषेण राजा अक बार अजाण्या घोडा उपर सवार थई नीकळी पडयो. फरतां फरतां जंगलमा आवी चड्यो. त्यां घोडाने अणे छोडी दीधो. पछी खूब फर्या अने दिशाओ भूली गयोः त्यां अक तापसनो आश्रम जोयो. ओ आश्रममा आवीने वेठो. आश्रममां कच्छ-महाकच्छवंशमां थयेला विश्वभूति तापस अनेक शिष्योथी वीटळाईने बेटेला हता. हरिषेण राजा गुरुने नम्यो अने बोल्यो, “ हे महानुभाव ! तमारा दर्शनथी बधुज सार थई गयु. जे मृगोनी मैत्री राखनार छ, दुःखी प्राणीओने सांत्वना आपनार छे तेने कोण न वांदे ?” आम कही गुरुने पगे लाग्यो. तापस विचारे छे के आकृतिथी तो आ राजा लागे छे. आशीर्वाद आप्यो, “ज्यां सुधी आ स्वैरंगंगानो प्रवाह चाले छे, ज्यां सुधी सूर्य आकाशमां चाले छे, ज्यां सुधी मेरु पर्वत शोभे छे त्यां सुधी तु स्वजन, पुत्र, पोत्रथी वीटळायेलो रहे. ज्यां सुधी काचबानी पीठ पर भुजगपति छे त्यां सुधी तु राज्य कर." अक वार राजाओ विद्वद्गोष्ठिमा पूछथु, " पैसा कमावामां दुःख छे, कमाया पछी साचववामां दुःख छे. पैसाने वापरवो दुःखकर छे. अक जन्मने माटे पसार्नु पाप ऊभु थाय छे. हु पैसो केवी रीते वापर जेथी मारो जन्म सफळ थाय ? मुनि) कहयु, “जे माणसो न्यायधी पैसा कमाई मंदिर बंधावे तेनु कल्याण थाय छे-धनधेष्ठिनी जेन." धनश्रेष्ठीनी आ दृष्टांतकथा नीचे प्रमाणे छे : “ धनद नामनो शेठ नाम प्रमाणे गुणवान हतो. अने धनश्री नामे पत्नी अने धर्म, अर्थ काम अने मोक्ष जेवा चार पुत्रो धनदत्त, धनपाठ, धनसार अने धननायक नामे हता. राजाओ भेने शेठनी पदवी आपी. सारा व्रतवाळा शेठे गुरुनी देशना सांभळी. देशना सांभळी शेठे ऋषभदेव भगवाननु मोटु मंदिर बंधाव्यु. आखा गामने से शुभ प्रसंगे नेांतर्यु: For Private & Personal Úse Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दरेकना बधा दिवसो सरखा नथी जता. धनद शेठ निर्धन थई गया. तेओ विचारे छे, " कुटुबमां धन वगर रहे योग्य नहि.” तेथी तेओ संघपुरनी पासेना गाममा रहेवा चाल्या गया. चारेय पुत्रो शद्देरमां धन कमाय अने अवारनवार पिता पासे आवी थोडुघणु आपे जेथी तेमनु गुजरान चाले. पत्नी पारकानु काम-खांडवा दळवानु-करे. आम दिवसा पसार थाय. ओक वार शेठ पुत्रनी माथे संघपुर गया. शेठे मंदिर बंधाव्यु हतु त्यां तेओ गया, चैत्यवंदन कयु', भावना भावी. माळी) जूना स्नेहथी फूल आप्यां. आम धर्मनी क्रिया लाजशरमी करी. पछी उपाश्रयतां गुरु महाराजने वंदन करबा गया. त्यां बेसीने पूछा, "हु संपत्तिवाको हतो ते निर्धन शाथी थई गयो ? ” गुरुओ पूर्वभवनो वृत्तांत जणाव्यो. “ रत्नपुर शहेरमां रत्नशेठ अने रत्नावती दंपतीने तुं धन नामनो पुत्र हतो. तु आठ वर्षनो थयो त्यारे परणावी दीधो. अक वार ज्यारे तुं जमवा बेठो हतो त्यारे भाणामां वधारे दूधपाक नखाई गयेलो. ते सांभळेलु के यति मेघसमान छे, आप्यु होय अना करतां सागणु थाय. तेथी तारे आंगणे मूर्ख तपस्वी ऊभो हतो तेने तें दूधपाक वहोराव्यो. परंतु जेन दारूना घडामां नांखेलु दूध पण नकामुं तेभ कुपात्रमा आपेलु नका, जाय. वरसादनुपाणी छीपमां पडे तो मोती थाय ने सापना मोडामां पडे तो झेर थाय. आम तने संकल्पविकल्प थया ने कुपात्रे दान आप्यु तेथी तुं निर्धन थई गयो. लेक वार काळी चौदसे ते मंत्रनी साधना करी. मंत्र सिद्ध थयो ने साक्षात् यक्ष आव्यो. यक्षे कहयु, “ तुं जे मांगीश ते मळशे" तें कह', ' में जे भगवाननी पूजा चोमासामा करी छे तेनु' फळ आप." यक्ष कहयु', "हुँ से फळ केवी रीते आपुं ? जे सर्वज्ञ होय ते ज आपे." से रात्रे तने स्वप्न आव्यु, स्वप्नमां कोईके कहा, ' चार रत्नो मूक्यां छे ते तु लई जजे." आ प्रमाणे सवारे रत्नो मल्यां. पुत्रोझे पूछ्यु, “ पैसा क्याथी लाव्या ? कोणे खुश थईने आप्या ?'" सर्व हकीकत जणावी. पैसो आव्यो अटले छोकराओ पितृभक्त थया, मिथ्याष्टिवाळा हता ते जिनभक्तिवाळा थया. धनद शेठे ते पछी जिनमंदिर बंधाव्यु. दृष्टांतकथा-२ : कनकरथ रुखनणीना मेढे सांभळे छे के ऋषिदत्ता उपर अगे ज आळ चाढाव्यु हतु ने मारी नंखावी. जे खूब ज कोपायमान थाय छे. पोताने हवे जीवीने शुं काम ? ओम विचारी चिता तैयार करावे छे. सुंदरपाणि राजा तेम ज घरना अन्य माणसोथी बायो अटकतो नथी त्यारे तापस ऋषिदत्ता अने वीनवे छे के " जो तारामां सत्त्व होय तो मरेली स्त्री पण पाछी आवेभानुमंत्रीनी जेम." आ भानुमंत्रीनी कथा नीचे मुजब छ । "वाराणसी नगरीमां सुरसेन राजा हता. तेनी श्रीदत्ता पत्नी हती. मे राजाने भानु नामनो मंत्री हतो, जे सन्मार्ग चालनारो हतो अने जेने गुणवाळी, कलायुक्त, सुलक्षणा, प्रियभाषिणी पत्नी सरस्वती हती. बन्ने वच्चे शंकर-पार्वती जेवो, कृष्ण-रुक्षमणी जेवो स्नेह हतो. बन्ने सोगठांबाजी रमतां, आनंद-क्रीडा करतां, दिवसा पसार करता हतां. Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. अक दिवस राजाले प्रधानने बोलाव्यो, परंतु ते मोडो गयो. राजाओ ठपको आप्यो, "तु बुद्धिशाळी छे छतां ते ठपकार्नु कारण केम ऊभु कयु?" प्रधाने जवाब आप्यो, “ मारी पत्नी बहु प्रेमाळ छे. मे मारो विरह सहन करी सकती नथी.” राजाओ कहयु, “. पण अधिकारी तरीके तारे काम तो करवुज जोईने ?" आवु सांभळी मंत्री पोताने घेर गयो. राजाओ मंत्रीनी परीक्षा करवा माटे अने युद्धमा मोकल्यो. राजाने पगे लागी से युद्ध करवा नीकळी प्रड्यो. राजा अनी पास अनी मुद्रानी महोर घेरथी मंगावी लीधी. मंत्री सैन्यमां शोभवा मांड्यो. जबर युद्ध जाम्युं आ बाजु राजाओ मंत्रीनो प्रेम जाणवा अने घेर अनी स्त्री पासे चर मोकल्यो. आ जोई स्त्री समजी गई के “ नक्की भारो पति युद्धमा मृत्यु पाम्यो छे, नहि तो वीटी तेम ज मुगुट अकलां ज केम आव्यां ? " आप विचारी सरस्वती पण मृत्यु पामी. युद्धमा विजय मेलवी मंत्री पाछो आव्यो. अणे जाण्यु के पोतानी स्त्री वियोगथी मृत्यु पामी छे. आ सांभळी मूर्छित थई गयो. ठंडा उपचारथी जागृत थई घेर गयो. विलाप करवा मांड्यो, " हे प्रिये ! तारा विना बधी दिशाओ आंधळी थई गई छे." आम विलाप करता करतां ते साव मूढ बनी गयो. पोतानां माणसो के पारकांनां कोईने ओळखतो नथी. आम गांडा बनी गयो अटले राजाओ अने प्रधानपदेथी छूटो करी मूक्यो.. मेक वार से बहार नीकळयो. रस्तामां गंगा तरफ जतो कोई यात्री मळयो तेनी साथे चालवा लाग्यो. गंगा नदीमां जई “ सरस्वती, सरस्वती, सरस्वती, " अम त्रण वार वोली स्नान करवा लाग्यो. अक दिवस ध्यानी, ज्ञानी, अने मौन राखनारो साधु त्यां नहावा आव्यो तेने भानुमंत्री) नमस्कार कर्या. मुनिने पूछ्यु, “मारी स्त्री मरीने क्यां गई छे ? ' मुनि विभंग. ज्ञानथी जोयु ने कहथु, " गंगापुर गाममां सिंहदत्त नामना धनवाननी ते पुत्री थई छे. अत्यारे अनुं नाम सुंदरी छे जे बहु ज दयावान छे. उमरमां बार वर्षनी थई छे. अना पिता पण अने विषे चिंतातुर छे के आने योग्य वर कोण मळशे ? यश अने बुद्धिमान तु मे सुदरी पासे जईश तो अने जातिस्मरण ज्ञान थशे अने से तने परणशे." कोईकवार सुदरी त्यां नहावा आवी. भानुमंत्रीने स्नान करतो जोयो ने जातिस्मरण ज्ञान भव जोयो अटले अना गळामां माळा नांखीने परणी गई. मातापिताओ जाण्यु अटले दंपतीने घेर लई गयां. आवा साहसिक कार्य माटे सत्कार को. आम भानुमंत्री गंगा नदी पासे गयो ने अनी स्त्री मेने त्यां मळी गई." __भिन्न भिन्न कविओनी कथाओमां मळता आवा नानामोटा फेरफारो, ऋषिदत्तानी कथामांनां ते ते कविने जरूरी लागेलां रसस्थानोना सूचक गणवा करतां तो लोकमां पुष्कळ प्रचार पाम्याने कारणे सहजभावे जे केटलीक विगतो कथामां बदलाती चाले सेना साक्षीरूप गणवा से वधु ठीक लागे छे. बधी विगतोनो समग्रपणे विचार करीओ तो ते जमानाना प्रजामानसने तथा लोकरूढिओने जाणवा-विचारवानी सविशेष सामग्री आपणने आ बधामां मळे छे ज. ___ पात्रोनां अने स्थळनां नामोनी बावतमा अगाउनी अने जयवंतसूरिनी रचनामां केवा फेरफार छे ते हवे पछी आपेला कोठा परथी ध्यानमा आवशे. जयवंतसूरिना पुरोगामीओओ आपेला केटलांक वधारानां वर्णनो छेटे परिशिष्टोमा आप्यां छे. Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भिन्न भिन्न लेखकोनी कृतिओमां मळतां स्थळो अने पात्रोनां नाम ६ हेमरथ रुप्पिणी हरिषेण ऋषिदत्तारास आख्यानकमणिकोष विवेकमंजरी ऋषिदत्ता ऋषिदत्ता चउपई ऋषिदत्ताचरित्र जयवंतसूरि नेमिचन्द्रसूरि .. आसड अज्ञातकवि सहजसुंदर. देवकलश रथमर्दनपुर रथमईननगर रथमर्दननगर रथमदनपुर विजयपुरी . रथमर्दनपुर हेमरथ हेमरथ हेमरथ हेमरथ हेमरथ सुयशा सुजशा सुयशा सुयशा हेमवती सुजिसा कनकरथ कनकरथ कनकरथ स्वर्णरथ कनकरथ कनकरथ काबेरी काबेरी काबेरी काबेरी अयोध्या काबेरी सुंदरपाणि सुंदरपाणि सुंदरपाणि सुरसुंदर सुंदरपाणि सुंदरपाणि वसुधा वासुदेवी वासुला वासुला सुंदरी वसुधा रुखमणी रुप्पिमणि रुकभिणि रुकमिणि रुकमिणि मित्रतावती मत्तियावयी मंत्रितावती अमरावती गजपुर मंत्रीतावती हरिषेण हरिषेण हरिषेण हरिषेण सुनयणाणंद प्रियदर्शना प्रियदर्शना प्रियदर्शना श्रीदेवी प्रियमति अजित सेन अजितसेन जयसेन अजितसेन मंगलावती मंजुलावयी मंगलावती मंगलावती लीलावती प्रियदर्शन प्रियदर्शन प्रियदर्शन प्रियदर्शन प्रियदर्शन विदयुत्प्रभा विदयुत्प्रभा प्रियमति प्रीतिमती प्रीतिमती प्रीतिमती प्रीतिमती कनकावली विश्वभूति विश्वभूति विवभूति विश्वभूति ऋषिदत्ता ऋषिदत्ता ऋषिदत्ता ऋषिदत्ता ऋषिदत्ता रिषिदत्ता सुलसायोगिणि सुलसायोगिणि सुलसायोगिणि सुलसायोगिणि योगिणि योगिनी भद्रयशोसूरि भद्रयशोसूरि भद्रयशोसूरि भद्रयशोसूरि गुरु भद्रसूरि सिंहस्थ सिंहस्थ सिंहस्थ सिंहरथ सिंहस्थ गंगापुर गंगापुर गंगापुर गंगापुर : वणारसी गंगदत्त गंगदत्त गंगदत्त गंगदत्त -. गंगदत्त गंगादेवी गंगादेवी गंगादेवी गंगादेवी - गंगसना गंगसेना गंगसेना गंगसेना मसिवासणीगंगसेना चंद्रयशा चंद्रयशा चंद्रयशा चंद्रयशा वैरसुंदर (महासती) चंद्रयशा संगा संघा संघा संघा-- -.. संमा तार गंगापुर गंगादेवी Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 奉送 " ऋषिदत्ता रास "मांथी खडुं तु तत्कालीन समाजचित्र आपणे जोयुं ते प्रमाणे ऋषिदत्ता रासनां मुख्य पात्रो राजकुटुंबनां ज छे अने ते पण राजाओराणीओ-राजकुंवर-राजकुंवरीओ छे. आ उपरांत कथानो मुख्य विषय प्रणय - त्रिकोणनुं निरूपण करवानो छे. अमां त्रण लग्ननी वात आवे छे. कविने से बधानी रजुआत करतां जे कई कद्देवानुं थयुं छे तेमांथी तत्कालीन जीवननी केटलीक आछी पातळी रेखाओ उपलब्ध थाय छे. ओ रेखाओ जेवी मळे छे तेवी आपणे जोईओ. रथमर्दनपुरना वर्णनमां कवि से नगरीने सुंदर कहे छे. त्यां मोटा प्रमाणमां धनाढ्य शेठियाओ वसे छे. अमांना घणा दानवीरो छे. पुरुषो अत्यंत देखावा अने विलासमां राचनारा छे. स्त्रीओ गौरवर्णी अने गजगामिनी छे. शरमां अनेक चेत्यो अने पौधशाला छे अने मुनिओ त्यां संयम पाळता सुखपूर्वक जीवन वितावे छे. अलबत्त गाम होय त्यां बधी ज जातनी वस्ती होय भेटले नगरमां घणा पाखंडीओ, कामणरमण करनाराओ, समरपंथी जोगीओ, गणिकाओ, दरवेशो, मठवासीओ, संन्यासीओ वगेरे पण छे. पंडितो ने जोशीओ पण नगरमां छे. नगरना रक्षण मांटे तलार के नगररक्षकनी योजना जणाय छे अने गाममां कशुं अनिष्ट थाय तो तेने माटेनी जवाबदारी ओनी छे. कोई पण गुनो न पकडातो होय तो राजा तलारने बोलावीने तेने ततडावी नांखतो जणाय छे. उत्सव टाणे नगरवासीओ जातजातनी रीते आनंद करता जणाय छे. राजाने त्यां लग्नोत्सव होय ते प्रसंगे आखा नगरमा उत्सवनुं वातावरण जामे छे मोटा मोटा मंडप बांधवामां आवे छे अने उत्तम जातनां तोरणोथी- कमानोथी शहेर शोभी ऊठे छे. रंगबेरंगी पताकाओ मंडप उपर लहेराय छे. भातृभातना चंदवा वैधाय छे. कुंकुमना छांटा देवाय छे, फूल - पगरनी सुगंधथी वातावरण मघमघे छे. कृष्णागरना धूप थाय छे. प्रबंधो गवाय छे. याचकोने मनवांछित दान अपाय छे. नाचनारीओ ठामेठाम नाचे छे अने वार्जित्रोनो ध्वनि व्यापी रहे छे. भाटचारणो बिरुदावली वोले छे. सुहासिणी नारीओ टोळे वळी गीतो गाय छे. बीजी अनेक स्त्रीओ गोखे चढीने वरघोडो जोवाने माटे उत्सुक बनती होय छे. वरघोडो आवतां वर-कन्याने मोतीना थाळ भरी वधाववामां आवे छे. साधुओ आशिष आपे छे. ओम सर्वत्र आनंद आनंद थई रहे छे. लग्नो विचार करीए तो मोटे भागे माता-पिता ज ते नक्की करतां जणाय छे. कन्यापक्ष मागुं मोकले छे. कयारेक एवंय बनतुं लागे छे के छोकरा - छोकरीने परस्पर प्रेम उद्भवे ने परिस्थिति सानुकूल होय तो तेओ परणी जाय छे. अलबत्त आवां लग्ननी बाबतमां छोकरो वधारे स्वतंत्र लागे छे. राजा हरिषेण प्रीतिमतीने साप करड्यो तेनुं झेर उतारे छे अने उपकारवश थई प्रीतिमतो हरिषेणने ज परणे छे. ओ पण अक नोधनात्र हकीकत छे. राजवीओ अकथी वधु पत्नी करी शकता, पण कवि बहुपत्नीत्वनो विरोध करे छे—स्त्रीना सुखनी दृष्टि. कहे छे : "सूली रूडी सउकिथी ” अकाकिनी अने निराधार स्त्रीने हमेशां पुरुषोनो डर रहेतो, अने लग्न अ दृष्टि आवश्यक बनी जतां पुरुष स्त्रीविरहे आपघात करवा जाय तो ते हांसीपात्र गणातुं. तेमज नक्की थयेल कन्या जो कोई बीजाने वरे तो ते लज्जास्पद गणातुं. राजाओनी बावतमां ओम जणाय छे के तेओ प्रजावत्सल राजवीओ छे. हेमरथराजाने न्यायनिपुरा - न्यायरंजन अन्यायगंजन तरीके वर्णत्रवामां आव्यो छे. राजा सुंदरपाणिने तो - Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९ केवळ तलवार बहादुर ज कहेवामां आव्यो छे, ज्यारे हरिषेण माटे 'शुभमति' भेवु भेक ज विशेषण कवि मूक्युं छे. प्रजा पीडाती होय त्यारे राजा पीडानु कारण शोधवाने मथे छे अने कारण जणाय तो ते तत्काळ गमे ते भोगे पण दूर करवा माटे मथतो होय छे. ऋषिदत्ता उपर आवेलु आळ साचु लागतां हेमरथ राजा ते पोतानी पुत्रवधू छे से विचारे अटकतो नथी पण अने देहांतदंडनी भारेमां भारे शिक्षा फरमावे छे. ऋषिदत्ताना बचाव करवा माटे तत्पर थयेला पोताना पुत्रने लब धक्के ले छे अने तेने न्यायना मार्गमां आडे आवतो अटकावे छे. अ ज प्रमाणे रासना पाछळना भागमां रुखमणीओ सुलसा द्वारा ऋषिदत्ताने हेरान करी हती ते भेद खूली जतां जमाई बनेला कनकरथने तथा ऋषिदत्ताने सत्कारवा उपरांत सुंदरपाणि पोतानी पुत्रीने टपको पण आपे छे. आ राजवीओ बधा ज हैयाना उदार छे अने स्वभावे निखालस जणाय छे. तापस बनी चूकेलो हरिषेण राजा कनकरथना प्रश्नना जवाबमां ऋषिदत्तानी उत्पत्ति अंगे पोतानो पूर्व इतिहास निखालसभावे रजू करे छे. ऋषिदत्ता निर्दोष छे अने पोते तेने खोटी रीते आकरी शिक्षा करी तेनो अपराध कर्या छे ऐम लागतां राजा हेमरथ ते पुत्रवधूनी वारंवार क्षमा याचे छे. पटराणीओ केवळ रूपसुंदर होवा उपरांत कथानकमां कशो सक्रिय भाग नथी लेती ते उपरथी अम तावी शकाय के समाजमां खोओनो दरज्जो नीचो हतो अने दीकरा - दीकरीने परणाववानी बाबतमां पण अमनो अभिप्राय नहोतो पुछातो. लाइघेली राजकुंवरीओ पिताना वात्सल्यने बळे धा करती अने करावती जणाय छे. रुखमणी जेवी कुंवरी मनोवांछितनी सिद्धि माटे सुलसा योगिनीने साधे छे ने ऋषिदत्तानो कांटो काढी कनकरथने परणे छे त्यारे ज जंपे छे. कनकरथ परणवा जाय छे त्यारे कुलीन युवतीओं मंगलगीतो गाय छे. कुंवर पोतानी साथे चतुरंग सेना लईने परणवा माटे काबेरी तरफ प्रयाण करे छे. अनां मातापिता अने परणाववा नथी जतां, पण अ परणीने आवे त्यारे अनो सत्कार करी उत्सव मनावे छे खरां कनकरथने जोवा मार्गमां लोको भेगा मळे छे अने अने जातजातनी भेट आपे छे. कन्यापक्षे सुंदरपाणि राजा सामे आवीने सामैयुं करे छे अने कुंवरने सारी जगाओ उतारो आपे छे अने उत्तम मंडपम जोशीओओ काढी आपला शुभ मुहूर्तमां पोतानी कन्याने परणावे छे अने जमाईराजने थोडो वखत पोताने त्यांज राखे छे. आ पहेला ज्यारे कनकरथ ऋषिदत्ताने परण्यो हतो अने तेने सासरे वळाववानी हती त्यारे तापस हरिषेण पुत्रीने सासरवासने लायक शिखामण आपे छे अने जमाईने पोतानी दीकरीनी संभाळ राखवानुं कहे छे. आ बधा प्रसंगो आपणा जूना लग्नटाणाना रीतरिवाजो अने ते वखते अनुभवाता वातावरणनो ख्याल आपे छे. ते जमानामा लोको शुकन - अपशुकन, कामण-टूमण, चमत्कारो, स्वप्न वगेरेमां श्रद्धा राखता जणाय छे. कनकरथना लग्न माटेना प्रस्थान वखते अने जमणु अंग फरकवा जेबा शुभ शुकन थाय छे. तो ऋषिदत्ता उपर आळ आववानुं छे ते ठाणे अपशुकनियाळ बीना बने छे. सुलसा कामणहम पारधी छे अने रथमर्दनपुर आखाने हेरान-परेशान करी मूकी अनेक लोकोनो भोग ले छे. हेमरथ राजानी पासे सभामा जवानी परवानगी मेत्री लई त्यां जईने ते पोताने आवेला स्वप्ननी बात द्वारा ऋषिदत्ताने कलंकिनी ठरावे छे. ऋषिदत्ता औषधिने बळे रूपपरिवर्तन करी शके छे, अने 'तापस तरीके ते दिवंगत गगाती ऋषिदत्ताने पोताना तपने प्रभावे यमघेरथी पाछी आणी आपवानु बीडुं झडपे छे. आ बधामां तत्कालीन लोकमान्यतानां दर्शन थाय छे. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... गुनेगारने थती आकरी शिक्षाना प्रकार पण अहीं मळे छे. राक्षसी गणाती ऋषिदत्ताने अप. मानित करी तेने हणवानो हुकम हेमरथ आपे छे. ते पछी ऋषिदत्ताने पकडी तेने माथे सात पाटा. पाडवामां आवे छे, माथे चूनो चोपडवामां आवे छे. बीलांनु झुमखु त्यां राखवामां आवे छे, विकृत वेश करवामां आवे छे. सूपडान छत्र धरवामां आवे छे, गधेडे बेसाडवामां आवे छे, लीमडानां पांदडानी माछा पहेराववामां आवे छे. शरीरे हींगनो लेप करवामां आवे छे. मां पर मेंश चोपडवामां आवे छे अने गाममां फेरवी स्मशानमां वध माटे लई जवामां आवे छे. वाताना पाछळना भागमां सुलसायोगिनी अपराधी जणातां राजा सुंदरपाणि तेनु नाक कपावीने तेने नगरनी बहार काढी मूके छे. ... कोई महत्त्वनी जाहेरात करवानी होय तो राजा गाममां ढोल पिटावी ते करतो जणाय छे. - लोको धर्ममां अत्यंत श्रद्धावाळा जणाय छे. साधु-साध्वीओ प्रत्ये अमने अत्यन्त पूज्यमाव छे. याचकोने शुभ प्रसंगे दान आपवानी चाल जणाय छे. पैसादारो पोताना द्रव्यनो व्यय मंदिरो बंधाववामां पण करता होय अम जणाय छे. - अकंदरे प्रजाजीवन सुखी अने समृद्ध हतु अने राजा प्रजाना संबंधी घणा सारा हता अवी छाप आ रास ऊभी करे छे. . जंगलमां आश्रम बांधी रहेता तापसो प्रत्ये लोकोने अने खुद राजाओने पण बहुमान जणाय छे. मुख्य तापसनी रजा विना राजा पण आश्रममा प्रवेशतो नथी. आगंतुकोनु उत्तम आतिथ्य तापसो करे छे. पोताना आचारविचारनी बाबतमा तेओ खूब ज कडक जणाय छे, अने आश्रमने अभडावे तेवो काइ दोष थतां आश्रम छोडी जाय छे. आचार से प्रथम धर्म छे अने परम धर्म छे सेवी आवणी रूढ मान्यता अहीं प्रगट थाय छे. - पुत्रो उमरलायक थतां व्यवहारभार तेमने सेपी माबाप कोई आश्रममा जई शेष जीवन दीक्षा लई चरित्र पाळवा-पूर्वक वितावी अंते मुक्तिने वरतां देखाय छे. आम बाळक ने कौमारदशामां विद्याभ्यास, जुवानीमां गृहस्थाश्रम अने घडपणमां वानप्रस्थाश्रमनी व्यक्तिजीवननी पुराणी घरेड अही रजू थई छे. ऋषिदत्ता रास रचवा पाछळनो कवि जयवंतसूरिनो उद्देश : कवि जयवंतसूरि ऋषिदत्ता जेवी सतीनुं सत्चरित्र रसिकजनोना आग्रहे रचे छे. अमनी काव्य. रचनाना आ प्रेरकबळनो उल्लेख असणे प्रथम ढालनी सातमी कडीमां अने छेल्ली ४१ मी ढालनी पांचमी कडीनां को छे. सतीचरित्र सुणतां अने भणतां जन्म पवित्र थई जाय छे अने मनमां उत्तम धर्मलाभ सेवतां उत्तम जनो आ लोकमां अने परलोकमां बधां सुख प्राप्त करे छे अम ओमणे कहयु छे. आम ऋषिदत्तानु कथानक साची रीते छे तो ओक सतीना सत्चरित्रनु रोमांचक चित्र, रोमांचक अटला माटे के पूर्वजन्मोना कमेना आधारे आ जन्ममां पण चारित्र्यशील मनुष्योने अनेक जातनां काटो सहन करवा पडे छे तेनु से उदाहरण छे. पूर्वजन्मना कर्मने परिणामे निर्दोष ऋषिदत्ता उपर आळ आव्यु अने अने भयंकर अपमान सहेवु पड्युओ आ कथानो मुख्य मुद्दो गणी शकाय. ण कविणे जे रोचक रीते आ काव्यनी रचना करी छे ते जोतां आपणे आने प्रणयत्रिकोणना कथानक तरीके पण ओळखावी शकी. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ रासनां महत्त्वनां बधां पात्रोने ध्यानमा लईओ तो प्रणयनां कटलांक बीजां स्वरूपो पण आ रासमां जोवा म छे दा.त. पिता-पुत्रीनो अटले के हरिषेण -ऋषिदत्तानो प्रेम अने कुंवर कनकरथ अने तापसवेषी ऋषिदत्तानो मित्रप्रेम. राजा हेमस्थनो पुत्रप्रेम अत्यंत गौण स्वरूपे मके छे अने ते नायक-नायिकाना मूळ प्रेममा बाधक बनतो होवाथी रुचिकर नीवडतो नथी. प्रणयत्रिकोण रचाय छे कुंअर कनकरथ, ऋषिदत्ता अने रुखमणी बच्चे. अमां कनकस्थ अने ऋषिदत्ता कथानां नायक-नायिका छे ज्यारे रुखमणीने कहेवी होय तो उपनायिका कही शकाय. जोके अक रीते तो ओ मूळ नायिका साथे स्पर्धामां ऊतरती अने कावादावाथी तेना जीवनने कलुषित बनावती स्त्री छे. पण नायिकानु अहित सीधी रीते अने हाथे नथी थयु. ते तो थयु छे सुलसायोगिणि द्वारा. अटले खलपात्र तरीके तो सुलसानु नाम ज आगळ करी शकाय अने कविन्याय मुजब जे कडक शिक्षा खलपात्रने खमवी पडे ते खमवी पडे छे सुलसाने ज. प्रणयनो मार्ग कांटाळो गणायो छे. जगतनो व्यवहार ज कोईक अवा प्रकारनो छ के जमा साचा प्रायने हमेशा सहन करचुपडतु होय छे. प्रणयीओ हमेशा आकरी कसोटीओ चडे अने ओ कसोटीमाथी अओ पूरपूरा पार ऊतरे त पछी ज अपना प्रणायनी कदर जगत करी शके छे. परिस्थिति आवी होबाने कारणे आपणा कवि जुद जुद रथळे प्रणयनी प्रसंगोचित मीमांसा करे छ. ऋषिदताने जंगलमा प्रथम्बार जोता व कुंवर. कनकरथ अना प्रेमी पडे छ. ऋषिदत्तानु सौंदर्य जोई मोह पामेलो कुवर “नाई बध्या नाग जिम लय पांम्गउ अभंग" करा उपायथी अने प्राप्त करवी अदो अे विचार कर छे त्यां तो ऋषिदत्ता अदृश्य थई जाय छ अने कुचरनु हेयु ओना फरी दर्शन्ने माटे तलसी रहे छे. थोडा ज समय बाद मंदिरमा फरी अकवार, कनकस्थ अने तापस हरिषेणनी साथे जुझे छे. आ प्रसंग कुंवरने जोईने ऋषिदत्ताना अंतरमा प्रेन जागे छे. अने कवि लद्री लालमां कडी ३ श्री . मां ऋषिदत्तानी प्रणयचेष्टाओनु ताशा निरूपण कर छे. अ वर्णन बाद कवि नवमी कडीमां वधनी वात न्यारी छे अम दर्शाववा जुदां जुदा उदाहरणो आपे छे अने कडी ११-१४ मां प्रेमनी पीडानु वर्णन करे छे. ते पन्छी लखे छ : " बेहनई प्रेम हुए साखिड, पूरव पुण्यतणउ पारिखउ, मेणई संसारई अतल सार, प्रेमतणउ मोटउ आधार. " (६.५) अहीं कवि आ प्रथमदृष्टिना प्रणयने माटे पूर्वजन्मना पुण्यनां पारखानी वात कर छे. आन कनकरथ अने ऋषिदत्ता बन्नेना पूर्वजन्म अमना आ प्रथम पश्चियना प्रणयना मूळमा छ तेवू जणाय छे. पण जयवंतसूरिओ अतमां केवल ऋषिदत्ताना ज पूर्वजन्मनी कथा आपी छे अने ते पण अने आगला जन्मनां कयां पाप नड्यां ते जणांववा माटे कनकरथनो पूर्वभव अमणे जणाव्या नथी. अटले कनकस्थ ऋषिदत्ता बकचेनी प्रणयोत्पत्ति माटे पूर्वजन्मनु कोई कथानक अही सहायभूत बनत नथी. वनकरथने तापस हरिषेण ऋषिदत्ताना जन्मनी कथा कहे छे, अने तेषां पोते भिवतावतीनो राजा हतो, अमुक संजोगोमां तेणे तापसद्रत ग्रहण कर्यु अने ते पछी ऋषिदत्ता जन्मी, सूआरोगमा तेनी माता कृत्यु पामतां पोते तेने उच्छेरी मोटी करी वगेरे बाबतो स्पष्ट करे के आम ऋषिद वरसो सुधी जाणे तास हरिषेगनां ध्यान केन्द्र बनी रहे छे. ते पछी तेने पाणावी कनकस्थने सोप्या बाद अनो विरह सही सकवानी पोतानी अशक्ति जाहेर करी दे छ अने सरवाळे अग्निप्रवेश करी आपघात करे छ, आम अकले हाथे पुत्रीने उछेरवानां माता तेम ज पिता बन्नेनु कार्य Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ४२ तास हरिषेग करे छे अने पुषीनो भात्रि विह सही ज सकतो नथी अ अना पिता तीकेना वात्सल्यनी पराकाष्ठा बतावे छे. ऋषिदत्तानो जिप्रेम पण अबोज जलन छे. जन्मतां माता गुमावी अटले मातानां तो बिलकुल स्मरणो ने नथी, परंतु केवळ पिताना सान्निध्यमां अमना पूर्ण वात्सल्यनो अनुभव कर्या बाद परणतां वेत अ तेने गुमावे ते अने माटे बीजो जबरो आघात छे. पिताना मृत्यु पछीनो अनो विलाप कवि आठमी ढाळमां त्रीजी कडीथी आगळ जे निरूप्यो छे ते हेयं बलोवी नांखनारो छ. पण पतिन सांत्वन ओने आ प्रसंगे स्वस्थ करी शके छे. कनकरथ-ऋषिदत्ताना सुखी दांपत्यनु चित्र कवि नवमी द्वाळमां खड़ करे छे, अने त्यां प्रणयपात्र अंगेनी केटलीक लीटीओ नेांधपात्र बने छ : " खांडनई ठांमइ साकर, पांमी पुण्यथी रे, कल्पवेलि लही अलवि तु, कारेली खर नहीं रे. लींबू नीर तणी परि, सहू स्यर सारिखु र. ते स्यउ माणस जमु मनि, नहीं गुण पारिखु रे, फटिक सरीखां मांणस, तेह स्यउ कुंग मिलई रे, ते विरला. जगमांहिं कि, प्रीतिइ जे पलई रे. भुजबलि उदधि उल्लंबन, नाग खेलावना रे. खरा दोहिला तेहथी, प्रीतिका पालना रे. शसि स्यड नहीं सनेह, कमलिनी रवि विना रे, माणस तेह प्रमाण जे, प्रीतई अकमना रे. (हाल २.५-८) आ स्थळे कवि बे नारीना कंपनी प्रेमी तरीके विचारणा कर छ अने अवो प्रेमी साचो न होय अम भारपूर्वक जणावे छे. बहु नारीनो वल्लभ स्त्रीनी अवदशा करे छे केम के स्त्रीने माटे तो "शोक्यना साल करतां शूळी वधारे सारी." जे माणस पोतानी पत्नीने खरेखर चाहतो होय तेने अंगे बीजी पत्नीनी शक्यता ज नथी. आम तो कनकरथ रखमणीने परणवा जतो होय छे पण मार्गमां ऋषिदत्ताने जोई अने तेने परिणामे अंतरमा प्रेम जागतां ते तेने ज परणे छे अने रुखमणी पासे जवान मांडी वाळे छे. कवि आम बहुपत्नीत्वना विरोधी जणाय छे अने साचो प्रेम ओक पत्नी पूरतो मर्यादित होय अम अहीं जणावे छे. ऋषिदत्ता बननां पशु-पंखी-वृक्षो-वलीओ बगैरेनी विदाय लेती वखते पोतानी जातने "परदेसिणि" गणावे के अने पोतानी जातनो तिरस्कार करती ते कहे छ: " जेहवी आभा छांह कि, पांणी लीहडी रे, झबकई दाखवई छेह, विदेशी प्रीतडी रे.” (९.१६) आज स्थळे असपान व्यक्तिओ वञ्चेना प्रेमने अंगे पण कवि टहुको कर्या वगर रही शकता नथी. लम्बे ले : " ऊच ऊस्यउं मोह, विचक्षण कुंण करइ रे, नीठर मेहली जति कि, परदुख नवि धरइ रे.” (९.१७) Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कनकस्थने परणवा उत्सुक रखमणी रखडी पडी, ऋषिदत्ताना सौभाग्य अना मानसने विकृत करी मूक्यु अने अणे कूडकपटनो आशरोलीधो. आ तकनी लाभ लई कवि स्त्रीनिंदा करे छे ते नेधिपात्र बने छे. "स्त्रीनी जात अंदेखी छ" ओम कहीने अटकी गया होत तो बांधो नहोतो. पण अमणे तो स्त्रीने गाळो ज भांडी छे. " लोभिणी लंपटि लूटी, निसनेही नीठर कुटी, अवगुण करी खांणि, नारी अहवी निरवांणि.' (११.३) । हताशाथी पेदा थता उश्कराटमा रुखमणी प्रतिज्ञा करी बेस छे के " ऊतार जउ तमु नाद, तउ हुँ साची नारी." पण साची नारीना अंतरनी उदारता ने प्रिय पात्रने सुखी जोवा माटनी अनी झखना ते केटलां वधां जुदा छे ते तो आपणने ऋषिदत्ताना पात्रमाथी ज समजाय रे, सुलसायोगिणी जाते स्त्री छे. ऋषिदत्ताजे अनु कशु ज बगाड्य नथी छतां रुखमणीने पक्ष रही ऋषिदत्तानो सर्वनाश करवा तत्पर थाय छे. ते करतां पहेलां स्थमर्दनपुरमा भरकी फलावी हाहाकार मचावी द छे अने मायसो मारती वखते स्त्रीओ अने वाळकोने पण दूर राखती नथी. मुलसा निष्ठुर नारीहदयनी साक्षात् प्रतिमा छे. पण ओ निष्ठुरता पण बाषिदत्ताना अद्भुत सौंदर्य अने निर्दोषता आगळ क्षणभर दूर थती जणाय छे. पोताने हाथ मुलसा ऋषिदत्ताने मारी शकती नथी. मात्र अना पर आक चढावीने संतोष माने छे. सुलसाना कपटनी ऋषिदत्ता भांग बनी अने अना अधर उपरन लाही तथा वस्त्रो परना छांटा वगेरे जोईने कनकरथे अने करेला प्रश्नना जवाबमां पोतानी निर्दोषता सहजभावे जाहेर करे छे. मन, वचन अने कायाथी पोते कथारेय कोईने दूभव्यु नी अम जणावी आ परिस्थिति पूर्वकर्मनो विपाक छे ओम ओ कहे छे. आम कर्म अने पुनर्जन्मना सिद्धांतने ऋषिदत्ताना पात्र द्वारा अना प्रणयना आलेखननी साथीसाथ कवि रजू करता रहे छे. कनकरथ प्रेमपूर्वक पत्नीनु मां लूछी नांखी टाढामीठा बोलथी अने आश्वासन आपे छे. रखने से मुग्धा दुःखी थाय अवुविचारी तेनी मुश्केलीओ दूर करवाने तत्पर रहे छे. कवि लखे छे : " अवगुण सघला छावरई, जे जसु वल्लभ हुति, सरसब जेता दोषनई, दोषी मेरु करंति.” (१३. दू. ५) । ऋषिदत्ता उपर सुलसा आळ चढाव्यु अने राजा हेमरथ कोप्यो. अणे कनकरथने पोतानी पासे बोलावी लीधो अने जासूस मारफते ऋषिदत्तानी तपास करावी. विषम परिस्थितिमा मूकायेलो कनकस्थ विचारे छे. " माहरी वाट जोई जोईना, सूती हास्यई बाला, आज्ञा ताततणी अकपासा, अक तां प्रेम रसाला." अंक बाजु निषि ने स्नेहाळ मुग्ध पत्नी माटेनो उत्कट प्रेम ने बीजी बाजु पितानी कठोर आज्ञा. बन्ने वच्चे कनकरथ मूंझाय छे छतां सरवाळे प्रेमनोज जय थाय छे. हेमरथने अ स्पष्ट शब्दोमां कहे छे के सारी अत्यंत मुकुनार पत्नीथी आयु थई ज ना शके. हेमरथ राजा मेथी वधु गुस्मे थइने अने “ स्त्रीना दास" तरीके संबोधे छे ने रवीना प्रलक्ष अवगुण छावरवा माट ठको आप छे. स्त्रीनो बचाव करवामां पोते निष्फल गयो छे अम अ स्त्री Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ " मुजने समक्ष ज जाहेर करे छे त्यारे ऋषिदत्ता अने धीरज आपे छे अने फरी अकवार कहे छे : करम प्रमांण " ढाल १७ अने ढाल १८ मां कवि कर्मनो भहिमा वर्णवे छे. कर्म रंकने जनहि पण रायने पण रोळी नाखे छे. ऋषिदत्ता जेत्री निर्दोष सतीने पण << " ने कारणे भयंकर अपमान अने शिक्षा सहेवां पंडे छे. कवि उपदेश पण आधी दे छे : पूव करम cc मत करयो रे मत करयो रे कोई गरव लिगार (१८.१ ) आश्वासनरूप पूर्व करम शुभाशुभ दाता, अवरस्य केहर दोस रे. " ( १८.११) पूर्वकर्मनोआ सिद्धांतऋत्ताने पोतानी आवी कपरी अवदशा वखते पण बनी रहे छे. पोतानी जातने अ आ सिद्धांतने बळे ज धीरज आपे छे. १९मी ढाल आखी कर्मनो महिमा ज प्रत्यक्ष करे छे. कवि लखे छे : " करम साथइ रे कुणइ नवि चलई, करमि नड्या रे अनेक जी. " अमे आ अनेकमा कवि, श्री ऋषभेश्वर, श्री रामचन्द्र, श्री वासुदेव, पांडवो, मत्स्येन्द्रराय, सत्यवादी, राजा हरिचन्द्र, रावण, सूर्य-चंद्र वगेरेने गणांवे छे. पण विपत्तिनी वेळा पूर्वना पुण्यने वश अवी बुद्धि माणसने सहायरूप बने ज छे अने ते रीते पोतानी अकलवायी अने असहाय दशामां पोते अगाऊ रोपेलां झाडनी घाणीओ पिताना आश्रममां ऋषिदत्ता पाछी आवी शके छे. ओकली असहाय दशायां बनना अकांतमां ऋषिदत्ता शी रीते रही शके ? समाजमां तो अवी परिस्थिति प्रवते छे के " पाकी बोरी अन स्त्रीजाति र देखी सूनां सहु बाहई हाथ रे, वनिता अनई मेलडी वाडरे, देखी पुरुषांतणी गलई डाढ रे, ( २१.५-६) "शील ते स्त्रीनइ' परस निधान" होवाथी सावधान बनीने ऋषिदत्ता पोतानुं शील जाळवा मथे छे अने तेमां पिताओ देखाडेली औषधि अने "स्त्री फीटी नर" बनवामां मद्दरूप बनी जाय छे. बावीसमी दालनां कवि ऋषिदत्ताना विरहमां कनकरथे करेलो विलाप आलेखे छे जे आपणने कालिदासना “अजविलाप "नु स्मरण करावे छे. अनो पत्नी मांटनो प्रेम केटलो वधो उत्कट छे ते तो पत्नी पाछ से मरवा तैयार थाय छे ते उपस्थी जगाई आवे छे. कनकरथनी आवी दशा जोई रथ है खूब दाझे छे. शु करतां पुत्र पाछो आनंदमां आवे अनी अ मथामण करतो होय छेत्री ओक बार रुखनगी माटे कण आवे छे अने में पुत्रने समजावे छे. " आशा विधी रुखमणी, उखतां नहीं धर्म, अबला तगड़' नीसासडइ, पुरुषलाई पाउई शर्मा. (२४.७) 22 " नर अवर जड को तमु वरई, तर आपणी नहीं मांग, जय मां गई मांन्यातणी, तर जीवत स्यऊं कांम. " (२४.८) पालन करवु पडे छे अने आ परिस्थितिनो 1. मन मानतुं नथी छत कवकाने वितानी आज्ञानु लाभ लई कबि २५मो ढालमा पुरवना अने स्त्रीना प्रेममा रहेलो तफावत कनकरथने मोंढे रज करता लखे छे : " नेह खरु नारी तर र, नरपूउई अवटाई, नर मिसनेही निरगुणी रे, बीजी केड थाई. (२५३) Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुखमणीने परणवा जतां फरी अक बार आश्रममां बनकरथ अने तापसदेषा ऋषितानामिलन वखते कवि लखे छे : ४५ ८८ कुण किहांना किहांथो मिलइ हो, पूरवप्रेम संयोग, अक देखी मन उहलसर हो, अंक दीठड़ करइ शोक. (२८.६) आ पंक्तिओमां जे प्रेमनो उल्लेख छे ते मैत्रीभावतो. जगतां अमुक व्यक्तिओ प्रत्ये माणसने निष्कारण प्रेम जागे छे तो अमुक व्यक्ति प्रत्ये निष्कारण तिरस्कार पण जन्मे छे. पूर्वजन्मना संस्कारो आ परिस्थितिने माटे जवाबदार छे अम कवि मानता जगाय छे. कनकरथ रुखमणीने परणे छे. पत्नीनो हक भोगवती रुखमणी कलकरथने तेणे ओक तापसकन्या साथे शा माटे प्रणय कर्यो ओबो प्रश्न करी बेसे छे. उंचनीचना ने राय- रंकना भेद प्रणयनी बाबतमां पण आडा आवे से बात अना प्रश्न परथी समजाय छे. पण कवि तरत ज नीचेना शब्दमां समाधान पण करे छे : कनकरथे करेलां ऋषिदत्तानां वखाण रुखमणी सही शकती नथी. गुस्सामां ने गुस्सामां अ कही नांखे छे के ओणे ज सुलसा द्वारा पित्ताने मागणी नखावी. सुलसाने माटे अहोभाव अनुभवती ते बोले छे : "" ● अथवा जेहस्यउ मन मिल्यउरे, ते विगुणाई सुरंग, "" धतुरु हरनई रुचर रे, ससि उच्छंगई कुरंगो रे. (३०.७) ८८ "धन धन सुलसा भगवती, पूरव जनमनी साय, माहारइ कहइणि जेणीई, कीधा सयक उपाये. (३२.७) दीकरीने सुखी करवा माटे माता गमे ते उपाय करे अने तेने मुखी जुओ त्यारे संतोष पामे ते जाणीती वात छे. अहीं सुलसा रुखमणीने देनो प्रीतम मेळवी आप्यो तेथी रुखमणी अने पूर्वजन्मनी माता गणे छे अने आम आ जन्मनो क्षणिक संबंध पण पूर्वजन्मना कोईक गाढ संबंधनुं परिणाम छे तेवुं सूचवे छे. 33 माणस आ जन्मे खोटुं करे तो आवते भवे अने दुष्ट कर्मनां फळ भोगवां ज पडे तेवी स्वाभाविक मान्यता प्रवर्ते छे से मान्यताने आधारे कनकरथ रुखमणीने कहे छे : " परभवनउ भय अवगुणी, कीघई अंत्यजन् करणी, असुभ हेतु जेहवी भरणी, मई विण जांण्यइ तुं परणी. " (३३.४) कर्म अने पुनर्जन्म तेम ज कर्मविपाकना सिद्धांतो आम मूळ प्रणयकथा जोडे संकळाईने आगळ व छे. कनकरथ ऋषिदत्तानो विरह सही शकतो नथी. दिवंगत प्रियतमा पासे जतां अने कोई रोके नहि ओवी इच्छा से प्रगट करे छे. ओ कहे छे : " सिमी विरहनी वेदना, रांग लहइ जगि सोई. ' (३३. दू. ३) आवा उत्कट प्रणयीने आघात करतो बचावा माटे आपघात धर्मविरुद्ध छे अने आपघात करनार व्यक्ति अनंत भत्र दुःखी थाय छे ओम तापसवेषी ऋषिताने मुखे कवि कहेवडावे छे. वळी पुरुष मरइ स्त्रीकारणई ओ तो अवळी रीति होम पण होने कलेवामां आवे छे. अने वनकरथ अटके छे. "" Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४मी ढालमां " प्रेम विवहार (केवो) दोहिल” छे ते जणावे छे. साचो प्रेम प्रिय पात्रनी पाछळ प्राण आपवामां ज छे. म कनकरथ बहे छे ने प्रेमी खमीरकर जोई म जणावतां कवि लखे छे: ' छलछलीयां वहिलां ऊमटई रे, छेह लगई ऊडा नीर, जे जन न बीहड मरणथी रे, ते पालइ नेह धीर." (३४.३) .: प्रांण तिजइ तृणनी परई रे, नेहई बांध्या जेह, ओक मरतां बेहुं मरइ रे, साचउ कपोत सनेह.” (३४.४) . " स्वजन विण जे जीवीइ रे, ते जिव्यउ न कहेवाई. ” (३४.६) सरवाळे कनकरथने ऋषिदत्ता पाछी मळी. कनकरथना स्नेहनी परीक्षा जोवाने ओणे पुरषवेष लीधो हतो अब कहीने प्रषिदत्ता पतिथे पोताने आपेलां बचननी याद देवडावे छे अने कहे छ: “मारी माफक ज तमे रुखमणी उपर प्रेम राखो अने तेने स्वीकारो.” कनकरथ पासे आ टाणे कविओ सज्जन अने दुर्जन बच्चेना तफावतनी संक्षिप्त मीमांसा करावी छे अने ऋषिदत्ताना उदार मानसने व्यक्त क्यु छे. पतिना प्रेसमां अने पतिना सुखमां ज राचती से साची प्रेमिका छे अने कनकरथ जेवा संनिष्ठ प्रेमीने लायक अ ज छे अन स्पष्ट थई जाय छे. कनकस्थ-ऋषिदत्ता-रुखमणी रथमईनपुरमा पाछां फरे हे त्यारपछी साची परिस्थितिनी जाण थतां न्यायप्रिय राजा हेमरथ, जेणे अगाउ पुत्रवधून आळ साचुं गणी तेने प्रजाना हितमा हणवानो आदेश आप्यो हतो ते पुत्रवधूनी पोताना अपराध माटे फरी फरी क्षमा याचे छे. हेमस्थनी न्याय. प्रियता अने ओना अंतरनी निखालसता बन्ने अहीं प्रत्यक्ष थाय छे. अना जेबो निर्मक अंत:करणवाळो उमदा खमीरवंत राजवी झटपट दीक्षा लई ले ते पण आ परिस्थितिनु स्वाभाविक परिणाम लागे छे. ढाल ३८सी संसारनी क्षणभंगुरतानो चितार आपे छे अने साथे साथे ऋषिदत्तानी पूर्वकर्मनी विगतो भाटेनी जिज्ञासा रजू करे छे. मुनि भद्रयशोसूरि पूर्वभवकथा रजू करे छे अने ते द्वारा कर्म अने पुनर्जन्मना सिद्धांत साबित करे छे. ढाळ ४०मां कवि कथाकथन करतां उपदेशकथन वधारे करे छे. अभ्याख्यान, वध-मारण, परधन नाश वगेरे दुष्ट कार्यानो विषम विधाक थाय छे. कर्मनो लवलेश रहयो होय तो ते भोगवी कर्म खपाव्ये ज छूटको. कर्म खपी जतां मुक्तिनो मार्ग खुल्लो थई जाय छे. सद्गुरुना उपदेशनु श्रवण ओ माटे उत्तमोत्तम साधन बनी रहे छे. आम, प्रणयकथा रचतां रचतां कविले स्त्रीपुरुषना प्रणयनी दखतोदखत मीमांसा करी छे. अने जीवनमां ऊभी थती चोकस परिस्थितिओनी पाछळ पूर्वजन्मनां को ज रहेलां छे अम अमने ठसाववानु छे. आ वात ध्यानमा रहे तो लोको दुष्ट कर्म करता अटके. जेणे कर्म खवावी दीधां छे तेमने माटे ज मुक्तिनो मार्ग खुल्लो थई शके. ऋषिदत्तानी कथा “ अभ्याख्यान "ने आगळ करीने लखाई छ. "निंदक ते चांडाल सहुथी" अम जणावी कवि जगतां बहु सामान्य थई पडेल निंदाप्रियता तरफ लालबत्ती धरे छे अने धमेपिदेशक तरीके लोकोने आ कथानक द्वारा धर्म अने नीतिने मार्गे वाळवानो प्रयास करे छे. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “ ऋषिदत्ता रास "नी समालोचना ऋषिदत्तानी कथा नथी ऐतिहासिक के नथी पौराणिक. अने आपणे धर्माभिनिवेशी लोकाख्यान कही शकीओ. __पोतानी प्रौढावस्थामां जयवंतसूरिसे रचेल ऋषिदत्ता रास रासनां लगभग बधां लक्षणों धरावे छे. अनी रचना प्रासयुक्त पद्यमां थई छे अने अनी ४१ ढाला राग-रागिणीओ के देशीओ. मां रचाई छे गसन वस्त सती-चरित्र हे. प्रत्यक्ष कथनात्मक शैलीमा पत साहित्यिक भाषामां ओ रजू थाय छे अने अनेा उद्देश नीति अने धर्म, महत्त्व जीवनमा स्थापवानो छे. समकालीन देश्य स्थितिन ओ केटलेक अंशे भान करावे छे अने मध्यकालीन गुजराती भाषानां ठीक ठीक लक्षणो अमां प्रत्यक्ष थाय छे. आ रास गेय तो छ ज अने आख्याननी साफक अ श्रोताओ आगळ रजू थतो हशे अन मानी शकाय. नृत्य साथे अने संबंध नथी, पण बक्ता अने साभिनय रजू करे तो सारा माणभट्रोनी कथानी माफक लोकमेइनीने आकर्षी शके तेम छे. रसनां उदोपक वर्णना खास नथी, पण कथानी नायिकाना सौंदर्यनु वर्णन बेथी त्रण वखत आपनामां आव्यु छे अने ओ रीते से नायिका उपर ज ध्यान केन्द्रित करवामां आव्यु छे. कथानु शीर्षक पण नायिकाना नामे अपायु छे. ऋषिदत्ता सोल सतीओमांनी अक जाणीती सती छे अने ओना चरित्रन श्रवण श्रोताओ हां हांशे करे, केमके ते चरित्रद्वारा शील अने सात्त्विकतानो जीवनमां विजय कवि निरूपे छे. वार्तानां नायक-नायिकाने संसारनी क्षणभंगुरता समजाय छे त्यारे तेओ गुरुना उपदेशन श्रवण करीने दीक्षा लई ले छे अने केवळज्ञान प्राप्त करी मुक्ति मेळवे छे. जैनकथाओमां अंते प्रगट थतुं आ सामान्य तत्त्व छे आने से दर्शावे छे के आवी काव्यरचनानो हेतु आमजनताने धर्माभिमुख करवानो छे. नायक के नायिकाना पूर्वभवनी आवती कथा पूर्वकर्म अने तेना विपाकनी विगतो रजू करे छे अने तेम करतां सहजभावे कुशळ वार्ताकार नीतिनो उपदेश पण साथे साथे रजू करी दे छे. आवो उपदेश आ रासमां होवा छतां आ रास वांचतां केवळ धर्मकथा यांच्यानो संतोष नथी अनुभवातो, परंतु कोई प्रतिभाशाली कविनी साहित्य-सृष्टिमां रममाण थतां होवानो अनेरो आनंद अनुभवी शकाय छे. आ रास प्रणयकथा छे तेवी धर्म कथा पण छे. आ रासनी भाषानो विचार करीओ त्यारे अनी संस्कृतमयता तरत ज ध्यानमां आवे छे. संरकृत तत्सम शब्दोनो कविओ छुट्थी उपयोग को छे, अटलं ज नहि परतु केटलाक संस्कृत समासो पण ओमणे अहीं वापर्या छे. प्रासयुक्त पद्यमां घणी ढाको रचाई छे अने तेमां अंत्यानुप्रास उपरांत आंतरप्रास पण महत्त्वनो भाग भजवता जणाय छे. झडझमक ने वर्णसगाई कविने ज्यां तेमनी जरुर लागी छे त्यां आणवामां आव्यां छे. पोतानी समक्ष भेगा थयेला रसिकजनोने शु अने केटलु गमशे अनो अंदाज कविने छ ज. उपमा, रूपक अने उत्प्रेक्षा जेवा सामान्य अलंकारो आ कृतिमां बहु मोटा प्रमाणमां छे. क्यारेक क्यारेक समुचित दृष्टांत अने अर्थान्तरन्यासी कथनो आइलादक बनी जाय छे तो क्यारेक कवि कल्पना काव्यलिंग के विभावनानो पण आशरो करी बेसे छे. श्लेष अने सजीवारोपण क्यारेक वर्णसगाईनी साथोसाथ आवतां भाषामां अक नवी ज झलक पेदा करे छे. व्यतिरेक ने विशेषोक्तिनो उपयोग नायिकाना सौन्दर्य माटे खास करवामां आव्यो छे. भाषानो विचार करतां कविओ १२मी हाक हिन्दीमां ज रची छे ते अक नोंधवा जेवी हकीकत छे. आखी कृतिमां क्यांक कच्चे वच्चे गुजराती अने हिन्दी बन्ने भाषामां खपे अवा Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ वाक्यखंडो अळे छे पण सुलसायोगिणि जेवा पाये जे उत्पात रथपर्दनपुरमां मचाव्यो तेनुं आलेखन पात्रने ध्यानमा राखीने कविओ हिन्दीमा रजू करीने बीभत्स अने अद्भुत समर्थ रीते अक ज डाळमां आलेल्यां छे. कोईक शब्द अवा आवे छे के जेथी आपणने मराठी शब्दो याद आवे छे. दा.त. चंग, फार, पाहुणी, धरी (=पकडी). “मोरु नाह" जेवा प्रयोगमां आपणने राजस्थानीनो अणसार आवे छे. डरपांणी-मूर्खाणी-भरांणी जेबा शब्दो सौराष्ट्री छांटनो अनुभव करावे छे तो "दंदोला” जेवा कोई शब्द कच्छी सुधी आपणने पहचाडे छे. कयारेक 'मिहनति' जेदो उर्दू शब्द अन्यथा संस्कृतमय भाषामां उचित स्थाने वपरायेलो देखाय छे. कालिदासनी असर अगाउ लख्या प्रमाणे आ कवि उपर छ ज अने जे केटलांक सुभाषितो अहीं मळे छ तेमां पण अवां ज ओ अर्थनां संस्कृत सुभाषितोनी असर जणाय छे. गुजराती तळपदा शब्दो पण अहीं सारा प्रमाणनां छे ज अने विभक्ति प्रत्ययोनो विचार करीजे त्यारे गुजराती भाषाना विकासना भिन्न भिन्न तबकाओ अहीं जोवा मळे छे. आ कथानकमां संवादनु तत्त्व वधारे नथी, पण ज्यां ज्यां छे त्यां त्यां भाषा पात्र अने प्रसंग बन्नेने अनुरूप वापरवानो ज कविले आग्रह राख्यो छे. ... रसदृष्टिले जोई तो अहीं वीर अने हास्य सिवायना बीजा बधा ज रसो सांपडे छे अने भिन्न भिन्न रसोनु आलेखन पण कविने हाथे खूब कुशलतापूर्वक थयु छे. बातानो आस्वाद माणीओ तेनी साथे साची साहित्यिक कृति वांच्यानो आहलाद आपणे अनुभवी छीओ अनु आ पण अक कारण छे. कविले वर्णनोनी बाबतोमा पण काव्योचित संयम जाळव्यो छे. नगरोनां वर्णन अत्यंत दूंकां छे. राजा-राणीओनी बाबतमां पण तेमना केटलाक आगवा गुणोनो उल्लेख करी कवि अटकी गया छे. मात्र नायक-नायिकानी बाबतमां-खास करीने तो नायिकाना स्वरूपनु आलेखन करती वखते--बे के वण स्थळे विस्तार का छे अने ते सहेतुक जणाय छे. मुख्य पात्र उपर ज वाचकनु ध्यान आली कथा दरम्यान केन्द्रित थईने रहे से जातनु निरूपण कविनु छे. ज्यां विस्तार छे अवां वर्णनोमां ४थी ढाळला आवतां सरोवर अने बगीचानां वर्णनो परंपरागत शैलीनां यादीरूप छे, छतां अमां रहेला शब्दालंकारने कारणे कंटाळो नथी आपतां. कनकरथ अने ऋषिदत्ता परणीने आव्यां त्यारे रथामर्दनपुरमा जे उत्सवढं वातावरण जास्यु तेनु दसमी ढालनां मळतु वर्णन ओज नगरीमा सुलसाओ मचावेलां उत्पातना बारमी बाळमां मळतां वर्णननी साथे वांची तो भिन्न भिन्न वातावरणो अने रसो सांववानी कविनी शक्तिनो उत्तम परिचय आपणने थई जाय छे. करुणरसना आलेखन कवि कमाल करता जणाय छे. १८मी ढाळमां मळतो ऋषिदत्तानो विलाप, २०मी ढाळमां निरूपाती जंगलमां रखडती ऋषिदत्तानी असहाय दशा, २२मी ढाळमां आवतो कनरथनो विलाप अने २३मी ढाळमां निरूपायेली कलकरथनी विरहदशा कविनी करुणना आलेखननी शक्ति केवी प्रगाढ छे ते बतावे छे. आमांनु प्रत्येक वर्णन मर्मभेदक बने छे. ऋषिदत्ताने माथे सुलसा आऊ चढावीने पछी राजा हेमस्थ आगळ फरियाद करवा राजसभामा जाय छे. त्यारनु सुलसानु वर्णन भयानक रस सर्ने छे. अंतसां उपराने कारणे उत्पन्न थतो शांतरस पण अटली ज स्वाभानिकताथी निरूपायो छे. साहित्यिक दृष्टिो संपन्न अवा आ रासमां ओक-बे विगतो खं वे तेवी छे. ते विगतो हरि. पेणना वृत्तांतने लगती छे. हरिषेण राजाने अक राणी हती के बे तेवो प्रश्न ऊभो थाय छे. जयवंतसूरि प्रमाणे प्रियदर्शना अने प्रीतिमती ओवी बे पत्नी हरिषेणने हती ओम लागे छे; ज्यारे अन्यत्र प्रियदर्शन राजानी राणी प्रियदर्शना ने तेनी पुत्री ते प्रीतिमती अबी विगत मळे छे. पुत्र Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९ अजितसेनने राजभार सांपी हरिषेण अने प्रीतिमती विश्वभूति तापसना आश्रममां तापस बनीने रहयां अने ते पछी चार-9 महिनामां ऋषिदत्ता जन्मी जेने परिणामे ऋषिओ आश्रम छोडी चाल्या गया. अहीं अक मुद्दो विचारवा जेवो छे. अगाउ ज्यारे विश्वभूति तापसना आश्रममा महिनो रहीने हरिषेणे ऋषभदेवनु मंदिर बंधाव्यु हतु त्यारे विश्वभूति तापसे अने विषहरमंत्र आप्यो हतो जेने आधारे अणे प्रीतिमतीने झेर उतार्यु ने प्रीतिमतीने परण्यो. आ उपरथी अम तो लागे छे के तापस विश्वभूति जैनधर्मना पक्षपाती हशे; पण तो पछी पत्नी सहित हरिषेणे मे मुनि पासे पाछळथी केवी रीते दीक्षा लीधी अने बन्ने जणां अ आश्रममा शी रीते रहयां ? अत्यारनी परंपरा जोतां जैनधर्म अनुसार आवु बनी न शके. वळी हरिषेण कनकरथने मळे छ ते वखते मंदिरमां भगवंतनी पूजा करीने जिनस्तवन उच्चारे छे ने चैत्यवंदन करे छे. पुत्रीने परणावीने वळावतां से ज हरिषेण चिता खडकावी बळी मरे छे से पण जैनधर्मनी विरुद्ध ज छे; कारण, आपघात करनार अनंत भव रझळे छे अने आ भव तेम ज परभव बन्ने भवनु अहित करे छे, अम आ ज कवि पाछळथी (३३ दु.५) कहे छे.. मेक अवो पण प्रश्न थई शके के ऋषिदत्ता जन्मी अने अनी माता मृत्यु पामी ते पछी अना पिता हरिषेणे ज ने उछेरवान शा माटे माथे लीधु १ तास तरीके से जंजाळ अणे शा माटे स्वीकारी ? पोताना पुत्र अजितसेन पासे शिशु ऋषिदत्ताने से मोकली शकयो होत. तापस होवाने बदले अ आश्रममा रहेतो होवा छतां हरिषेण वधारे प्रमाणमा गृहस्थी जेबी मायाममतावाको निरूपायो छे मे चोक्स. अलबत्त सामान्य वाचकने प्रसंगोनी झडपी अने रसिक परंपराना प्रवाह मां तणातां आवो कोई. प्रश्न न सूझे ओ स्वाभाविक छे. अटले समग्रपणे जोतां आ वात कृतिने हानिकारक नथी नीवडती. "ऋषिदत्ता रास"नी भाषाभूमिका : “ ऋषिदत्ता रास "नी अनेक उपलब्ध हरतप्रतोमांथी में जनो उपयोग करी पाठांतरो नेांधी आ कृतिनु संपादन कर्यु छे ते प्रत २१ पत्रनी छे अने भाषानी दृष्टिले, तेम ज अर्थनी दृष्टिों वधार शुद्ध छे. रचनासाल पछीना लगभग बावीसेक वर्षनी ज लखायेली आ प्रत छे अटले "जयवंतसूरि" ना मूळ पाठनी वधु नजीक लई जवामां सरळता करनारी छे. आ प्रत देवनागरी जैन मरोडनी छे अने अमां वर्तमान पद्धतिओ मळे छे ते प्रकारे शब्दो छूटा पाडेला नथी, वाकयखंडो तारव्या नथी, पण सळंग लीटीओ लेखन करवामां आव्यु छे. शब्दने गमे त्यांथी तोडवानी रोत चालु छे. केटलीक वार अनुसंधान माट < आयु के - आयु निशान करवामां आव्युं छे. केटलीक वार शब्दमां कानो पण तोडवामां आव्यो छे. ज्यां छंद के देशी बदलाय छे त्यां छदनु नाम तथा प्रत्येक कडीओ आंक मूकवामां आव्या छे. लिपि अने उच्चार : . "ऋषिदत्ता रास" समर्थ कवि जयवंतसूरिनी रचना छे अने अनु लिपीकरण लहियाओओ अति चीवटथी कर्यु छे. अथी अनी भाषामां मे युगनी शिष्ट वाणीनु प्रतिबिंब सुभगपणे झिलायु छे. आ प्रत जेने 'अ' मेवी संज्ञा आपी छे तेमां व्यंजनोमा आवता अ कार अने ओ कार आधुनिक पद्धति प्रमाणे मात्रामा ज लखायेलां हे, छतां क्वचित् पडिपात्रानो पण उपयोग करायो छे. उदा. त. ते पांचई (ढा. १ क. १) सोहकरी, सेवई (ढा. १ क. २) अनुस्वार अने अनुनासिक वच्चे Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० कोईपण प्रकारनो भेद दर्शाववामां आव्यो नथी, आ प्रतमां अनुस्वारोनो उपयोग मोटा प्रमाणमां करेलो जोवामां आवे छे. व्यंजनोमां 'ख' उच्चारण थाय छे तेवा लगभग बधा शब्दोमां 'ष' लखायेलो जोवा मळ छे. जेम के ससिमुष (ढा. २ - २ ) सरिषी ( ३-५ ), देषत षेवि (४-९), द्राष, अषोड ( ४.१५). आवां स्थानोमां में तैयार करेली वाचनामां 'ख' ज वापये छ. सामान्य रीते तत्सम शब्दोमां मोट भागे 'श' ने बदले 'स' जोवा मळे छ. उ. त सुभ सुकने (३.१३) सीतल ( ४.६ ) . अनुनासिक व्यंजनो जेवां के ण, न अने मनी पूर्वे अनुस्वार जेवुं बिंदु आ प्रतमां जणाय छे. जेम के कांमी (४.१५) जांणे (४.२१). 'य' जो शब्दारंभे होय तो अनो उच्चार तद्भव शब्दमां 'ज' थाय छे 'ल' ने स्थाने जिह्वामूलीय 'क' उच्चारण धतुं हशे तो पण 'ल' स्वरूपे नांघायल मळे छे. उदा., सुविशाल (४.२५) चोली (४.२९). 'ह' श्रुति - ह व्यंजन तरीके शब्दारंभे तेम ज शब्दना मध्यमां पण छे. परंतु ज्यारे अ शब्दना मध्यमां व्यंजन साथे जोडायेल होय छे त्यारे से लघुप्रयत्नतर (स्वरने महाप्राणित) करतो होय ते रोते आवेलो होवानी शकयता छे. “अहवलं" (डा. ४. ३५) पहिल (४.३९ ) तुहमें ( ५.१ ) ताहरा ( ५.१ ) . लखाणमां नु अने तु, अने त घणी वार सरखा लागे छे, जाणे के अक ज होय अवी भ्रांति थाय. ज्यारे अक्षर के शब्द छेकवाना होय छे त्यारे अक्षर के शब्द उपर || आवी लीटीओ द्वारा निशान कर्यु होय छे, अथवा अ अक्षर के शब्द हरताळथी छेकेल होय छे. केटलेक स्थळे आवा छेकवाना शब्दोतुं मथाळु बांधेलुं नथी होतु, अवे समये अ अक्षर के श त्रानो नथी अम समजी लेवानुं होय छे भाषा भूमिका : " ऋषिदत्ता "नी हस्तप्रतमां प्राप्त थतुं भाषास्वरूप से समयनी उच्चरित भाषानुं प्रतिनिधित्व धरावे छे के नहि अनो निर्णय करवो खूब कठिन छे से समयनी बोलाती अने लखाती भाषामां खूब फेर होवो जोईओ अने हस्तप्रतमां लखाती भाषा से जूना समयनी चालो आवती रूढि - प्रणाली मुजबनी होत्री जोईओ. ट्रंकमां, हस्तप्रतीनां भाषा विभिन्न भूमिकाओमांयी पसार थई आज सुधी ऊतरी आवी छे. भाषानी लाक्षणिकता : मध्यकालीन गुजराती भाषानी लाक्षणिकता 'ऋषिता रास'ना आधारे नांचे प्रमाणे तारवी शकाय : ( १ ) संस्कृत तत्सम शब्दोनो बहोळा प्रमाणमां उपयोग थयेलो जोवामां आवे छे : नृप ( ७.१ ) तुरंगम ( ७.१ ) मुख - कर-चरण ( ७.४ ) जल ( ७.४) नंदनवन (७.५) नाभिकुलोदधि (७.७) चंद (७.७) प्रासाद (७.१०) वल्लभ (७.१५) लज्जा (७.२६) कुकर्म (७.३१) पायस (७.३२) दर्शन ( ७.३८ ) सागर (८.१ ) उत्तर ( ८.३) नृपतनय (८.२ ) प्रकाश ( ८.३) पावक ( ८.३) वगेरे.. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) छई नो सहायकारक कि. तरीके उपयोग थयेलो जोवा मळे छे. तई दीधी छई चंग (१.३), पूर्वई छई सुकवि कर्या (१.७), ऋषि कहई मोटी अह छई वात रे (५.२). (३) संयुक्त क्रियापदोना वपराशना आरंभ जोवामां आवे छे. जेमके भरवा थयउ (१७.४), जईनई जोई (१६.१७) जोईनई आव्यउ (१६.१८), ग्रही गख्यउ (१७.४), नासी आवी (१७.२१). कर्मणिरूप बनाववा माटे आत्र प्रत्ययना वपराश वधती जती जोवामां आवे छे. उदा.त. कहावी (१४,१५). (५) तद्भव शब्दोमा अन्त्य के उपान्त्य स्वरयुग्मो अई के अउ माथी के औ संयुक्त स्वरो दिकस्या छे. छता केटलेक स्थळे अविकसित रूपोनो प्रयोग पण करायेलो जोवामां आवे छे. उ.त. वईरणि (१६.२०), विरचइ (१२.२), अहवउं (९. १०), बलयउ (९.१०), स्यङ (९८). (६) ऋ कोईक टेकाणे ऋ तरीके ज वपरायेलो छे, ज्यारे कोईक टेकाणे रु लखायो छे. कोईक टेकाणे तो ऋ, रि मां पण रूपान्तरित थयो छ : ऋषिदत्ता (१.४), रुषमणि (३.४), रिषिदत्तानई (११.१४). (७) क्वचित् स्वर मध्यवर्ती ई नुं प्रतिसंप्रसारण थयु छे. उ.त. विलेप्यउं (१७.९), चोपड्य (१७.६) आथम्य (१७.१४), ल्यावई (३.१६) ल्यई (४.१८). चरणान्त प्रासमां कविझे खूब ज सारो विवेक राज्यो छे. छतां क्वचित् सरखा मेल विनानी पद्यरचना पण मळे छे. जेम के सप्रेमि-तेम (१३-दू. ६-३) मांहि-दाह (१३-दू. ६-६) (९) कटलाक अर्धतत्सम शब्दोमां विप्रकर्ष जोवा मळे छे. मुगतिइ (१.८), मनमथ (२३) रतनाली (४.४५). (१०) मूळ संस्कृत न नो प्राचीन गुजरातीमां ण थयो छे. मोहणवेलि (१.२१) (११) संस्कृत शब्दोमांनो श प्रा. गुज.मां बहुधा विकार पामीने स बने छे. उ.त, सोर (१४.१), रोसई (१४.२), सीयालउ (१४.५), वेस (१५.१). (१२) क्वचित् म सानुस्वार व (=व)रूपे उच्चाराता हशे अम लागे छे. उ.त. कुंअर (सं. कुमार) नो उच्चार कूवर थतो हशे. व्याकरण नाम-नर, नारी अने नान्यतर त्रणे जातिनां नाम आ कृतिमां मळे छे. बहुवचननो सामान्य प्रत्यय नरजातिमां "आ" अने नान्यतरमां "आं" छे. मानार्थे बहुवचन पण मळे छे दा.त. भद्रयशो गुरु अहवई, पुहता बनि सुविचारजी. विभक्ति-पहेलीमा प्रत्यय नथी. बीजीमां क्यारेक नई मळे छे. त्रीजीमां असंयुक्त तेम ज संयुक्त 'इ', 'ई' तथा 'ओ' मळे छ : वेगि, राजाई, वैये. 'थी' पण तृतीया दर्शावता मळे छे : पुण्यथी. 'स्यु' 'सर' 'साथि' अने 'करी' अनुगो पण तृतीयानो अर्थ व्यक्त Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करे छे : अवरस्यु, गगन स्य, वन साथि, नयणे करी. चोथीमां नई मळे छे : सेवकनई, तेहनई. “माटई” “भणी" अने “काजई"नो पण उपयोग थयो छे : दीधा माटई, जोता भणी, जोबा काजई. पांचमीमां थी, थकी, थिकउ मळे छे : नयरबारिथी, वन थकी, किहां थिकउ ६.११मां "मांहिथी" मळे छे. छठ्ठीमां नउ, ना, नी, नउ, नां, केरी तण, तणा, तणी मळे छ : तरस्यानउ, तापसना, अबलानी, तेहन, शंख के री (माला), रूप तण, मयण तणा, जिन तणी, प्रेम तणउ, सप्तमीमां असंयुक्त तेम ज संयुक्त इ, इमळे छे : भमतीइ, संसारइ, सिरि, गुखि, मरुथलि, गभारई, “नयने" जैवो शब्द पण छे. उपरांत मध्य, मध्यइ, मांहिं, मांहइ, मांहई, माहे, मझारि, मां सोनो उपयोग छ : मनि मध्य, सागर मध्यइ, त्रिभुवनमांहि, दीता मांहई, मन मांहइ, मन माहे, स्वप्न मझारि, वनमां अेक वार प्रत्ययरहित “मन' प्रयोग पण छे. विशेषण : विकारी अने अविकारी बन्ने प्रकारनां सळे छे. विशेश्यनी जेन तेपने पण प्रत्ययो लागे छे : नीरसथी. संख्यावाचक अने संख्यादर्शक शब्दो : । इक, ओक, च्यार, पांच, सात, दस, अटोत्तर शत, चिडु (दिसि), पहिलं, बीजू, अकलउ बेहुं, दोई पण मळे छे. सर्वनाम : सर्वनासी मोटी संख्यामां मळे छे : हुं, तु-तू, ते-तेह, आपण, अम्हे, तुम्हे, अ अह, जे-जेह, कह, आ, मे, को, कुण, कोई, काई, वगैरे. . नीचेनां विभक्तिरूपी मळे छ : हुँ, मई, मुहनई, मुझनई, मुझ, माहरई, माहरी, माहरू, मोरू, अम्ह. आपण, आपई, आपणउ, आपणी, आपणा, आपणउ, तुं-तू, तइ, तुझनई, ताहरइ, ताहरी, ताहरू, ताहरा, तुम्हे, तुम्हनइ, तुम्हारी. ते-तेह, तेणई, तेणइ, तेहनी, तेहनउ, तेणीइ . जे-जेह, जेणइ, जेहनी, जेहनउं. अ-अह, अणइ, अहनी मेहनउ, अणी, भेणीइ. उपरांत, सा, सोई, तस, जस, तास, जास, तसु, जसु, पण छे. साधित रूपो पण ठीक ठीक मळे छ : जेहवउं, जिहवा, अहवउ, अहव, तेहवु, जिसिउ, तेसिउ, किसिउ जेवां विशेषणात्मक रूपो छ. क्रियापद : क्रियापदोमा त्रणे काळनां रूपो आवे छे : वर्तमानकाळ-पहेलो पुरुष : देखु, पांम, लहुं. बीजो पुरुष : करई. बीजो पुरुष : हवई, सेवई, ल्यावई, सुणावइ, जगावइ, जेवा प्रेरक. त्रीजो पुरुष ब. ब. बछति (२.२). . Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूतकाळ-भूतकृदंत पण क्रियापदन काम करत जणाय छ : पहेलो पुरुष : सुण्यु, पांम्यउ. बीजो पुरुष : दीध, कीध, थयउ, कीघउ, चाल्यो, आव्यु, दीठी, थई, गई, __ आव्या, अवतरीआ, उल्लंघ्यां, उतार्या', भराणी, मूर्छागी, बीहनी, भोलाव्यो, कोपव्यू. .. भविष्यकाळ-पहेलो पुरुष : जस्य, लेस्यउ. बीजो पुरुष : करिसि, धरिसि, करस्यउ. (बधां “मा" जोडे). त्रीजो पुरूष : होस्यइ, जास्यइ, थास्यइ, करस्यइ. आज्ञार्थ : खोहि, सुणि, छे, राखि, कहिजे, बोलिन रे, उतारु, करु, सुणयो, करयो, फलयो आपेयो, जायवउ. कर्मणि, प्रेरक अने विध्यर्थ रूपो. पण क्यारेक मळे छे. संयुक्त क्रियापदो घणां छे : , मेहल्या जोई, जोई आव्या, गयउ परणी, रही उवेखी, नाठी आवी, रोवा लागी, वगेरे, छ', छई, अछई अने नथी (७.१५) पण नेधिपात्र बने छे. "भू" धातुनां विकसित रूपो हउ, हो, होयो, हुइ, हवी, हती, हुंती मळे छे. कृदन्तो : वर्तमान कृ. : जोतउ, देखत, सूतां, धरतु, हसंती, देती. भुत कृ. : वंछित, चिंतित, घार्यउ, वार्यउ, लिख्यु. हेत्वर्थ कृ. : वखांणवा, परणेवा, पामेवा, मरवा, सहिवा, जिपिवा. संबंधक भू. कृ. : आरोही, पठावी, पामी, कहेवि (१५.८), करीय, कहावी, करीनई, देखीनई, जोइन' अव्ययो : जु-जउ, तु-तउ, जिहां, तिहां, किहां, जांम, ताम, कइ, जिम, तिम, आगलि, दूरि, अनइ, मांहि, उपरि, सही, नवि, हवई, प्रति, भणी, स्य, पणि, वगेरे. प्रास मेळववा माटे कवि रूपोनी बाबतमां छूट लेता क्यारेक देखाय छे. नीचेना वाक्यप्रयोगो नेधिपात्र छ : राइ हुँ मोकल्यो तुम्ह भणी. हुं वेचाती लीधी. तु देखीनई मोही मुंधि, मई तुं परणी. राजाई रति पामी खरी. तुझ जीवितनइ हुँ कोप्यो. ते सविइ हुँ सेवी. हुँ पूरव करमनइ नडी केहई! जिनपूजानई म हउ व्याघात. वगेरे. आम भाषा अने व्याकरणनी दृष्टिले पण भा रास अभ्यास माटे महत्त्वनी रचना बनी रहे छे. Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतरिरचित ऋषिदत्ता रास Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषिदत्ता रास श्री जयवंतसूरि रचित (रचना स. १६४३) . ढाल १ दूहा उदय अधिक दिन दिन हुवइ, जेहनइं लीधइ नांमि ; ते पांचे परमेष्टनइ, हुं नितु करुं प्रणाम. सासनि सोहकरी सदा, श्री विद्या सुभरूप; ते मनि समरूं जेहनइं, सेवइ सुर नर भूप. मीठाई मुझ वांणीइं, तई दीधी छइ चंग; वली विशेष वीनवऊ, द्यइ रसरंग अभंग. ऋषिदत्ता निर्मल थई, ते निज सत्व प्रमाणि; तसु आरव्यान वखांणवा, द्यइ मुझ निर्मल वांणि. कविता महिमा विस्तरइ, फलीइ वक्ता आस; श्रोता अतिरंजइ जिणइं. सेा द्यइ वचन विलास. विविधि परई कवि केलवण, निज निज मति अणुसारि; तुझ पय कमल प्रसादथी, जगि वांणी विस्तारि. पूर्वइं छइ सुकवई करू, एहनां चरित प्रसिद्ध ; तउहइ रसिकजन आग्रहइ, ए मई उद्यम किद्ध. केवल लही मुगतई गई, कीध कलंकह छेक ; ते ऋषिदत्ता सुच्चरित, सुणयो सहु सुविवेक. ८ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल २ राग गुंडी (सिद्धारथ नरपति कुलइं-देशी) श्री शुभरति शुभरतिकरं , सुभ रत भूषण भूत रे ; . रथमर्द्धनपुर सुंदरं , जिहां वसइ इभ्य प्रभूत रे. त्रूटक प्रभूत इभ्य जीमूत दानइं, रूपि परहुत सुंदरा निवसइ विलासी सदा उल्हासी, कीध दासी इंदिरा ; कामिनी गजगामिनी जिहां , यामिनीकर सममुखी , जिहां चैत्यमाला पौषधशाला,संयम मुनि पालई सुखी. हेमरथ समरथ तिणइं पुरइं , नयनिपुणो नरनाथ रे; सेवकनइं सुरतरु समु, रणि चूर्या रिपुसाथ रे. _ त्रूटक रिपुसाथ चूरण पुण्य पूरण, सोम भीम गुणाकरो, अन्याय गंजन न्याय रंजन, गुरुगंभीरिम सागरो, परिणामि सुयशा, नामि सुयशा, पट्टदेवी भूपनी, वछंति अमरी नागकुमरी, सुभगता जसु रूपनी. २ कनकरथ तसु नंदनो, सकलकला गुणगेह रे; वनिता जन मन मोहतऊ, मनमथ आयऊ देहिं रे. त्रुटक देहि मनमथ रूपसुंदर, गौर केतकि तनु जिस्यु, अति सुभग ससिमुख कमललोचन, सरलता चंपक हस्यउ ; अभ्यसी विद्या सकल हेला, उदय दिन दिन दीपए यौवन्नि पायउ सुय शि गायउ, रूपि त्रिभुवन जीपए. Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'दाल३ . . . . ढाल ३ राग केदारु (ढाल – अढोआनी) इणि अवसरि नगरो काबेरी, अमरपुरीथी जे अधिकेरी; सेोभा जस बहुतेरी. १. तिणि पुरि नरवर सुंदरपांणी, अरिराजी जसु भय डरपांणी जगि जस एक कृपाणी. २. . तसु वसुधा साहइ पटरांणी, जसु तन सकल कलांइं भरांणी; पुण्यपंथि सपरांणी. ऋषमणि तसु तनया गुणवंती, रूपइं रंभा रति सम कंती; तेजि सदा झलकंती. योवनवय सा कन्या जांणी, चिंतइ सुंदरपाणि विन्नांणी; वरचिंता मनि आंणी. जगि वर सघला मेहल्या जोई, कनकरथ समसुंदर न काई; जोडी सरिखी दोई. हेमरथनइं तव दूत पठावी. सुंदर पणई सवि वात जणावी; सवि कहिनई मनि भावी. ७. तात तण उ आदेश ज पांमी. कनकरथ कुंअर सिर नांमी; मनि हरख्य उ अतिकांमी. चाल्य उ ऋकमणिनई परणेवा. ए संसारतणां फल लेवा; वंछित सुख पामेवा. तव मंगल गावई कुलबाला, बंदी बोलई बिरुद वाचाला; वागई तूर रसाला. १० पाखरीआ करता हेषारा, कनक पहलांण रयण झलकारा; तेजी तरल तुखारा. ११ Hidinfor Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृगार्या मयगल मतवाला, कांने चाँमर झाकझमाला; सोहइ चित्रित भाला. १२ महोच्छवि नृपसुत मारगि चालइ, ठांमि ठांमि जनवृद निभालइ ; सुभ सुकने मन महाल इ. १३ चिंतितथी को लाभ अनेरु, अंतरालि होस्यइ अधिकेरु ; एहवउ सुकनउ केरू. १४ जांणइ कुमर शकुनफल जांणह, दल चाल्यां जिम जेठ उधाणह; वागा ढोल नीसाणह. ठामो ठांम थकी सवि आवइ, भेटि विविध, सीमाडा ल्यावइ ; कूमरनई वेगि वधावइ. १६ इम दिन केतइ करत पीआंण, आव्यउं एक अटवी अहिठांण; जिहां नहीं नीर निवांण १७ तव कुमरई सेवक पठाव्या, सरोवर थानक जोई आव्या; वात असंभम ल्याव्या. ढाल ४ राग असाउरो (ढाल - वेलिनउ) दूहा ल्याव्या सेवक धसमस्या, बात असंभम अक; कर जोडी कहइ कुमरनइं, सुणि स्वामी सुविवेक. तुम्ह आदेश लही करी, जोवा चाल्या नीर; जोतां जोतां सजल सर, दीठ उं अति गंभीर. Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चालि अति गंभीर सजल सरोवर, पंकजवन अभिरांम; जांणे आव्यउ अभि नव जलनिधि, तरस्यानउ विश्राम. १ खेलइ सी हंस उदारा, चकवा चकवी जोडि; चंचल चालि चलइ वलि खंजन, चतुर चकोरां कोडि. २ चातुक केकी ढींक बलाका, मदनशाल सुकमाल ; शुक पिक कंक कुटिल कलहंसा, केलि करई वाचाला. ३ पीन मीन पाठीन अदीना, धाई नीर तरंगई; कच्छप जलचर जोव अनेरा, दीसइ करता रंगई, दूहा आगई सरोवर विमल जल, सीतल पादप छांह; जाणे सुंदर मधुर सर, विद्याधन उच्छाहि. सरोवर पालई अंबवन, दोलाकेलि करंति; तिहां दीठी एक सुंदरी, त्रिभुवनि रूप जयंति. त्रिभुवन रुप जयंती बाली, चालती मोहणवेलि ; अवगुणी अमरी फणपतिकुमरी, चमरी कबरी बेलि. सहसा अलोप थई सा सुंदरि, अम्हनई देखत खेवि ; परि परि जोई काननमांहि, पणि नवि दीठी हेव. अहवां वचन सुणी सेव कनां, कुमर थयऊ अवधूत ; जिम घन गरजई केकि किंगाइ, प्रेमपंकि अतिखूत. सेवक-दर्शित मारगि चाल्य उ, सुंदरि जोवा काजइं; जांणइ जउ तसु मुखशशि देखें, तउ मुझ भागइ दाझि. १० दूहा नांम सुण्य उं जव तेहनउं, श्रवणि सुधारस धार; तब लगि. मन मोह उपनउ, जाणे मिलउं किवार. नाम मात्र जसु सांभल्यइ, नरनइं लागइ मोह; : स्त्री साची मोहनलता, ए कीधउ आपोह. Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ (अ) १५(ब) चालि आपोह करतउ आगलि चाल्य उ, दोठ उ एक आरांम; अमरपुरीथी नंदन कानन, आव्य उ ए अभिरांम. अंब निंब बीली बहु जंबू, बाउल बोरि कदंब; ओला केला साहल रिसाला, ताल तमाल प्रलंब. नाग पुनाग पूगी बहू ऊगी, चंगु प्रीअंगु सुरंग; उत्तंग तगर अगर अनोपम, लाल लचित लविंग. फनस प्रयाल बहुली बीजोरी, करणी कर्मदी द्राख; अखोड बदाम अंजीर अनोपम, कणयर केरा लाख. कुरु बक तिलक अशोक अनोपम, कामी बकुल अपार ; जाइ जूई. चंपकनई केतकि, मालती मोगर सार. पाडल वालउ वेलि अनोपम, भमर करइ गुंजार; कोकिल कुहु कुहु शब्द सुणावइ, सीतल पवन प्रचार नपनंद न इम कानन जोतउ , अंब तलि ल्यइ विश्रांम; तब सहसा ते कुमरी दीठी, रूप तण उ एक धांम. वेणी कुटिल भूयंगम काली, प्रेमतणी परनाली; गोफणउ आइ रह्यउ नितंबई, सोहइ अति सविशाली दूहा मदनसेर सीमंत जस, अठमि ससि सम भाल; सींगिणि साची कामिनी, भमहि कुटिल अणीआल. चालि भमुहि कुटिल अणीआली काली, मोहणवेलि रसाली; लोचनवांणि वेध्या जन थंभइ, जांणे लीधी ताली, मृग जीता सेवइ वनवासा, पंकज नीर पडंति; एक ठामि न रहइ वलि खंजन, मनमई भीति वहति. दीपशिखा सम नासा उन्नत, तिल कुशम अनुकार; मुखससि जीतइ ससिहरमंडल, दीसइ कलंक संभार. २२ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरूण अधुर बंधुर नवपल्लव, दसनि वसइ मणि भूरि; हेजि हसंती जांणे वरसइ, फूलपगरनउ पूर. . २४ २६ श्रवणपासि सोहइ सदा, मयण तणा सुविशाल; जीती वीणा मधुरिमा, कल कंठी सुकमाल. चालि कलकंठी सूकमाल शरीरा, पीन गौर कुचभारा; कनक कलश जीता करिकुंभा, युवजन, मोहनसारा. सरल गौर भुज पंकज नाला, अंगुली जेम प्रवाला; क्षामोदरि सुंदरि हरिलंकी, त्रिवली नितंब विशाला. रंभाथंभ निभ उरु मनोहर, कोमल जंघा जूली; उन्नत चरण अरुण नखमंडित, अकुटिल अंगुली कूली. अनुपम गति जीता गजहंसा, कल्पवेलि अवतारा; पहिरी चोली पाट पटोली, सोहइ सकल शृगारा. दूहा कुमरी रूप देखी करी, मोह्यउ कुमर सुरंग; नादई वेध्या नाग जिम, लय पांम्यउ अभंग. चिंतइ ए को अवतरी. अमरी मुनिवर शापि; कइ कौतक जोवाभणी, आवी आपाआपि. चालि आवी आपाआपई कुमरी, जीवाडंती काम; मोहनीरुपि वसी मनि मोरइ, अनुपम अद्भुत धाम नय नबारिथी मत ए जाइ, सुदरि सुभग सरूप; कुमरनइं प्रेमवती थई एहवी, जिम जल लह्यउं अनूपि. अक पुरुष ते त्रिभुवनमांहिं, जस धरि धरणी अह; नयन सफल थयां मे दरसनि, अमीइं वूठउ मेह. Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किस्यइ उपाइं अहनई बोलावलं, अहवउ चिंतइ जांम. सैन्य तणउ कोलाहल निसुणी, अदृष्ट थई सा तांम. ४० तव नृपसुत विलख उ थयउ, जव सा थई अलोप; निधि देखाडी जिम हरइ, पाडइ गिरि आरोपि. अणदीठानउं दुख नही, दीठ उ विघट इ साल; भूख्यां भोजन दाखवी, जिम को करि विसराल. चालि विश्राल करइ खिणमांहिं मेलो, हा हा देव तु पापी; प्रीतिवेलि नयने आरोपी, अंकूरइथी कापी. मरकलडा देती मृगनयणी, वार वार मुझ देखी; आगलिथी पहिलू मोह ऊपाई, हवइ रही कांई ऊवेखी. प्रांण तिजउं जु ते नवि पांमउं, एहवउं चित्ति विचारी; जोवा लागउ कानन सघलू, तिणि थलि सैन्य ऊतारी. जोतउ जोतउ दूरि गयउ जव, तव दीठउ प्रासाद; त्रिकलस सोविन दंड पताका, गगन स्यउं मंडइ वाद. दहा चंद्र कंति परि ऊजलउ, मणि तोरण झलकति; अटोत्तरशत फटिकम इ, पावडीआरां पंति. चिहुँदिसि सरिखी झलहल इ, वाताय ननी उलि; चउबार उ प्रासाद ते, पाढी दीपइ पालि. चालि पालि प्रवेश कीयउ जव कौतकि, देखी चैत्य - सजाई; हरख्य उ तिम जिम सागर मध्य इं, मीठी कूई पाई, मणिमय थंभ चउकी रतनाली, विविधि भाति उल्लोच; मणिमय कंदुक मोतीमाला, नहीं विज्ञान सकोच. वरमणिमंडित सेविन दंडई, चांमरमाला साहइ; पूतली उभी करि ग्रही दीवी, तेजई त्रिभुवन मोहइ. केसर कपूर अगर आमोदई, वासी दसइ दिसि सार; भमतीइं देई प्रदक्षिणा, पांम्यउ हरख अपार. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल ५ राग रामगिरी (ईश्वरना वोवाहलानी) तब गभारइ मूरति दीठी रे, ऋषभजिगंदनी दरसनि मीठी रे; पांम्य उ कुंअर आनंद पूर रे, जिम शसि देखी चतुर चकोर रे. त्रूटक चकोर जिम ससि देखि हरखइ, तिम ते राजकु मार; त्रिकरण शुद्धधई प्रणांम करीनइं, स्तवन करइ वारोवारि. पूजा करीनइं रंगमंडपई, कुमर बइठउ सोई , करि ग्रही कुमरी एक तापस, आव्यउ तिहांकिणि कोई. ते कुमरी रमझिमि नेउरि करती, चंद्रवदनी चंग, नयन भावि आरोपती सा, कूमर हैडइ रंग. प्रणांम ऋषिनइं करइ कुंअर, आसोस देई ऋषि भणइ, किहां थकी आव्या तुम्हे सज्जन, अवतरोआ कुल कहि तणइ. तव कुमरनी वंशावली कहइ, बंदिजन सुविचार, ऋषि कहइ कुमरनइं, तुम्ह दरिसनि, थया कृता रथ सार. सार पूछइ कुमर ऋषिन उ, विनय बहुविध अणुसरी, तुम्ह पासि स्वामी कुंण कन्या, वात अहनी कहउ खरी. चालि ऋषि कहई मोटी अह छइ वात रे, जिनपूजानई म हउ व्याघात रे; इम कही श्रीजिनपूजा काजइं रे, वेगइ पुहतु ते ऋषि राज रे. त्रुटक ऋषिराज पूजा जिनतणी ते. करइ विविध प्रकार, गंभीर घन धुनि चैत्य वंद न, स्तवन करइ उदार. सफल जीवित सफल तन मन, सफल मुझ अवतार, सासन्न ताहरू' जउ लहिउ, तउ टल्यउ दुःख प्रचार. तूं देव बाता तत्व जीवित, तुं हि जिगति मति स्वांमि. १ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० तुं पिता माता गुरू सहाई, बंधू अति अभिराम. निशि दिवसि सूतां बइसतां, नई स्वप्नि सघली वेलि. जिनराज ! ताहरा ध्यांननी, मुझ चित्ति हु रंगरेलि तुझ चरणि मुझ मनि मन्न माहरू, तुझ चरण होयो लीन जां लहु सास्वत मुक्तिनां सुख, अक्षीण अमल अहीन. अहीन गुणभंडार जिननई, करइ प्रणाम ऋषि इम कही, नमो नमो भगवंत तुझ नई, आण ताहरी सिरिग्रही. ढाल ६ राग गुडीमांहई ( चउ पइनी ढाल ) भगवंतनी इम पूजा करी, भाव भलउ मनमांहि धरी; ऋषि आवइ मंडप छइ जिहां, बइठउ राजसुत दीठउ तिहां स्नेह सकेामल कुमरी तणां, चपल चकोरां जिम लोअणां; राजकुमार मुखससिहर संगि, खेलइ उनमद रंग तरंगि मदधूमित मदनालस होइ, आडी दृष्टि इं खिणि खिणि जोइ; हसती फूल खिरइ ससिमुखी, खिणि लाजइ जोइ संमुखी. स्नेह ऊपाइ नयनई करी, हावभाव दाखइ फिरि फिरी; उरि आणइ वेणी गोफणउ, अधर डसइ जंभाई धणउ . थण भुज उदर देखाइ मिसि, तनि त्रिभंगी हुई मदवस इं सरल जिसी हुइ चांपाछोड, कुमर देखि करइ मोडामोडि. लोहसिलाका जिम चंबकइं, लागी पाछी थई नवि सकइ ; बांधी कुमर नयनदोरीई, कुमरी जांणी चित चोरी. प्रथम नयन करइ दूती पण, मननई मन पूछइ अकंग णुं; सघली परई सहीआरु करई, जीवई जीव प्रेम परिवरइ. प्रीउ स्थउं लागउ प्रेम मनिरुचइ, पापिणी लाज संतापई विचई; जांणइ सकल वस्तु अवगुणउं, रही रही जोउं मुख प्रीउ तणउं. १ ५ ६ ८ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेध तणी छ ई वात ज घणी, प्रांणीनइ मेलइ रेवणी; नाद इं वेध्यउ मृगलउ पडइ, पतंग दीवामां तडफडइ. करणी वेध्यउ गज सहइ दाहि, अलि पीडाइ पंकज मांहि; मीन म रइ आंमिषनई रसई, प्रांणी पीडाइ प्रेमनइ विसइं. कुहुंनइं कही न जाइ वात, मांहिथी प्रजलइ सातइ धात; लागु प्रेमतण उ संताप, ते दुख बूझइ आपोआपि. वयर वसायुं कीधऊ नेह, नयणांनइं सिरि पातक अह; निसिदिन चिंता दहइ अतीव, प्रेम कीधउ तिहां बांध्य उ जीव. १२ भूख तरस निद्रा नींगमी, जांणे तप साधइ संयमी; बोल्यऊं चाल्य उं कहिस्य उ नवि ग म इ , कृश तनु दोहिलइ दिन नींगम इ १३ खांची राख इ आंसू नीर, सुंदरि मनमाहे आंणी धीर; कुमरनई पिण अे परि थाई, मनइं मन ते एक कहायइ. १४ बेहुन इं प्रेम हु उ सारिख उ, पूरव पुण्यतणउ पारिख उ; अणइ संसारइं एतलउं सार, प्रेमतणउ मोटउ आधार पुण्यवत मनि जे चितवई, ते ते आगलिथी तसु हुवइ; हिव ते तापस साही हाथि, कुमरनइं तेडी आव्यउ साथि. चैत्यथ की उत्तरनई पासि, उढ वउं एक अछइ सुप्रकासि; कुमरनइं तिहां देई अर्घपाद, पमाड्यउ अधिकउ अह्लाद. कहिवा लागउ अपूरव वात, सुणि नृपनंदन मुझ अवदात; उत्तम नगरी मित्रतावती, हरिषेण राजा तिहां सुभमती. राणी तेहनइं प्रीयदर्शना, अति गुणवंती प्रीयदर्शना; अजितसेन उत्तम सुत तास, मदन मूरति अति लीलविलास राय रवाडीइं संचर्यउ, इक दिनि चतुरंगि दलि परवर्यउ ; शुकल हय एहवइ आव्यउ भेटि- जेहवउ अकथितकारीचेट राजा तेणई थयउ असवार तुरंगमि कीधउ गति विस्तार वार्यउ न रहइ विसनी जेम, उल्लंध्या पुर पत्तन सीम. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ ढाल ७ राग वइराडो आण्यउ कांननि नृप अकलउ, भूख तरस चिंता आकुलउ : अहवइ अवलंबी तरुडालि, तुरंगम तब मेहल्यउ भूपालि. मुडइ मुडई तरुथी ऊतरइ, राजा ते वन जोतउ फिरइ; तिहां दीठउं एक सरोवर चंग, मधुर ससिर जिहां नीर तरंग . जिम चिर विरही प्रीयु मुखदेखि, मनमांहि पांमइ हरख विशेषि तिम राजा रलीआइत थयउ, जिम ससि देखि चकोर गहगह्यउ मुख कर चरण पखाली करी, त्रिप्त थयउ ते जल वावरी; अति मीठां वनफल आहरी, राजाई रति पांमी खरी. नंदनवन सरिखुं वन तेह, जोतां पांयउ अधिक सनेह; दीठउ तापस आश्रम अंक, राजा चाल्यउ धरी विवेक. कच्छ महाकच्छ वंश शृंगार, विश्वभूति तापस सुविचार; ते कुलपतिनई कीध प्रणाम, श्रीहरिषेण राजाई तांम. निर्मल नाभिकुलोदधि चंद, ऋषभदेव तुम्ह धउ आनंद ; इम नृपनई ऋषि आसीसि देइ, माहोमांहि कुशल पूछेइ. अहवइ कोलाहल ऊछल्यउ, तापसलोक सयल खलभल्यउ; राजा कहइ मनि मांणउ भीति, को नहीं लोपइ तुम्हारी रीति. सकल सैन्य मुझ क्रम अनुसारि, अणि वनि आवइ छइ निरधार; अहवउं जांणी ऊठी राय, सकल सैन्य ऊतार्यां ठाइ. मुनिसेवा कारण ओक मास, तिणि वनि राजा राउ उलासि. तेणई ऋषभतणउ प्रासाद ओह कराव्यउ अति आल्हादि; विषहर मंत्र राजानई दीयउ, तपसि इतिथि धर्म इम कीयउ; हिव निज मंदिर आव्यउ राय, पालइ राज हरइ अन्याय. एक दिन राजसभाई काइ, आव्यउ दूत महामति साइ; विनयपूर्वक ते वीनती करइ, मनोहर वांणी मुखि उच्चरइ. १ ३ ४ ५ ८ ε १० ११ १२ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ परउ पगारी सुणि तुं स्वांमि, ओ छइ मोट उ धर्मनउ काम नयरी मनोहर मंगलावती, तिहां प्रियदर्शन छइ नरपती. प्रीतमती तेहनइ नंदिनी, रुपई त्रिभुवन आनंदिनी; काली नाग डसी ते आज, तव अति व्याकुल थय उ महाराज. १४ ते पुत्रो वल्लभ प्राणथी, ते विण नृपनइं जीवित नथी; कोधा वैद्ये विविध उपाय, पणि किमहई तसु सुख न थाइ. १५ परउपगार सिरामणि सुणी, राजाइं हुं माकल्यउ तुम्ह भणी; अ अवसर छइ उपगारनु, ते जीवस इ जीवस्यइ जन धणउ. स्यउं कही इं सज्जननई देव, ते उपगार करइ स्वयमेव; प्रार्थ्या विण व रसइ मेह भरि, तिम अजूआलउं करइ ससि सूर. १७ ज्याच्या विण तरु छाया करइ, आपणपइ आतप अणुसरइ; सहु को नई साधारण अह, सज्जन अ सरिखा गुणगेह. सहिजई करइ परनई उपगार, स्वारथ वंछइ नहीं लिगार; तिणि सज्जनि अ सेभिड मही, रवि ऊगइ तसु पुन्यइं सही. हिव स्वामी मल्लावउ वार, अबलानी वेगई करु सार; अहवां वचन सुणी ते राय, करभि आरोही वेगइ जाइ. ऋषि मंत्रई विष वाल्यउं वली, मंगलवांणी तव ऊछली; ते कन्या प्रीयदर्शन राय, तेहनइं परणावी उच्छाय, प्रीतिमतीनइं परणी करी, हरिषेण राय आव्यउ निज पुरी; इंद्र तणी परि भोग भूयाल, सुख विलसइ नव नव सुविशाल. इम करतां गयउ केतु काल, सुत पांम्यउ यौवनइं रसाल; राज्यभार तेहनइं सिरी धरी, दंपती तापसबत आदरी.. विश्वभूति तापसनई पाइं, सेवइ अनुदिन रांणी राय; प्रीतिमतीनई अहवइ समइ, गर्भवृद्धि पामई ऋमि क्रमि. २४ चिन्ह प्रगट थ्रया पंचमि मासि, नील मुख पीन स्तन सुप्रकाशि पांहनी पुष्ट शरीर सुरंग. गौर गल्ल त्रिवलीन उ भंग... २५ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत लज्जा कारण अहवउं, राजा देखीनई अभिनवउं; प्रीतमतीनई पूछइ भेद, अकांतई मन धरतु खेद. अतथी पहिली वात हवी, तेणई समइ पणि मई नवि लही; प्रीतिमती प्रीऊनई इम कहइ, बेहु चित्ति विमासी रहइ. २७ आपण ठांणि अने रइ जस्य उं, ईहां सहु ऋषि करस्य इ हसुं; इम चिंति सूतां निसि समइ, जाग्यां बेहु प्रह वहिसी जिमइ. २८ जूइ तु तापस को नही, सूनी दीठी आश्रम-मही; सर सूकउं पंखी जिम तिजइ, नीरसथी श्रोता ऊ भजइ. मंदिरि जातउ मुनिवर अंक, जरा जीर्ण देखी सुविवेक; राजऋषि तेहना पय नमी, पूछ इ कांइ गया संयमी. ते तापस कहइ आंणी दया, तुम्ह कुकर्म देखी मुनि गया; वारि हार धटिका संगि यथा, झल्लरि सहइ प्रहारनी व्यथा. ३१ विषमिश्रित पायस जिम हेय, कुशंगति पंडित वर जेय;. वाइस-दोषि हणायउ हंस, मंद विसर्पण मत्कुण डंस. ३२ वा पणि कुष्टीनउ वर्जवउ, डाहइ कुशंगति तिम तर्जवउ; इम कही वहिलउ ते मुनि गय उ, राजऋषि विलख उथई रह्य उ ३३ निज कुकर्म निंदी ते रह्या, च्यार मास युग सरिखा थया; प्रसवी पुत्री पूरणि मासि, कल्पवेलि जंगम सविलास. ऋषिप्रसादि ) पुत्री लही, ऋषि दत्ता नामई ते कही; सूआरोगि पांमी अवसान, प्रीतिमतीना पुहता प्रांण. ते बालानइं पाल इ यती, रुपकलांइं जग जीपती आठ वरसनी कुमरी हवी, तातई सकल कला सीखवी रूपवंत जे देखी हवइ, मत को दुष्ट पणउं चींतवइ ते भणी कन्या लोच नि शुद्ध, अदृष्टीकरण मई अंजन किद्ध ते मे कन्या ते हुँ तात, अ मइ तुझ सधली कही बात, अणीइं आपइ दर्शन दीध, तुं देखीनइं मोही मुंधि, Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल८ रग-देशाख (माई इ न पराइ सर सति - ओ देशी) कुंअरनं मुख शसि, मनमथ तणइ वसि, निरख तो नेहवसि, मुनिसुता , नयन न खंचओ, प्रेम प्रपंच अ, अंचओ मरकले गुणयुता , चतुर चकोरडी, ससिबिंब चाहो, जिम तिम वेधि विलूधडी मे, मनस्यउ अ वर वर्यउ, सवि गुणइं परवर्यउ, अवरनी करी खरी आखडी मे, त्रूटक आखडी नर अवरांह, ऋषि सुता करइ मनमांहि, अंगित्त लही मनवात, अति चतुर तापस तात, रूंध्यउ रहइ किम सूर, उलटयां सागर पूर, उन्नयउ उत्तर मेह, तिम न रहइ ढांक्यउ नेह, तिम न रहइ ढांक्यउ नेह कहिनउ, नयन वयन परगट करइ, कुमर पिण तसु प्रेमि लुबध उ, अंक तेहनइं मन धरइ, चालि मनि धरी तव मुनि, बेहुं तणउ प्रेम अ, जिम ओ दुधमांहि, साकर भल्यां ओ, अतिहि उमाह , करति वीवाह ओ, चितित बेहुं तणां तव फल्या मे, रति अनइं मनमथ, चदनई रोहिणी, लखिमी नारायण जिम भजइ ओ, कुमर नई कुमरीइं, बेह संयोगई , तिम मनि आनंद ऊपजइ ओ. THE ___ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेटक ऊपनउ अति आनंद पालव्य उ प्रीतिनउ कंद, तिहां रह्य केता दीह, नृपतनय अकल अबीह. अति चतुर कुमरनइ संगि, सा मुग्धि पिण हुई रंगि, वर कुशमनइ संबंधि, अति तैल हुइ सुगंधि, सुगंधि हेावति नीर निर्मल, पामंति पाडल वास, गुणवंत नरनी संगतइं, गुणतणउ हाति काश. ___चालि प्रकाश प्रेमनउ मुनि लही बेहुनउ , आनंद मनमांहिं अति लहइ अ, लाडि गहिलो अनइं, मन किम दुख देइ , तापस जमाईनई इम कहइ अ, देई भलामणि, करी मोकलामणि, समर ण नवकार तणउं करइ अ, पुत्रीनउ विरह अ, न मई सह्याउ जाइ मे, इम कही पावक अणुसरइ अ. त्रुटक अणु सरइ पावक जांम, ऋषि मरण पांम्यउ तांम, टलवल इ बाला दीन, जिम नीर विरहई मीन, हा तात ! करुणागार ! सौजन्यनउ भंडार ! केही केही हित रीति, ताहरी समरूं चींति चीति समरू ताहरा गुण, दूरि था देखो करी, प्रणय कोमल नयन वयणे, लेड तउ अति हित धरी. Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ चालि हित धरी कोमल अंकि आरोपीनइं सबि तन करि करी फरसतउ , चुंबन देई करी, खि णि खिणि माहर इ, मन मन भाषित हरखतउ अ, वन परि पाटण, माहरइ मनि हतुंः अक ज तई करी तातजी अ, खिण खिण ते गुण समरतइ निसिदिनि, प्रांण न जाइ कांइ तन तिजी मे, टक ४ तन तिजी न जाइ प्रांण, तउ कठिन हुँ निरवांणि परिहरी केहइ दोसि, अति धयु कां त रोस ? मनि हती वात अनंत, कहां वसइ तात उदंत ? बइठी तिरथि पीऊपासि, उत्संगि सुत सुविलासि; सुविलास सुतस्य उं हरखि आवसि, तातजीनई पाय, ते रोर मनोरथ तणी रीतइं, सवि वात रही मनमांहिं. चालि मनमांहई इम दुख, पामती देखोनई, मधुर वचनि पीउ ठारवइ ओ, सुदरि! मत करि अवडउ सोक ए, सरजित अन्यथा नवि हवइ अ. वासुदेव चक्रवृत्ति, सुरपति जिनवर, बलवंतई मरणस्यउं न बिचलइ ए. कोइ नहीं जगमांहि, सोइ विनांणीहि. काल कुशल नई जे छलइ अ. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ त्रुटक जे छलइ कालपराण, ते नहीं कोइ विनांण, नवि गणइ जांण अजांण, अ दैव सरिस प्रमाण; जेहवउ संध्याराग, कुश अग्रे जलबिदु भाग, जेहवउ च चल सास, नहो निमिषनउ वीसास; नहीं निमिषनउ वीसास जीवित, अहवउं जांणी करी; वलंब म करु आत्मसाधनि, निपुण शोक ज परिहरी. ढाल ६ राग मल्हार ( मसवाडानी पहिली - ओ देशी) ऋषिदता इम कंति कि, बूझ वी गुणवती रे, आराधइ जिनधर्म, विवेकिणि सा सती रे; प्रेमइं पूरी पदमनि, पीऊ सासई ससइ रे, नयण वयण सुप्रसन्न कि, पीउ मनि अति वसइ रे प्रीयचरिता प्रियभाषिणि अकुटिल मन सदा रे अचपल अतिहिं उदार कि, विनयवती मुदा रे हित वाछल्य करइ अति, पति परिवार नई रे । कल्पवेलि जाणे जंगम, आवी धरि बारणइ रे गंभीरा गुण जाणि, सदा अविकत्थना रे, संतोषिणि सोभागि णि, धरमनी वासना रे, उदय तणी दिणि हारि कि, नही मनि आंतरं रे, कुमर लहइ पुण्य पूरव, प्रगट्यउं माहरूं. सती ससनेही ससिमुखी, सुभग सुलक्षणा रे, शांमा सर्वागसुंदरी पांमी, अंगना रें, हिवइ स्यउ माहरइ न्यून, मनीषित सवि फल्यउ रे, जें हवानी हुंती तरस कि, तेहवउं ए मिल्यउं रे. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ जांणता हुंता कंचण किमहइ करि चडइ रे, पांम्य उं रयण अमूल कि तु कुंण तडफडइ रे, खांड नई ठांमइं साकर पांमो पुण्यथी रे, कल्पवेलि लहो अलवितु, कारेलो खप नहीं रे. लीबूनीर तणी परि सहुँ स्यउं सारिखु रे, ते स्यउं मांणस जसु मनि नहीं गुणपारिखु रे, फटिक सरीसां माणस तेहस्यउं कुंण मिलइ रे, ते विरला जगमांहिं कि, प्रीतई जे पलइ रे. भुजबलि उदधि उलंध न नाग खेलावना रे, खरा दोहिला होइ कि, प्रीतिका पालना रे, अंबमंजरि विण कोइलि, अवरस्यु नवि रमइ रे, जलधर विण चातक मनि, सेसजल नवि गमइ रे. शसिस्यउं नहीं ससनेही, कमलनी रवि विना रे, माणस तेह प्रमाण जे, प्रीतई अकमना रे. बइ नारीनउं कंत मनि, साचइ कहु किम चलइ रे, तिहारइं तेहनउ होइ, जिहारई जेहस्यउं रमइ रे. बहु नारीनउ वल्लभ, उपम पुरुष नई रे, सुकि तणइ पणि सालकि, प्रजलइ स्त्री मनइं रे, सूलि रुडी सउकिथी, वनिता हम भणइ रे, तु प्रिय माणसनूं मन वल्लभ कहउ किम दहइ रे. .. अहवउ चित्तइं चिंति कि नरवर सुत गुणी रे. ऋषिदत्तानइ मोहि कि, ऋखि मिणि अवगुणी रे, वनथी वल्यउ निज मंदिर भणी रे, ऋषिदत्ता वनशाथि, करइ मोकला मणी रे. w Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० वनतरुनई कहइ सुंदरि, नीर भरि लोअणां रे, खमयो सवि अपराध कि, बांधव मुझतणा रे, लेती कुशम संमार कि. कोमल पल्लवा रे, फल अति मधुर सवादि कि दिनि दिनि नवनवां रे. सहीअ समांणी कोमल, फूल तबके भरी रे, . वेलिस्यउं देई आलिंगन, वली वली हित धरी रे, पुत्र समांणी रोप कि, सी चइ आंसू जलई रे, द्यइ आसीस उदार कि, फलयो बहु फलई रे. वनदेवतिनइं पगि पडी, सीख मागइ सती रे, मोकलावइ केली-शुक, के किस्यउं विलपती रे, इम मत जांणउ हंस ज़े, माया परिहरी रे, मिलवा आवयो वेगि कि, बहिनिनई मनि धरी रे, मृगलीनई कहइ प्रीय सखी, प्रांणथी तुम्हे प्रीया रे, हुं परदेसिणि पंखिणि, ऊतारू मत मया रे, ओ तातजीनउं थानक, तुम्ह सारू कर्यऊं रे, तुम्ह हुँ विचि तात चित्ति कि, न हतुं आंतरं रे. सुत सरिसां मृगबालक, ते सवि खलभल्या रे, चालती जाणी सुंदरी तव, टोलइ मिल्यां रे, जे पाल्यां उच्छंगिकि वाहाला प्रांणथी रे, पोस्यां निज कर प्रेमथी; परवर्या पाखथी रे, ऋषि दत्ता कहइ तेहनइं आंसू वरसती रे, मुझ सरिखी को नीठर, नारी जगि नथी रे; जेहवी आभां छांह कि पांणी लीहडी रे, झबक इ दाख वइ छेह, विदेशी प्रीतडी रे. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊचाऊस्यउं मोह विचक्षण कुंण करइ रे. नीठर मेहलीजति कि, परदुख नवि धरइ रे; टलवलतां मृगबालिक, मेहलती गहिबरी .रे, रडी रडी भर्या तलाव कि, ससनेही खरी रे. मोकलावी इम कानन, चाली कांमिनी रे, पीउस्यउं सोहइ जिम, ससि संगमि यामिनी रे; वन वियोगनउ दुख कि, पीऊ तसु छंडवइ रे, खिणि खिणि वारइ चित्ति विनोदई नवनवइं रे. मारगि तरुतणी श्रेणि, आरोपइ मुनिसुता रे, हरिवर्षकथी बीज जे, लाव्यउ तसु पिता रे; सदा फल सरस सवादि कि, वनराजी भजइ रे, जे जोतां मनमांहि कि, आनंद ऊपजइ रे. ढाल १० राग धन्यासी (विदेहीना देहइं रामइंया राम-देशी) दिन केते रथमर्दन नयरइं, सपरिवारि दोइ आव्यां जो, हेमरथराइं परमानंदई उच्छ व विविध कराव्या जी. तलीआ तोरण अतिहि मनोहर, मंडप मोटा सोहइ जी, मंचतणी तिहां रचना रूडी, जन बइठा मन मोहइ जी. विविध वर्ण लहलहइ पताका, मंडप ऊपरि सार जी, नव नव भातितणा चंद्रूआ, बांधी परीअचि फार जी. छडा छावडा कुंकमरोला, फूल फगर सुगंध जी, कृष्णागुरूना धूप मनोहर, गायन गाइ प्रबंध जी. नाचइ पात्र ते ठामोठांमइं, वाजित्र बाजइ कोडि जी, बिरूदावली बंदीजन बोलइ, गाइ सुहासणि कोडि जी ३ ५ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ गुखि चढीनई कोतुक जोइ, नारी केरा वृदाजी, कुमर सोहइ ऋषि दत्ता साथ इं, जिम रोहिणिस्यउं चंद जी. ६ मोती थाल भरी वधावइ, इहि वसू दीइ आसीस जी, माय ताय परिजन सहु हरिख्या, पुहती सयल जगीस जी. ७ सुत गुणवंत विशारद जांणी, जांणी समरथ धीर जी, युवराज पदवी प्रेमई आपई, हेमरथ नरवर वीर जी. ८ कनकरथ ऋषिदत्ता बेहु, विविध परई सुख विलसइ जी प्रेम अभंग बेहु परि सारिखु, दिन दिन उदय विकसइ जी. ६ ढाल ११ राग-पंचम हिवइ जे हुइ वात, सुणउ ते सहु विख्यात; अदेखी स्त्रीनी जाति, कूड करती नांणइ भांति. वेढाली होइ खोटी, यवरोटी कागई बोटी; जूठी रूढी धीठी, मायागारी मुहड इ मीठी. लोभिणी लंपटि लूंटी, निसने ही नीठ र कुटी; अवगुण केरी खांणि, नारी अहवी निरवांणि. काबेरीनयरीनाह, वात निसुणी पाम्यउ दाह; रूठी ऋखिमणि मनि चितइ, उपाय विविध ते चिंतइ. कांमणगारी हुइ बेटी, तापस केरी कोइ चेटी; तेणीइं मोरु नाह, भोलाव्य उ अति हि उमाह. पोष्यउ आपसवाद, ऊतारुं जउ तसु नाद; तउ हुँ साची नारी, चितइ ऋखि मणि मदि धारी. कांमणगारी रंडा, योगिणी कूडकरंडा; सीकोतरि नांमई, प्रसिघी ठामोठामइं. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ भगतइं तेहनइं आराधी, ऋखि मणिइं तिहां मति लाधी; सा जंपइ बेटी मागि, हुं तूठी ताहरइ भागई. वसि आंणउं हुं त्रैलोक, वइरीनइं पडावउं पोक; आकरसी आंणउं मेह, थंमउं चंद सूरिज बेह. सूकावउं नीला झाड, हुं पालवउं सूका वाड, गयणथी तारा पाडउं, दंडनी परि मेरू भमाडउं सातइ सागर सोधू, निकलंकीनई हु दोषउं; चिटी आंगुलीइं त्रिभुवन तोलउं, धरणीधर हाथ इं चोलउं. ११ माया भवानी देवी, ते सहूइ हुँ छ उ सेवी; नवि खंडइ को मुझ आंण, नवि चालइ कुंणई प्राण. १२ जे मागइ ते हैं आपु, लिख्यत्रं देव तणउ ऊथापउं; इम निसुणी चित्ति आनंदी, बोलइ रायसुता पय वंदी. देईनइ मोट उं आल, पाठउं रिषिदत्तानई झाल; पीऊ थाइ माहरइ वस्य इं, काम करूं ते अवश्य इं. तउ हुं वेचाथी लीधी, भवसूधी चेली कीधी; माहरइ अतली खप, सउकि संतापइ टप. अंगीकरी ओ वांणी, थइ सुलसा ते सपरांणी रथ मर्दन गांमई आवी, ऋषिदत्ता द्ये वरतावी. ढाल १२ राग केदार गुडी-देशी चंदायणनी (नमणी खमणी नई मनि गमणो-अ देशी) रथमर्दनपुरि सुलसा आई, पापिणी ऋखिमणीई पठाई; जूं हंसीकुं मीनी खावइ, त्यू छल करतो योगिणि आवइ. १ जू पारधीआं विरचइ पास, मृगके बंधनि धरइ उल्हास; मीनके तांइं धीवर ताकइ, त्यूं सा योगिनि कपटइं न थाकइ. २ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ रथ मर्दनपुरि कीआ रे दंदाला, सेर सेरी करंकका टोला; मंदिर मंदिर कींनी मारी, विलपति सबजन ठाहारो ठारी जन आंसूकी भई नीझरणी, शोकानलकी भई तन अरणी; हाहाःकार करति सब लोका, सत्रजन व्याकुल भओ सशोका. ४ दहनकुं पावति नहीं अवकाशा, कुणपकी गंधि पूरी सब आकाशा; बालक वृद्ध युवजन मार्या, हणतइ स्त्रीजन को न ऊगार्थं. ५ ६ योगिणि भोगनिकी परि हुइ आई, आपइ किंउं यमदूती; करवि न धापइ पापकी कोरी, ऋषिदत्तास्यउं मांडी जोरी. निशि निशि प्रति अवस्वापिनी, देवइ सा स्त्री पतिकुं तेणई लेवइ ; मानवकु निशि समइ मारी, कुमरके मंदिर नांखइ सा हारी. ऋषिदत्ता के अधर युं रंगइ, शोणित ले करि रोसि अभंगई; वस्त्र देवति शोणित छटकी, रंगति करइ युग योगिणि हटकी. ३ सती सिय्या पासइ पिसत करंडा, छोडइ सुलसायोगिणि रंडा; निद्रा लेकरि निकसी यावइ, मारि मारि जन सार ऊठावइ. ह ८ ऊठतउ नींद कुमर तव भुरइ; भृतजनके परिदेवन सोरइ; करुणा पायउ जनके दुखइ, सोणित देखइ सती के मुखई. १० लाल भये कर सोणित भासइ, पिशत करंडा सिज्याके पासइ; कुमर आसंका चितस्युँ पायु, विधिना अनरथ कहा रे उठाउ मारि विधुर प्रजा हइ बहु दुस्था, वनिताकी दुरिया ही व्यवस्था; युं विष वरषइ ससिकी कंतई, भोर अंधीआस रविथी हुंतई. १२ ११ शसिथी निरमल चरिता कंता, कदही न देख्या दोष वृतंता ; परतखि वात देखइ उर इसी परिणित उसकी हावइगी कइसी. १३ ईउं मनि चिती कुमर जगावइ, वनिता ऊठी आपसुभावई; जभा पावति सग बग अलकां, मुकलित नयनां यु चंपक कुलिकां १४ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सु० सू० ढाल १३ राग रामगिरी (ब्राह्मण आव्यउ याचवा सुणि सुंदरी-अ देशी) कनकरथ पूछ इ तदा, सुणउ सुंदरी, सुकुलीणी गुण जांणि, वात कहउ खरी. समुद्र मर्यादा किम तिजइ ? सुणउ; छंड इ गिरि किम ठाइ ? वात० जिणि जनमहि हासु हुवइ, किम करइ उ तम तेह ? वात. रेखमात्र मई ताहरु, कहीइं न दीठ उ वांक, वात. एक अचंभउ माहरइ, हैडइ खट कइ साल, वात. कहितां लाज मुझ ऊपजइ, कह्या विण पिण न सरंति; वात० मरकी सुणीइ धर पुरइं, लोक करइ पोकार, वात. अधर लोहीआला ताहरा, सु० पासइ पिशत करंड; वात. कहितां लाज मुझ ऊपजइ, तुं आपणपत्रं संभालि, वात० कांई कपट न राखीइ, सू० आपणा वाहालेसर पासि; वात० कुंण कुल कुण रूप ताहरु, सु० ओ तऊ तुझ कुंण काम, वात० सु० सू० सु० Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इम सुणी ऋषिदत्ता भणइ सुण उ स्वामीजी, अह असंभम वात, दुख पांमीजी; इंद्रजाल कोइ मे खरं, सुणउ ; कइ ओ सुपन विलास दुख ० hur दख० थाग भाग नहीं वातनउं, जिम सायर कांतार, धर्मवंत हुँ धुर लगई, जनम लगई दयाल, स० दुख० दुख ० लोहीथी ऊकांटा चडई, नासु मांसनी गंधि; पाली दोठ इ दूरथी डरूं, वननी मृगली जेम, सु० दुख ० सु० दुख० त्रणामात्र दूहव्यउं नथी, मई तु आंणइं भवि कोइ; हु कुहनई नहीं पाडूई, मनि वचनि अनइं तनि, सु० दुख० सू० दुख० विलसित को अरितणउं, पूरव करम विपाक, जउ प्रतीति तुम्हनई नही, तउ कहउ ते करुं दिव्य, सू० दुख० दुख ० अथवा अपराध णि तणउ , मस्तक छेदउ हाथि; तुम्हनइं मुखि स्यउं दाख वउं, जउ चडघउं करमि कलंक, सु० दुख ० Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ दूहा ६ कोमल कंता वचन इम, करूणा पायउ कंत; कहइ सुंदरि निर्दोष तुं, मुझ मनि कोइ न भंति. पणि अहवउं देखी करी, मुझ मनि अचरिज होइ, इम कही सइ हथि राय सुत, वनितानुं मुख धोइ. उत्तरीअ आगलि करी, मुख लू ही सप्रेमि, टाढे मीठे बोलडे, मन ठारइ वली तेम. जांणइ अवटाइ रखे, ओ मुगधा निज त्रित्ति; माया लुबध उ कंत ते, अहवउं करइ नित नित. अवगुण सघला छावरइ, जे जसु वल्लभ हुंति; सरसव जेता दोष नइं, दोषी मेरु करंति. दिन केता इणि परि गया, रथ मर्दनपुरमांहि, व्यापी मरकी अति धणी; जनमन ऊठइ दाह. ढाल १४ राग वइराडी (त्रणतिणां तिहां पूला धरीआ-ओ देशी) जनतणां तिहां सोर ऊछ लीआ, सोक संतापइं ग्रहीआ; हेमरथ राजा वात सुणी ते, क्रोधारुण थई रहीया जी. राइं तलार वेगई बोलाव्यउ, धूजतउ कांपतु आव्यउ जी; रे रे तुं सुख-लुबधु पापी, राजा रोसई वाह्य, जी, राजलोकनी चिंता न करइ; मई तां बहु दिन सांस्युं जो; हिवइ तुं मनि अहवउं जाणे, खंडोखंड करि नांख उ जी. ३ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ प्रगट करी ते उपद्रव कारण, कुंण करइ जन मारी जी; कइ तुझ जीवितनइं हु कोप्य उ, ओ जांणे निरधारी जो. वलतउ तहलार बोल्यउ भय चंचल, थ रहर थरहर धूजइ तन्न जी; जांणे अकालइ आव्य उ सीयालउ, गद गद कंठ वचन्न जी. ५ दीन वदन अति चंचल लोचन, तनि वरसइ परसेव जी; गलइ शोष पडतउ ते बोलइ, सुणि करुणाकर देख जी. ६ परि परि सोधि करी मई निरती, माहरी सकतई स्वामी जी; पणि तां प्रगट न थाइ कोई, जोयु ठांमोठांमइ जी. पाखंडी बहुला इणि नयरइं, नरति न लाभइ तेणई जी; कांमण ढूंमण कूड कावडीया, अ जग धूत्यउ जेणइं जो. वजडावी राई ढं ढेरू, ठामी ठामिथी तेह जी; काढवा मांड्या सर्व पाखंडी, जांणा जोसी जेह जी. समरपंथी जोगी जे पडीआ, गणीआ नई दरवेश जी; यती सती मठवासी काढ्या, दर्शनी मात्र ऊसेस जी. सूकुं बलतां नीलू लागइ, अन्याईनइं दोषी जी; साधुजन पणि पीडा पांमइ , न गणाई कांई रोष इं जी. ११ इणि अवसरि ते सुलसा योगिणि, आवी राजदूआरइं जी; प्रतिहारी नई कहइ रायनई वीनवउ, वीनती अक मुझ सार जी. १२ एक कोईनई अपराध ई सहुनई, कोप न कीजिइ चित्तइं जी; भइंसु मांदउ तडिंग डांभीइ, जे नहीं रुडी रीति जी. दोषीनइं हुं प्रगट करूं इम, रायनई जणावी वात जी; राय कहइ जे गाय बालइ, अर्जन तेह विख्यात जी. जे कहइ ते कीजइ दीजइ, नउ आपइ नीभेडी जी; अहवं कहावी वेगई राइ, सुलसायोगिणि तेडी जी. www.j Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ढाल १५ राग सांभरी (नेमनाथना मसवाडानी त्रीजी - ओ देशी ) आवी सभाई योगिनो पापिणी अद्भुत वेस; ताड त्रीजउ भाग उंची सिरि जटा जूटा केश. आंखि राती चिपुट नाश, ललाट अंगुल च्यार; काश्मीरमुद्रा श्रवणि लहकइ खलकंति मेखल भार कंठि माला शंख केरी, भस्म धुसर वांन; ललाट चंदन आडि, नखे ते आंगुल मांन. मृगचर्म केरी करीय कंथा, उढणइ चित्रित चर्म, मोरपिच्छनु ग्रहयुं आतप, हथईं दंड सुधर्म. बाणही चिमि चिमि करती चरणे, शिष्यणी परिवार; ध्याननइ वसई घूमती, कर्यउ भंगिनउ आहार. उच्चरती आसीस उच्च शब्दई, आवी रही नृप तीरि; सभाजननई शांति करती, मंत्र पावनई नीर. बडबडती वदनई लोक जांणइ, जयई मंत्र वशिष्ट; सीकोत्तरी सवि जास्यइ, नासी, देखतां अहनी दृष्टि. तव दृष्टि संज्ञा भूपई दीधी, बइठी ति अलख कहेवि; राय कहइ तव भगवति, अम्ह विघ्न टालउ हेव. तव वदइ सुलसायोगिनी, मतिमता सुणि नरनाह, उपगार कारणि विश्वनई, अवतर्यां अम्ह प्रवाह. उपगार कीजइ शक्तिसारु, अतलुं सार संसारि; उपगार कारणि सूर शसिहर, सुजन जन जलधार. आज रातई इष्ट देवइ, मुझ कहयुं सुपन मझारि, दर्शनी सहुनई राय कोपइ. जनमहइ जांणी मारी. ४ ५ ८ ह १० ११ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० भूपनइं तुं जई कहिये, स्यउ दर्शनीनउ दोस, संभालि मंदिर ताहरु, तुं म करिसि अवरस्यउं रोस. १२ जे वहु आंणी वन थकी, ते मारिरूप विकराल, अवतरी नगरनु नाश करवा, दीसती अति सुकमाल. अदृष्ट थई अहवउं कही, मुझ सुपनमांहि देवि; दर्शनी सहु नई फोक कांई, दमइ नृप तुं हेवि. प्रतीति जउ नहीं स्वामिनइं, तउ जोईइ स्वयमेव; आदर्शस्यउं कर कंकणई, ओ वात कही संखेवि. नरनाथ विस्मय चितइ पाय उ, इम सुणी सुलसावांणि; कांई विमासी मोकली, योगिनी देई मांन. ढाल १६ राग केदारु (सरस्वति गुणपति प्रणमउं-अ देशी) राइं योगिणि बउ लावी, मनमांहइं संका आवी; ओ कस्युं खंपण मुझ कुलि निरमलइ अ. सुत राखउ तिणि निशि राजइं, वहुनूं चरित्र जोवा काजइं; अक जन छांनउ तसु धरि मोकल्यउ अ. ओक जन छांनउ तसु धरि मोकल्य उ, राई जोवा चरित, ओ योगिणि साची कइ जूठी, अहवी करवा निरति. तिणि निसि कुमरनई निद्रा नावी, चितइ विसवा वीसइ; प्रांण प्रीआनइ दोहिली वेला, अतां आवी दीसइ. दिहाडी दिहाडी हुं छावरतु, दीठ इ परतीख वांक इं; हा हा मुगधानई स्यु थास्य इ, लोक गूझ नहीं ढांकइं, जउ अदृष्टीकरणनी विद्या, मुझ हुइ पंख समेत; तु हिवडां जई ते सशिमुखि नइं, जणावउं संकेत Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माहरी वाट जोई जोईनइ, सूती हास्य इ बाल, आज्ञा ताततणी अंक पासा, अंक तां प्रेम रसाल. कनकरथ मननु मनमांहइं, इम रहयउ अवटाई; जिम पंखी पांजरडइ धाल्यउ; पणि नवि चालइ कांई. इणि अवसरि ते सुलसायोििण, छांनी रही करइ धात; रायना चर तेहनइं नवि देख इ, देखइ पिशत संधात. चर लहइ ओ सह वहुनां करणी रायनई जणावइ वात, स्वामी अ सवि साचउं दोसइ, ऋषि दत्ता अवदात. चालि तव ते राजा कोपीय, त्रिवली ललाटि आरोपीय.... लोपीय लज्जा सुतनइं, इम भणइ जे. रे रे पापी नंदन , तुं तां वंशनिकंदन... चंदन निरमल कुल तई दूख व्य उं अ. टक दुख व्यउं कुल तइं विमल पापी, किहां राक्षसी आंणो; माहरी प्रजा ते जीवित सरिखी, तेहनी अतां धांणी. बालक वृद्ध युवाजन हणीयां, प्रजानउं आण्यउ अंत, सिद्ध सीकोत्तरि ताहरी धरणी, ओ मई लह्यउ व्रतंत. दीन वचन बिलख उ थई, बलतु बोलइ कुमर दयाल; स्वामी तेहथी अहवउं नुहइ , ते छ इ अति सुकमाल. तइं सांख्यउं पणि हुं नही सांखु, अवगुण सगा न होई ; माहरइ कहणइं वीसास नहीं जउ, तउ तुं जइनइं जोइ. वचन सुणी अहवां राजानां, मनि धरतउ विष वाद; राजकुम र नीचउं जोईनइं, आव्यउ निज प्रासादई. www.jaineli Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ . प्रांणप्रीया दीठी तव झांखी, जिम वाद लमांहि चंद; कुमार कहइ सुंणि सुंदरि, साचउ तुझ आव्यऊ दंद. पूरव भवनी वइरणि कोई, योगिणि मतिनी ऊंधी; राय नई कहइ वहु जे छ इ ताहरी, ते तउ राक्षसी सूधी. चर मूंकी राजांई जोवराव्यउं, ते तां जाण्य उं साचउं; हिवइ तूं प्रगट थयउ जनमाहि, मई तु बहु दिन सांख्य उ. हुं तां तुझ दुख देखी न सकुं; वरि मे छंडउ प्रांण; सुंदरि कहइ स्वामी धीर थायउ, मुझ नई करम प्रमाण. ढाल-१७ राग सबाब जूउ० जूउ०. २ बोलीउ ते प्रहलाद वांणी- ढ़ाल हिवइ ते रुठ उ नरेंस, सेवकनई दीइ आदेश; आंणीनई षेस जूउ करमनउ महिमाय, जेणई रोल्या राय रंक. अ भुंडीनइं केसई धरी, बंधनि बांधी खरी; काढउ नई पहरी. भमाडीनइं ठांमोठांमई, देईनइं अति अपमानि; हणउ समशांनि. इम सुणी कनकरथ, मरवा थ य उ समरथ ; ग्रही राख्य उ हत्थि. हवई तेह सती धरी, पाटा पाडया सात सिरी; दुःख विधूरी. चुनउ ते चोपडयउ सीसई, बीलीफल झूबख दोसई; विकृत वेसई जूउ० ३ जूउ० ४ जूउ० ५ जूउ० ६ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ सूपडानउं छत्र धरइं, लहिकति चूंथा चामरइं; आरोहो खरइं. लींबपांन तणी माला, ठवी ते कंठई विशाला; दोसइ कराला. जूउ. ८ हींगई ते विलेप्यउं तन्न, मषीइं खरड्यउं वदन्न; दीसइ विषन्न. जूउ. ६ ठांमोठामि पौरलोक, गालि दीइ थोकि थोकि; पीड्या ते शोकि, जूउ. १० कोइ करइ मारि मारि, सतीनई ठाहारि ठाहारि; करम संभारि. जूउ. ११ आगलि काहालि वागइ, लोक तसु केडई लागइ ; दुखडु जागइ. जूउ. १२ सतीनई संतापी गाढी, सेरी सेरी अति ताडी; बाहिरि काढी. जूउ. १३ तव ते आथम्य उ सूर, प्रसर्यउ तिमिर पूर; थयउं असूर. जूउ. १४ अहवइ ते आव्या समसानि, बोल्यउ अंक नीठर वांणि ; काढी कृपाणइं. __ जूउ. १५ समरि रे इष्ट देव, तुंहनइं हणस्य इ हेव; न करुं खेव. जूउ. १६ सती सुणी इम वांणी, आकुल व्याकुल प्रांणी; पडी पडी मूर्छाणी. जूउ. १७ तव सविजन जांण इ, राक्षसी तिजी प्रांणि ; गया निज ठांणइं. जूउ. १८ जन निज ठाणइ गया, नारीतणी तिजी दया; नीठर थया. जूउ. १६ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ केती वेला थई जेतई, मीठउ वाय वायउ तेतइ ; सा पाई चेत. जूउ. २० अरहुं परहुँ जोयउं जांम, निरव्यंजन दीठ उं तांम; नाठी आवी साम. जूउ. २१ बंधनथी छूटी मृगी, नाठी जाइ तिम ऊभगी; तिम सा अथगी. जूउ. २२ नाठी गई अति दूरइं, पूरव करम झूरइ ; रडइ दुख पूरइं. ___जूउ. २३ ढाल १८ राग सोरठी (वर वरयो रे वंछित देई दाम-ए देशी.) मत करयो रे, मत करयो रे, कोई गरव लिगार; ऋषिदत्ता जे सती सिरोमणि, करमई नडी रे अपार रे. १ द्रूपद सूंनई रानई मोकलुं मेहली, रोवत सरलइ सादि रे; अंसुधार आषाढी घनस्युं, जाणे लायउ वाद रे. २ मत. तिण वेलाई पासु ताहरु, जउ हुँ मूंकी नावती तात रे; तउ नवि पडती अनरथ सागरि, दुख हईयडइ न समात रे. ३ मत. जनमथकी कुणइं नवि दूहवी, वचन मात्र लिगार रे; । ते ऋषिदत्तान इं दोहिली वेला, आवी अकइ वार रे. ४ मत. प्रांणथकी हु वल्लभ हुंती, तुजनई सुणि प्राणनाथ रे; आ दुख तरल तरंगि तणातां, कनकरथ द्यु हाथ रे. ५ मतः घणा दिवस लगई तई स्वामी, ढांक्य उ माहरु दोस रे; आश्रित-वच्छ ल ! तइं गंभीरिम, जीतउ जलधि असेस रे. ६ मत. मई मुंडीइं तुहनई लाज अणावी, ते किहां छुटिसि पाप रे; ताहरा गुण नी हुँ दांणी घणि, तुं छाया हुं ताप रे. ७ मत. . Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ जनमल गई मई कोइ न दूहव्यउं, कांइ न कर्या कुकर्म रे; तु दैवई दोहिली वेला, दोधी केहइ मर्मइं रे. ८ मत. नीसासइं सोषी वनराजी, रडि रडि भयाँ तलाव रे; खग मृग नाग तसु करुण विलापई, पांम्या दुख संताव रे. ६ मत. हैअडुं दुख भराई आव्यउं, आंसू अंखडी धार रे; कोइ न रडतां वारइ वनमां, कोइ न ठारणहार रे. १० मत. विलपि विलपि आपई रही सुंदरि, देती करमनइं दोस रे. पूरव करम शुभासुभ दाता, अवरस्य उं केहउ दोस रे; ११ मत. ढाल १६ राग : वइ राडी (पांडव पंच प्रगट हवा-अथवा मन मधुकर मोहो रह्य उं- देशो.) सती सिरोमणि संचरइ, ऋषि दत्ता सुविचारजी; तुं धीर था रे प्राणीया, म धरीसि दुख लिगार जी, करम साथ इं रे कुंणइं नवि चलइ, करमइं नड्या रे अनेक जी; पंडित अम विचारतां, आंणइ हैअडइं विवेक जी. १ सती. श्री रसहेसर वरसतई, पांम्या नहीं रे आहार जी; पूरव करम उदय थकी, परीसह सह्या रे अपार जी. २ सती. घोरोपसर्ग सह्या घणा, चरणि रंधाई खीर जी; श्रवणि बि शिलाका करमथी, कालचक्र सहइ वीरजी. ३ सती. रांमई स्यां स्यां दुख सह्या, पूरव करम प्रसादई जी; है कांपइ अवरनां, सुणतां तेहनी वात जी. ४ सती. वासुदेव छूटा नहीं, करमई जउ बलवंत जी; स्वजन विछोह तेणइं लह्या, जराकुमार सिरि अंत जी. ५ सती. Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्यूतइं हारी कांमिनी , वनि रल्या पांडव पंच जी; मच्छंद्र राय सेवा करी, मोट उ करम प्रपंच जी. ६ सतो. नल नरपति अति दुखीउ, वनमांहि छंडी नारि जी; अन्नपाक परमंदिरइ, करइ ते करम प्रचार जी. ७ सती. हरिचंद सत्यवादी सदा, डुबघरि आणइ नीर जी; सुत तनु वनिता वेचीयां, करमई इम रुल्या धीर जी. ८ सती ब्रह्म सिर करमि छेदावीउं, कीध कपाली ईश जी; ग्रह भमवओ सशि सूरनइं, रावण गमीआं सीस जी. ६ सती. इंद नरिंद न मेहलीया, करमई जेह महंत जी; निज मन वालइ इम कही, ऋषिदत्ता गुणवंत जी. १० सती. ढाल २० राग : रामगिरी (सूरिज तउ सबलउ तपइ-ओ देशी.) १ ऋषि. द्रुपद. २. ऋषि. चित वालइ इम आपण उं, पणि वाल्य उं न जाइ; परवत फाट इ इणइं दुख इं, नीला झाड सूकाइ. ऋषि दत्ता पंथि सांचरइ, अति आकुल थाइ. धीकइ अगनि अंगीठडी, वेलू जंघसमांणी; परसेवउ खलहल वहइ, जांणे नीझर वाणी. रुधिरधार चरणे वहइ, खूचइ गोखरू कांटा; कांकरा पीडइ आकरा, भाग इ डाभनां झांटा. अधर फाटइ सूकइ गल उं, जाइ सासि भरांणी; छांह मात्र पांमइ नही, किहांइ नवि लहइ पांणी. रडइ पडइ पंथि आखडइ, आंखइ अंधारां आवइ; डुंगरि दव जलइ दूरिथी, तेहनी झाल संतावइ. ३. ऋषि. ४. ऋषि. ५. ऋषि. Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. ऋषि, ८. ऋषि. है. ऋषि किहांइक फणिगर फूफूड, किहांई फ्याऊ फ़ेकारइ; घोर घूक किहांइ घूघूइ, किहांइं, वाघ हुंकारइ. किहांकिणी खोह बीहांमणी, किहांइं डूंगर मोटा; देखतां होअडूं हडबडइ, किहांइ मारगि कुंटा. कुशमसेजि बीट खूचतइ, नींद नावती जास; अहवी वेला तेहनइं पडइ, हा हा दैव विलास. सूरिज किरण तनि जेहनइं, नवि लागइ कहीइं; रांनमांहि ते रडबड इ, पडइ पाथरि महीइं. नवनीत पांहिं कुंअली, हुंती जस तन वाडी; ते ऋषिदत्ता तिणि समइ, थइ वज्रथी गाढी. अनुमांनइं सा अणुसरइ, दिसि दक्षणि डाही; पूरव पुन्य तणइ वसई, मति हुइ सहाई. निज करइं जे तरू रोपीया, पीऊ साथि आवंतां; ते तरू दीठा नयणले, तव सा थई अतिसंता. अहिनांणी ते तरुतणइ, आवी तात आरामइं; ते देखी हीउ गहिंबर्यउं, राख्यं न रहइ ठांमि. पांहण पावक परजलइ, फाटइ पिण मिलइ वारइ ; सज्जन दीठ इ दुख संभ रइ, आवइ हईडला बारइं. १०. ऋषि. ११. ऋषि. १२. ऋषि. १३. ऋषि. १४. ऋषि. ढाल २१ राग : मारुणी (कासोमां आव्यउ राय रे- देशो.) ऋषिदत्ता आवी जिम रे, दोठ उ तात तणउ आश्रम्म रे; रोवा लागी सरलइं सादई रे, आंसु वरस इ मेह संवादई रे. तात दर्शन द्यु ओक वार रे, हुं अभागिणिनी करु सार रे; निरधारीनइं द्यु आधार रे, तुझ पाख इ सूंनउ संसार रे.. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ऋषिदत्ता कारूण्ण विलापइं रे, गिरि रोयां नीझरणां व्यापई रे; तरू रोया खग मृग मृगी जीव रे, देखी सतीनई दुख अतीव रे. ३ सा रोई रही आपोआपइं रे, जिम सायरइं लहिरी व्यापइं रे; करइ वनफलनु तिहां आहार रे, पालइ तापसनु आचार रे. ४ इम करतां गया केता दिन्न रे, ऋषिदत्ता इम चिंतइ मन्न रे; पाकी बोरि अनई स्त्री जाति रे, देखी तूंना वाहइ सहू हाथ रे. ५ वनिता अनइं सेलडी वाड रे, देखी पुरुषां तणी गलइ डाढ रे; जगमोहन वनिता मूली रे, फूली विशेषई यौवन फूलई रे. ६ शील ते स्त्रीनइं परम निधान रे, ते जालवउं थइ सावधान रे वली विमासी अहवउं चित्तइं रे, ऋषिदत्ता सती गुणवंतई रे. ७ आ औषधी देखाडी तातई रे, स्त्री फीटी हुइ नररूप जातइं रे; ते औषधी योगि सरूप रे, ऋषिदत्ता हुइ नररूप रे. पवित्रि घाती घाली कांनइं रे, मुनिवेष धरी सुज्ञानई रे; तिणि आश्रमइं कीधउ वास रे, जिन पूजा करइ उहूलासि रे. . धरइ धरमध्यांन नित नित रे, संभारी प्रीऊ गुण चित्तइं रे; सुणी ऋषिदत्ता संतापई रे, करइ कनकरथ विलाप रे. ढाल २२ राग : मारुंणी (प्रोयु राखु रे प्रांण आधार-देशी.) प्रिय बोलिन रे ! तुं प्राणाधार ससिमुखी बोलिन रे! गोरी रे गुणभंडार, गजगति बोलिन रे! तई ताहरइ गणइं करी, हं लीध उ वेचातउ दाई रे; रणीउ हं तुझ नेहनउ, ऊवेखी हिवइ कां जाई रे. फूलई भरी सेजडी, तुझ पाख इ शूली संचार रे । जिहां जोउं तिहां तुझ विना, मुझ सूंन उ सयल संसार रे. २ प्रिय. ३ प्रिय . Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ चंदन कौअचि जिम दहइ, ससिहर अगनि ऊठाइ रे; भोग संयोग श्रृंगार विनोदा, तुझ पाखइ न सुहाइ रे, ४ प्रिय. रयणी रोतां नींगम , टलवलतां दिहाडउ जाइ रे; अक खिण विरह ताहरइ , मुझ वरस समांणउ थाइ रे. ५ प्रिय. पहिली माया दाखवी, हिवइ कां नीठ र थाइ रे. क्षामोद रि माहरु दुख देखी, तुझ कां करुणा न धाइ रे. ६ प्रिय, स्नेह रोसई तुं लेती अबोला, तव हुं व्याकुल थातउ रे; वार वार तुझ चरणे लागी, मीहनति करी मनावतउ रे. ७ प्रिय. हसतां हणती चरण प्रहारइं, तव हुँ लहइतु प्रसाद रे; मानिनी ताहरा कोप ओलंभा, थाता सुधा-सवाद रे. ८ प्रिय. सखीइं पणि तुझस्य उ नवि चालइ, मांन तणी तुझ टेव रे; विण अपराधी सेवक सांहमुं, नेह नयणे जूउ हेव रे. प्रिय. तुझ विण वाट जोस्यइ कुंण माहरी, तृषित नयने अति हेजइं रे; त्रिभुवनि सार लही न तुहारी, तुझ विण सूनइ राजइ रे. १० प्रिय, सूडा सालही मोर क्रीड़ाना, ते रड इ ताहरइ वियोगई रे; सूकां सरोवर आंसू नीरइं, पूरइ सखीजन शोकइं रे. ११ प्रिय, जन नयने वसीउ वरसालऊ, उन्हालउ नीसासई रे; आकंपइं अंगई सीआलऊ , सुंदरि ताहरइ विणासइं रे. १२ प्रिय. अनोपम ताहरु रूप नीपाई, त्रिभुवनि वाली रेहा रे; अक जीभई करी हुँ गुण ताहरा, बोलऊ केहा केहा रे, १३ प्रिय, शसिमृग अंबुज करि हरि हंसा, सीस कर्या सुविनांणी रे; तेहनी लाज मेलेवा कारणि, जांणउं तुं रही छांनी रे. १४ प्रिय. नागलोक कइ गमन कर्यु तइं, जीपि वा नागकुमारी रे, कइ रंभानु गर्व हणेवा, अमरपुरी संभाली रे. १५ प्रिय. वनि ताहरइ तुं रमती हुंती, मइं दुख देवा आंणी रे, तु पुरुषारथ जगि स्यउं माहरु, जउ मई तुं न रखांणी रे. १६ प्रिय, www.jainelib Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ताततणइ घरि लाडकवाही, मइ पणि आंण न खंडो रे; . लोकतणी ते नीठर वाणी, किम सहीस्य इ प्रचंडी रे. १७ प्रिय. जातीकुशम तणी परि स्वामिनि, तुं सुकुमाल सरोरा रे; सह्या हुस्यइ किम कठिन प्रहारा, मुझ मनि वहइ दुख सारा रे. १८ प्रिय. फिटी रे दैव अहवी स्त्री हरतां, तुझ मनि दया न धाई रे; ते कुण पापी जिणि तुं मारी, तेहनउ टालउ ठाई रे. १६ प्रिय. ताहरी क्रीडा-थांनक देखी, मुझ मनि सालइ साल रे; तुझ पाख इ स्यउं जीव्यउं सुंदरि, पीडइ विरहनी झाल रे. २० प्रिय. इम अतिविलवी मोहइं घार्यउ, कुमर ते मरवा धायउ रे, . तात कुटंब मिली वारी राख्यऊ , तिणि तसु गुणे जीव लायउ रे. २१ प्रिय, ढाल २३ राग : केदारु. हिव कनकरथ कामिनी गुण, समरि समरि दिन राति ; टल वलइ झूरइ दुख भरिइं, नवि गमइ केहनी वात. नवि गमइ वीणा गांन मनहर, नवि करइ तन संभाल ; योगी तणी परि थई रहयउ, मेहली नीसासा झाल. भोग भूषण सवि तिज्या, परिहर्या स्वाद उदार; चंद चंदन तनु दहइ, रति लहइ नहीं लिगार. अधघडी निशि निद्रा नहीं, वहइ आंसूधार अखंड ; कामिनी गुण खिण खिणि जपइ, लहइ अवर पाखंड . प्रीय प्रीय करतां जीभ सूकइ, थयउ विकल राजकुंअर ; ते न रहइ वार्यउ कहितणउ, नवि गमइ सखी परिवार. रे भूमि तुं अवकाश द्यइ, पाताल पइसउ जेम ; गुणवंत गोरी तणइ विरहई, हुं धरुं जीवित केम ? हईडउं न फाट इ विरहइं जउ, तउ विलवतां खरी लाज ; माणस पांहिं पंखी तणा, नेह खरा दीसइ आज. Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जउ विरह ताहरइ प्राण न गया, तउ खरु कठिन सुभाव; अथ देव मुझ जीवत दोय उ, सहिवा रे विरह-संताव. कनकरथि विलापि परबत, खंडइ खंड ते थाइ; नींझरण जिम नयनां वहइ, ते केलव्यां न जाइ.. परवार सवि माता पिता, प्रीछ वइ परि परि जांणि ; नवि चित्त दाझ इ शोकनइं, चतुरिमा अह प्रमाण. कल्याण कोडि लहइ सही, नर जीवता सुणि स्वामि ; इम धीर नर द्यइ धीरणा, करइ दुखनउ विश्रांम. ढाल २४ राग : आसाउरो. (शिवना मंगल वरती-ओ देशी.) हवइ कपटपेटो योगिनी, करी दुष्ट अहवउं काज ; जई सुणावइ रुकमणी, जाणइ दीउ मइं राज. पापिणी रुखि मिणी ते सुणी, उनमत नाचइ भूरि; जिम दाय जीतउ दूतकारइं, विजय पांम्यउ सूर., रुखिमणी तात जे वात जांणी, हेमरथ नर नृप पासइं; अक दूत अवसर जाण समरथ, मोकलउं उहलासि.. ते दूत कर जोडी कहइ, सुणउ वीनती माहाराज ; परणवा तुम्ह सुत आवतउ, पाछ उ वल्यउ कुंण काज? अम्ह स्वामि जोई वाट डी, मया करु मनि देव ; श्री कनकरथ मोकलउ, वीवाह कारणि हेव. . ते वात हेमरथराइं जि सुणी, संबंध जांणी सार; पुत्रनइं परिवार मेली, वीनवइ वारोवारि. Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुणि वंशदीपक सुगुण नंदन, कुल तिलक कुल आधार; . अक बोल मांनी माहरु, ऊरण थांउ सुविचार. आस्या विलधी रुखि मिणी, ऊखतां नहीं धरम ; अबला तणइं नींसासडइ, पुरुषनई पाडइ शर्म. नर अवर जउ को तसु वरइ, तउ आपणी नहीं मांम; जउ मांम गई मान्यातणी, तउ जीवतई स्यउं काम. अकवार परिणी तेहनइं, आपणउ महिमा राखि ; वार वार तुझनई वीनवउं, पाछउ ते बोल न नांखि. इम कही अणमनमानतइ, पणि कुमर पांम्यउ लाज; छछ उंदिरी जिम सापि साही, जिम नई वाघ समाजि, ढाल २५ राग : मल्हार. २ धिग (गिरजादेवीनइ वोनवउं-ओ देशी अथवा वीरजिणेसर वांदउं विगतिस्यु रे.) ऋषिदत्ता गुण इं मोहीउ रे, चितइ राजकुमार; कुंण नर कांजी वावरइ रे, पी अमृत उदार. धिग धिग नरना हैडला रे, नीसत नीठर अपार; अक गई बीजी आदरइ रे, नांणइ प्रेम लिगार. नेह खरु नारीतणउ रे, नर पूठइं अवटाइ ; नर निसनेही निरगुणी रे, बीजी केडइं थाइ. ___३ धिग् धिग् प्रांण न दोधी तेहनई रे, तउ लजाव्यउ प्रेम ; हवइ ते परणेवा जायतां रे, निरगुणमांहि सीम. ४ धिग् धिग् कनकरथ इम विलपतउ रे, तात तणइ आदेस; काबेरीभणी सांचर्यउ रे, लेई कटक असेस. ५ धिग् धिग् . Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ वाटइं शकुन भला हवां रे, चिंतइ कुमर सुजाण; जउ ते गोरी नवि मिलइ रे, तउ स्युं सुकन प्रमाण. ६ धिग् धिग् जांणोस्य इ सवि छेहडइ रे, इम आणइ मनि धीर ; अनुक्रमि ते वनि आवीउ रे, जिहां परणी स्त्रीहीर. ७ धिग् धिग् ढाल २६ राग : देशाख. (रोतां रे रोतां रे राई-देशो अथवा सारद सार दया करि-ओ देशी) जोतां जोतां ते काननमां, कुमरनइं जाग्यउ नेह रे, हीउं भराई आव्यउं दुख इं, नयणे वरसइ मेह रे.. आ वन ते जिहां मृगनयणी, मइं मनमोहनी दीठ रे; तीने नयने नेह लगाइ, मुझ मनि मध्य पईठ रे. छटी वेणी जिहां हींचंती, आ ते अंबाडालि रे; आ ते सरोवर जिहां हंसगांमिनी, झीलंती रंगि रसालई रे. ३ आ ते नागरवेली मंडप, जिहां मइं पालवि साही रे; लाजती नवतन नेह समागम, जाती मुहनइं वाही रे. ४ कुमरी कुंदके जिहां मुझ हणती, आ ते कुशम सोहइ रे; आ ते अशोक जिहां हुं तेहनइं, मनावतउ ससनेह रे. ते क्रीडानां थांनक देखी, हीउ न फाटइ कांइ रे; गोरी सुंदरि ताहरइ विरहइं, ते वन खावा धाइ रे. इम विलवंतउ कुंअर पगि पगि, आव्यउ निज प्रासाद रे; जिमणउं अंग फरूकइ ते खिणि, छंडइ कुंअर विषाद रे. ७ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल २७ राग : परजीउ. (मृगावतो राजा मनि मांनो-देशी तथा छत्रोसोनो.) कनकरथ कुंअर चिति चिंतइ, उत्तम अंगित अह जी; प्रीयसंगम सूचक सुखकारी, आभा विण स्यउ मेह जी. १ कन. ते कि हां मुझ घरणी मनहरणी, वंछ इ संगति जास जी; तउ अ अंगित किस्यउं करस्यइ, जे मुझ करइ सरास जी. २ कन. अथवा अ प्रीय मेल क तीरथ, मनि वीसामा ठाम जी; प्रीय जन संबंधी जे कोई, ते दुख नूं विश्रांम जी. ३ कन. इम चीतवतउ निज प्रासादई, कनकरथ ते आवि जी; रिषि दत्ता मुनिवेष विराजी, ते पुष्पादिक लावि जी. ४ कन. कनक रथ स्वय हत्थई लेवइ, मुनिकर दीधा फूल जी; संचकार संगमनउ जांणे; जेहनउं जगि नहीं मूल जी. ५ कन. प्रेम सुकोमल नयने जोई, वलि वलि तसु मुख चंद जी; कनक रथ कुंअर गुणमंदिर, पांमइ अति आनंद जी. ६ कन. ऋषि दत्ता चिति प्रीऊ चाल्यउ, रिखि मिणिनइं परिणेवा जी; आश्रमि आव्य उ कुंअर मुनीस्य उं, विरची श्री जिनसेवा जी. ७ कन. मुनिनइं पूछइ कहीइं आव्या, किहांथिकउ वनि अणि जी; तापस कहइ मई आश्रम सेव्यउं, राजऋषि हरिषेणि जी. ८ कन ऋषिदत्ता तसु तनया कोई, राजकुमर गयउ परणी जी; साधी अगनि गयउ सुरलोकइ, श्री हरिषेण सविणी जी. है कन. तीरथयात्रा करतउ इणि वनि, हुं आव्य उ ततखेव जी; वरस पांच हुआं ते वातइं, करतां श्री जिनसेव जी. १० कन, Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल २८ · राग : सींधूउ-गउडी. (सपीआरा नेमजी-देशी अथवा नयर राजग्रह जांणीइ जी- देशी.) कनकरथ इं इम सांभली हो, बोलइ मधुरी वाणि; सुणउ ऋषि तुम्ह मुख दीठडइ हो, अह ठर्या मुझ प्रांण. १ द्रूपद. सपीआरा साजण भलइं रे, मइ तुम्ह भेटि; जिम उन्हालइ छांहडी हो, जिम साय रमांहि बेट. २ सपी. तुम्ह मुख जोतां नयणनी हो, तरस न छीपइ अह; तउ जांणउं तुम्हस्य उं खरु हो, पूरव जनम सनेह. न जाणउं तुम्हे स्युं कर्यउं हो, कांमण देख त खेव ; चंबक लोहतणी परई हो, आकरस्य उं चित हेव. ४ सपी. तव मुनि कुमर प्रतई भणइ हो, तुम्ह बोल्य उ सवि साच; मन ई मन तउ अंक मिलइ हो, अहवी छइ जिनवाच. ५ सपी. कुण किहांना किहांथी मिलइ हो, पूरव प्रेम संयोग; अक देखी मन उहलसइ हो, अक दीठ इ करइ शोक. जिम तुम्हनई तिम मुहनइं हो, देख त लागउ प्रेम ; नयण वयण मन साखीआ हो, साचइ नेहइ तेम. कुमर कहइ हुं सांकल्य उ हो, तुम्ह नेहइं रिषि राज ; बीजं काबेरी जाय वउ हो, तिहांनउं करवलं काज. तेह भणी कृपा करी हो, तुम्हे आवउ मुझ साथ; बलतुं जे तुम्हनई गमइ हो, ते करयो मुनिनाथ. ६ सपी. तउ ऋषि कहइ अम्ह मत करु हो, आदर अणी वाति; राजसंगति मुनि नवि करइ हो, ते निवसइ अकंति. १० सपी. Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ ढाल २६ ( राग : रामगिरी जयमालानी अथवा जत्तिरी . ) कहइ राजकुमार तव वात जूई संयम केरी, परमेस्वर मोटर कहीइ, भक्ति आधीन ते लहीइ; भक्तइ देव दानव वसि कीजइ, मनमांनइ निज मन दीजइ. मन दीघउ ओ तुम्ह हाथई, मई तुम्हे पणि लेवा साथइं; इणि वातरं म करस्यउ प्रांण, तर निश्चइ लेस्यउं प्रांण. इम कुमरनउ आग्रह जांणी, ऋषिदत्ता ऋषि मांनी वांणी; जिम दूधस्यउं साकर भेली, तिम पांम्या बहू रंगरेली. ओक खिण अलगा नवि थाइ, प्रीति नयनां सरिखी कहाइ ; इम करता पुहतां काबेरी, वाजइ वाजित्र तूर नफेरी. सांहांमउ आव्यउ सुंदरिपांणइ, करइ उच्छव अतिमंडाणइ ; ऊतारा आदरि दीधा, अति उत्तम मंडप कीधा. फेरी, सुणउ ऋषिजी वीनती मेरी; प्रीति केरी वात अनेरी. सुभग लगन जोसीइं साध्या, सहुनई मनि आनंद वाध्या; धवल मंगल सुहासणि गाइ, मनवंछित दांन देवाइ अतिउच्छवि रुख मिणि परणी, कीधा बेहुजणई निजकुलकरणी, हवइ सुंदरपाणि नृसीह, राखइ कुमरनई केता दीह. ढाल ३० राग : अधरस ( पुण्य न मूंकीइ - ओ देशी. ) हवइ पीउ जांणी वसि थयउ, मदिमाती तिणिवार; रुखमणि पूछइ कंतनइ रे, धरती हरख अपारो रे. कहउ प्रीउ ते किसी जे वसी तुम्ह तणइ चित्ति रे. १ २ २ ५ ६ ७ ८ कहउ. Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कडि लंकीली पातली रे, कइस्यउं मोहणवेलि; कइ सुरकुमरी अवतरी रे, जिहां तुम्ह मनि करी केलि रे. ३ कहउ. कइ मुखि मटकउ तसु गम्यउ रे, कइ मनि मान्यउ वेणि ; कइ आंखडीइं भोलव्यउ रे, कइ कुचकुंभ रसेणि रे. ४ कहउ. कइ ते कंठई किन्नरी रे, चतुरा चाल चलंति; कइ कटिलंकी सिंहनी रे, कोमल उदर सुकंतई रे. ५ कहउ. अहिल्यास्यूं हरि मोहीउ रे, तउ तेहस्यउ रसपूरि; उत्तमनइं नेह नीचस्य उं रे, जिम मिरीआं कपूरो रे. ६ कहउ. अथवा जेहस्यउं मन मिल्य उं रे, ते विगुणाई सुरंग; धंतूरु हरिनइ रुचइ रे, ससि उच्छंगई कुरंगो रे. ७ कहउ. ते तापसनी छोकरी रे, स्यउं दीठउं ते मांहि ; जस कारणि हुं परिहरी रे, आंणी अंगि ऊमाहो रे. ८ कहउ. ढाल ३१ राग : मेवाडउ. (जीवडा तुं म करे निंदा पारकी- देशी.) ऋखिमणि केरी रे वांणी इम सुणी, मेहलंतउ नीसास; ऋषिदत्ताना गुण संभारतउ, बोलइ कुमर उदास. ते ससनेही मुगधा गोरडी, त्रिभुवननउ अंक सार; हुं वेचाथउ रे लीधउ तेणीइं, निजगुण नेह प्रकार. २ ते सस. जे परमाणू रे ते घडतां रह्या, तेहनी रंभा कीध; जांणउं चंदउ रे तसु मुख दासडउ, दीसइ अंक प्रसिद्ध. ३ ते सस. साकर जीती रे वांणी मधुरिमई, मध्यई सील रहंति; तसु गुण बीजइ रे किहां नवि दीसीइ, जिहां से चित्त ठरंति. ४ ते सस. अकइ जीभई रे गुण केता कहुँ, हुं रणीउ छउं तासि; त्रिभुवनि सुंदर जे जे कामिनी, ते ते सवि तसु दासि. ५ ते सस. जग गोरसनूं घृत ते सुंदरी, अवर ते छासि समांन; स्यउं करुं दैवइं रे जउ नवि सांसही, रोर घरि जेम निधान. ६ ते सस. Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कांकर रयणारे जेतउ अंतरं, जेतउ सरिसव मेरु ; ऋषिदत्तानइं अवर महेलीयां, तेतउ दीसइ रे फेर. ७ ते सस. गंगावेलूरे सायर जलकणा, जे गणी पांमइ पार ; ते पणि तेहना गुण न गणी सकइ, जिह्वा सरिस उदार, ८ ते सस. अमृत अलाभई रे कांजी पीजीइ, कोदिरा कलम वियोगि; तिम तसु विरहइं रे दैवइं सरजीउ, तुम्ह सरिखी स्त्री भोगि. ६ ते सस. ढाल ३२ राग : मलार. (जूउ रे सांमलीआनुं मुखड उं-देशो.) तव कोपानली धगी धगी, मनि मच्छर आंणी; अदेखी ऊछांछ ली, बोलइ ऋखि मिणि वांणी. सुणि सुणि प्रीतम वीनती, स्वारथ सपरांणउं; अक द्रव्याभिलाषपणउं, तिहां मत्सर जांणउं. हुं ऋखि मिणीनी तेणीइं, जोरई आसडी कापी; तउ ते तापस छोकरी, मई केहवी संतापी ? आल चडाव्यउं मारिनउं, माहारुं वयर मई वाल्यउं; पी न सकुं ढोली सकुं, साचलं वचन संभालउं. ४ सुणि. तेह हती गाढी कुटिलिनी, पणि मुझस्यउं न चाल्यउं; सीहनई सरभ सांहांमउ मिल्यउ, मई ते चीतव्यूं पाल्यु. काल भुयंगम कोपव्यू, फल ततखिण लाधउं; ऋखि मिणी स्यउं हठ केलवी, स्युं तेणीइं साध्यउं. ६ सुणि. धन धन सुलसा भगवती, पूरव जनमनी माय ; माहारइ कह इणि जेणीइं, कीधा सयल उपाय.. रुख मिणि रंगभरि अणी परइं, थई उनमत बोलि; ऋषि दत्ता मुनिवेषिणी, सुणइ कुमरनइं ओलि. आणंद पांमी अतिघणउ, परमेश्वर तूठउ ; ऋषिदत्तानई कलंकिणी, अमीइं मेह वूठ उ. ___ सुणि Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ ढाल ३३ राग : केदारु. ( दास फिटी किम थाउं राजा - ओ देशी. ) ( अथवा आज लगई धरी अधिक जगीस - ओ देशी. ) रुखमिणीनी वांणी सुणी, कनकरथ कोप्यउ सुगणी; अरुण छाह भई मुख तणी, थयउ विकराल जिस्यउ फणी. त्रिवली चडावी भीषणी, रथमर्दन पत्तन धणी; अधर उसंतउ खिणि खिणि, कंपावंतउ ते धरणि. बोलि रे सुणि रुखिमिणी, तई ताहरा स्वारथ भणी; ओ स्यरं कीधउं पापिणी, दुष्टमनी जिम सापिणी. परभवनउ भय अवगुणी, कीधउं अंत्यजनूं करणी; असुभ हेतु जेहवी भरणी, मई विण जांण्यइ तुं परणी. निरापराध ते मुझ घरणी, सती सिरोमणि मनहरणी; तुं तउ साची वइरणी, तउ ते गंगा नींझरणी. कुगति भूमिहर नींसरणी, अपयस आवसनी पूरणी; सुमति पटीनी कातरणी, कोपानल केरी अरुणी. लुंटा लंपट लोभिणी, कांमतणी अक्षोहणी; कूड कपट केरी गुरुणी, अहवी अधम कही तुरुणी. वेइ पीडा आपणी, परनी करइ ऊथापणी; जिम ढोलानई मारुंणी, विचि अंतराई मालविणी. पापिणी सुलसा योगिणि, जे अधमाधम धुरि गणी; अपयशनी पाटी वणी, तुझनई दीधी ओढणी. ते मुगधा जउ इम हणी, तु तुं माहरी वयरणी; ते यमघरि हुई पाहुणी, कनकरथ रह्यउ आहणी. मरण सरण मुझ हवइ सही, कनकरथ ते इम कही; चिता रचावइ मंदिरई, हाहाकार ते जन करइ. ७ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ M १० ११ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुहाः तब हि कोलाहल अति थयउ, आकुल सवि परिवार; काबेरी-पति ते सुणी, आव्यु तेणी वार. परि परि वारइ भूप ते, वार्यउ न रहइ कुमार; ऋषिदत्ता सभारतउ, वरसइ आंसूधार. प्रांणप्रीया प्रति जायतां, मुझ मत वारु कोइ; विसमी विरहनी वेदना, रांम लहइ जगि साइ. कहिनउ वार्यउ नवि रहइ, तव बोल्य उ ऋषिराज; सुणि सुविवेकी कुमर तउं, स्य उं करइ अकाज. जे अविवेकी अधमजन, करइ आपसुघात; भव अनंता तउ रलइ, न लहइ धरमनी वात. पुरुष मरइ स्त्रीकारणइं, अतउ अवली रीति; जगि हासारथ कां करइ, चतुर विचारि सुचीति. सवि वंछित पामइ घणा, नर साहसीक जीवंत; भानु प्रधानिइ सरस्वती, जिम पांमी गुणवंत जीवंतां मिलवा लहइ, किहारइं वनिता सोइ; प्राणि प्रांण तिजी करी, बेहु भव मत खोहि. ढाल ३४ राग : केदारु गुडी. (पारधीआरे मुझ ते वनवाट देखाडि-देशी.) ऋषिनी वांणी इम सुणी रे, बोल्यउ कनक कुमार; ऋषिजी तुम्हे तु नवि ल ह्यउ रे, दोहिलउ प्रेम विवहार. सलूणा साथी को मुझ मेलइ तास, हुं तउ तेहनउ भवि भवि दास. १ जउ तसु प्रांण न दीजीइ रे, तउ स्य उं प्रेम मंडाण; जे कसि पुह चइ छह लगई रे, तेहस्यउं साचउ बंधाण. २ सलूंणा. Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छलछलीयां वहिला ऊमटइं रे, छेह लगइं उंडा नीर; जे जन न बीहइ मरणथी रे, ते पालइ नेह धीर. ३ सलूणा. प्रांण तिजइ तृणनी परइं रे, नेहइं बांध्या जेह; अक मरतां बेहुं मरइ रे, साचउ कपोत सनेह. ४ सलूणा जीवंतां वंछित लहइ रे, पांमइ सजन सहाय; तां लगई विरहनी वेदना रे, पणि किम सहिणी जाइ. ५ सलूंणा जे खिण जाइ ते विना रे, ते युग सरिख उ थाइ; स्वजन विण जे जीवीइ रे, ते जीव्य उ न कहिवाहइ. ६ सलूंणा मिल इ लगी ते जीवतां रे, तुम्हे जे कह्यउ रे उछाह ; मूंआ माणस जउ मिलइ रे, तउ स्यउं दुःखु जगिमांहि ? ७ सलूणा स्यउं वाहु छ उ इम कही रे, मुझनइं तुम्हे गुणवंत; आपण माणस दुख पडइ रे, हासुं केम करत. . . . ८ सलूणा इम करतां तुम्हे मेलवउ रे, तपनी सक्ति अनंत; तउ हुँ वेचातउ ग्राउ रे, निश्चिय जनम प्रयंत. ६ सलूंणा पुनरपि तापस बोलीउ रे, सुणि तुं पुरुष रतन्न; अणइं साहसइं ते सुंदरी रे, तुझ नई होस्यइ प्रसन्न. १० सलूंणा कुमर पूछ इ वली आकलउ रे, ऋषिजी तुम्हे रे दयाल, ते किहां दीठी सांभली रे, सुधी कहउ मुझ भाल. ११ सलूणा ढाल ३५ राग : गुडी. (संभारी संदेसडउ- देशी अथ वा सारद सार. मे देशी.) बलतउं ऋषि इम बोलीया, सुंणि तूं पुरूष रतन दे; ज्ञान तणइ महिमांइं अम्हनइं, त्रिभुवन सयल प्रत्यक्ष दे. ताहरी प्राणप्रीया ऋषिदत्ता, जिम घरि करइ कलोल दे; कनकरथ ते इम सांभली, मनमां थया विलोल दे. Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूछइ आदरइं अतिघणइ, लागी ऋषिनई पाय दे; ते किम आवइ ईहां सती, ते मुझ कहउ उपाय दे. वलतउ तापस ते बोलीउ, हुं जई तेहनइं ठामि दे; ऋषिदत्तानइं ईहां मोकलउं, ताहरा सुख नई काम दे. कनकरथ ते इम सांभली, हसी वदन कहइ स्वामि दे; सक्ति विलंब न तव कीजीइ, दुखीआ मित्रनइं कामि दे. भोजन पांमी भावतुं, भूख्यउ न सहइ विलंब दे; तिम प्रीय-प्रापति कारणइं, विरही हुइ उत्तंभ दे. तव मुनि बोल्यउ अणी वातइं, लाभ किस्यउ मुझ होई दे; कुमर कहइ प्रांण तुम्ह करइं, मई दीधा इणि लोई दे. उदधि ओलंध्य उ कपिबलई, रामि मित्रनई कांमि दे; मित्र काजि अगनिनी झालां, कइ छांड्या राज रामि दे. तउ मुनि कहइ प्रांण ताहरा, तुं कन्हइ रहउ चिरकाल दे; अवसरि माग्य उ ते आपेयो, वाचाना प्रतिपाल दे. इम कही परीचि आंतरइ, पइसइ तापस तेह दे; कौतुक जोवा तव ते मिलीआ, सुर नर किनर जेह दे. ढाल ३६ राग : देशाख. (इंद्रई कोप कोउं- देशो.) तिणि अवसरि नरनारि, आनंद चित्ति धरइ ; ऋषिदत्ता निज रूप, तव ते प्रगट करइ. वादलमांहिथी सूर, प्रगट्यउ हुइ जिस्यु ; रण जीत्यइ जिम सूर, दीपति उहल्लस्यु. ते ऋषिदत्ता देवि, तेजई जगि जीपती; देवई दीधी सोह, सील गुणइं दीपती. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरनर करी प्रसंस, कुशमनी वृष्टि भई; ऊतारो कष्ट-समुद्र, भावठि सर्व गई. रमझमि कनक मंजीर, पूरण चंद्रमुखी; पहिरणि कोमल चीर, नव नवी भांति लिखी. कंचुक कुचि सोहंत, मोतिन माल भजी; रवि ससि कुंडल मेल, स (श? ) वि सिणगार सजी. अधर सुरंग तंबोल, हसती फूल खरइ; हीरा दीपति दंत, बोल ति अमृत झरइ. क्षामोदरि गजगति, वेणी भुअंग जिसी; माननि मोहणवेलि, अणी नयणि हसी. तिणि खि णि मागधथोक, जय जय सबद भणइ ; करइ प्रसंसा लोक, ऊलटि चिति घणइ जव दीठ उ तसु रूप, रुकमिणि दासि गिणी; घटतउ अहस्युं प्रेम, जन कहइ कुमर गिणी. ढाल ३७ (राग : देशाख-अकवीसानो ) अहवउ वितिकर रे, निसुणी काबेरीधणी, मनमांहि रे पांम्यउ आनंद अतिगुणी ; आरोपी रे कुमरस्यउं, ऋषिदत्ता गजइ; अति उच्छवि रे, निज मंदिरि आव्या भजइ. त्रूटक भजय नववय नवलनेहा, चंदस्युं जिम रोहिणी, अपराध जांणी कठिन वांणी, राइं तिरथी रिखि मिणी; जे कूडकपट-करंड रंडा, योगिनी सुलसा खरी, तसु नाशिवास्युं श्रवण छेदी, काढी देशथ की परी. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषइ कुंअर रे, ऋषिदत्तानइं एक दिनई, संभारी रे, तापस मित्रनइं निज मनइं; सुणि सुंदरि रे, ते दुख मुझनई अतिदहइ, तुझ कारणि रे, मित्र जे जिम मंदिर रहइ. चुटक रहइ स्वामी म करि चिंता, कहइ ऋषिदत्ता ख रुं, · नेहपरीख्या जोइवानइं, अह विलसित माहरूं; पालीइ दीधी तदा वाचा, तुम्हे साचा सज्जना, रुखिमणी ऊपरि प्रेम आंणउ, माहरी परि सुभमना. इम निसुणी रे कुंअर रोमंच्यउ तदा, चिति चिंतइ रे, आंणीनइं अति संमदा; देख उ सज्जन रे, दुर्जन विचि अंतर इस्यउ, मणिपन्नग रे, विषकर मनमांहि वस्थउ. त्रूटक मनि वस्य उ सज्जन दुर्जन अंतर, जिस्यउ दर्पण छाहारनूं, बावनाचंदन छेदतइ पणि, सुरभिमुख कुठार; रह्यउ सोषइ नीर निसिदिनि, मांहिथी वडवानलो, तुहइ न जल निधि छेह दाख इ सजन सुभावई निरमलउ. तव कुमरई रे, ऋषिदत्ता आग्रह धरी, मांनी रुखमणि रे, मनथी कोप निराकरी; दिन केता रे, ससरानइ मंदिर रह्या, हवइ चाल्यारे निजपुरि सांहांमा ऊम ह्या. त्रूटक ऊमह्या निजपुरि वेगि आव्या, हेमरथइं उछव कर्या, वरसता दानइं अखंड जलधर, बंदिजन जय उच्चर्या ; लाजतउ नरनाथ निसुणी, कूड सवि सुलसा तणउं, . संभारतउ अपराध वलि वलि, सतीनइं खांमई घणउं. ४ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुभ महूरति रे, कनकरथ राज्यइं ठवी, श्री हेमरथ रे, संपद सघली भालवी; वैराग्यइं रे, श्रीभद्रसूरिनी सानिधई, पालइ संयम रे, समरथ ते त्रिकरण सुद्धइं. त्रूटक त्रिकरण सुद्धई संयम पाली, वेगि शिवरमणी वरी, श्रीकनकरथ नरनाथ समरथ, कीरति त्रिभुवनि विस्तरी; अन्याय टालइ राज्य पालइ, कला दिन दिन दीपती, सुत सिंहरथ जितरूप मनमथ, लहइ ऋषिदत्ता सती. ढाल ३८ राग : आसाउरी. (मसवाडानी पहिली.) ऋषिदत्तास्य उं अक दिनइं, गुखि बइठउ नरनाहजी ; जोइ शोभा नगरनी, धरतउ अंगि ऊमाहजी. त्रूटक ऊमाह अंगि सुरंगि धरतउ, कनकरथ वसुधाधणी, क्षणमांहिं वादल गयणमंडल, छाहीउ निरखइ गुणी; विश्राल सहिसा थय उं ततखिण, कारण ते वइरागनूं, कनकरथ नरनाथ चितइ, भवस्वरूप अहवउं गणुं. जेहवी रे सायर लहिरडी, जेहवउ संध्यारागजी; कुशअग्रई जलबिंदूउ, जेहवउ नट वयरागजी. बेटक वयराग नटनउ अथिर जेहवउ, प्रीति दुर्जन केरडो, घरवास चंचल कामिनीनउ, नीरमांहि लीहडी; Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आक इंधण घाडिसईनी, वाडि जवासा तणी, असार अह संसार तिणि परि, मूढ मनि माया घणी पाप करी परकारणइं, स्वारथि सजन सहाय जी; ओ नित्यमित्रतणी परई, विहडइ छेहडइ काय जी. त्रूटक कायमाया अभ्छाया, मोहवाया जन भमइ, विषयसुख मधुबिंदु लोभ्यउ, कालमहीआं नींगमइ ; संसार सवि दुखमूल छांडी, धन्य ते अलगा थया, इम कनकरथ संवेग पामति, पापना पाया खया भद्रयशोगुरु अहवइ, पुहता वनि सुविचारजी; कनकरथ ते सांभली, पांयउ हरख अपारजी. त्रूटक अपार नरवर हरख पांम्यउ, मोर जिम मेह आगमई, परिवारस्यउं गुरुचरण वांदी, पाप सघला नीगमइ ; देशना छेहडइ सुगुरुनई तव, पूछइ ऋषिदत्ता सती, हुं पूरव करमई नडी केहइ, ते कहउ मुझ यतीपती. ढाल ३६ राग : सामेरी, ( जिम कोई नर पोसइ - ओ देशी. ) ज्ञानातिशय बंधुर, वांणि सुधारस जलधर; गणधर तव तसु, पूरवभव कहइ अ. जंबूद्वीप मनोहर, भरतखेत्र सोहाकर; आगर पुरवर गंगाभिध, गंगासमउ थे. गंगदत्त तिहां नरवर, गंगादेवीनु वर, सुंदर तुं गंगसेना, तसु सुता ओ. ४ १ २ ३ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्र यशा तिहां माहासती, सुमति गुपति न वरांसती; वासती त्रिभुवन, निज यशपरिमलइं अ. तुं संवेगणिमांहिं भली, भवथी थई ऊभांभली; सांभली तसु देशनध्वनि निरमली अ. ममता मोहई नवि ठगी, भीषण भवथी ऊभगी; नवि धगी काम क्रोध दावानलइं . ढाल ४० राग : गुडी. (करि आगली कि माडव जावइ - ओ देशी अथवा सारद सार दया करि - ओ देशी.) निस्संगा ते तिहां संगा चंगा, गंगा वरतइ सार रे; आर्या बहु गुणवंति वयरागिणि, पालइ संयमभार रे. तेहनी लोक करइ प्रसंसा, दुःक्कर कारणि अह रे; ते निसुणी तूं मच्छर आणइ, महिला मच्छर गेह रे. यवती जाति हुइ अदेखी, परनी न सहइ प्रसंसा रे; आपणपू अधि केरुं मवावि, ओछी अति नृसंसा रे. तव तें तेंहनइं आल आरोग्य उं, अहनउ जांण्य उं धर्म रें; तप तपइ दीसइं, निसि आहारइ, पापिणी पिशित कुकर्मई रें. संगा साध्वी उपसमवासी, अहोआसइ सुभ भावई रे; कलंक सतीनइं दीधा माट इ, तुहनइं लागउ पाव रे.. राग रोस वसिथी अज्ञानी, रसनानइ संवादई रे; साधुनइं आल देई संतावइ, घार्यउ मद उनमादई रे. हसतां आलई कर्म ऊपराजइ, दोहिलउ तास विपाक रे; दोहिला तेह अछइ भोगवतां, कष्टइं पांमइ थाक रें. अभ्याख्यान अनइं वध मारण, परधन नासि करंति रे; ॲहनउ उदय जघन्य थकी जउ, दशगुण फल पावंति रे, Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सय गुण सहसगुणे लख गुणयं, कोडिगुण कोडाकोडी रे; तेहथी विपाक हुइ अधि केरु, जेम वड केरु छोडी रे. निंदक ते चांडाल सहुथी, नरगि सहइ संताप रे; । अणकीधइ पणि जिम जरतीनई, लागउ हत्या पाप रे. तउं ते पातक अणआलोई, बहु भव पांमी दुखु रे; कर्मविशेष इ पुनरपि गंगापुरि, राजकन्या थइ दक्ष रे. तिहां जिनदीक्षा पांमी पुण्यई, तप तपी कपट संयोगई रे अणसणि मरणि थई इंद्राणी, ईशानेंद्रनई भोगई रें हरिषेण रायतणी थई पुत्री, पालइ सासन आया रे; कर्मतण उ लवलेस रह्यउ जे, तिणि ते लाध अपाया रे. ढाल ४१ राम : धन्यासिरी, (मसवाडानी छेहली देशी.) अहवा श्रीगुरु वयणला हो, सुणि ऋषिदता देंवि; जातीसमरणि निजतणा हो, भव देखइ ततखेंव. त्रुटक भव देख इ ततखेव विवेकणि, बीहनी करमविवागई, भवथी ऊभगी श्रीगुरुपासइं, सूधउ संयम मागइ ; कनकरथ पणि सो लघुकरमी, याचइ श्रीगुरुपासइ, स्वामी संयम मुझ आरोपउ, जिम न पडउं भवपासइं. श्रीगुरु उपगारी भणइ हा, सुणि तुं कनक नरेंस; उत्तम स्वास्थ साध वउ ही, विलंब न करइ लवलेश, कूटक विलंब न करइ लवलेस जे उत्तम, जांणी अथिर संसार, जे जे वेलां धरम संयोगई, ते ते कहीइ सार; Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कनकरथ गुरुवांणि सुणीनइं, स्वारथ साधन काजई, सिंह रथ सिंह समान पराक्रम, सुत थापइ निजराजइ. संयम सूधउं आदरइ हो, ऋषिदत्तानई राय; दुस्तप तपइ राय सुभमनइं हो, सेक्इ सहि मुरु पाय. त्रूटक सेवइ सहिगुरु पाय अमाई, चरण करण सावधान, सुभ अणगार गुणे दीपंता, वरजंता दुरध्यांन; ऋमि क्रमि विचरंता भद्दिलपुरि, पुहता श्रीगुरुसाथ, जिणि पुरि श्री शीतलजिन जनमइं, कीधउं अतिहि सनाथ. परजाली ध्यान पावकइ हो, तिहां त्रिणि कर्म निकाय ; लही केवल मुगतइं गया हो, ऋषिदत्ता नइ राय. चूटक ऋषिदत्ता नइं राय कनकरथ, मुगति बेहु जणि साधी, सकल कलंक थकी मूकाणी, कीरति निर्मल वाधी; अहवा उत्तम सुचरित सुणतां, प्रांणी हुइ पवित्र, सुभ मनि धरम सेवंता लहीइ, सवि सुख अत्र अमुत्र. वडतपागच्छ सोहाकरु हो, श्री विनयमंडन गुरुराय ; रत्नत्रय आराधक हो, जे जगि धरम सहाय. ३ बेटक जे जगि धरम सहाय गुणाकर, सुविहितनइं धुरि कीध, तासु सीस गुणसोभाग सुनामइं, जयवंतसूरि प्रसिद्ध ; तेणइं रसिकजनाग्रह जांणी, विरच्यउ सती चरित्र, उत्तम जन गुण सुणतां भणतां, होवइ जनम पवित्र. संवत सोल सोहाकरु हो, त्रिहितालउ उदार; मागसिर शुदि चौदसि दिन हो, दीपंतउ रविवार, Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रूटक दीपंतउ रविवार सुरोहिणि, शशि वरतइ वृषरासइं, अ ऋषिदत्ता चरित्र वखांणइ जयवंतसूरि उहूलासइं; न्यून अधिक जे हुइ आगमथी, मिच्छादुक्कड तास, कविता वक्ता श्रोता जननी, फलयो दिन दिन आस इति श्री ऋषिदत्तारास संपूर्ण : संवत् १७१६ वर्षे, प्रथम जेष्ट सुदि ६ शिनौ, खिलि तं श्री पत्तनमध्ये, श्री पूंनिमगच्छे भ. श्रीविनयप्रभसूरिणा शिष्यादीनां वाचनार्थ । शुभं भवतु श्रीसि (सं) घस्य । श्रीरस्तु । ४ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ दिनी दिनी ब, क, ड, धन ग, लोध इ, लोइ फ, ब ड. पाठांतर ढाल १ धन फ, हुवइ ब, वह नामि ब ड फ पांच क, जेहनइ क, जेहनि इ, जेहनी ब, पाचि फ, परमीष्टनई क, हूं २ शाशनि ब, शासनिक, शासन ड, सासन फ, श्रुतरूप ग, समरू ब, समक फ, जेहमइ कफ, जेहनि इ. ३ मीठाई व ड इ, मीठाई फ, वाणीइ फ, तक, तिई ब ड, ते फ, वसेषई ब, विशेषिई ड, विशेषि इ, विशेषिइफ, वीनवू व ड फ ग, वीनवुं क इ, दि ब ड, दई क, दिई इ, दिठ फ ग. ४ ते नित फ, प्रमाणि ग, तस ब क ड, वखाणिवा ब, वखाणतां इ, दि ब ड दिई क, दई इ, दिय फ, निरमल इ ग, न्यरमल फ. ५ विस्तरी इफ, फलाइ ते ग, जिणिइ क, जिणि इ, दइ ब दिइ क, दिठ ड, देस फ हइ इ विचन फ. ६ प िक, परि इ, कवि केलवए ड फ ग कविता केलवणि इ, निर्विनत्ति फ, अनुसारि ब डफ, विस्तार ब क ड इ, अस्तरी फ. ७ पूर्वि ब क ड, पूर्वि फ, सुकवि ब क, सुकविं ड, करयां व ड, अहना ड, प्रसिद्धि फ, तुहि ब ड फ ग, तुहिइ क, तुहइ ई आग्रहई ब, रसिकजना नयाग्रहई ग, मइ बफ, मई ए ग, पणि उदिम कीध फ. क ८ केवलही इ, मुगतई अ, मुक्ति क, मुगतिगई फ, गथिंग, कीधु फ, कलंकहं ब, सुचरित्र इ, सुचरिता ड, सुणियो फ, सहू ब, सविवेक ब, सुविवेक फ. ढाल २ १ शुभरित व क ई, सुभरति ड, सुभरत ग, सुभरीतिकरं फ श्रुमरतिकरू ग. सुंदर क, जेहांव सिई इ, जिही फ, इभ्य ब, प्रभुते ग, दानि क, दानिई डग, नीमतदानि फ, रूपई क ड, रूप ३, रूपिइ फ, परहुन ब, पुरहुत क, सूदरा इ, निव िवास्यी फ, उहलासी इ, पल्हास्थी फ, कामिनी ड, कांमनीफ, भांमिनी ड, सनमुखी ब जेहा हू, जिहा फ, चैत्यशाफ, पोषधशाला ड इ फ, संजिम मुनिपालि फ. २ तिनि य, तिनिपुरिइ क, तिणिपुरी इ ग, तिणि पुरइ फ़, नयन पुर्णो कफ, न्याय निपुणो डइ, नरनधयो जे इ, सेवकजननई ड, सेवकनि इ, शेव नई फ, र्पुन्न इ, भूरणपुन्य फ, न्यायिरंजन ड परिणम न्यायसुजिज्ञाग, सुजपा इ, गुरुगभीरम ब, गंभीरम डग, न्यायसुयशा ब, अन्यायभंजन ड, वंछीत क, वंछते फ, अमरा ब अमरि ग, सुभगती फ, तसनीफ, यसरूपनी ब, जसरूपनं कइ, जनरूपणी Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ३ कनकरर्थ ब, तसु इफ, नामनो फ, गुण क, गेहेरे ग, गुणगेहोजि इ, असमनमोह नउ ब, मोहनो कइग, जसमनमोहतुं तसमनमोहनी फ, आयुदिहिरे ष, आयुदेहिरे क ड फ. आयुदेहो जि इ, आयुदेहेरे ग, जेधेहि क, रूपिं क, गौरकेततुन फ, केतक क, जिसिउ कफ, जस्यु इ, सशिमुख ड, हसिउ क इ, वंचकहस्यु ड, (हसिउ) सरल पंचम कहिस्यू फ, यौवन्नि अ, पासु ब क ड फ, सुयशि ड, सुयसि ब फ, सुयस इ, गायु ब क ड इफ, स्वयं त्रिभोवन फ. ढाल ३ १ अणइ ब, इणइ ड, शोभा क, यश ब, जसभइ क, बहू अ. २ तेणि इ, सुंदरपाणी, ब ड इ, भरिराजि ब, जसभयि ब ड, जसभई क, इ, डरपाणी ब ड इ, कृपाणी ब ड इ. ३ तसवासुला अ ड, तसवसुधा क, तसवासुला फ, सोहि फ, पटराणी व ड इ, जसतनु व क फ, जसुतनु इ, भराणी बडइ, पुण्यपंथी क, सपराणी बइ, सुपराणी फ. ४ ऋषिमन फ, तसतनया बक, सतनया फ, गुणवंतो क, रूपि इ, सतिजिमकंतो फ, तेजि क, झलाकंती ड, झलकति फ. ५ वयि क, बेयि इ, जाणी बड इ, चितई अ, वितइ ड, चिंति इ, सुंदरपाणि ब ई, विनाणी ब ड इफ, विनाणी क, आणी अड. ६ मेहेल्या इ, कनककायसम फ, सरीखी इ, सरिखी फ. ७ सुदरपाणिई ब, सुंदरपाणि क इ, सुंदरपाणि फ, सुंदरपाणीई ग. ८ ताततणु ड, ताततणो इग, आदेस क फ, कुंअर ब, कुयर ड फ, कुयर इ, सिरनामी ब, शिरनामो क, शिरिनामी ड, शरनामी फ, शिरेना'म ग, हरखिउ अ क, हरख्यु ड, हरख्यो इ ग, हरिख्य फ. ९ चाल्यु ब, चालिउ कफ, वाल्यो ड ग, वालोइ इ, रुकमणिनई बक, ऋषिमनिनई ड, ऋषिमणिनि इ, ऋषिमिणिनइं ग, संसारतणउ फ. १० बंदी ब क ड इफ, बंदि ग, बोलिं क, बोलि इ, बन्दवावाला ब फ. ११ पाखरीया बड, हेखारा क, तोषारा व ड, तुषारा क, तोखारा ग, पहलाण ब, पह __ लाणि क, पल्हाण , पल्लोण ग. १२ भंगाया ग, मयगल डमां नथो, चामर ब, कांनिंचामर फ, कनि चामर ग, झाकझमाल ब, सोहिइ ड, सोहि इफ, चितत ब, चित्रनभाला फ. १३ महमहोच्छवि ब, महामहोत्सव इ ग, महामुहछवि फ, मारगि नथी अकडगमां, चालिइ इ. "ठामि ठामि" नथी उमा, नेहालइ इ, नभालइ फग, शुभ फ, सूकीन फ, मनिमाहालइ ब क ग, मनिमालइ ड, मनिमाहलि इ, मनिमालहइ फ. १४ विंतन इग, वितत ड, कउलाभं ब, कोइलाम क इ, अनेरउ क इ, अंतरालो ब, अंतरालि क, अनरीलि फ, हासइ ब, होसइ क ड ग, होसिइइ, होसिइ फ, अधिकेरउ क, अधि__ केरा इ, अहवं ब, अहवु इग, शुकनउ ग, सुकुनउ ब, सुकन ड, केरउ कइ, अधि- केरू ड, झकेरून ग. Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ६३ १५ जाणें ब, जाणइ फ, रुवुन ब, शुकुन ड, शुबन फग, जांण क.फ, जाण ड इ ग, उधाण इफ, वागां मीसांण कफ, निसाण ग. १६ ठामि ठामि बड, ठामोठार्मिक, ठामोठामि इ फ ग, सहू फ, आविइ इ, भेटिभली फ, विविधि ब ड, लावइ इ, लावि फ, कुमरन व क, कुमरनिं इ, बधाविइ इ, वधावि फ, बधावइ ग. १७ दिन बक, पीयाण पीयाणं ब ड, अहिठाणं ड, जेहानही इ, नीवाण इ. थानिक इ, १८ कुमरि इ, कुयर फ, पाठव्या फ, इ फ. पीयांणक, आविउ ब, आव्यू क इ, आव्युं डग, थानि फ ल्याव्या ब क ड, अपूरवलाव्या ढाल ४ १ लाव्या इ फ, शेवक फ, धसमास्या ब, करिजोडी फ, कहिइ इ, कहि फ, कुमर नह कम, कुमारनिं इ, कुमरनइ फ सामी बइ फ स्वामी क, सविवेक व ड, सुववेक इफ. २ आदेस बक, आदिसि फ, लइकररि फ, चालिउ फ, चाल्या ड, दीठं ब, दो डइग, अतिहई ब. ३ पंकजते इ, अभिराम बग, "जांणे" शब्द नथीं ड मां, आविउ ब क, आव्युं ग, जलनधि फ, तरस्यामुनि ब, तरस्यानु कडफग, तरस्यानो इ, विसाराम फ. चालिवली फ, ५ चातक छ, डिंक ब क ड इग, ढंक फ, बलाका फ, मदनशालि ब, मदनसाल क ड ग कुमाल कफ, शुकमाल ग, सुकपीक फ, कंक गमां नथी, कटिल इ, कहंसा ब केलिकरि इ, कलिकरइ फ, वाचल फ. ४ हसीब, हंस्यीफ, चालि क, वालइ इ, बालवली ब, वलइवाली ड, चलवली ग, चकोरा फ. रंगा ६ मन क, पाषठीन ब, तरंग अ ड इफ, तरंग कग, कछप ब, रंग फ, करता रंग ग. ७ आइ, छाहि बड, उच्छा ८ पालिक पालि इ, पालिइफ, क. अंबवनइ ब, अंबवनिक ड, ब, रंग कड, करिता त्रिभुवन क, ड, रूपि ब क रूप फ ग जयंति य इयंति फ. ९ वाला बइ ग, चालती फ, मोहनवेलि क फ ग, अवगणी बग, फलनपति ब, फणति फ, बेलि व क. त्रिभोवन १० भेलोय ब, अम्हनि इ, देखतां ड, सेवि ब, वि फ वधिपरिफ, कानन ड, वनमाहि फ, मांहई ब, माहिई क, माहिंई ड, माहई इ, हेवि ग. ११ भेहवा डइ, विचन फ, शेवकमा फ, थ्यु बकडइफग, अवधुत फ, यम इ, गराजिइ बकड, गर्जित इ, गरजति फ, गरज ग केकी कइफग, कीगाइ ब, कींगाई कड, गाइ इ, पेमपंकि वग. Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर १२ अ ह मां 'आ कडी नथी. तेना पाठभेद - चालक व क, संदरि बकण, कार्जि क, जो ब, जुफ, सुखराशि ब, देखूं व फ, मुरू व तोमुझि इ, दाफ क फ. इफ, सुणि व, सुणू इ, सुणउ फ, तेनुं बड, तेहनुं कहफग, श्रवण फ, सार ग, लगई बड, लगई क, लगिइ ब, मनि फग, उपन्यो बड उपनु कफ, उपनो ग, आण्ड कइ, जाणई ग, मिलूं केवार व, मिलुं किवार क, मलूं किवारि इ, मिलूं किवहार फ, मिलं किवार ग. १३ नाम डक, सुभ्यु 花 १४ नाम बकडइ, जसु अफ, साभलइ व, सांभउ क, सांभ ई ङ, सालि इ, तस सामली फ, सांभलिई ग, लागउ क, नरनि इ, कीधो ग, आपुह ब १५ करतो कर, करतु डग करतु फ, चालिक, चाल्यो ड, चालउ इ, दी कइ, दोठउं बड, दीठो फ, आराम ड, कानन इ, आव्यु फग, आविउ व, अव्युं ड. १६ नीब इ, वहू क, बही फ, बीवल व, बाउलि क, बावलि क, बावलि ड, बावल फग, बोर डइ, के दंब फ, साल बकडइग, रसाला कड, बोल तमाल फ. १७ पुन्नाग इ, पूगी बकडफ, बहु कड, ऊर्जा व चंग कडइफग, प्र अंगु डकइ फ, सुरंग ब, उत्तुंग क, अनोपत्रेन बदले कड, नारंगी अकडइ, बोल लचित बड. १८ पनस बकडग, पनग इ, फणस फ, प्रियाल कड, बिजोरी ग, करमदा फ, दास ग, बम ड, केरालाल बकडइग, केलांलाल फ. १९ कुरबक ब, असोक ग, कामीबकुल वडइग, केतकी क, केतक बडइ फ, मालति ब. २० पालडेवालुं व, पाडलवालु कइफ, पाडलिवाल ड, पाडल वालो ग, करिइ इ, गूंजार ड, कउ क ब, कहुकहु डड्ग, कोकिल बहू फ, शब्द व सबद डफ, सुणवि फ. २१ अम फ, कानन ड, जोतो डबइ, जोतु फग, अंबतलि वड, अंलिंक इ, लइ बड, लक्ष्य फगम नथी, विश्राम बइ, रूपतण बकग, रूपतणू ड, रूपतणं इ, धाम क, धीमा ब. २२ कुलि फ, कुठोल ग, भुयंगम कड, भुयंग इ, परनालि बकडफ, परनाल ग, गोफण कग, गोफणु डइफ, आइने बदले उपइ इर्मा छे, रहिउ कफ, भइरह्यू ड, भाइ ग, नितंब क, नितिंबई ड, नितंबि इफ, सोहि इ, सविशाली अ, सुविशाल कड, सुविशाल इफग २३ मदनसेरी फ, जसा ब, यसु इ, अठुमि बक, अठम फ, अठुमी सखी, सोंगिण ब, सोंगणी कडई, शोमणि फ कांमनी क कामिनी ड कामनी इ, कामीनी मुहि फ, भमुह ग, अणिआलि बकडग, अणिआलि इ, अणी आली फ, मोह्या बैल इ, मोहया बेल फ. २४ ममहि ग, अणिमाला व अणिआलि ग, ब, जाने कइफ ग, आणइ ड, जणे लोधा २५ सेविइ, सेव फ, बनवासी फ, नोरि बइग, दूरि पडति इ, ठांमि अ, वली इग, मनमहि वडफ, ममाहिं कग, मनमि मां नथी. इ, बाणि चकडइ, बाणें फ, बाण ग, जाण् तांणी फम छे. पर्हिति फ, पहंति ग, भीतिंग, 'बलि' ड Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर २६ दीपसंखा इ, दीपशाखा फ. नाशा उनत ब, नास्याउन्नति क, कुसम इफग, अनुसार फ, मुखरूचि नीतई ब, मुखरूचो कड, मुखरुचि जिपइ इ, मुख रूचि जितइ ग, ससिंहर इफ, ममंडलि ब, मंडलि क. २७ अधुर बडफ, दसति कड, देसनि ब, मनिभूरि ड, मणिभूर इ, हेजिम ब, हेजइ फ, जाणे कडइ, जाणई ग, 'वरसइ जाणे' ब , नुपूर ब, पगर नूपुरा ड, फूल पगरनु फ, फूलपारनोपूर ग. २८ वणि पाप ब, श्रवणि पासि ड, सोहि इ, फ, वींणो कमां छे, तणउ क, सुविश्याल कड, कलकंठा ब, सुस्माल डग. २९ सुकमाल फ, सरोरा बक, कलम बकड, कुब भारा फ, कुभारा ड, पीनं क, जिती ड. करिक भी ड. 'जोवन' यव जनने बदले छे ड मां. ३० पंकजमाला ड, पंकजलाली फ, अगुलि बग, अंगुल इ, जिम ग, पवाली फ, भिम ग, त्रिवल फ, विशालो फ. ३१ निध कड, रंभा थंभा थंभनी उरं फ उरमनोहरा इ, उर ग, मने हर फ, जंघ फ, जूली बफ, जुठली क, हूं ली ड, जुदुलो इ, उनत ब, अंगुलि ग, कुलो ग. ३२ "ग" डमां नधी, पहिरा ब, पहिरी कइफ, पहरी ग, प्रत पोली ब, पीत पटकुली ड, पीतपटोलो इ, सोहि फ, श गारा ब, शृगार क. मात्यु ड, मोह्यो इ, नादिई बड, नाई क, नादि वेधउ इ, नादि वेधु फ, नादिई वेधुयु ग, लइ पामिउ बक, पाम्यु ड, ग, लयपामि फ. चितइ ब, अवतग ब, मनिवर फ, सापि ग, कौतुक इ, भाप ब. ३५ आपो आपि इग, आवो आआपि फ, अमरी ड, समरो अग, भिवाईति ग, जिवा मंडती ब, काम अडइग, मोहनी ग, रूपिं क, रूइ फ, रूवि ग, मनमोरि इ, मनमोरइ फ. ३६ नयनबारथी इ, सु दरिं क, सरू। ग, लहयूं लहयु डग, जिम मरूथलि जलकुप क, जममस्थली जलकूप इ, निम जल लहयुं अनूप ग. ३७ महिई ब, माहि कड, थआं ग, अहदरसनि ब, अहदरश न क, अहनइ दरिमनि ड, अहनि दरसणि इ, मेहदरिसनि ग, अमोइ बडफ, वूछ ब, ठुमेह ड, बूंठ इ, बुलु मेह फ, यूठा मेह ग. ३८ किसइ बकड, सिह इ, किसिइ फ, किसई ग, उपायि बक, उगाय ड, उगय इफ, खोलावूस क, बोलाबू डफ, बोल,बु ग, अहवं के, अहवू डग, अहवू इ, चिंतह इ, सैन्यतुणु ड, सैमतणउ इ, सैनितणउ फ, सैन्यतणुं ग. ३९ विलखु भयु डग, विलखठ थयु ब, विलखो थउ इ, वलख उ थयु फ, अलोप बडइफ, यमहरिइ इ, जिम हरईग, पाडि फ, पाडई ग. ४० अणदीठानु बफ, अणदीठानुं कडइग, दोडं व, दीठ ड, इ, विध रसाल फ, वक टइ ब, विघटे इ, भूक्षा फ, भोजिन ब, डम को करि इ. Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ४१ मांहई ब, माहिइ क, अकूरह थी ब, अंकुराथी इग. ४२ पर कलडा ग, पिहिलू बड, पहिलू क, पहलू इ, पहिलू फ, ग, नेह डइ, भाइ फग, हविही इ, हिवइ फ, बाई क, उवेखी इ, कांउवेखी ग, ४३ प्रतिजू बड, प्राणतिजु कग, प्रांण तिनुं इ, प्राणतजू फ, जउ कइ, नवपामुंव, पामु क, पामू डफ अहवू बड, अहवू कग, अहेवु इ, चिति क, चिति इ, चित्त विति ग, ल गु बडइ, सघलु बकग, तिणि ब, तिणिधरि इ, तेणिपालि शेन्य फ, तेणि थलि ग ४४ गोता जो तां अकडइग, जोता जोता फ. दूरिगयु बकडयइ, दरि गयु ग, विकलस अग, सोवन फग, डंड ड, दंडने बदले "मंडर छे गर्मा, गगनिस्यूं ब, गगनस्यूं क, गगनस्युडइग, गगनसिकं फ. ४५ चदकति सम बड, चंद्रकातियम इ, उअलु बकडफ, उअलू इ, उ अलो ग, तोरणा ब, अठत्ता सो ड, अठोत्तरसयो इ, अठोत्तर सय ग, फटिकमय ब, फटिकइफ, पावडीयारा फ, पावडियारा ग, झलकतिनी जग्याऐ "प्रसाद" ब. ४६ चिहुदस फ, सरसबकडग, सरीखी फ, जलह नइ ग, वातायण क, उलि बकडइफ, चउबारु बड, चउबारउ क, चउवारो ग, प्रासावाताहा ब मां छे, पोढि दीपइ पोलि गमां छे. ४७ पोल प्रवेश इ. कीड बकडइग, कीयु फ, कैतुकि क, कोतकइ फ, देखइ चइत समाइ फ, हरिस्थिउ ब, हरख्यु ड, हरख्यो इ, तिमयम इ, सागरमई क, मश्यिइ ड, मीठी ___ अ, सागरमाहिं इ, सागरमध्ये फ. १८ चुकी डग, उलोल ब, अल्लोब फ, नहीं ब, विज्ञानि ब, विविधि ड, कंटुक फ, विज्ञान ब, वज्ञान फ. ४९ सोवन ग, दंडई बकग, दंडिई इ, सोहिक क, करग्रही इ, करीग्रही ग, तेजिई क, तिजइ इ, तेजिइ फ, मोहि फ. ५० “अगर आमोरय" फ, वासि ग, दसदिसि बक, दसदसि डग, दशदिशि इ, दसदसी फ, दसइदिसि ग, भमतीइ बक, प्रदक्षिण डइ, प्रद६ ण फ, पामिउ ब, पाम्यु कग, पाम्यु डइ, पामि फ, हरिस फ. ढाल ५ गमारि इ, ते गमायइ फ, ऋषभजिनदनी ड, अषभजिन दन फ, कोषमनिणंदनी ग, दरिसनि ग, मोठोरे अ, पाम्यु वग, पाम्युड, पासिउ फ, कुयर इफ, जिमेसि ब, ससि कग, सशि फ, यम इ, चकुर ब, हरखि इ, शुद्ध ब, शुधि क, त्रिकर शुधि ड, सुध इफ, आणंद क, शुद्धि व, करी बकग, कनि इ, स्तवइ बकडइग, स्तबोय फ, वारोवाउ डइफ, व रिवारि ग, पूकरीनिं इ, करीनइ ग, मंडपि वक डइफग, सोई फ, करग्रही क, आविउ बक, आव्यो ड, आवं उ इ, आवि फ, तिहांकणि कडइ, तिहा कण फ, तिहांकण ग, रमझिमि अ, रमिझिमि क, रमझम Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ६७ इग, रमझिम फ, कुमरि ड, करिती फ, करति ग, चंद्रविदनी फ, भारोपति ग, हियडिरंगि ग, हीडइ रंग फ, नयनभाव इ, प्रणाम बकडग, करिडइ कुंभर ब, मणिइ ड, आव्या तुम्हे सज्जनने बदले "तुम्हे आव्या सज्जन" फ मां छे. सजन ब, अवतर्या बग, अवतरया कडइफ, कुलिकिहि ड, कुलकेहि इ, कुलिकहि ग, कुमरी वंशावली अ मां छे, कहि उ, रषि ब. ऋषि कहिइ कुमर तुम्ह इमां छे, कुमरतुम्ह फ, दरसनि ब, दरशनि क, दर्शन इ इ, दरसणि फ, रषिनु ब, ऋषिनु कइ, ऋषिनु डग, पूछि कुमररषिनु फ, बहुविध ड, बहुवधि फ, तुम्हपास ड, कूउंण क, कुण ड, एहनी क, कहु बडग, कहोखरी इ, कहुंखरी फ. चालि अहछि इफ, अछइ ग, जिनपूजानइ बक, जिनपूजनिं इ, महु कबड, “इम हुइ व्याघातरे" फमां छे, विधातरे इ, जिन पूजाका इ ब, पूजाकाज कग, जिनपूजाका जिरे इडफ, वेगई बकडइ, वेगि ग, पोहतो इग, पुहुत ब, पुहुतु कड, पहुतु फ, प्रकारि बकडग, धनधुरि इ, “गभीर विचन धुनि" फ मां छे चैतिवंद फ, स्तवनकरि इ, जीवित फ, मूझ फ, तनुमन इ, शाशन ब, शासन्न ड, ताहरू ड, तहारूं इ, जोलहयू ब, बउल हयु ब, ओला युड, जउल हूं इ, जुल हीइ फ, तउ टल्यु ब, तुटल्यु कड, तो टलुइ, दुःखप्रविचार फ तं देव क, तुं देव ग, ततवजिवित फ, माता शब्द नथी फां, हजापति ब, अगति फग, तुंह जिगति क, तुहुजगति ड. स्वाभि कग, अभीराम इ, निसिदिवस बकडफग, सूता फ, बेसतां ग, “निशि' अ मां छे, नि स्वप्नि बइ, सवपनि फ, नइ कड ताहरां ब, ध्याना ब, मोरूचिति फ. हुठ क, होयोसदालीन फ, रंगरेलि ड, कुरंगरेल्या फ, चरण कइ, मुझ ग, माहारूं क, माहारूं डइ, चरणि कगइ, जेहालहुं इ, जानलहूं फ, सारस्वता ड, स्वासता फ, मुगतिनां इ, जिननइ कइ, करिइ इ, "रुक्ष इम कहीं" फ मां छे तुझनि इ, आंणताहारी क, तकहारी इ, अणि फ. ढाल ६ राग गुडीमांहइं १. भावभलु कडग, भावभलो इ, “भाव घणउ" फ मां छे मनमाहइ ब, मनमा हिई क, मन मांहोइ डग, आ व ब, मम छिई अ, “बैठ 3 दिठउ राजसुत" गई छे २. चकोरा कइ, लोयणा फ, सगि क, तरंगि क, तरंग इ, तुरंग फ ३. दृष्टई इ, दृष्टि फ, दृष्ट ग, खिनखिन बइ, "आडो टाई खिणि जोई ड मा छे' हात ग, खिरिइ इ, सूमुखो क, सनमुखी इ, सुनमुख फ. ४. नेह न पाइ फ, नयने बडइ, नयणे बक, ऋणे फ, फिरफिर) ड, गोफणु क, गोफणु ड, गोफणो इ, अभाइ क, घणउ कइ, घणूं ड, घणू ग. Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पाठांतर ५. मिसिई बड, मिसई कग, मिसि इ, जिसि फ दिखाडइ ग, तनि प्रभंगी ब, इभवसइ अग, मां छे'' मदवसिइं ड, मदवसि इ, मदवसिइ फ, गरलजसी इ, हुइ ग, चांपांछोड बकड, मोडामोडि ब. ६. सलाका कड, शालाका फ, चबकई ब, चबकइ क, बांधिउ फ, दोरीइ ब, नअनदोरोइ क, जांणि क, बिचोरीइ क, चोरोही बड. ७. नयना कग, दूतीपण बडइफ, दूतीपणू क, दुतीपणु' ग, मननई मन अ, करि इ, अछि फ, पछइ अ, पछि इ, अकगाण ब, अकापणु क, अकंगण ड, अकांपण इ, अकारणू फ, परि बडफग, परि इ, सहीयारोकरि इ, सहीयारु फ, सहियारू ग, मनई ब मां छे जिव्यइजिव फ, जिवि जिव ग, प्रेमि फ, परिवरिइ इ, परवरइ फ. ८. प्रीयुस्युं क, प्रोउस्यु ब, प्रउस्यु ड, प्रोउसिर फ, प्रियेस्यु ग, लागु बकइफग, प्रेममन ब, मनरुचिई कग, मनरुचद ड, मररूचि इ, मनरूचिद फ, संचापि इ, विचिई क, ड, विचि इ, विचिइ फग, जाणेक वस्तू ब, वस्त फ, अवगण बडग, अवगणुं क, अव गुणू इ, प्रीउतणू बडइ, प्रीउतणुं कफग, ९. छि फ, प्राणीनइ ब, पांणीनइ ब, प्राणोन इ, नादई ब, नादिई ड, नादी इ, नादी फ, वेध्य ब, वेध्युमृगलु डग, वेध्यो मृग इ, वेध्यु मृग फ, मृगजिम कइ, मृगयम फ मां छे. दोवामांहइ ब, दीबामाहिं क, दोवामांहिं डग, दीवामांहि इ, दीवामाहि फ, तडफडिइ इ. वेध्यू ब, वेयु उग, वेध्यो इ, वधिलं फ. दाह बकाग, सहिदाह फ, अली इ, मांहइ ब, माहि ड, माहिइं ग, मरिइ ड, आभिसनइ क, रसिंइ ड, प्रेमिवसिई कड प्रेमवसि ड, प्रेमवस्यई फ. ११ कुहुनई क, कहुनइ डग, कहुनि ड, कहएनइ फ, वातु ड, माहिथी ड, सातधात अग प्रेमतणो इ, पेमतणु ग, बुझइ इग, आपोभापि डइ, बुझइ आपि "ब मां छे.'' १२ बइर ब, कवु ब, नयनांन ब, नयणांनि कडइ नयणानि फ, सरिपातिग ब, सरिपातक क, सिरिपतिक ड, सिरिपात्तिग फ, निसिदिनि ड, “चिंता बहइ अतीव' डमां छे, दहिं फ, प्रेम करयय क, प्रेमक'धु ड, प्रेमकरयो ड, प्रेमकरिउ फ, ताहाँ ग, बांध्या ब पांधुजिव ड, बाँधन इ, बांध्यो जिव ग, नीद्रा ड, जाणइ इ. १३ मुखत्रस फ, नीद्रा ड, निगमी बइग, जाणई अड, तपशाइ फ, तपसाधे ग, बोल्यू चाल्यू बकग, बोल्यु चाल्यु ड, बोलु चालु ड, बोलि उ, बलि उ, कहिस्यु बकडग, काहसुं ड, कृसतनु बग, दोहिलई बकइ, दोहलई ड, दोहिलुइ ग, नोगमई बग. १४. "वालइ आमु' इ मां छे, मनमह आणी वड, सुंदरी मांगो मनमा हे धीर कफ, मन मिधीर इ, मनमा हि ण धीर ग, कुमरनि पणि इ, मन ते १क एक कहायइ अ, मनंई मन पछइ एक २६ ब, मनई मन कहाइ ड, मनि मन्न ते एक कहाइ इ, मनिइ मततव कहिवाइ फ. १. Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ६९ १५ बिहूनि इ, बेहूनइफ, हुइ सरेखु व, हुइ सांरिपुं, हुइसारपूं ड, होइ सारिख इ, हुइ सारिख फ, तणू पारिखूं ब, तण्ठ पारिखूं फग, इणि फ, ओतलं बकइफग, मेतलं ड, प्रेमत मोटु ठग, आाधारी ब, संसारिइ क, संसारि डफ, संसारिं इ. १६ पूण्यवंत ग, जिवीतवई फ, तस हवइ ब, सवि हुवइ फ, हिवर क, "हवइ ते साही तापस" फमां छे कुमरनि ग, आव्यो बइ, आव्यू क, आव्यु डग, आविद फ. १७ चैत्यथिकी क, चैत्य उतरनई ड, उतरनई ड, उत्तरनइ बक, उत्तरनिं इ, अडवए ब, उडवलु क, उडवुं डइग, उडवउं फ, अकअच्छ ग, सुप्रकाशि वड, सुप्रकाश कइ, कुमरनिं तेहां इ, पमाधुयूड अ, अधिक कड, "ओ माहरु अधिकु आहलाद " फम ! छे, अधिक ग, आल्हाद इ. मंत्रितावती बडइफ, १८ कहिंवा क, कहवा इ, लागु बडइफग, पुरवपात कइ, मंचितावती क १९ तेहनि फ, प्रीयदर्शना अ, प्रीउदरशणा फ, प्रीय दरक्षिणा फ, दरसिणा फ, प्रियदर्शना ग, तासे ब, तासु ड. २० रायरवाडी इ, ब, संचडो ब, संचरध्यु ड, संचरिउ इ, संचर्यो ग, मेकदिनि बग, अक दिनों फ, चतुरंगदल बकडइग, चितुरंगमदल फ, परिवयों ब, परिवर्यठक, परव ड, परवरिउ इ, परवर्यो ग, शूकलहय ग, आयु बडग, आवो इ, "अस्वकलम अक आयु मेटि" फमां छे, जेहवु बकग, जेहवुं इ. २१ तेइ क, तेइ थयु डफग, तेण थयु इ, तुरंगंम क, कोधु वकइ, तरंगई कीधोग, वायूंब, वाड, वारयो न रहि इ, वारिव न रहि फ, वायुंग व्यसनी ड, व्यसना जेमजेम ब, विस्थनी जेम फ, उल्लाघी ड, उलांधिउ फ, परवत्तनी शीम फ. १ २ ३ ४ ढाल ७ अकलु कडग, आलंबी इ आण्यउ क, आग्यु ड, आपां इ, आणु फ, आयुं ग, कांनन क, कान ड, भेकलां इ, आकलउ ब, आकलु कडइ, आकुलु फ, अकल्युग, तरुडाल बक, तरुयरडालि इ, "अवलंबी डाली" फर्मा छे, तुरुंगनिक, महेलिउ ब, मेहल्यु डग, मेहल्यो इ, मल्हउ फ, भूपाल बकड. मोल मोड ब, मुडइ मुडई इ, मोडइ मोडइ फ, तरुथठ कइ, तुरपी फ, उतरिइ इ, उतरफ, उतरइ ग, जोतो बग, वनिजोतु ड, वनजोतु फ, फिरिइ इ, दीठ व, दो कंडग, सरुवर चंग इ, शशिहर फ, जहां इ, नोर तरंगि ब. विरही विरही क, यम च वरहो फ, पीयमुख बडइ, प्रियमुख देख कग, मयसुखदेखि फ, मनमांहि बग, मनमां इ, पांमि फ, विसेष ब, क, विशेष इग, वश्येष फ, रलीभाय ब, रलीयायत कइफ, रलिआयत ग, थयु बकडइफग ससिचकोरा महिगह्यू ब, चकोरां मनगहिंगयु क, ससिचकोर गहिगहइ ड, यमससि गहइगहयो इ, महिगयु फ, गहिगुहयउ ग. त्रपततयुब, तृपथ्यु क, तृपततयु ड, यु तृप्त इ, तृपतु (तृ) पतु फ, तृपतथयु ग, राजाई करा, रती ग. Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ५ सरखू' बड, सरखु कग, सरीखउ फ, पामिउ बकइफ, पामु ड, अदिक फ, पाम्यु ग, अधिकउ ब, चालिउ बफ, चाल्य क, चाल्यु ड, चाल्यो इ, धरीय ब, धरीय ववेक फ. ६ कछमहाकछ कग, कच्छमाहाकच्छु फ, वंशयंगार फग, वश्चलूत फ, विश्वभूति ब, कुलपतिनइ इ, कीधु प्रणांम व, कीध प्रणांम क, राजाई ब. ७. निरमल कडग, नरमल इफ, यू आनंद क, यु आनंद डग, द्यो आनंद इ, दिठ आणंद फ, रषि ब, आसीस ड, माहोमाहाइ ब, माहोमांहि कग, कुसल फ, पूछइ ग. ८ मेहेवइ कुलाहाल इ, अहवि कुल्हाल फ, उछलिठ बक, छल्या ड, उछलिअ इ, उछल्यु फ. उछल्युं ग, खलखल भल्य ब, खल भदिउ क, खलभल्यो ड, खलभलउ . खलभल्यु ग, राजाकहि इफग, मनिमाणू बकग, मनिमानु ड, मनिमाणो इ, मनिमाणिउ फ, भ्रांति फ, नही बड, रिति ग. ९ सैन फ, कर्म उनसारि फ, इनइ कग, मेणे फ, निधार ड, निर्धारि फ, निर्धार ग, अहवू क, अहेवु इ, अहवू फग, उठउ इ, उठी अग, उतारयु क, उतारयो इ, उतारइ ग, थारि फ. १० मासिक, तेणि ब, तिणइ इ, तेणई ग, रहयो इ, रहथु ग, ऋषभतणो इ, ऋषमतणु ड, कराविउ क, अककरावउ इ, कराव्यु ग, उहलादि बफ, भाहलाद क, उल्हादि ड, अहालदि इ. ११ दोउ बकग, राजानिदीउ इ, दीयु फ, तापस ड, तापसइ क, अतिथ धरम फ, कोउ बकडइग, कीधु फ, हिवइ ब, मंदिर बइग, आव्यु बकडइ, राज्य बड, हरिइ इ, अन्याइ फ. १२ इकदिनि ग, कोय फ, आविउ फ, आव्यु डइग, माहमति सोय फ, विनयपुरव फ, विनयपूर्व ग, करि इ, वाणी बग, उच्चरिइ इ, मुखी ग. १३ उपागारी इ, सुणो तुम्हें इ, सुंणि छई क, अकछि फ, मोटु धर्मनु बकडइ, धर्मनू फ. पिदर्शन क, प्रियुदर्शनछि फ. १४ प्रीतिमती ड, तेहनि इ नंदनी फ, रूपि इ, आनंदनी इ, नागि बइ, नागिडंसी क, नागडस्यी फ, नागइ डसि ग, थयु बकडग, थउ इ. १५ विणु इ, नृपनि इ, वइदिइ विवीध फ, पण ब, थाय डइ, तेहनि किसु इ, तसु गुण नवि थाइ क. १६ उपकारि ब, उपगारि क, शिरोमणि कड, सरोमणि इ, हूं बकड, मोकल्यु बकडग, 'ओ अवसर' बकड, उपगारनठ फ, उपगारनो इग, घणु ड, “जे वीवसइ तुम्हनई जस घणउ'' फमां छे. १७ स्युं ड, स्यूं व, करउ क, करिइ इ, अजूभालू बड, अजिभालं क, अजूयालं करि इ, अज़्याल फ, शशीरि फ. १८ ज्याव्या बकड, विणु इ, तुर फ, करि इ, आपणपई ड, भापणपिं इ, आपणयइं ग, अणुसरइ ड, आणुसरइ इ, आताप उणसरइ फ, सहकहिनइ बकड, सहकहनई ग, सजन बकड, सरखा बड, सरीसा इ. Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ७१ १९ सिहि जइ ब, सहजइ क, सहिजि फ, करि इ, सहिजि पर नइ करइ फ, वंछिइ नही इ, _ लगार ब, तेणइ क, सजनि ब, सुजनइ फ, सजन ग, सोहि इ, शोभइ ड, उगतई तसु पूज्यई अ. २० हिवइ ब, स्वामी इग, मल्लावर क, वेगिई ब, वेगि प, अबलानी क, करो इ, करउ फ, करामि ब, आरूही ड, सुणीनेइराय फ, आरोती इ, करिभि अरोही पेगि जाय फ, वेगेई बकड, वेगि इ, या रेही वेगिई जाई ग. २१ मंत्रिं इ, वाल्यु कबफ, वाल्यु डग, वालुयेवली फ, मंगल ड, वाणी ड, प्रियदर्श___नराय बक, तेहनि इ, उछाहि बइग, उच्छाहि कड. २२ हरषेणड ड, प्रीतीमतोनि इ, आविउ ब, आव्यु क, आव्यो ड, आq इ, निज ( ) री ब, नीजपुरी इ, भूआल बक. २३ गयु पकडहग, केतोकाल इ, केतु उकाल क, पामिउ व, पाम्यत क, पाम्यु डग, पामउ इ, यौवन क, "यौवनन विसाल' इ, योनरसाल फ, राजिभार फ, तेहनइ बडफ, नेहनि इ, घरी ग, सिर धरि इ, वर्त क, आदरिइं इ. २४ विस्वभूरि क, तापना ब, पाय उ, सेविइ इ, अनुदिन ब, प्रीतिवतीनई ड, अहवि इ, गर्भवधि बड, क्रमि ऋमि क, कमि कमिइ ड. २५ पकट ग, प्रगटइ फ, पंचममास क, पंचममामि ड, पंचभेमासि ग, “पोन सुपकास" कमां छे, सुप्रकाश ड, सुकास इ, गोरगल ब, गोर गल्ल क, गोरगल ड, त्रिवलीनु कडइग. २६ व्रतलजा ब, लजा कारणि ड, अहवू बइ, अहनु क, अहवू डग, राजादेखोनि इ, अभिनवु बकइ, अभिनवू डग, अकांतिइ बकड, अकांति इ, अकांति फ, मनि काफग, धउतो इ. २७ असही कइ, तेणि ब, तेणइ कडइग, समिइ इ, पणमई बग, प्रियनइ बक, प्रियनि इ, इमहिइं ड, बेहूं ड, बिहू ग, चितिइ क, चिंति इ, चित ग, विमाशी रहि फ. २८ ठामि बकइफ, ठामि ड, आपणि ठाम ग, अनेरे ब, अनेरि इ, जस्यूं क, जस्यू डग, .. जस्यु इ, असिउ फ, अहीसही रसि करसइ हसू ब, 'मही रहिता करसइहसू' क, कहिइ सहू करसइ हसूड, कहोई कसरहस्यु इ, अहो रहिइ करस्यइ हसुं फ, अहिइ सह ऋषिकरसि हसू ग, वीती बडइ, वंती क, सुता इ. बिह क. बेहं ब. जगां बहुं इ, पहिवइसा व, प्रहिवाहिसो कग, प्रहिवइसी ड, प्रहिवहसी इ, जमिइ इ. २९ जोइ तु ब, जोइ तुं, सरसूकुं वइग, सरसुंकुं कड, त्यजइ बकड, त्यजई इ, तजई फ, __ तजइ ग, उभन्जइ ड ३० मंद मंद बफ, आतु बकडफग, मदर इ, मुनिक बडइग, सविवेक वडग, सुविवेकु फ, राजऋषि क, कांइं ड, पूछिकाइ फ, पूछइ कांओ ग, गआ फ. ३१ ते तास ड, आणि बडग, बोरिहार अ, संगिंवृथा अ, झलिलरि इ, झल्लरी ग, व्रथा बड, वृथा अग, प्रहारनयथी क. ३२ विषमश्रत फ, यमहेय इ, कुसंगति ग, परजेह इ, वरजेइ कफ, वायस फ, होषी Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ पाठांतर क, हाणायु बकडइ, हाणायु, हणायुं ग, सपिणि ब, विसपिणि कर, मतकुण ड, विसर्पिणि ग. ३३ वापण बक, वापनु ड, वायु पनइ, वायपणि ग, कुष्टीनु वर्जवु कड, कुठिनो इ, वर्जि वठ फ, वज्जवउ ग, डाहि ब, कुशंगति अ, कुसंगतेम इ, तरजवु ब, तजुवुने बदले वर्जवु डमां, तजवउ फ, तज्व उ ग, वहिल कड, वहलु इ, विहिल फ, बहुले ग, गयु कडग, गउ इ, विलखु थइ रह्यु बकड, विलेखा थइ रहठ इ, विलखु यह रहिउ फ. ३१ ते निंदी रह्या क, “निदी रह्या” इ, तंदी ते रह्या फ, निदि ग, सरखा बक, सरखागया ड, सरिखागया ग, पूरण बडइ, पूरणमास क, पूरइमासि फ, पूरणमासि ग, सुविलास कफ. ३५ ऋषिप्रसाद ग, नामिइव, नांइ ड, रिषिदत्ता नामि इ, नामि ग, सुयरोगि बइ, सूयरोगिई फ, सूआरोगी ग, पामो ब, प्रीतिमतीनां पुहुंता फ, पुहुता बड, पुहता इ. ३६ ते बालानइ बक, पालई ग, रूपलाइ ग, ते बालइ फ, क्लाइ बडइ, अणि ड, जिपती फ, तातिइ ड. ३७ रूपवंति ब, रूपवंती इग, हवइ ग, कउ दूष्टपणुब, दुष्टपणु कइग, दुष्टपणूं ड, चीतवइ अ. बीचतवइ इ. लोचन इफग, लोचन शुधि ड, भद्रशीकरण डइफ. मशीकरण ग, मई कग, कीध ग. ३८ हंतात ब, मइ अ, "तुझ सघलो कहीं वात' अबकइफग, इणीई आपि इ, भापइ अ, दरसन क, दरिसन ड, दरसण फ, हरिशन ग, दिद्ध ग, तु देखीनि इ, मोहि ग, मूंधि बड, मुधि क, मुधि फ, मुद्धि ग. ढाल ८ १ कुमरनुं बडग, कुमरतुं क, कुमरनु फ, शसि अ, मसि क, वसि अ, नेहवनिक, नेहय सईड, मनु सुताओ फ, नयण क, नयन खंचइसे फ, "अंचले ने बदले पंसे छे" अवओ ड, मरकल ग, गुणयुताए क, वेधविलूघडी मे कडइग, मनस्यूं बकफ, मनस्यु डग, मऊसु इ, वयु ब, वेधरू फ, वस्यउ ग, सविगुणइ परिवरित ब, सविगुणी परिवर्यु क, सविगुणपरिवयु ड, सविगुणिं परवरीउ य, परवर्क फ, सविगुण परिवर्या ग, अंखडीम इ, करीधरी आंखडी फ, अंखडी अ. घटक भवराहि इ, अवराह ग, मनमाहि ड, करीमाहिं ई, अंगिमलही क, अंगिति फ, अंगितिइ ग, रूधिउ ब, रुध्यउ क, रुंध्यु डग, रहि ग, रुंध्योरहि इ, रुच्युरहि फ, किम क, उलतीयां ब, अलटिउ फ, उनयु बड, उनहयु क, उननउ इ, ढांक्यु बक, ढाक्यु ड, ढाक्यो इ, ढाकिउ फ, ढाक्यो ग, कहिनु कग, कहितु ड, कइहनु फ, वचन डइ, पकट फ, करिइ इ, कुमरणि बकड, कुमरपण्य फ, कुमरिपणि ग, तसपेमलवधु बडफ, लुधउ क, लुधु इ, तेहनु फ, मनि बडग, मनिध क, तेहनि मति धरिद इ, (मुनिधरी फ). Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर चालि २ मुनिधरी फ, बेहू, बग, बेहु इ, तणु ड, तणुं ग, दुधसाकर मिल्या बक, डफग, दुधसाकर मल्याइ, अतिहई उमाहइं ब, उमाहइ ड, उमाहेमे ग, करती फग, वीहावाहए ब, वीहवाह फ, चितत फ, विवाहले ग, बेहतंणा बक, फल्यां बकड. इग, चंदमइ अ, रतिअनि इ, लक्ष्मी बड, लखमी इग, कुमरीमे बड, कुमरमइ कुमरी अ, क, कुमरनिं कुमरोय इफग, संयोगिइ ओ डफ, सांयोगिइए इग, मामामंद ग, उपनु मे क, उपमोमे इ. टक उपनु कड, उपनु फ, उपजइ ग, पालविउ बकफ, छालव्यु डइग, प्रीतिनु कफ, पोतिनो इ, पीतिनुं ग, पणि ब, रह्य ब, रहिउ कफ, रह्यु डग, रह्यो इ, दीन्ह ग, मुग्धपणि थइ कडफ, मुग्धपणिइ थइ इ, मुग्धथइ पणि ग, कुशमनई ब, कुशनई ड, कुसुमनि इ, संबंधि अ, हुइ सुगंध ब, तेलहुइ सुंगध कडग, होइ सुगंध इ, "तैल निर्मल'' बमां छे, पामति ग, पामीते क, संगतिइ डग, संगति इ, तणो होइ इ, होत प्रकास फ, गुणतणु होत प्रकाश ग. चालि ३ प्रेमनु बकफ, प्रेमनुं ग, प्रेमनो इ, बेहनउ अ, बेहनु कफ, बेहुनु ड, बेहुनो इ, बेह नउ ग, मनमाहई ब, मनमाहि क, मामाहइं ड, मनमाहि फ, अतिलहोइमे ड, लाडिगहिली अनई अ, नइ बफ, गहेलि क, गहइलीनई ड, गहेलोनइ इ, मतकिम ग, दुखदे ब, मन दुखदाखई से कइ, दुखदेइहि ड, मतमिक दूखदीउ फ, अम कहइ ब, मेमकहि मे फ, भलामण बकईफग, मोकलामण कफग, मोकल्यामण ड, नवकारतणुं बग, नवकारणु इ, पुत्रीतुंन इ, पुत्री, इ, पुत्रीनुड ग, पुत्रीसु विरहि फ, मे अब, वधारानो शब्द छे, सहिहु ब, सहयु डग, मिसहयू इ, सहूजाइए फ, अणुसरिइ मे इ. त्रुटक अणुसरह ब, अणुसरि इ, जाम अ, जामा ड, पाम्यु ड, पामिल कइफ, ताम अ, तलवलि इ, तांम अ, दिन ग, "विरहइं ने बदले विणरहई छे" विरहिं इ, यम नी. रवाण ण रहइ फ, विरहइ ग, करुणागार क, सौजन्यनु कड, सौजन्युनू इग, सौजनिनु फ, "केही कोहि हित सीख' क, कहि केहि ड, केहि केहि ग, काइकहु कहु इ, चीती फ, चींति बड, चींति क, चिंती समरू इ, समरू चिंति ग, दूरथी देखी ब, "प्रणयने बदले प्रणम" छे, नयण बग, तेडउ ग, तेडतु बकड, तेडतो इ, तपउ फ, हीतधरी इ. चालि । आरोपीनिं इ, भारोपीनइ ग, सवेतनु इ, फरसतु बकड, फरसतो इ, फरसनु मे ग, चूबन फ, खीणखीण ग, खिणमाहरइ ड, माहरिइ इ, मनमना भाषिति इ, भाषिति Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर हसतु ग, हरखतो मे इ, खिणिखिणि ब, समरत क, निसि दिन इग, वनपणि गफ, अकनति ग, तातजिइ ब, "काइ वनतिजओ ने बदले तातजिसे बमां छे” का तातनी से क, प्राण तं गाइ कोई तातजि मे इ, प्रांण न कांइ जाइ तन तजि ग. Jटक प्राणन काइ न तजिमें फ, प्राण ग, तुउ क, तु ड, तुं ग, हूं कडइग, निरबांणि ब, नरवाणि फ, परहरी क, दोस क, केहइ देसि ड, दोसिइ फ, केहेइ ग, अति घरयो हूंइ काइ रोस इ, का तइ ग, तइंकां ब, कांतिइ बड, हूती इ, कहा बकडग, काही वसी फ, बेठी ग, प्रीउ पासि अ, सुतविलाश व, सविलास कग, सुविलास ड, सुविसाला इ, विलास क, सुविलासि ड, सुसिउं ब, सुतस्यु कडग, सुतसु इ, हरिखीया फ, अविसि ग, तातजिनइ बडग, तातजिनिइ पाइ क, तेर उर फ “रोरने बदले मेरे कमां छे' मनोरथ तेणी क, रीतिइ इ, मनमाहइ ब, मामांहिं क, हरी मननांहि ड, मनमाहि इ. चालि ५ मनमाहिं क, मनमांहिं डइ, मामाहि फ, मनमांहि ग, अम ग, बचने ड, वचनइ फ, ठार वइ ओ फ, वारवइ ओ ग, सुपरि क, अवड कडग, मनिकरउ फ, अबडो इ, स्योकये फ, सोको ब, हवि फ, चक्रवृत्ति अ, चक्रवति ड, चक्रधर फग, सुर(पति) शब्द नयी फमां, बलवंलिई क, बलवंतइ ड, बलवंति इ, बलवंत फ, मरण. स्यु कडग, मरणसं इ, कोइ न जगमाहिइ क, कोइ न जणिहिंई ड, जगमाहिई ग, जगमाहइं इ, जगमइ फ, विचाणोय कड, विवाणी से ग, कुशलनि इ, कालकुसलान फ, कुशलनइ ग, बलइसे ड. ब्रटक पुराण फ, नही बड, निवांण अ, निवाण बड, जाण अंजाण अ, सीरिसं इ, शरिस फ, देवसउप्राण ब, जहq ब, जेहवु क, जेहवो इ, कुशअग्रे बकड, कुशअग्नि ग, लेहवउ इफ, जेहवु ब, नही अ, निमिषनु ब, नमिषतु ड, नीमिषनो इ, नहींषणउ विसास कडी डमां नधी, नीमिषनु ग, जिविति कग, अहवू गब, मेहबुं क डक, सोका ग, विलंब न करइ डफ, वीसास साचो जिवित वधारानो शब्द इमां छे, इम जाणी करी इ, विलंबन करइ इ, “परिहरी ने बदले अणुसरी उमा छ, सोका ग. ढाल ९ १ कंतिके बड, कति के फ, बुझवी इ, गुणवती रे अ, गुणवणी रे क, आराधि ड, आराधई ग, ववेकिइ फ, विवेकाणि ग, धर्म ब, प्रेमिई ब, प्रेमइ ग, पदमिनि बकग, पदमनी इ, "सांसई ससइरे ने बदले फक्त सासइरे" ज छे बमा, सासइ ड, पोउ मासह इ, पीउ सासि फ, ससईरे ग, सदा वसइरे बक, वसिरे इ. २ प्रियचरिता डइ, प्र.यचिरता इ, प्रीय थिरता फ, अति हई ब, उदारके ड, वात्सल्य करि इ, वाच्छल्य करइ फ, करइ शब्द अमां नथी, अतीव क, अतिप्पति फ, के, Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर क, पतिपरवारिनिं रे इ, जाणइ ड, कल्पजाण फ, घरबारण ब, बारणेरे ड, घरबार णिरे ग. ३ जाणि कड, जाणइ फ, अविकिथनारे ब, संतोषानी इ, धरमना ड, देमाहारि क, दिणि हरि कि ड, देवाहारि इ, देणहारके नही फ, नहीमनि ब, नहींमणि ड, भातरूंरे ड, 'नहीं मनि आंतरू रे...सती' त्यांसुधीनी कडी फमां नथी, लहिइ इ, लहयइ ग, पूण्य ग, प्रगटिउं ब, प्रगटयुं ड, प्ररके प्रगढू इ. ४ सुभग सुखलिणा इ, शामा बडग, श्यामा क, पांमी अ, हवइस्यू बकडइ, हवइस्य मांह रह नून मनादित्त सवि पल्लूरे फ, महारइ इ, माहरे ग, मनिषीत ग, फल्युरि ब, पल्यूरे क, फल्युं रे डइग, जेहेवानी ड, हुती तरसके ब, हूंती ड, हूंति ग, तेहवू बकडग, तेहेवू इ, तेहव्यू फ, मिल्यु बक, मिल्योरे ड, अमल्यूरे इ, मलयूरे फ, मोल्युरे ग. ५ जाणता हुंता अ, जांणताहूंता ड, किमिहइ क, किमहइ ड, पामिउं पाम्यु कडइ, पाम्यू ग, अमूलिक बक, अमलिक ड, रयण शब्द इमां नथी, अमूलिकेतो इ, भमूलिकि ग, कुण बडग, तु तु कुण क, कुण तडफडिइरे इ, खांडनइ थानकि बकड, खांडनि थानिक इ, खांडनिई ग, खांडनइ थाकि फ, पामी बकडग, नहोरे ब, नथीरे कफग. ६ अलविइं ग, लोबु ब, नीरतणी ग, परई ड, परि ग, सहस्यूं बग, सहस्यूं कड, सहूई इ, सरिखूरे ग, सारिखूरे ब, तेस्यूं बकग, तस्यु ड, तेसुंइ माणस अ, जमसनि ब, माणस जेम ड, जासमनि इ, पारिखूरे ब, पारिखं डइ, पारखू ग, फटक बफ, कउण ब, कुण कड, मलइरे फ, वरला फ, जगमांहि के बड, जगिमाहिकि ड, जगमाहिके इफ, प्रीतिइ क, प्रीति डइ, प्रीतिइं ग. ७ गजबलइ फ, नागर खेलावगारे इ, नाग खेलावणारे ग, दुहिला बकड, दुहेला इग, खरी दोहली तेहवइ प्रीत के पालनी रे फ, अटमंजरि ग, अंबमज़रि ड, कोइलि ब, कोयलि अवरिस्यूं फ, अवस्यूं ब, अवरसरयू ग, चातकमित्र अवरस्यु नवि रमइरे अ, मति गमइरे ड, विणुवेकमनि इ, अवरको फग, मन्नि ब, अवस्यू ब, न वधारानो शब्द. ८ मसिस्यू व, ससिस्यउं क, ससिस्यु ड, नही ब, ससनेहा ससनेहि फ, ससिसुग, ससनेही अ, कम लिनि ब, कमलिनि कग, कमलिन ड, ते ग, प्रमाण कड, अकमनारे बग, प्रीति ई बग, प्रीति ड, बिइनारीनु क, वइनारीनु डफ, बइनारीनो इ, बेनारीनुं ग, कहउ इ, कंत...सककइ बफ, (मनि शब्द नथी), तिहारइ ब, तेहार , तिहारई अ, तेहनु कडग, तेहनो इ, जेहस्यंठ मिलइ रे इफ, जेहस्यूं बकग, नेहस्यू ड, जिहारइ ड, जेहारि जेहस्युइ, जेस्यू फ. ९ बहुनारीनु ड, बेठनारीनु इ, बहु अ, नारीबल्लभ फ, सूउकि क,बेहु नारीनठ ग, भोपम ब, उपम इ, सकि बड, सालके ब, सालिकि क, प्रजलिइ क, प्रजवलि स्त्रीमनिरे इ, स्त्रीमनिरे फग, सुउकिथी क, सोकिथी ड, सुकिथी फ़, सुकीथी ग, कहिइरे कड, वनीता इ, कहइरे इफ, विनता फ, तुउ क, माणस अ, तो प्रीय इ, वलिभ कहकि फ, कहु बड, कहठ शब्द कइगमां नथी, आ " " चिन्ह वच्चेनी कडी अबमा नथी. Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ पाठांतर १० अहवुं चितिइ ब, भेहवु ड, चितिकिं ड, अह ं चीतवी इ, भेहविट उचित क, चित अ, चितिकि अ, चितके व, चींती चिति कि क, चिन्न फ, सतगुणी रेफ, ऋषिदत्तनि बइ, ऋषिदत्तानई डग, रविदत्तानइ फ, मोहिके बफ, मोहिके डर, रुषिमिणि ड, रिषमणी ई, रषिमणि फ, अवगणीरे क, उवगुणीरे फ, ऋषमणी अवगुणिरे ग, वल्यु बड, वला इ, वचखिण फ, मंदिरि बड, करि इ, मुकलामणीरे ड. ११ वनतरुनि छ, कहिसुदरि इ, कहि फग, लोयणांरे बकडइफग अपराध के ब, बंधव - माहरा रे ब बंधव मुझतणारे कडग, बंधव इ, बंधव मझतणा कुसम बड़, संभारके ब, संभारकइ ड, संभारणि इ, सवादकि डग, वारे ड, दिन दिन नवांरे ग. १२ सहील संमाणी अ, सहीमाणीक, वेलिस् ड दिइ इ, वेलिस्यूँ दिइ फ, संमाण अ, रोमिकि डइ, रोप के ब, सोचइ आंसूजलिरे इ, दिइ आंसोस कडइ, दइ ब, फलियो फ, फलिरे इ. देवनि बक, मोलावि फ, कैकिस्यूं बक, किकिस्युं ड सूक केकीसुं इ, केकस्यूं जिणो इ, परिहौरे क, १३ १५ फ, वलवतीरेफ, विलयती व, बहिन नई कडग, बोहनिनइ हूँ, १४ मृगलीनि काहि इ, मृगलींनइ क, न मृगलांनई ग, प्रेसखि बड, प्रियसखि क, कहि प्रियसखि फ, प्रियसखी ग, प्रांणथी अ, प्रियारे डग, तुम्ह प्रियारेक, तुं प्रीयारे इ, थानिक इ करूरे इ, हुं फ, नुउ ब, १७ १८ तब कइग, लेलिस्यूं दे ब, बेलिस्यूं दिr क वेलिस्युं दई ग, हीत इ, पुत्र समणी इ ब, आसु ब, अंसुजलइरे क, असुं जलइरेड, जाणउ क, जणु डग, मनइ धरी फ. हूं परदेसणि इ, पंखीणि ग, उतारू ग, ताजिनुं थानकिंग, थांनक अ, कास्यूंरे ग, विचितात क, चिंतिके अ, तितिकि नहतुं ग. रे फ, कुसुम क, सादके इ, नवन. १६ तेहंनई ड, तेहनइ ग, सरली बकडग, मजसरीपी फ, जेहेवो इ, पांणी अ, दाखि इ, दोषाइ ब, दाखइ ग, छांहिकि ग, झबकइ शब्द गमां नथी, विदेसी बक, वदेसी फ, विदेसि ग. उचाट अ, स्यूं बक, उचाउस्यु ड, कुण बकडग, कुणकरिरे इ, करेइरे ग, जतकि क, जातके इ, जंतके फ, मृगबालक कग, मृ बलिक ड, मेलती इ, गहिबरीरे बडग, नेहनी महिवरोरे क, गहबरीरे इ, अक "रडी" शब्द अबडइगमां नथी, भरया ङ. कांतन अ, कामिनफ, कांमिनी अ, पीउस्यू ब, प्रीउसु इ, प्रोयुसिउफ, पिउ ग, सोहि बड, सोहि फ, जेमकि ससिसंगि जेम इ, जमकेस स्रोसंग यामनोरे फ "पीउस्य ं ... यामिनीरे" आखी कडो डमां नथी. खिणखिण डड्ग, वियोगनु बकइग, वियोग ड, दुःखके ब, पोठतस बग, ठारई चीति बग, ठारइ चितकि क, तातजिनुं बकडफ, तार्ताजिनुं ब, करयुंरे क, करूरें डग, कग, तितिके ड, चितके सरिखांक, सरखां ड, मृगबालिक ब, सवे खलबालांरे इ, चालती जाणी मलारे ६, सुदरिफ, सुंदरि ग, मल्यारे फ, मल्यांरे ग, उशंगिके ब, उत्संगिग, वाहलां ग प्रांगथीरें अ, पाखथी रे अ, निज करि प्रामिकि क, परिवयां पाखतीरे कग, परिवरयां ड, करि प्रेमिके इ, निजकरि प्रेमके परिवरा पाखतीरे फ. Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ७७ क, ठारइ चीति ड, वारि चित्तिके इफ, विनोदिई बड, बिनोदि इ, वनोदिन फ, विनोदि ग, नयनपइरे का १९ श्रेणि शब्द फमां नथी, आस्यइ बड, लयावयु बक, लाव्यु ड, हरीबर्षकाती इ, लाव्यो इ. लिविउ फ, ल्यावु ग, सवादके इ, मनमांहि कडइफ, मनमाहके ब. ढाल १० राग धन्यासी विदेहीना देहई रामइंया राम- देशी १ दिनि बड, केतइ बक, नयरिं इ, सपरिवार बकडइफग, आव्याजि ड, आव्याजि कग, परमानंदिई बफ, हेमरथराय इ, परमानंदि इ, परमानंदि इ,ग, विविध ने बदले नयरी बमां छे. २ तलीआं क, तलीया डगफ, तलियां इ, अतिहई बग, अतिहिं डइ, तेहां इ, सोहिजि बइफ, मोहिजि बफ. ३ लहलहि ब, लहइलहइ कइ, “लहइ” वीजीवार नथी डमां, लहिहइ फ, लहिलहि ग, ऊपर ग, वंद्रया ब, बांधीपरांअचि ब, परीयछ इ, परीयचि फ, परियच ग. ४ ककु गरोला ग, कूकुमरीला इ, फूलफगर फ, कृष्णगुरूना फग, गाइण बडग, गायन बइफ. ५ नाकि ग, ठामोठामि बग, ठाम ठामि ड, ठामोठामि इ, गरदावली इ, बिंदिजन ड, वाजइ ड, वाजइ इ, सुहासिणि बकग, बोलि इ, गाय सोहासणि इ, गायसोहासिणि फ, कोडिइंजि ड, कोडिजिणे बदले टोडेजि इमां. ६ गउजि ड, गोखि बड, जडीनई कडफ, जडीनि इ, भौतक बडफग, वंद्रजि बड, बृदजि इ, सोहि इ, साथिई रोहिणिस्यूं ब, रोहिणिस्यु ड, यमरोहीणीसु इ, अहिविदीइ बकडफ, अहविही इ, सुहिविदीइ ग, परिअण ब, परियण कफ, परीक्षण ब, परीयण ड, हरख्यां बकड, सहने बदले सवि फमां छे, पुहुती बकड. ७ जाणि अ, विनत बक.डफ मां वधारानो शब्द छे. "आणी" कमां नथी "जाणी" बीजी वार ड मां नथी, “मायताय परिजन... ...समरथधीर जि" इमां आखी कडी अ नथी. ८ रषिदत्ता ब, बेहू ड, विविधपरि इफ, वेल सइजि इ, विलसीजि फ, सरीखउ इ, सरखु फ, बेहुपरि अ, दिनि दिनि बकड, उदयिई डग, उदयई इ. ___ ढाल ११ राग पंचम १ हवइ बकडइग, सुणु उफग, सहु फ, नाणइ अ, कुड करिती मनमइ भ्रांति फ. २ हैडइ क, हइई डफग, अवरोटी बक, "मागायारी मुहडइ बर्मा नथी, कागि इ, मुकुडइ __ मीठी क, मुढइ ड, मुहडइ इ, मोठी अ. ३ नीठर ब, लोभणी इ, लोठी फ, कउटो ब, कउटी क, खांणी क, नरवांणि फ. ५ पांमिठ बफ, पाम्यु डग, स्थी फ, चितिई इग, चीतइ क, चीतइ डइ. ५ कामणिगारी फ, होइ कगफ, “चेटी बकइफगमां नथी” तेणी ग, 'मोरूमाह ने बदले उमाह' छे कमां, मोरो डइ, मारउ फ, मोरर ग, भोलव्यु बड, भोलाच्यू इ, Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ___ अतिउंमाह क, अतिउमाह डइ. ६ पोप्यु ब, पोष्यो ड, पोषयो इ, पोधू फ, पोष्यू ग, संवाद ड, जोउ इ, पो बा, तु बक, तुः साची हु नारी डइग, तु साच्यी हू नारी फ, मदधारी फ. ७ कामणगारी अ, ओगिनी क, योगिनी इ, जयोगिनी फ, सीकोतरी इ, शीकोततरी फ, नामि बडफ, नामि इ, प्रसीधी बडइ, प्रसधो फ, ठामोठामि बकडइग. ८ भगतिइं बड, भक्तई कफ, भक्तिई इ, तेह आराधी बकड, तेह (वधारानो श.) इमां. तेहां इ, साजपि इ, मागइ फ, भागि क, भागिई डफ, भाम्यि इ. ५. आणूं बडइफ, आणुं कग, त्रैलोक डफ, त्रिणिलोक ई, वयरोनई ग, पडावू ब, पडाव्यु क, पाडावू ड, पठावू ग, आकरपुं फ, आणू फ, आणुं कड, आणु ग, थुमुं इफग, चंदसूर मेवेह डइग, सूरय क. १० सूकवू बडग, सुकव्यु क, सुकवु इ, सूकवू फ, हूँ पालवू बइ, भमा ब, दंडानी ब, पालवु कड, पाडूं इफ, पाहुं ग, भमा डूं इ, आy य. ११ साते बड, से खूड, सोखं इग, दोषू बफ, दोषु क, दोष ग, टवी बक, चटी डग, टिच इ, आंगली ब, अंगुली कइ, भोवन तोल कफ, तोलं बड, बोलु क, हाथिबोलू ड, हाथिबोलू फ, बोलू ग, १२ माइ भवानी क, छंसेवी ब, सवी हूं सेवी क, हूं छु सेवी ड, सहू में हु सेवी इ, सहूइ हूँ छ स्येवी फ, ते सहुहं छु सेवी ग, खंडि इ, पराण बकडग, कुणहई क, कुणहीपराण इ, परांण फ. १३ ये फ, आपुं बफ, लख्यु बइ, लिख्यु क, लखित फ, लख्यूं ग, देवतणुब, देवनुं ड. उथा डइ, देवतणू इफ, उथा। फ, उथापू ग, “इमसुणी बकडग,' चित्ति इ. आणंदी डइफ, बोलि ... .... देड भोट हफग, पाडु बडग, ऋषिदत्तानि पाड झाल इ, नमि बडग. विक वश्यि इ, वश फ, काजकरू ब, कामहरू कड. कामकरों इग. कर फ. मतस्य कग, अवश्यि इ, तेह अवश्य फ. १५ तु हूँ बकडइफग, वेवाणी ब, अतल बकड़फ, तलत इ, अतल ग. मोकि ड. मुकि इफग, संतपाइ कग, संतापी इफ, प इ १६ वाणी ब, नगरई कफ, गामि ड, नगरि इ. 1 ताकद बड, मतापइ कइ, ज्युउहंस्योकु फ, न्यू इ. १ यु पारधीयाँ बड, दौर चिं इ, यउं फ, बिरचइ बग, धोविर ग, ताकर ग. युगिण . मौनयुताई इ, धरतु इ, कपटि बडइफ, कपट क, तु अयोग्यणि फ. ३ कोय ब, कोया ड. मिदिरि मिदिर क, शारीब, "हा" शब्द डमा नया, जाहाकि बाहारी इ. * सुकी बड, अंसूकी कग, अंयुको अयरे फ. शौनालाल ब. महरे अषोका 3. सबलोका अ, मयरे फ ५ सावकाश ब. अवकासा कग, अवकाश ड, सब सो फ, पावन इ, दहिनकु फ, पाविनि क. मा ड, आसा इग, भार्या ड, सविमाड़ा इ, व्याक्सबमार्या फ, युवानसब. Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ७९ मार्या फ, युवानसब कार्या कग, हनतिइ बड, हनत हनत कइफ, "स्त्री शब्द कफ मा नथी " को नउगारया ब, कुणउगारया ड. ६ आपि इ, क्युं यमहइ बग, क्यू यमदूर कर, कुंजिमदूइ ड, करति डइ, ऋषिदत्तास्यु बकडग, मंडीजोरी क, "ऋषिदत्तास्यु मांडी जोरी........निशि निशि........साहारी" आखी डी फमा नथी.. ७ निसि निसि बकडइग, प्रतिइ ग, उणइ कडइ, खेविई क, खेवई ड, मंदिरि बकड, “निसिगममइ नारी" ड, शाहारी क, साही ड, नाखाशाहारी इ. ८ ऋषिदत्ताकइ ब, मधुर ग, सोणित बडग, शोणित फ, भंगिइक, अभंगिइ डफ, करी रोस अभंगि इ, वस्त्रिई बड, वस्त्रिंई इ, देवइ बग, सोणित ग, करषु कइग, योगिन ५. सितिसिया ड, शियया क, शया फ, सिज्माताल ग, पासई पिसित ब, गसि पिशित करंडी कइ, पासिपिसिनि फ, छुटि फ. छुडइ ड, छंडिइ इ, आवइ फ, 'मारि" धीजीवार नथी फमा, मारमार ग. १० उठतिउ बकडग, उठतिल इ, उठतोल फ, भुरइ अक, मृतजनि ब, मृतजनकि ड, शोरि ब, मुखिइ क, पायु ड, दुखिइ ड, देखिइ इ, सुखिइ डइ, कुरणापायु फ, दूखी फ. बिधुर बकडग. "हइ” शबद कमा नी. दुया ही कड, दुरियाही ग, विवच्छा ब, अव्यवस्था इ, छाही व्यवस्था फ, लिभ बिरषि इ, क्यु कग, कियु फ, बरिषद बक, वरिसइ ग, कंति बकग, कंतिइं ड, ससीकीकंती इ, सिसिकोकति फ, उस अंधीआरा बकडफ, उहरीअंधारा इ, हूंति न, उवितई हूंति कइफ, हुंति डग. १२ ससितई क, शशिपलं इ, सिसिनइ फ, ससिथी ग, वरणकता फ, परतख ब, बातदेखें रहयु रहसी इ, सरयइ ब, हुर ग, अइसी डग, पणित अ, परिणति बडग, होवगी क, हुवइगी ड, होवेगी इ, परिणित फ, होवद ते कहस्या फ, १३ मनचीती बक, मनचिंता ड, मनचिती फ, कुयर फ भलग ब, सभावइ बकडइ, चंपकुलिकां अब, मुकलि नयनना इ. राग रामगिरी ब्राह्मण भाव्यउ याचवा सुणि सुंदरी- देशों । सुणी सुदरी बकड, सुणिसुंदर फग, सुकलोणी बकइ, आण इ, सुकलानी 3, कहु बड़ग, कहुए क, कहू इ. २ त्यजइ बडइफ, तजइ ग, छडि बग, किम ठाय कडइफग, जेणई बडइ, माहइ इ, जनजनमाहि ग, हासू ब, हांसू ड, हास्यु इ. ३ रेखमात्रिमिई क. रेषमात्र ड, रिषमात्रमइ फ, ताहेरु ड, दीठ ड, कहो न दीठ इ, कहिइ फ, मेक असंभम ताहरइ वगड, असंभव क, असंभमहरिं इ, अक अचमव ताहरइ फ. हैइ कहइ ड, होयडि इ. हइइफ ५ उहिता जिलन उपजइ कडइ, उपजइ ब, डपडिइ इ, पिणि ड, पण कग, वणि न सरति फ, धरपुरि इ, लोककरि इ. | Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० पाठांतर ५ मधुर ड, लोहीयाला इ, 'पासइ पिशत......मुझ उपजइ' आ आखी कडी इ.फमां नथी, पासिई ब, पिसित डग, आपणपू ब, आपिण' इ, भापणपुं कडग. ६ ताहरू ड, वाहालेसर साथि इ, वाहालेसर साथि कफ, कूण इ, सेतु बग, तुतुझ क, अतु कुल तुझ काम ड, अतो इ. ७ सुणि बडग, सुणो इ, सामीजी ब, असंभव क, कोखरूं बग, कोप क, खरूं क. ८ थाक ड, वातनु कफग, वातनो इ, कंतार बकडफग, धर्मवंति बग, धूरिलगई क, धर्म वितिहूं घरलगइ ड, धर्मवती होइ इ, घरलगइ फ. ९ लोहीयको इ, उकांटा अ, नाहातूं बड, तास फ, गंध ग, दीठी ग, डसूं ड, जिम बड, जोइउ इ. १० त्रिणमात्र ग, हूहव्यू ब, हहव्यू क, दूहव्यूं ड, दुहुवु इ, दूहविउ फ, दुहबूंग, मिई क, भाषणइ फ, आणइ बकड, भावें कोइए इ, हुं कोइनई इ, कहूनि फ, वचनई नइ क, अनई काइ ब, काय इ, अनि ड, विचननइ काय फ, अनितनि ग. ११ वलिसित इ, अरितणूंय बइ, रितणू कडग, पूरवहुकर्म ग, कर्मपसाय इ, जु प्रतीति बकइग, जु प्रतीति तुम्हमनि सही ड, तुम्हमनिनही बग, तुम्हनि इ, प्रतित फ, तु कहूते ब, तु कहु ते करूं हुं दिव्य क, तु कहुते करू दिव्य डग, कहु ते करूं धीज इ, तुझकहु ते करू दिव्य फ. १२ अपराधिणि बडग, तणु डग, छेदु बकडफ, टेदकीनि इ, हाय ग, मुखसिङ ब, मुख स्यु कड, मुखसुं इ, मुखस्यूं फग, दाखवू ड, दाखवू फग, जुवढं बड, जुचडयुं कग, चंदो कर्मि इ. जउ कर चडिउ मह बलंक फ. करमकलंक ग. १ करतां वचनि ब, वचनइ फ, पासु कडइग, “करुणापायु" बमां नथी, कहि क, कहिइ इ, सुखरिनि देखिउ ग. २ अहवू ब, अहवू कड, अहेवू इ, अचरित ब, अचिरतहुइ ड, अश्रिरय इ, हाथि क, सय इ, विनिता इ, स्वइहाति ब, कहिस ग. ३ चंचलि बकड, वली क, सइप्रेमि ड, टाढिमीठे फ, यंचली ग. ४ जाणे ब, चिति अ, लबधु बकडइफग, अहवु बकइ, ओहवु ग, अहेवू करि इ, नित क, नितु नितु इ, करि ग. ५ छावरें ग, जसवल्लभ बडग, दोषछ। अ, सरशव कफ, दोषनि इफ. ६ अगोपरि बग, जनमनि ब, मरिकी फ. ढाल १४ राग वइराडी प्रणतणां तिहां पूला धरोआ - ओ देशी १ तां सोर बडग, उछलो भा ब, उछलिभा इ, संतापि इ, ग्रहहीमा अ, थै बड, रहीमा बकइफग. २ राय बडग, राजाई इ, बोलाव्यु ब, बोलाविउ क, बोलाव्यो इ, बोलाव्यू ग, धुजतु कड, धूजतो इ,ध्रजतु ग, कांपतो इ, आन्यो इ, आव्यु कग, लबधु उफग, लुबधठ इ, वाहाव्यु बड, वाहाव्यू क, रोसि वाहावउ इ, रोसिबोलाव्यु फ, रोसिंबीहान्यो ग. Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ८१ ३ चीता इ, करिइ इ, करि ग, मई तु ब, सांख्यउ कह, सांखिउं फ, हवइ तांब बकग, हविता इ, हवता फ, हविता इ, अहवू जाणे कग, अहेवु डइ, आण ब, खंडोखडि डइ, नौखिउ ब, नांख्यु कग, मांख्यू ड, नाख्यो इ, खंडोखंड इ, करी नाखू फ. ४ वरिके बकड, करे इ, "ते उपद्रव कारण' अ, प्रगट के फ, करीकह ग, कारिणि डग, कउण बकइ, जिव्यतिनइ फ, हू कोपिउ ब, हूं काप्यु ग. ५ वस्तु कफ, वलतो इ, वलउ ग, तलार बोल्यु कडग, तलाहर फ, बोल्यो इ, थरहर परहर अ, अकालि आव्यु ब, भकालि आविउ फ, आव्यु ड, आवउ इ, कालिआविउ फ, अकाल आव्य ग. सीआलउ अ. सीआलु क, सीयालु ड, सीयाले इ, सायलु फ. वदन्न इ. ६ दीन वचन फ, बरसे ब, तनुवरसि इ, तिन्य वरसइ फ़, गलिशोक पहुतो ब, शोख पड. तउ क, शोकपडतु ड, गलिसोक पडतउ इ, गलइ सोक पडतु बोलइ फ, सोकपडतुं ग, करूणा रहेव फ. ७ मिनरती इ, स्वामि कइ, महारी सवित इ, सामि फ, सकति स्वामो ग, प्रणितां इ, पणितिहां कइ, ठामोठामि बकग ८ अणइ बडइग, इणीइ फ, नगरि नरत्य फ, नयरिइं ग, लाभि ब, तेणि ब, काबडआ ग, अगधुतु जेण ग, धुतु तेणइ क. धुन जणणि ड. धूतो तेणइ इ. धूतिर तेोण फ. ९ बजावी बकइफग, राय ग, डंडे उ बक, ढंढेरा इ, ढेंढरेउ फ, माराय ड, मांडा फ, सरव बक. १० योगी अडिया ब, योगो कर, योगी जे अडिआ फग, गणियानइ कड, गणिआइ इ, दरवेस बकइग, गणीओनई ग, मतवासी कग, जिती फ. ११ नीलं क, अन्याननई दोषइ क, निंदोषि ड, अन्याइ निंदासिं इ, अन्याइनिं दोषइ ग, पण ब, खाइ क, पामइ रोसइ ब, न गणइ काइ सरोस ई इ, सणइ सेषिइ फ, राषिई ड. १२ अणइ बड, इणइ इ, इणिइ फ, अवसिरि इ, दूमारि बकडग, दुआरि इ, दूयारि फ, प्रतीहार बकडग, प्रतिहारनि इ, सनई वीनवु ब, वीनबुउ क, वीन, ड, रायवी नवउ इ, रानई वीनवू ग. १३ कुहनई ब, कु उनई कइ, कुहुनई डग, करइनइ फ, अपराधि बफ, चिति ब, विति कग, विति डफ, वीति इ, भइसोमांदउ ब, भई सुमांदु क, मइंसेोमांउ ड, मई से मांदु इ, भइ सोमांदु ग, तडंग डांमिइ बड, तणंग क, तणग डांमीइ इफ, तडंग डांभी ग. १४ दोषीनिई क, रानइ गब, जणाबी वार फ, बायनइवालइ बड, गाइनइ वालइ फ, अर्जुन ब. १५ जु डग, जो इ, अहेवु इ, वेगिइ ड, वेगी फ, रायइ इ, राय फ. राग सामेरी नेमनाथना मसवाडानी त्रीजि १ अदभूत ग, ताडवीजु ड, ताडत्रीजो इ, ताडवीज ग, जूटा क, केस ग, मरि ड. २ तिपुठ क, नासा कग, च्यारि इड, कास्मीर क, श्रवणइ बफ. लहिकइ कडफ, सलवतो कइफ. Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ३ कठमला ग, संखकेरी बडग, वानि है, ललाड ब, ललाटि विचित्र आंगुल मांन कई खनेते च्यार अंगुमान ब, चित्रति नखवि अच्यारि ड. ४ करी कंथा बकड, “मृग चरम केरी करी कंथा उढनइ चित्रक काम मोर पीछनो ग्रह उ आतप” इमां छे, उढणि फ, उढण ग, चित्रकचम क, चित्रकचरम फ, मोरपीछ ब, मारपीछनु क, वयू कग, गुहू फ, कहाथि ब, हाथि कडइ, हथइ ग, धमर्म क. ५ यमि चमि ड, करति क, 'सष्यणी ब, सिध्यिणी कर, साध्यणी फ, परिवारि ग, वसि बकडइग, नवमि फ, घूमति ग, धूमवी ब, करिउ ब, करयु ड, करयो इ, करइ फ, भांगनु क, भंगिआहार डग, भूगीआहार इ, आहर फ. ६ उररोति आसी उच साठई ब, सच्चर उच्चउति आइ क, उचरति आसी उचशबनिड. आशी उचशबीइफ, आसीस अ, नृपतीर ग, सांति बड, “शांतिfer" जिवार नथ कगा, शांति करती इ, नशांति फ, पावन बकह. पावजिग. ७ बडबडइ बकाफग, बडबडइ ड, व इ, वदनिइफ, वशिष्ट अ. विसिा कड, पइमंत्र ___ वसिसउ फ, साव इ, जसइ बगकडइ, आसिइ फ, नहासो बडग. भूपि बकडई, भूपिड फ, भप ग, बहेव क. कहि इ. भगवती कडहग, बेठित अलख फ, टालु हेवि क, डफ, विघन टालो हेवि इ, कहे फ, वधन फ. ५ मदिमती बकडइफ, विस्वनइं बड, विश्वनिई इ, अवतरयां बकडइ, अम्हेप्रवाहि बडइ, अम्हेप्रवाह क. १. ससिहर कड, शक्तिनासू इ, भिवितसारू फ. ११ रातिई बकड, राति इ, "इष्ट शब्द बडमां नों'' देवि धकडइफ, मश बग, भुझनिं इ, कहयुग क, कहू फ, कहयूं ग, सहूनि इ, कोप्यु ब, कुपसिइ क, हुवस ड, उपसि इ, जनभांहि कइ, जममहिइड, जनमहइ फग, सारि इ. १२ तु जे ब, काहये अग, भूपनरतूं इ, कहजे इ, "भूपनई तुं जइ, हिजेस्यउं' भाटली कड फमां नथी, स्यू अ, स्यु डग, दर्शनीनु कडफग, दर्शनीनो इ, मंदिरो ब, मंबर फ, मकरि अवस्यूं ब, करि अवर स्युं कड, भकरि अवरसु है: अबरस्यूं फग. १३ अबहु फ, मारइरूप फ, कराल बकडइ, भगरनु अ, नगरनो इ, नासिकरवा फ. सुकमाल इग. १४ अहवु बग, अहवं कड, अहेवू इ, सहूनि इ, फक्रि भोटइ ब, योकमाई कड़ग, फोकमाटि फ, दमि इ, हेव फ. १५ प्रतीत फ, प्रतित ग, जोणही बइ, जुनही कफग, तुजोइ बकइ, आइस्तम फ, आदर्शस्यु गक, आदर्शस्यू ब, भादर्शसुं इ, करि ब, करि कंकणि इ, कहिं इ, संखेवि अ. १६ पाम्यु क, चित्रि पाम्यु बड, चिति पाम्यउ क, विसभइ पामिउ फ, चिंति पाभ्यु ग, "इम" शब्द गमां नथी. ढाल १६ राग केदारु सरस्वति गुणपति प्रणमउ'-ओ देशो. । धुलावी कडफ, बोलावी इ, मनमाहिं इ, क, मनमांहि डइफ, मनमाहि , मका अग, "शकाने बदले चिता आवी श्रम काफमां छे', अकिस्यु कड, अकिसुं ग, निरमलुक फ, निरमलुइ मे क. Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर २ तिणि अ, रारूउ फ, निसि सजई अ, निसि राजइ कइग, निसिराज्यइ फ, बहूनांक, बहनू चिरीत फ, काजिइ कड, छानु कड, छानो तस घरि मोकल्यो इ, छानु तस घरि मोक्लु मे ग. ३ छ।नु ड, मोकल्यु ड, राय जोवाइ चिरत फ, किइ ग, निरति अ, नरतिम फ. ४ तिणइ क, तेणई इ, कुमरनिई क, कुमरनिइ फ, चीतइ इ, विसावीसइ कबडइफ, बीसावीसइ ग, प्राणप्रीआनइ अ, प्राणप्रीयानइ ग, दोहली फ, जेता अ. '५ द्याढो बाढी फ, “दीहाड)” गमां बीजीवार नथी, छावरेतू डह, भेतु छावरतु ब, हूंताछा वस्तु क, रहूंछावरतू ग, परतकि ग, मुग्धानिइ क, मुग्धानि इ, स्यूं थासइ बकग, शु थामइ ड, सुं थासइ इ, मुझ ब, गूह्य बड. ६ जु वग, अदिष्टीकरणनी ग, समेते फ, तुउ ब, हवडां कदग, हवडा फ, भोते ब, जद जे ड, शशिमुहिववइ कडइ, ससिमुखइ ग, जणाब, जणावू कइग, जणाव्यु ड, संकेते फ. • माहारो इ, होसइ बकग, हुसइ ड, होसि फ, बला बड, तावणा अ, पास ब, रसाला बड. ८ मनन क. मन इ. पनमाहिईक, मनभांहिं डग, मनमा है इ, रहयू ब, रहर क. रह उ इ, पंजरडइ इ, घाल्यु बडग, धाल्यो इ. घालिउ फ, चालिइ क. • अणइ बड, मेणिई ग, गनावर बकडइ, दिख देई" डमा छे. नवि देखा ने बदले पिसित बकडगमां छे, पयसंत फ. १.. मानइ चकड, रायन इ, जणावी ब, साचु देखड़ त्व. माचु कइग, साचू डफ. १५ आस्यीय ब, आरोगिय ग. १२ तु तु बक, वसनिकंदन इ, निमल ड, दुखव्युझे ब, दुखव्यु ड, दुखवु इ, दखबिउ फ. दुखव्यु गा. । दुखव इ, कुलनइ निरभल फ, कुलंति ड, राषिशी फ, माहारी इ, ते जिवित अ. परखी कडइग, जिवन सरिखी फ. * लालवृन्द कड, प्रजानु कफग, आण्यू ब. आण्यु डग, आणठ इ, आणिठ फ, सोकोतरी ग, शधि शोकातरी फ, लघु बक, लहयु ड, तुन्धरणी इ, लहूं, लहिउ फ, व्रतंत अ. १५० तेवन फ, वलखु बकडफग, विलखु क, दलखो इ, तेहबूब, अहवु कडइ, अहवू फग. नह: अ, नोहि बड, नोहइ इ, हउइ फ. ५६, की अ. कोपाजलि इ, बोल्यु बड, बोल्यू ब, बोलउ इ, प्रतषि फ, उवगुण फ, अवगुण इस छावरतु न्यापति कड, भवगुण तु छावरतु नापित इ, इमछानरतु तु तारिति शंकाश फ. १७ पाठांतर (न्यापित तुझ गुण पासई बड, न्यापित गुण तुझ पासि कइफ, न्यापित गुण तुझ पास ग.) १८ सांख्यु बकइ, सांख्यो ड, साख्यू ग, पण ग, हूं ग, नवि कइफ, साखू ग, अवगणि ड, महा। इ, कहणि बकडइफ, किहिणि ग, नहीजु तु बकड, नहोउ इ, जु तो तुं ग, तुं जै नई बक, जो फ. Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर १९ अवां फ, धरतु बकडग, धरतो इ, विषवाद अ, नीचं बकडइग, नीचू फ, आविउ बकऊ, आव्यु ड, आवउ इ, प्रासादि बकडइफ, प्रासादई अ. २० तेझांखी बकडइग, कहि इ, साचु बकडइग, साचू फ, आवयू ब, आव्युठ क, आव्यु डग, भाव उ इ, आविउ फ. २१ वइरिणि ड, वीरणि इ, वयरणि फ, योगीनी ग, मतनीअंधी ग, रानइ बक, कहिबहु जेतहारो इ, तउराक्षसी अ, कहिबहू जेताहरी फ. २२ मुंकी कइ, राई कइ, रायई ग, जोवराव्यू ब, जोवराव्यु डग, जोवरावं इ, जोवारा विउ फ, जाण्यं साचुंब, जाण्यु साचु कड, जाणइ साचुं इ, आणियसाचु फ, जाण्यु साचू ग, हिवइ बइफ, जनमाहिईड, हवइ ब, थयु बकडइग, थयु वकडइग, जनमाहई ब , मइंता ब, मइतों ई, दिनि ब, सांख्यु बड, खांच्यु कगई, खाचू व. २३ हु तुं ग, छंड बकडग, छंडू इ, छाडू फ, कहिस्वामी क, थायु बइ, थाउ कडफव, मुझनि कर्म इ, महानइ फ, प्रणाम ग. ढाल १७ राग सबाब बोलीउ प्रहलाद वाणी-अ ढाल १ हवई बकडग, हवि इ, रूठो ड, सेवकनि इ, शेवकनइ फ, आदिस ब, आणीनि इ, ___ दइ प्रेस अ, आदेस इ, दिइआदेस कग, ओठ कर मनु वांक क, करमणु डग, महिमा ब, जेणे ग, रायनइ रंक फ. २ केसि फ. बंधनबांधी करी ग. बांधीनइ फ. काटुनि क, दाढउनि द, काढुंनइ ग. ३ भमाडी भमाडी नई ग, ठामिठामि बग, ठामोठामिघणु क, हणो इ, टामोठामि फ, देइअपमान कइफ, अपमान डग, मशांनि कड, शमसानि ग ४ थयु बड, थउ इ, मरिवा थउ फ, मर वा थु ग, राख्यु बकड, राख्यू ग, गृही राख्यो हात्थि क, हार्थि इ, हाथ ग. ५ पाटाडया ड. ६ चुजु क, चुबु ते चुपडु ड, चोपडउ इ, चूनु ते चोपडिउ फ, सिसि इ, सीसि फ, चोपडु ब, चोपडयो बकड, झुबक ग, झूवक इग. ७ सुपडानू ब, सूपडानें कडइग, धरिइ इ, लइकइति ग, लहकतो इ, चंथा चामरइ कइ, चूंथी चामरइ फ, चामइ ड, आरुहि ब, खरिं इ, खिरइ फ. ८ ठावति ब, ठवि ग, कंठि कफग, कंठ इ, विकराला कइ, वीकराला फ. ९ हीगि ग, हीगिइ फ, विलेप्यु बकड, वलीपू फ, विलेख्यूं ग, मसइ ग, तन फ, कर डयुं ब, खरडयु डग, खरडू इ, वसिइ डब, विखन्न इ. १० सुरलोक बकडइफग, देइ ग. (पाठांतर कर्मबंधइ फोक इ) पाम्या ते शोकइ ग, शोकिई ब, शोकई क. ११ करि इ, सतीनिं ते इ, ठारिठारि बइ, छाहरि छाहारि फ, बाहारि बाहारि ग, संभा रइ बकड. १२ भागिलि ग, काहली कगड, काहलइ तस केडिइ ई फ, लाइ अ, दुखदु ब. Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर १३ सती संतापी इ, सेरीसेरीई कई, संतापी काढी ग, अतिभाडी फ, अतीताडी ग, बाहिर ग. १४ आथम्यु बफ, प्रसरयु व, पसरयूं ड, पसरूं इ, पसरिउ फ, पसयु ग, तिमिर पूर अ, तिमरनूपूर फ, थयु बकडइग. १५ स्मशानि व, बोल्यू बग, बोल्यु ई कड, काढीपाणि ब, कृपाणि ग. १६ म्मरिरे क, समरे रे इ, तुं न्हइ इ. तुहनि फ, हणिस बड, हेंणसि क, हणसइ इ, हणिसि फग, देव अ. १७ “पर्डी" बीजी वार नथी बकडइफमां, पडि फ, मूरछानी बग, मूरछावी ड. १८ त्यजि क, तजि फग. सवजन ड, सवेजण इ, प्रांणिइ ब, प्राणिई ड, ठाणिइं ड, ठाणि बकइफ, ठांणि ग. १९ ठाण ग, ठारि गया व, नीठर अ, "तेणई त्यजि दया” इ, मारतिण तजिदया फ. २० वाय क, मीठु वायु वायु ड, वा वायु इ, वाउवायु फ, मीठ वायु ग. २१ अरू परूं जेयु ब, अहरू पहरू जोयु बडइफ, जाउ फ, जिम बड, निर्विजन दीठु कड, दीठं क, नरवा फ, नविजन ग, नाहाठी बकग, अवीसाम कइग, छाह ठीय वसाम उ. २२-३ नाहाठी कड, भतिहरि ड, दूरि इ, अतीदूरि ग, कर्म क, कर्मझुरिइ फ, रडिइ फ, पूरि वकइ, पूरिइ ड, दूखपूरि ग. ढाल १८ राग सोरठी वर वरयो रे वंछित देई दाम-देशी. १ करजो क, सगार बड, करमिई क, शिरोमणि ड, रली अपार रे बकडइफग. २ सुणिं गनि इ, सूंनइ अ, रानि ग, मोकलू वकडइ, मेहेली इ, महेलो ग, रोवत अ, रोवइ ड, अबुधार अ, अंसूधार क, आंमृधार इ, अंसूधारि फ, घनस्यूं बक, जाणइ डग, लायु वग, लागु कडइ, लागुवाद फ. ३ तेणी बकडइफ, ले लाइ अ, पासू बकडफग, तहारू इ, जोहूं व, जुहूं कडइ, मेहली अ, न जायती क, न जाती इफ, तु अ, तो इ, हैडइ बकड, हैडि इ, हइडइ ग. ४ कउण इव, कुणहिइं क, कुणहइ इग, वचन अ, लगार बडग, लगारि क, मात्रि लगारइ, अकड़वारि बकइग, अकईंवारिई ड. ५ वलभ हुती ब, तुहनई बकड, तुहनि इ, तुम्हइ फ, द्यउ क, द्योहाथ फ, सुणि ग. ६ लगइ तिई कग लगइ ते ड, ढांक्यु, वडग ढांवयू क, महारयो इ, वत्सल ग, गंभीरिमि बइ, गंभीरिणि क, गंभोरमि ड, गंभीग्इ मइ फ, जितु डफ. गंभौरमई ग, अससि बकइग, कीहां छुटिस पाप इ. ७ हूं मिइंमुंडी ड. हूं छूटसि कग, तुम्हनई इ, तुझनइ फ, की हा छूटिस पाप इ, हु दाणीगिणि वद, गुणनींछ उ दाणि क, छंह दाणी फ, ह दाणी गणि ग. ८ मिई क, मि ई, दूहव्यूं बड, दूरवउ इ, न हुविउ फ, दूहव्यु ग, अहवी ब, कोइ नकयों क, मर्मिइ बड, ममि क, कहि अधरमा फ, केहिमर्म ग. ९ नींसासई अ, नोमासिइ ग, सोसी ड डोर डो वड, भरयां बइ, भर्या कग, भरया ड. "खग" शब्द डमां नथी, पाम्यां दुःख इ. नीग तव कुरणा फ, संताप ब. Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ पाठांतर १० हैडुं बकड, हैइडुं इ, हड्डूं फ, दुखि फ, दूख ग, आवुड इ, आव्युं ग, अंसु बड, सुखधाड, अंसू अखंडाधार रे क, वारि इ, वनमहि ब, वनमहिर कड, वनमाहि ग. आपिक, आपिंफ, करमनु बड, कर्मनउंदोस क, कर्मनु फ, अवरस्यू कउ दोस ब, केउ शेस कड, अवरस्युं केउ रोस इ, अवसरयूं केउ रोस फ. ढाल १९ ११ १ २ ३ ४ ८ ९ ५ वाशदेव फ, करमई जेह व, जे कग, करभि इ, करमई इम जे फ, लहयो ग, सरि ग, सजन बइ, सुजन कफ, सज्जन डग, जराकुमार फ, शरि क, शरि अतही फ, करिअंतजि इ. ६ द्युतई ड, हारि ग, पंडव बडग, विनिरला इ, सेवाकारी क, मोटुं ड. ७ दुकिखउ ग, वनमहिं ग, छांडी इ, छंडिग, मंदिरिई ड, मंदिर इ ड, प्रचारजि ग. १० पांडव पंच प्रगट हवा - अथवा मन मधुकर मोही राउं- ओ देशी सरोमणि इ, शिरोमणि ग, प्रांणीया अ, सांचरिइ इ, मधरसि बफग म मधरिस इ, लगारजि कइडग, कुणन विचलइ इ, 'करमसाथि कोणि नवि चालि' ग, करमेनडया ग, इमाविचारतां कडइग, हैड वड, हैडर क. १ श्रीरिसहेसर ड, वरसीतिइं बडक, वरसतई ग, वरसताई ग, परिसह ग. चरणि ब, चरणि ड, चरणिइ ग, सिलाका व श्रमणे शकाला फ. रामिशा शाफ, सहां इ, प्रसादिजि बकड, पसादिं इ, हैयां बकडग, हड्डां कांपिं इ, सुणिता फ. धरेसि क, फ, चालइ सत्यवादी व बघरि ग, बेचीआ क, करमिई ब, रल्या कडइ. शिर क, शरि फ, करमिदं ग, भमवूं बग, भमवु डइ, भमंवउ फ, इसजि ग रावण कराइ, गमीयां बड. कर्म इंद्रनरिंद फ, जेमहंतजि क, इमकरी बकड, मेहलोआ क. ढाल २० राग : रामगिरी सुरिज तउ सबलउ तपइ-से देशी चितवres aकड, चिंत इ, चित ग, आपणु बकडफण, आगणू इ, वाल्युं बड, वालूं इ, वाल्यूं ग, अणइ ब, परबत ड, इणि कफ, अणइ डग, दूखइरे ग, दुखि इ, सुकाय इ, संचरइ क, पंथइसंचरइ थाय इ. २ धीर फ, जांघ समाणि बकडइ, जांग समाणी ग, परसेवु वकइग, परासवु ड. ३ ऋधिरधार ग, चरण ग, ४ अधुर वड, गलं बडइग, गलं क, फाटिइ इ, किंहानवि कइ, किनिवि ग. डिग, पंथई कइ, आखडिइ ग, डुंगर कड, डूंगरिंग, दूरथीरे ग, " दव जलइ ने बदले दवबलइ छे" इमां, संतावर व. ५ तेह झाल इ करमिड, प्रचारिजि Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ६ किहीअके बक, किहिइ ड, किहिं इग, फणिगर बक, फगधर इ, किही फेरु फेकार ब, किहां फेरू क, किहिई फेस फेकारइ डग, किहां फेरू फेकीरि इ, किंहीं घूघूह बग, घोर धूकही घूघूइरे ड, धोर घूक तेंहा इ, किहीं वाघ हेकारइ बडग, किहइ वाघ हे कारइ इ. कहीकणि ब किहांकणि क, कहीकणि ड, होडु कमकमइ ब, हैउ कमकमइ कग, देखती हैउ कमकमइरे ड, हइडु कमकमइ रे इ, मारग कुंटा काम, मारग कुंउटा ब, किहि मारगकुटा ड, किहां मारग कउटो इ, किहि मारग खोटां ग, हइंड कमकमइरे फ. ___ कुसुम क, कुपम बड, कुसमशेज इ, खूचतां क, बीठ व, नीद्रानावंती फ, नीद इ, अहेवी इ, पडिरे इग. ९ सूरज क, सूरय ग, नविलागां बडग, नविलागतां क, नवीलागता फ, कहीई ब, जेहनिइ इ, रामनांहई बइ, राममाई क, पडवाथिरि फ. १० पाहिंइ कग, पीहि फ, कुअली ड, कुयली इ, तनुवाडी इ, तिणइ क, तेणइ समइ इफग. ११ अनुमानि सा फ, अनुमानिई क, अनुमानाई ड, अणसुयिइ इ, अगसरेरे फ, दक्षिण ब, छोही कइफ, ठाही ड, सहीओ फ, मतीहोइ ग. १२ निवकारि व, निजकरि कगड, रोपीआ क, नयणलहरे ड, ज तररोपीयारे फ, अतिसत ब. १३ तरूतणि कइ, तिरूतणारे फ, वावीतात कइ, हैउं गक, हइउड, हइडं इ, गहिं. बरिउ क, गहबरूरे इफ, गहिवयुरे ग, नविरहइ बइ, राखिउ नविरहि ठामि फ. १४ पाहणि फ, पावकि इफ, परिजलिह क, परिजलइरे इ, पणिनिविलई ड, सांभरइ डइ, साभरिरे इ, सजन बकग, हैडलं ब, हैडलं बारि क, हैडलंबारि ड, हैयडू बारि इ. ढाल २१ १ दीठंबकग, ताततणु कडग, आश्रम्म अ, साहिरे बकडइग, वरसि ग, सेवादिरे बकडइफग २ दरसन बग यू ब, करो ग, नीरधारीनई ग, पाखि फ, सून उ ब, सूनु कड, सुनु इग. ३ करूण बकड, काणि व्यलाप फ, करूणा ग, वयरिंगेया फ, झरणां वड, व्यापिरे बड, व्याप फ, खा मृग ग, दुःखी ड. ४ सा रही रोइ फ, आपोआपिरे कइग, यमसायर ब, सायरलहरी कग, यमसायरल हरी डइ, व्यापिरे बक, व्यापरे डइग, फलनु व, वनफलनो इ, "तिहां शब्द कड मां नयो" तापसनो ई, तापसिनउ ब. ५ "इम शब्द डइमां नथी" इसिकरता फ, के दिनरे फ, दिनरे ब, केता गयादिनरे ग, मनिरे ब, मन्निरे डइ, चित्तमंनिरे फ, बोरडीनइ कइफ, सूनी ब, सूनादेखी क, सूनीदेख्नी डइफ, बाहि सहु फ, हाथिरे ड. Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ पाठांतर ६ वनितातई बड, वनितानि इग, वनोतानइ फ, पुरूषतणो कबडइग, मूलिरे वक डग, मूलरे इ, विशेषिई ग, योवन फ, फूलिरे बडफ, फलिरे क, फूलरे इ, फूलोरे ग. ७ सील बड, स्त्रीनिं इ, जालवू बकड, जालवू ग, अहवु वली शबद डा नथी, चिंतिरे बकड, अवू चित्तिरे फ, अहवू चिंतरे ग, गुणवं तिरे बक. उषधि बकडफ, ओषधी ग, तातिरे वक, तानई ड, निधाडोतातिरे इ, नररूा अ, जातिरे बकडइफग, ओषधी ग, योगि अक, स्त्रो फटी हुइ नर मतिरेव थइन र रूपि रे कफ. थइ इ, स्त्री फीटीथाइ नररूपरे ग. ९ घालो शबद बकफमां नथी, कांनिरे बकडग, “पवत्री घालो कानिरे इमा" सुतानिरे बड, सुतानरे क, सुतानामिरे इ, तेगइ कडइग, आश्रमि बकडग, आश्रम इ, कीधु. कड, यनीपूजकरइ फ, करिउ हु गसिरे इ. १. धरिइ धर्म इ, संभारइ बकडग, नित्तुनित्तुरे इ, नत्तिनित फ, संभारिइ प्रो उगुण इग, चित्तिरे बकड, चीतिरे इ, चित्तरे अ, सतापरे वकडइफग. ढाल :२२ राग : मारूंणी प्रीयु राखु रे प्रांण आधार- देशी १ गेलिनरे बोजोवारछे कमां, गुणभंडारने बदले गुगरयन भंडार छ बकडइमां, बोलि नरे ने बदले बधेज बोलि3 छे ग प्रतिमा. २ तिइ बड, तइतां वकइग, ताहराइ ड, ताहारि इ, गुणे करो इ, हूं लीधु ड, गुणिकहूं फ. विचातउ ब, वेचातु कडइग, दाइ शबद ब मां नथो रणीओ ग, नेहन डग. हवइंकाइड, कांई आइ इ, हवइ ब, हविइ क, हवे ग. ३ फ्लो बिछाइ क, फुलि बिछाही इ, फूल बिछाइ फ, फूलिभरी ग, मूली क, तुंबिना व, सूनु कडफग, तुझविण सूनो इ. ४ कउचि इ, उठावइसे क, उठावइ इ, वनोदा फ, पाखिनसोहाइ फ, पाखिई ग. सूहाइरे ग, सोहावइरे इ. ५ नोगमुं बकड़ग, बलवलतां इ, दिहाडु बकडग, बाढउ फ, जायरे ग, विरहई वक डडा. महनई व, मुंहनई कडग, मुनद्दनि इ, मुहनि फ, समाणउ ब, समाणु कड, समाणो इग. ६ पिहिली बड, पहलो इ, हवइ बकडग, क्षामोदरी इ, माहारूं इ, न पाइ रे बड. ७ बेह रोसई बकडग, नेह रोसिमा इ, रेति ग, थातुरे वकड, थाउरे ग, मनावतु रंगि रातु रे बकड,फग, मनावतो रंगि रातोरे इ. ८ हसतो ग, प्रहारि इ, प्रीहारे फ, प्रहार ई ग, लहि बडग, लहतु कइ, प्रसाद ब, माननि बकडग, मानी इ, ताहारा इ, ओलंपा बड, संव:दिरे वड, सवादिइरे क, सवादिरे इ, संवादरे ग. ९ तुझस्यू क, तुझसु डइ, तुझसू ग, चालिइ कइ, पाहायूं व, विणु इ, साहा' कडग, सहामुं इ, नयनइ गफ, जोउ कइ, अउ ग. Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठान्तर १० नोसइ बडग, जोसिइ क, "ओसइ वाटिकूण” इ, तृषत ड, नयन डग, महारी क, अतिहेजिरे बकडइ, अति हेजरे फग, सूनीअसइरे बड, सेमिरे क, सुनीसेजरे ग. ११ क्रीडानां क, तेरूह फ, वियोगिरे ब, वियोगिइरे ड, विजोगिरे ग, आंसूनीरिंई ड. आसूनोरि इ, पूरे फ, पूरि इ, शोषइरे ब, शोकिइरे व, शोकिइरे क, शोषइरे ड, शोकिइरे फ. १२ उनाहाल उ ब, उन्दालु क, रहलवीउ ६, उना हालु ग, वरसालु कग, नीसासिरे इ, नीसासारे ग, अंगि ग, भागई क, सीयालु क, सं आलु ड, सीयालउ इ, सिआलु ग, त्रिभुवन ग, त्रिभोवनि इ. १३ अनुपम बकग, तहारूं इ, वाली देहारे फ, ताहारा क, बोलू बड, बोलु कइग. १४ ससिमृग बग, हरीहंसी इ, सूविनाणारे कग, जाणूं बडग, जाणु कई, सेलेवा क, कारणिइ ग, तेरही ग. १५ नागलोकि बकडइग, तिइं ब, करयूं ड, करूंतई इ, कर्यु तिई ग, जिपवा बकडइग, रंभानो इ, गरव बग, संभारीरे कइफः १६ हूती ब, "तु वनि ताहरइ रमतीहतीं" कम, जगिस्यूं बग, जगिस्यु कडइ, जगिसिउं फ, माहरूं ड, माहारो इ, गु बडग, जु क. १७ लाडिकवाही बकग, लोक तरणीतिई कग, सहो हसइ बकड, सहीहोसइ इ, सहोहसिइ फ. १८ कुपम ब, कुसुम कडग, पारिस्वामिनो ड, परिसामिनि इ, परिसामिनिइ इ, परिसंममिनि फ, परिस्वामीनी ग, हस्वइ ब, हसिइ कफ, हसइ उग, होसइ इ, वहि ब, सीरारे ड, बरह दुख सरीरे फ. १९ इसि स्त्री क, इसी स्त्री इ, अस्यो फ, दया न थाइरे ग, जेगई बडफग, तेहन टालु बकडइग, ठायरे कडइफग. २० क्रीडानां थानक कइ, क्रीडामा थानिक फ, ताहरि क्रिडा ग, सुंदरी इग, पाखि फ. स्यूं ब, स्यु जिवित क, स्यु जिव्युं ड, सुजिवित सिउं फ, स्यूं जिवू ग. २१ विलपी ड, धारिउ बक, धारयु ड, धायुरे बकड, मरिवा धारयुरे फ, कुटबई क. कुटुंब ग, कुटुबि वारीने राखिउ फ, राख्युबकग, मे वारी राख्यु ड, तेणइ तसगुणि जिवलायुरे बकडफ, तेणि तसगुणि जिव लायुरे ग, "इम अतिविलवी...जिवलायउरे" आ आखी कडी इमां नथो. ढाल : २३ राग : केदारू १ हवइ बडग, कामिनि तणा कफ, कामिनीताणा इ, समरइ ड, समरिइफ, समरि गमां बीजीवार नथी, दिनिति ब, दिन र ति क, दिनिशत्ति ड, दिनदिन फ, दुखमरई बकडग, दुखमरि इ, दूखभरइ ग, नवगमिइ क, मवि गमि फ, तेहनी अ, वत्त ब, केहेनी ड, कहनी वत्त इ, कहिनी बात फ, किहनीवात ग. . . वीणानाद ड, मनोहर इ, करि तनु संभाल इ, र हयू बक, रहयु डग, रहउ इ, मेहलइ बकफग, मेहइ ड, मेहे लइ इ, नीसास ग. Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठान्तर ३ त्यज्या बकडइ, तज्यां फग, चंदचंदन बकग, चवदन फ, लगार बडग, नहीय लगार कइफ, लहि फ. ४ निसि बकड, निशि आंसूधार अ, असुधार बडइ, अंसूधार कफ, वहिइ फ, खिण खिण बइ, 'खिणि शबद बीजीवार नथी डमां' जाइ क, लहि फ, अवरसवि पाखंड बकडइफ. ५ प्रिये प्रिये बडग, "प्रीय प्रोय' शबद कमां नर्थ', विकराल अ, विकल कइ, कुंयरे ब, राजकुमार क, राकुंयार डइ, कुंआर ग, थयु बकडग, ते नरहि बड, वारयू ब, वारिउ इ, वाहिर फ, वार्यो ग, कहितणु डग, कुणइ फ, मित्रपरिवार ड. ६ भावकासि फ, दइ कडफग, पातालि बकडइ, पेसूं ब, पइसु कडइ, पइसू ग, जिम बकग, झिम फ, तणिइ क, विरहिं इ, हूं शबद डगमा नथी, हूं धरूं ब, धरउं इ, धरू ग, किंम कडफ, किम्म इ. ७ हैउ बकग, हैडुड, विरहि नु कइ, वरहह जु फ, जो ब, जु ड, तु बकडग, विलवंतां क, माण्सपइ फ, पहि बक, पहइ डग, पहिं इ. । ८ जु विरहइ ग, विरहई बड, जु विरहि क, जो विर हइ इ, तु खरी ब, तु खरु क, "तउ शबद डमां नथी'', तु खरो इ. पुरुष सभाव कइ, तु खरउ फ, दैवि जिवत दंउ बक, जिवित देउं ड, द उं इ, देविं मुझ निवित दीउं ग, संगमेव ब, सहिवारेइंड, सहवा इ. विलप ग, परवत बग, पर्वत कइ, खंड खडइ बकग, खडखड ड, खडोखडिं इ, नोझरण जन नयने ब, जननये क, जननयणे डफग, जनयनण इ, केलवां ग, जम्य इ. १० परिवार अ, पृछवइ इ, जणि ब, दाजइक, दीजइ इ, शेकिनई ड, दीनिइ ग. ११ कोडी लहिइ ग, जिविता ड, दिइ क, हइ ग, करिइ इ, दुखनु कडग, दुखनो इ. ढाल २४ राग : आसाउरी शिवना मंगल वरतीभे-से देश १ ते योगिनां इ, अहवू बग, अहवू कडइ, जइ सुणाइ ब, ऋषिमणीनई, जाणई दीर ___मिई राज क, जानें ग. २ नावह अ, जिथु कफग, जितयु ड, जितो इ, धुतकारनई ड, दूतकारनई इ, चूतिका रिइ फ, जिम वधारानो शब्द कमां छे, पाम्यु बडग, पामिठ कइफ. ३ पासि बकडग, पासिं इ, मोकल्यु ब, मोकलिउ क, मोफल्यो इ, मोकल्यू ग, मनउ हलासि क, मनि उहुलासि इ, मनि उल्हासि फ. ४ कहिइ इ, सुणुसग आवउ ग, पाछु गड, वल्यु बडग, विलिउ क, वलउ इ, वालि फ, कुणकाजि बकडगफ, कूणकानि इ. ५ भादर अ, स्वामी इ, करामानदेवा इ, करूपनि दैव ग, श्रीकन करथवइ ब, मोकल्यु डग, मोकलो इ, हेवि इ. ६ हेमरथराय बकडइग, जिसुणी अ, परीवार इ, वारवार इ. Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठान्तर ७ सुगण ब, कुलतिल तिलक आधार अ, मानेमाहरा इ , माहरउ क, झरणथाओ इ, उरनथा कग, झरणथा ब, उरणथायु फ. ८ आश्या ब, विलुधी ग, वलुधी फ, धम ब, धरम क, अबलातणे ब, नीसासड़ें बकडग, शर्मि ब, शम्मि ड, इाइ स्यंम फ, शर्मि ग. ९ कठ ब, तसवरइ बड, जु ड, जुको ग, तु आपणी बकडइ, मनाग इ, मानीतणी बड, मानीतणी बड, मान गयु मानीतणो इ, मांनीतणी क, तु जिवितिई स्यु काम कग, तो जिविति सु काम इ. १. भापणी महिमा ब. आपणु महिमा डग, आपणो महिमा इ, वीन ब. तुझ वीन कगडफ, तुझानि वीनवू इ, ति बोलन नाखि बकफ, पाछु ति बोलमनाखि डग, पाछो ते बोलम नाखी इ. ११ पाम्युलाज ब, मेणिं कुमर क, पाम्य लाजि कडग, भेणि कुमर पाडल आलि इ, पाडिउ लाजि फ, छछंदरी बकग, छछूदरी डइंफ, इम विमासी राजि क, नहींवध समाडि ब, नहीवाध समाजि ड, नदी वाध समाजि इफ. ढाल : २५ राग : महलार गिरजा देवी नइ वीनवउं - देशी १ गुणि बकडइग, मोहिउ इग, चीतइ इ, वावरि इ,वाइइरे फ, पीइ ब, पाइ इ, आहार कड, आहारोरे इ. २ धगि धगि फ, नर हैडला अ, इइडलारे इ, निठर ब, निठुर ड, आदरि रे इ, आद रइ ग, लगार डइ. ३ खरउ क, खरउ फ, तणुरे डग, पूंठई ड, पूठिई क, पूठिई क, अवाय इ, केडइ क, केडिइ इ. ४ तु लजाविउ बफ, तु लज्याविउ क, तु लजाव्यु ड, तु लज्जावो इ, तु लजमाव्यु ग, माहिहंड, जोइता फ, शीम फ. ५ विलपतु बकड, विलपतोरे इ, आदेसि बकडइफग, सांचरयुरे बड, सांचरिउरे क. ___सांचरउरे इ, चरिउरे फ. ६ वापटं इ, बाटि फ, सकुन अ, शंकुन ड, हवां भलारे ग, जो ते गोरी ग, जुउ क, मिलिरे ग, तु स्युं इड, तु स्यु बक, शकुन प्रमाण इक, सकुन ब, तुसि तउ शकुन प्रमाण फ. ७ आणीसिइ ड, जाणीसइ गक, परणी स्त्री हारि अ, तेणइ वनि इफ, जाणीसिइफ, जेंहापरणी इ, परिणी स्त्री हीर फ. ढाल : २६ राग : देशाख रोतां रे राता रे राइं- देशी अथवा सारद सार दया करि - देशी १ जोता जोतो तेह कानन बडफग, कुंभरनई डग, कुयरनि फ, जाग्यु डग, अगिउ फ, ही९ ब, है। कड़ग, हैयु इ, हइउ फ, आव्यु बकडइग, आविउं फ, दुखइं ब, Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ पाठान्तर दुकिखई क, दुखिई ड, दूखि इ, दूखि फ, नयने बकडगइ. २ आवनि इ, मृगनयनी क, मनिमोहनी ड, मोहिनी क, दोठीरे बड, तीनइ नयनइ फ, मुझमन बकफ, मध्यई बग, मध क, मध्यि इ, मन पइठरे फ. ३ वेणइं इ, वेणिइ कफ, आंबाडालरे बकडग, हंसग मनी ब, हंसगमनी कडगा, "हसं गामिनी ने बदले मृगनयनी छे इमा' झलती फ, रसालरे कग. ४ नेहाँ मि इ, लाजत फ, नवतन इ, नवतउ फ, समागमि ब, पालवी ग, मुंहनि ब, ___मुंहनई कग, मुंहनई ड, मुहनि इ, मूहनिइ फ. ५ कुसुम कुदक, कुंदकि ड, कुसुम सहेरे ब, मनावतु बकडग, नेहनि इ, मनावतो इ. ६ थानिक इफ, हैलं बकडग, हइउं इ, न फटिकाहरे फ, फटिइ ड, गोरीता हरइ बक, मुझनइ तेवन ब, ताहरई विरहिंई क, तहारि विरहिं इ, धाय रे इग. ७ बलवंतु ब, विलवंतु कडग, विलवंतो इ, वलवतु क, आविठ ब, आव्यू ग, आवु इ, अव्यु ड, जिनप्रासाद फ, प्रासादिरे बकडइग, जिमणू बकडइ, यमणूफ, जिमणुं ग, फिरसइ इ, तपदिणि इ, छडि इ, कुयर इफ. ढाल : २७ राग : परजिउ मृगावती राजा मनि मांनी - से देशी तथा, छत्रीसीनी. १ चिंति क, प्रियसंगम ग, सिउचक फ, विणस्यू ब, स्यु ड, विणुसनु मेहजी इ, येजि .फ, विणस्यो ग. २ केहा इ, वंछं संगति ब, वंछु कड, बछडे इ, वच्छ संग ने फ, वंछुसंगत ग, तु अ बकइग, किस्यू ब, किस्युं क, किसुं ड, कसुं इ, किसूं ग, कसिउ फ, करेसइ बकडग, करेसिइ फ. ३ मनवीसामा बकडइ, जे को क, दुखनु बकग, दुखनो ड. ४. चीतवतु बड, चीतवतो इ, निज अ, आवइनि बडइ, मुनिवेष फ, मुनिवेस बग, पुष्पा दिक डग, पुकादिक बइ, त्या वान कडबग, लावइज इ. ५. स्वइ. ब, संहाथई स्विई हाथई ड, सई हाथई इ, स्वयहाथि फ, स्वई हाथिइग. मनिकरि बकड, मुनिकर ब, संगमनु कड, संगमना इ, संगमिनु क, जाणइ ड. जेहनू बड, जेहेनुं इ, तेहन क, न हो जगमलजि कडइ, जेहनु ग. . ६. सकोमल बकडइग, नयणे क, वली वली बकडइफग, कुंयर इ, आनंदोनि इ. . चिति अ, चितइ बकडइ, चितइ फ, प्रियउ ड, प्रिउ ग, चाल्यू ब, चाल्यु डग, चाल्यो इ, वालिउ फ, आव्यु बड, आश्रिमि आयु इ, भुनिस्यु ब, मुनिस्यु कड, मुनिसु इ, मुनीस्यूं ग, जिनसेव जि अ, सेवीजि ड, श्रीजनशेजि फ. ८ किहाथकी ब, किहांथकु कडग, कहां थका इ, किहां थका फ, हुइ इण वन्निजि क. अणइनि ड, इणइ वनिनि, इणि वनिजी फ, आमि सेव्यु बड, कदि आश्रमसेव्यो इ, कहिले आश्रमशे, फ, कहइथे आश्रम सेव्यु ग, दुरिषणइजि क.. Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ९ तीरथजात्रा ग, गयु बकडइग, सवणी जि बकइ, सुवरणजी ब, सवर्णीजि ड, सवरणीजि ग. १० करतु बडफ, करतो इग, अणइ बडग, इणइ इ, आव्यु बडग, आव्यो इ, आविठ फ, तत खेविति डइ, हुमा कड, हुयां इ, हूया फ, ते वातिइ फ, करी श्री यनसेवजिफ. ढाल २८ राग : सींधूउ-गउडी • सपीआरा नेमजि-देशी अथवा नयर राजग्रह आणइनि मे. १ कनकर थई अ, वा सुणु कडइग, दीठइ हो इ, ठरयां क. २ सपीयारा कड, साजन बकडफ, भल्लइरे इ, भेटजि क, मुझमेटि इ, नाहालइ ब, उन्हालि इ, उन्हाललइ ग, नयणना हो य, नयणि इ, नीहो फ. ३ तुजांणउ ब, तु जाणुं कइ, तु जणूं डफग, तुम्हस्यु खरूंहो यफडग, तुम्हसु ___खरउ हो इ, तुम्हसि उ कवलं हो फ. ४ न जाणू बइग, न जाणुं कड, तुम्हे सुंकरूं हो इ, स्यूं करूहो बफ, कयु हो ग, परिहो इफग, आकरस्यूं बग, आकरस्यु कडइ, चित्तहेव बडइ. ५ प्रतिई बड, तुम्हे बोल्यु बड़ग, तुम्हे बोल्यु क, तुम्हे बेलुं इ, मनिइ अनतु फ, मनि मातो इ, अक मलइहो इ, अहेवी इ, जनवाच बकडइ. ६ संयोगि बकडइफग, अहके ब, इक ड, उल्लसिइ हो ग, दीठा ग. ७ तुम्हनि इ, मूंह नई बड, मूह निं इ, मुझनइ फ, लागो फ, लागु डग, यम तुम्हणइ फ, साखीयां डहग, नेहिहइं क, तिम ड. ८ कुपरभणइ कडइफग, हूंसाफल्य हो ग, सांकल्युहू बड, सांकल्यो इ, तुम्हनइरषिराज फ, बीजू बग, जवू हो बफ, जाय, क, जवू डइ, तिहां करवू बकडग, तेहांनूं करवू इ, तिहांनू करिवू फ. २ किया ग, आवु कड, साथि बकडइ, तुम्हनि इ. ... १० तुम्हे मत क, कह तुम्हे इ, कहि तुम्हइ फ, भावो ग, मतकरउहो फक, नविकरहो फ, नविसइ फ, ओकां त बडइफग. ढाल : २९ राग रामगिरी ___ जयमालानी, अथवा-जत्तिरी १ मुणु डग, जोइ सयकेरो फ. २ मउटउ ब, मोटु ड, तेहलहीइ बडग,तेहिइ कहीइ क, भक्तइ अधीन ग, भक्ति देव ब, भवितई डग, देवदानव ग, मनमानि फ. ३ दीधु बड, हाथ बडफ, हाथिइ इग, मिई ड, तुम्हेंपण बग, तुम्ह पुण क, साथि बकडइ, अणिवाति, अगोवातई कइग, अणीवातिइ फ, करस्यु बडग, करसिउ क, तु निश्चिई कडग, तु निश्चि इफ, लेस्यू ब, लेसिठ क, लेस्यु डग, लेसठ इ. ४ कुमरनु कडफग, आग्रिह फ, मानइ बड़फग, मानि क, बेद ब, रंगिरेली फ. Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ५ क्षणअलगां कइ, अकक्षिण ड, न्यणां क, सरखी बकडग, पुहुता बकड, करत पुहोती इ, पहुता फ, पुउता ग. .६ साहमु बकइग, साहमुं डफ, आविउं क, भाव्या डइ, सुंदरिपांणइ अ, मउच्छव फ, मंडांणि बकडइग, उतारया इ, आदर इ, कीधा डइ, अतिउत्तंग कफ, उत्तुंग इ, मंडपदीधा इ. ७ शुभलगन इग, सुहासिणि बकड, सोहासणि इ, सोहासण ग, गावइ ग, योसीई ग. ८ उत्सवि ग, उच्छविइं ब, बेहूजणि क, बेहूंजणि ड, बहुजणि इ, बहूअणइ फ, बेहूजेणि ग, नृपसीह क, नरसीह फ. ढाल : ३० राग : अधरस, पुण्य न मूकोइ.- देशी १ थयु क, थयुजि डइग, तेणिवारि बक, तेणइवार ड, तेणइवारि फ, तोणिवार ग. २ कठ क, कहु डग, कुहु इ, चितिरे ब, चिंत्योरे कइग, चिंत्योरि ड. ३ कइलांकी ब, कइलाके ली कडफ, कटिलांकी इ, कइलकाली ग, कइस्यू' बग, कइसु क, ___ कइस्युं ड, केल्युरे बड, केल्योरे कइफ. १ मुख मटकइ मोहीउजि कइफ, मटकु तसगम्यूजि ड, मुखमटको तसगम्योजि ग, मममान्यु बड, मनमान इ, मोलव्योनि बग, मोलव्युजि ड, मोलवउजि इ, मोल्वु फ, कुंभरसणोरे . कफ, कुंभकरणोरे इ. ५ किनरिजि बडग, कंनरीजि क, कमनरीजि फ, चालि बकडहग, कटिलंगद बक, संहिनीजि ब, सिंहणीजि क, सुकं तिरे बड, सुकंठोरे कइ, सुकत्तिरे फ. ६ अहिल्यासु ब, अहिल्यांसु ड, इलहासिउ फ, तुं तेहस्युं कड, ते तुं तेस्यूं फ, नीचसुजि इ, मिरीयां बडइग. ७ जेहस्यू बग, जेहस्युं डग, मनमिल्यूं बकडग, मनिमियूँजि इ, नविगुणइ फ, हरनदी बड, हरिइ फ, धरतुरू ड, चडिइनि इफ, उछगि इ, उसंगि ग. ८ स्य् दीठं बकड, सुं दोठउ इ, सिउं दीठउंग, हू खरीहरीजि फ, अति रमाही डइफ. ढाल:३१ राग : मेवाडउ जिवडा तुंम करें निंदा पारकी-मे देशी १ मेहलंतु बकडग, मेहेलंतो इ, मेहलंतु फ, नीसासि फ, संभारतु बकड, संभारतो इ, संभारितु फ, संभारउ ग. २ त्रिभुवसनूं बकडइ, त्रिभुवनमाहिं ब, वेचातु बइ. ३ रहयु क, जाणुचंदोरे बग, जाणूंचदूरे क, अणूचंदुरे ड, जाणूचदरेफ,दासह डग, प्रसीध ब, 'जे परमाणू''प्रसीध' आखी कडी इमां नथी. ४ मधुरिमय बडग, मधुरिमिइं डइ, मधूरीमिइ फ, सालवहंति बकडइ, मध्य सहरही हंति फ, बीजिइरे ग, किहि नवि कइफ, किही ड, कही ग, चीत हरति ग. ५ रणीठ छूरे त्रास बइफ, छुरेतास कग, सुंदरि इ. Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठतिर ६ समानि बइफ, स्युं करूं ग, जुनवि ग, रंकंधरि इ, जमनिध्यांन फ.. ७ जेतु आंतरूबकडगफ, जेतु सरसव डइ, जेतु सरिसिव ग, मेर ड, अवर महेलोयां बड, महालीयां इ, महिलीया फ, तेतुदीसइ ग. ८ तेपण बकडग, ते पानि फ, सहसउदा कइग, जिहा फ. ९ अलामिरे इ, विरह ब, विरहिंइ क, सूरजिउ फ, सरली स्त्री भोग बकडग. ढाल ३२ राग : महलार जूउ रे सामलीआनु मुखडउं - देशी १ कोपाली अ, कोपानल कइफ, मत्सर ग, उछाछल फ, प्रीतिम ड, प्रीयतम इ, ऋषि वांणो ड. २ वातडी बग, सवारति डफग, स्वारथ सारांणउ अ, सपरांणुं बकडइफ, द्रव्याभिलाषो पणुं बगकडइ, तेहांमछर जाणुं इ. ३ ओरेआसडी बइग, जुरे कड, चउरे आसडी फ, तु ते डग, तो ते इ, केहेवी इ. ४ आलि फ, चडाव्यां ब, चडाव्यु कड, चडा, इ, चडाव्यू ग, मारिनूं बडफग, मारिनु कइ, कइर बकग, वैर इ, वाल्यू ब, वाल्यु कडग, वालु इ, पीइ कइ, साचुं बकइग, साचूं डफ, संभालू ब, संभाल्यु क, संभालु डइग, संभाल्यू फ, मुझसु इ. ५ फुट लनी इ, मुझस्यूं बग, मुझस्युं कड, मुझसुं इ, चाल्यूं ब, चाल्युड, न चालु इ, नविचाल्यू फ, सीहनि इ, साहामउ मिल्यु ब, साहामु मिल्यू कडग, साहामो मलिउ इ, "मई ते च तव्यु पाल्यू" "काल भयंगम कोपव्यु" आटली कडी अबडमां नथी, माहारू चीतव्यु क, महारुं चीतवु इ, माहरू चीत्ततवू फ, पालुं इ, पाल्यू फ. ६ भुअंगम कफ, कोपवो कइ, कोपवो फ, ततखिणि क, लाधुं कडइग, लाधू फ, साध्यं ब, साध्यू कडग, तीणइ साधुं इ, तेणइ साधू फ.. ७ माहरइ कगड, महर इ इ, कहणइं बड, कहिणिइ कफ, कहइणइ इ, गिणीइ इ, तेणीइ फ. ८ रंगभरिइं ग, इणी इ, परिई कइग, उनमतकुलि ब, कीधउ सघलु फ, बोलइ कडग, बोलिइ फ, उलइ कडफ, कुमरनि उलइ इ, उगलिइ ग... र आनंद कर, आनंद पाम्या फ, अतिघणू बइ, अतिघणं ड, अतिघणो ग, तुठो ग, रूषिदत्तानि ब, ऋषिदत्तानि क, कलंकिणा अ, कल कंणी इफ, वुठउ इ. राग : केदारु दास फोटो किम पाउं राजा - ओ देशी अथवा, आज लगई धरी अधिक जगीस - ओ देशी १ कोप्यु बडग, कोपिउ क, कोप्यो इ, सुगुणी ग थयु कग, जस्यु ड, जिसिउ फ, ___यस्यु ग, जिसु कइ, “फणीनर हरी" इमां वधारानो शब्द. २ त्रीवली ग, चठावी बाफडा पनधणी ब, डउंतु बकडइग, डसंतो फ, खिणि खिणि इ, कंपावतु बकड, कंपावंतो इ, धरणी इ, कंपावउ ग. : Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठान्तर ३ बोलइरे कडइफ, बोलरे ग, अस्यूं कीधुब, अस्यु कीधु कडग, सु कीधुं इ, अस्यूं ___कोधु फ, दुष्टमना ड, दुष्टमनि बक, सापीणी ग. ४ परभवतु कड, परभवनो इ, अवगणी ग, कीधु कइग, अन्यजनुक, अनिअन फ, अस्यूम फमां, मिइंजाणइ परणी ड, मइ विणु जाणइ इ, विणजाणि फ, विणजाई ग. ५ शरोमणि ड, कइतसूणी ब, वइतरणो कडइ, वइतुरणी फ, तुं तुउ क, "तुतु वइतरुणी ड" ६ अपयश डफ, अपजस इ, अवासनी बकड, आवासनी फ. ७ लुटा अ, लूटी क, लुटि ग, लंपट लोभीनी इ, अक्षेहिणी क, कपटाकरी अ, तुरणो अ, ___आपिणि ग, उथापिणि ग. ८ ढालोनइ मारुणी ब, ढोलुनइ मांरुणी कडगफ, ढोलानिं मारुणी इ, वनि ड, मालवणी कइ. ९ सापिणी ड, अधुमाधुम ड, गुणी ड, गिणी ग, तुझ निदीधी फ, उढणी कडइफ.. १० ते मुग्धा क, जु इमहणी कग, तउ तु ब, तुं तो महारी फ, वइरणी बड, वेरणी ग, पाहणी इ, “हुइ शबद बमां नथी." रहयूं ब, रहयु ड, रहु इ, रहिउ फ, आहरणी बफ, आहारूणी क, आहांअणो ब. ११ मर गरग बड, वह मुझपड इफ, र वावो फ, मंदिरं इफ. ढाल : ३३ दूहा १ तवहीं बडफग, कोहल इ, थयु बग, भाव्यों इ, 'अति' शबद गर्मा नथी. २ वारिइ इ, वारयउ ब, वायु डग, वार्यो नरहि इ, वारिउ न रहि फ, संभारतु बकडइग, वरसे अश्रुधार ग. ३ जाइतां ब, पायतां ग, वारउ क, वारूकोइ ग. ४ वारयू ब, कहिनु वायु कड, कहिनो वारयो इ, कहितु वायु ग, बोल्यु ब, बोलइ कइ, बोल्यु डग, सविवेकी ग, कुमरतुं बग, अस्यूं कग, मेस्यु ड, . अस्यउ करि इ. : ५ ते रलइ बकडइग, लहेइ ब. ६ जिवंति ड, जिवत फ, प्रधानइ ड, स्वस्वती फ, यम फ. ७ स्त्रीकारणिई ड, अतु बकडग, अतो इ, अवलि ग, रीतू इ, जागिहासारथ अ, जगहासारथ ब, कांकरिइ इ, सुचौंति बडग, न चीन्ति क, चतुरि ड, निचीति इ, नवीत फ. । मलवा लहिइ इ, केहारि वनीता इ, पशीला फ, प्राणइंप्राण बइ, प्राणिई प्राण डग, त्यजिकरी इ, बेहूं ड. ढाल : ३४ , बोल्यू ब, बोल्यु डग, लहेउरे ब, लहुरे कडग, लहोरे इ, दुहिलो ब, दोहिलु __ कइग, दुहिल ड, दोहिल्यु फ, व्यवहार बकडइग. १ जुतसप्राण बडग, तु स्यूं बग, तुम्युं कडइ, प्रमेमाण क, पुहुचइ ब, तेहस्यूं साचुं बकग, तेहस्युं साचूं ड, तेहसु साचुं इ, तेहसिसउ फ, बांधाण ड. Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठान्तर ३ बलाबलीयां ड, छलछलीयां ग, विहइला इ, विहला फ, उमंटिइरे इ, छेहलगि कइ, छेहलइफ, जे जस अ. ४ प्राणत्यजइ बकर, तजइ फग, त्रणनीपर इरे ब, तृणनी परिरे इफ, साचा इ, साचु फग, नेहवाध्या फ. ५ सुजन सुहाय ग, तिहांलगइ क, तेहांलाइ इ, सहणी जाय इ. . ६ जेखिणि फ, सरखु बकडग, सरिखो इ, समनविण बग सज्जन क, सजनविना इ, जिव्यु ड, जिनुं न कहाय इ, मिविउं न काहाइ क, न कहीइ ड. जिवाइरे फ. जिविनकहाइ फ, जिव्युं न कहाय ग. ७ मलइ इ, मिलइ लिगी फ, तुम्ह ड, कहयूं ब, कहुंरे कह, कहयु डग, जे कह ते फ, उछाहि बफग, मूयां माणस बह, जउ मिलउरे ब, जुमिलउरे डग, जोमिलउरे इ, जगमाहिं बक, जगिमाहिई ड, भिगमाहि फ. ८ वाउछु ग, वाहुछु ड, मुझनि इ, आपणां माणस बडग, नापणुं मा क, हांसू कैमकरंति ब, हासी केम करति कडग, हास्यो किमकरति फ. ९ मेलवु क, मेलवारे इफ, शक्ति बडइग, वेचातु ग्रहयूरे ब, वे वातु ग्रहठरे कर, वेचातु प्रहोरे, निश्चिई कग, निश्चिं डइ, पर्यंत इ. १० बोलिभोरे ग, रतन बड, साहासई ब, इणि क, अणइ डग, इणइ इ, साहासई कड, तुझर्मि , होसइ बकडग, होसिइ इ, सासइ ग. ११ आकलु ब, अकुलुरे ड, तिहां के ह दणि अ, कहु कड, कउ ग. ढाल : ३५ राग : गुडी संभारी संदेसउ - a देशी अथवा सारद सार - ओ देशी १ वलवू इ, बोलोयो क, बोलीआ इग, सुणितुं कुमर सुदक्षदे कइफ, सुलक्षदे डग, ज्ञानी न तणइ फ. २ यमघरि बकडग, यम तुझ घरि इ, मनमहातयु विलोलोले इ. ३ भादरि बकडग, आदर क, आहांसती बक, माहामाती ड, आहां सती ग, " ते किम भावइ...उपाय दे" फमां आ कडी नथी. ४ बोलोउ ब, नोमिदे क, इहोआ फ, अहां मोकलं बग, सुखनिकामिदे बफ, कामिदे कडग, कामई दे इ. ५ हसित वदन बकड, शक्ति बड, शक्तिइ कग, “तब" शबद बकडगमा नथी, हसित विदन फ कहि सामिदे फ, "कनकर त... कामिदे" इमा नथी. ६ भुखिउ ब, मुख्यु ड, भुख्यो इ, लूखू नसहि फ, होइ बइ, उतुभदे फ. ७ कस्युउ इहिइ दे ड, होयदे ग अणइ लोइ दे बड, लोअदे इ, तुम्ह कन्हई कइ, दीधाइ लोइदे फ. ८ उलघ्यु ब, उल्लंघ्यर क, उलंघिउ फ, उल्लंघ्यु ग, उलघउ इ, काचि दे कड, काजइदे इ, जल्यां बकडइ, केते छंडया राजदे बकडइ. Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर ९ कहिनननई ग, अवस्य अ, आपयो बकडइफ़. १० परीयछि इ, आंतरिं इ. तिरं इ) अतिरि फ, तव मल्या बकडइ. ढाल : ३६ १ निरनारि ब. २ वादलमांहाथी क, प्रगटयो इ, होइइ, जसु उ . इ, जितई बकड, उल्हसिउ ब, उल्हस्यु क, उल्हस्यु ड, उहउलस्यु उ फ, उल्लायू ग. ३ विपती बकडफ. ४ प्रायंस अ, प्रशंस इ. ५ भात्तेलिखो क. ६ संगारिजि बड, सिंगारि सजि क, सिंगारजसि इ, संगार इ सजि फ. ७ तिबोली फ, अधुरि क, सरंग कफ, खर इण बक ८ विणि भुगि ब, भुयंग कडइग, भुइगम फ ९ मागणथोक इ, प्रशंशा ब, चिनिधरइ ग, धग फ १० कुमुरगुणी बडइफग. ढाल : ३७ राग : देशाख मेकवीसानी १ अहवइ ब, अहव्यति क, अहव्यतिकररे उफग, अहवतिकर इ, आरूपीरे ब, अति. छवि क. त्रूटक २ रूपि जिम ससि रोहिणी कड, रूपि यम पसिरोहिणी इ, रूपइ जिम शशी राहिणी फ, तिरथो अग, राई तज्या क, राय तजिय फ, तसनासिकास्यूं ब, नासकास्युं ड, तस मासिकासिठ फ, पहरी इ, देसियकी पहरी. ३ भाखइ इग, कूयररे इ, यममंदिरि क. वटक नेह परीक्षा कडइ, जोयवा बड, जे इवानिइ क, जोइवानि इ, जायवानइ फ, पालाइ फ, दीधी नवावा फ, प्रेम आणु ग, रोमंच्यू ब, रोमंचिउ क, रोमंच्यु ड, कूयर रोमंच्यो इ, रोमंचि फ, पनगरे चिहर फ, “मणिपन्नगरे विषहर" बक, विषहर विषधर इ, मनिवस्यु कडइफ, सजनसभावई निरमला क, सज्जन सवावई निरमलं ड, सज्जना सभावई निरमलो ग. . ४ आगृधरी फ, मंदिरि बकडफ, उमटाया बड. टक विदोजन इ, लाजतुर क, लाजतु ड, लाजतो इ, खामिघणू फ. राज ठवी बकफ, राजिइं इ, सपलो बडइ, मल्हावो फ, वैरागियं डसं सांनिधिई इ, सान्निध्यइ ग. Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर टक शवससणी ड, सिवरमणो इ, किर्ति डग, दिनि दिनी डट. ढाल : ३८ राग : आसाउरी १ गउखि ब, गुणि कग, गोखि इ, गेखिइ फ, सोभा ड, धरतु डग, धरतो इ, उछाहाजि इ. त्रटक विसराल इ. २ सायर लहरडी क, "जेहवउ जेह वयरागजि' अ, वइरागजिक, जेहेवउ नट वैराग. ___Qटक काम्यमीनु 'धाडिकाय सुइनी वाडि जवासातासी इ. टक ३ लोहयू ब, लोम्युस ड, संगपामति क. ४ भइयशागुरू ग, भद्रजिशा फ, पुहुता बड, पोहता इ. टक हर्ष पाम्यु कगड, रममेह आगमि इं क, सुग्गुरूनि इ, सुगरनइंफ, केहि क, काहिह फ, केहेते ड, यतियति ब, जिनपती फ, यपती ड, जतीपतीई इ, भागर्मि इ. ढाल ३९ १ ज्ञानातित्रय ड, सोभाकर डग, मोपाकर फ, "गणधर पुरवभव ततखणि कहइओ' इ." २ भरखेत ब, पूरव अ. ३ सुमति अ, गुपति ब, समिगुसि क, चंद्रयसा तेहां इ. १ देसन ब, धुनि बडफग, उसांभली इ, क्रोधं समता सेाहइ बफड. ढाल : ४० १ निसंगा बक, तिहां चंगा अ, तिहां संगा वंगा ड, गंगा चरिता बकडग, विरागिणी ग. २ "तेहनीलोक...मच्छरगेहरे" आ कडो डमां नथी, मत्सर आणइ कइ. ३ तवावि ब, भवाडिइ क, तृ संसार रे अ. ४ तव तई ब, तवरगई क. ५ सगा अ, उपशमइवासी कफ, अहीयासइ क, शुभभाविरे क, सतीन दीधा फ. ६ रागरोग ड, संवादई अ, धारिउ फ, उषमादिरे बग, मदउनुदमादिरे ड. ७ उपार्जइ क, दूःख दोहिलांगइ क, दुःहुहिलांछइरे इ. ८ बंधमारण इ, नाशकरंतिरे कइ, अह उदय ग, थकी जो इ ९ सयसहस गुणम ड, नडा करू छोडीरे अ, लरकगुणयं इ. १० नरगि अइ नरगिइ फ, संतारिक, जरतानि इ, न(तीनइ फ. ११ कर्मशेषि ग, कर्मशेष इ, कर्मवोशेषि क, राजसुता बकडइफ, “थई देखो रे' फ. १२ संयोगिरे बक, थइ इंद्रा ग. Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठांतर १३. सासन मायारे इशाना आयुरे ग, सान आयरे ब, लवलेश रहोजे इ, ते लिध अपायरे ब, ते लध अपायरे कइ, लिधउ पायरे इ, ते लीध अपायरे फ, भइ लब्ध अपायरे ग. ढाल ४१ राग : धन्याश्री मसवाडानी छेहली देशी १ सेवा क, जेहेवां इ, जातोसमरण ड, गुरुवयणां इ, सुण्यांहो इ, निजतइ हो इ. टक २ ततखेव ब, वचनि ण इ, ली होती क, धू बक, सुधूं ग, पावइ श्री गुरू पासइ अ, मुझमआरोपउ क, आरोपुं ग, “भवदेखे ततखेव" गमा बोजवार नथी' "विलंब नकरह लवलेश" गमां बीजिवार नथी. सुत थासुउ क, थाप्यु निजराजि बगड, थाप्यो निजराउज इ. थापित निजराजि फ.. ३ संयम लीधुं आदरिं इ, रषिदत्तास्यूं बक, दुसूप क. अटक अमायो ग, अनगार क, विवर्जन क, वंजता इ, दुध्यांन ड, दुर्ध्यान इ, दुध्ययत्ति ग, भदिदिलपुरि क, भदलिपुरि फ, जिननइं कीधु ड. ४ प्रजाली बकडइग, कलंकी मूकाणी अ, तृणकर्मनिकाय कडइग, शुभमुनिधर्म इ, सूधि । मनि फ. Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट - १ 'ऋषिदत्ता रास'ना छंद कविए आ रासमां संस्कृत प्राकृत भाषाना मात्रामेळ छंदो के देश्य भाषाओना वर्णमेळ छंदोनो प्रयोग नथी कर्यो ए हकीकत एमनी कथावस्तुने जे स्वरूप आपवा धार्यु छे तेनुं सूचन करती होय एम जणाय छे. रासमां ४१ ढाळो छे जेमां वीस जेटली राग-रागिणीओना प्रयोगो कविए कर्या छे. एवुं लागे छे के ऋषिदत्ता जेवी ऋषिपुत्रीने उचित आ रासना काव्यदेह रूपपरिधान करवानुं कविने उचित लाग्यं होय. आधुनिक शहेरी नारीना देहसौन्दर्यने नहि पण एक वन्यबालाना सहजप्राप्य देहलावण्यने अनुरूप काव्यदेहने अमणे विस्तार्यो अने विकसाव्यो छे. छटादार शब्दोनी झलकथी काव्यदेहने अलंकृत कर्यो छे. रस निपजावी एमां स्वाभाविक लावण्य आण्युं छे. राग-रागिणीओथी गरबा लेतुं चापल्य अने गीतनी लढणमां तरबोळ ने तेथी ज देहभान भूलती मदोन्मत्त रीति प्रयोजी छे. पासादार भाषाप्रयोगोथी एना देह उपर वस्त्रपरिधान कर्तुं छे. कयांक कयांक कहेवतो मूकीने ओमना कवित्वने पुष्टि आपतो झांझरना तालनो मेळ मेळव्यो छे. साचे ज जयवंतसूरिना आवा लाक्षणिक रचनाकौशलमां बाहय संस्कारमां राचती शहेरी नारीना नहि पण ग्राम्यसंस्कारथी स्वयं प्रतिष्ठा मेळवेली ग्रामीण नारीना स्वरूपनो ख्याल डोकियुं करावी जाय छे. कालिदासनी उक्तिमां कहीए तो " किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम्” रासमां आवती देशीओ अने कडीओनुं परिमाण नीचे प्रमाणे छे :दूहा १-८. ढाल- १ ढाल - २ राग गुडी. सिद्धारथ नरपति कुलई-ए देशी. कडी १-३ ( कुल ११) राग केदार ढाल - अढीआनी कडी १-१८ ( कुल २९ ) राग आसाउरी. ढाल - वेलिनउ. दूहा १ - २, कडी १ - ४७ ( कुल ७६)+२ राग रामगिरी. देशी - ईश्वरना वीवाहलानी. कडी १-२ ( कुल ७८) राग गुडीमांहइ ढाल चउपइनी. कडी १-२१. ( कुल ९९ ) राग वइराडी. कडी १-३८. ( कुल १३७ ) राग देशाख. देशी - माईई न पराई सरसति. कडी १-५ ( कुल १४२) राग महलार. देशी - मसवाडानी पहिली. कडी १-१९ ( कुल १६१ ) ढाल – १० राग धन्यासी. देशी - विदेहीना देहइ रामइया राम. कडी १--९ ( कुल १७० ) ढाल - ९ ढाल-३ दाल-४ ढाल - ५ ढाल- ६ ढाल-७ ढाल-८ ढाल - ११ राग पंचम. कडी १-१६. ( कुल १८६) ढाल - १२ राग केदारगुडी देशी चन्द्रायणनी-नमणी खमणी नई मनिगमणी. कडी १-१४ ( कुल २०० ) ढाल - १३ राग रामगिरी. देशी - ब्राह्मण आव्यउ याचवा सुणिं सुन्दरी. कडी १ - १२. दूहा - ६. ( कुल २१८ ) Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ परिशिष्ट ढाल - १४ राग वइराडी. देशी-त्रण तणां तिहां पूला घरीया. कडी १-१५ ( कुल २३३) राग सामेरी देशी - नेमनाथना मसवाडानो त्रीजी कडी १ - १६. ( कुल २४९ ) राग केदारु, देशी - सरस्वति गुणपति प्रणमउं. कडी १-२२ ( कुल २७१) ढाल - १७ राग सबाब. ढाल -- बोलीउ प्रहलाद वाणी. कडी १-२३. ( कुल २९४ ) ढाल - १८ राग सोरठी. देशी-वर वरयो रे वंछित देइ दाम. कडी १-११ ( कुल ३०५ ) ढाल - १९ राग वइराडी. देशी - " पांडव पंच प्रगट हवा" अथवा "भन मधुकर मोही रहयउं" कडी १-१० ( कुल ३१५) ढाल - १५ ढाल - १६ ढाल - २० राग रामगिरी. देशी- सूरिज तउ सत्रलउ तपई. कडी १-१४ ( कुल ३२९ ) ढाल - २१ राग मारुंणी. देशी-कासीमां आव्यउ राय रे. कडी १-१० ( कुल ३३९) ढाल - २२ राग मारुंणी. देशी - प्रीयु राखुरे प्रांण अधार कडी १-२१ ( कुल ३६० ) ढाल - २३ राग केदारु. कडी १-११ ( कुल ३७१) ढाल - २४ ढाल - २५ राग आसाउरी देशी - शिवना मंगल वरतीए. कडी १-११ ( कुल ३८२ ) राग महलार देशी - "गिरजा देवीनई वीनवडे " अथवा "वीर जिणेसर वांदउं विगतिस्यु रे." कडी १-७ ( कुल ३८९) ढाल - २६ राग देशाख. देशी - "रोतां रे रोतां रे राइ" अथवा " सारद सार दया करि". कडी १-७ ( कुल ३९६) ढाल - २७ राग परजीउ देशी - "मृगावती राजा मनि मांनी” तथा छत्रीसीनी कडी १-१० (कुल ४०६) ढाल - २८ राग सींधूड - गउडी. देशी- “सीपीयारा नेमजी" अथवा "नयर राजग्रह जांणीईजी. " कडी १-१० ( कुल ४१६) ढाल - २९ राग रांमगिरी. देशी - जयमालानी अथवा जत्तिरी कडी १-८ ( कुल ४२४) ढाल - ३० राग अधरस. देशी - पुण्य न मूंकीइ. कडी १-८ ( कुल ४३२) ढाल - ३१ राग मेवाडउ, देशी - जीवडा तुं म करे निंदा पारकी. कडी १-९ ( कुल ४४१) ढाल - ३२ राग महलार. देशी- जूउरे सांमलीआनुं मुखडउं. कडी १-९ ( कुल ४५०) ढाल - ३३ राग केदारु देशी - " दास फीटी किम थाउं राजा" अथवा "आज लगई धरी अधिक जगीस." कडी १-११. दूहा १-८. ( कुल ४६९) राग केदारु-गुडी. देशी - पारधीआ रे मुझ ते वनवाट देखाडि. कडी १-११ ( कुल ४८०) ढाल - ३४ ढाल - ३५ राग गुडी. देशी - "संभारी संदेसडउ " अथवा " सारद सार. " कडी १-१०. (कुल 1 ४९०) ढाल - ३६ राग देशीख. देशी- इंद्र कोप कीउ कडी १-१० ( कुल ५००) ढाल - ३७ राग देशाख. देशी - एकवीसानी. कडी १-५ ( कुल ५०५) ढाल - ३८ राग आसाउरी देशी-मसवाडानी पहिली. कडी १-४ ( कुल ५०९) ढाल - ३९ राग सामेरी देशी - जिम कोई नर पोसई ए. कडी १-६ ( कुल ५१५) ढाल - ४० राग गुडी. देशी- “करि आगली कि माडव जावई" अथवा " सारद सार दया करि" कडी १-१३ ( कुल ५२८) दाल - ४१ राग धन्यासो, देशी-मसवाडानी छेहली. कडी १-६ ( कुल ५३४) Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट - २ " ऋषिदत्ता रास "मांना केटलाक अलंकारो कवि जयवंतसूरिए पोतानी कृतिमां शब्दालंकारो अने अर्थालंकारो मोटा प्रमाणमां वापर्या छे. कृतिमांना शब्दालंकारो वाचकनुं पहेलं ध्यान खेंचे तेवा होइ तेमांना केटलाक जोईए. अन्त्यानुप्रास : आखी कृतिमां मळे छे. पहेलो ढाळमां पंक्तिओने अंते नाम-प्रणाम, श्रुतरूपनरभूप, चंग - अभंग, प्रमाणि- ताणि, वगेरे छे. आंतरप्रास : भजय नववय नवलनेहा ( ३७.१) कायमाया अभ्रछाया मोहवाया जन भमई. (३८.३) दीनवदन अतिचंचल लोचन, तनि वरसई परसेवजि . ( १४.५ ) कांमिनी गजगामिनी जिहां यामिनी कर सममुखी. (२.१) वगेरे. वर्णसगाई : सासनि सोहकरी सदा, श्रीविद्या श्रुतरूप, ते मनि समरूं जेहनइ, सेवई सुर नर भूप. (१.२) तेज तरल तोखारा ... (३.११ ) चंचल चालि चालई वलि खंजन, चतुर चकोरां कोडि. (४.२) शुक पिक कंक कुटिल कलहंस. (४.३) वगेरे आ अने आवा शब्दालंकारो पंक्तिओने कर्णमधुर बनाववा उपरांत भावप्रदर्शन अने रस जमावटमां उपयोगी भाग भजवे छे. अर्थालंकारोमा उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा अने दृष्टांतनी तो आ रासमां झडी वरसे छे. दरेकनां पांच-छ उदाहरण जोईए. बधा ज अलंकारो नोंधवानो उद्देश नथी. उपमा : गौर के तकि तनु जिस्यु. ( २.३) अट्ठमि ससि सम भाल. ( ४.२१ ) दीपशिखा सम नासा उन्नत, तिलकुसुम अनुकार. ( ४.२४) रंभारंभ निभ उरु मनोहर. ( ४.२८ ) वेणी भूअंग जिसी. (३६.८) सरल जिसी हुई चंपा छोड. (६.५) वगेरे. रूपक : सकलकलागुणगेह. (२.२) चालती मोहणवेलि (४.७) प्रेमतणी परनाली. ( ४.२० ) लोचनबांणि. (४.२१) कल्पवेलि अवतारा. ( ४.२९ ) अवगुण केरी खांण. (११.३) जग गोरसनू घृत रे सुंदरी. (३१.६) वगेरे. उत्प्रेक्षा : जाणे सुंदर मधुर सर, विद्याधन उच्छाहि. (४.५) लोचन बांणि वेध्या जन थंभई, जांणे लीधा ताणी. ( ४.७ ) कल्पवेलि जांगे जंगम, आवी घर बारणई रे. (९.२) हेज हसंती जाणे वरसई, फुलपगरनउ पूर ( ४.२५) अंसुधार आषाढी घनस्युं, जांणे लायउ वाद रे. (१८.२) बगेरे Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ परिशिष्ट दृष्टांत : जिम चिर विरही प्रियुमुख देखी, मनमांहिं पामई हरख विशेषि, तिम राजा रलीआयत थयउ,जिम ससी देखी चकोर गहगहयउ. (७.३) जोई तु तापस को नहीं, सूनी दीठी आश्रम मही, सर सूकउ पंखी जिम तिजई, नीरसथी श्रोता उभजई. (७.२९) . अति चतुर कुमरनई संगि, सा मुग्धि पिण हुई रंगि, वर कुसुमनइ संबन्धि, अति तैल हुई सुगन्धि. (८.२) कनकरथ मननु मन मांहइ, ईम रह्यउ अवटाइ. जिम पंखी पांजरडई घाल्यउ, पणि नवि चालइ कांई. (१६.८) सा रोइ रही आपोआपई रे, जिम सायरई लहिरी व्यापइ रे. (२१.४) । भोजन पांमी भावतुं, भूख्यउ न सहई विलंब दे, तिम प्रियप्रापति कारणई, विरही हुइ उत्तभ दे. (३५.६) वगेरे. व्यतिरेक : मुखससि जितइ ससीहर मंडल, दीसइ कलंक संभार. (४.२४) नगरी काबेरी, अमरपुरीथी जे अधिकेरी, सोभा जस बहुतेरी. (२.१) जीती वीणा मधुरिमा, कलकंठी सुकुमाल. (४.२५) नवनीत पांहिं कुंअली, हूंती जस तनवाडी (२०.१०) जे परमाणूं रे ते घडतां रहया, तेहनी रंभा कीध, जांणउं चंदउ रे तसु मुखदासडउ, दीसइ अंक प्रसिद्ध. (३१.३) मृग जिता सेवई वनवासो, पंकज नीरि पडंति, एक ठामि न रहइ वली खंजन, मनमइ भीति वहंति. वगेरे (४.२३) अतिशयोक्ति : रडी, भर्यां तलाव कि, ससनेही खरी रे. (९.१७) ...प्रासाद... गगनस्यउ मंडई वाद. (४.४२) परवत फाटइ इणई दुखई, नीलां झाड सुकाई, ऋषिदत्ता पंथि सांचरई, अति आकुल थाई. (२०.१) गंगावेलू रे सायर जलकणा, जे गणी पामइ पार, ते पणि तेहना गुण न गणी सकई, जिहवा सहिस उदार. (३१.८) वगेरे. अर्थान्तरन्यास: समुद्र मर्यादा किम तिजइ ? छंडई गिरी किम ठाइ ? जेणई जनमाहिं हासुं हुवई, किम करई उत्तम तेह ? (१३.२) एक कोईनई अपराधई सहुनई, कोप न कीजइ चित्तई जि, भईसु मांदउ तडिंग डांभीइ, ए नहीं रूडी रीति जि. (१४. १३) वगेरे लेष :- इणि वातइ म करस्यउ प्रांण, तउ निश्चई लेस्यउ प्राण. (२९.३) (प्राण= (१) हठ, बळ. (२) जीव.) वादलमांहिथी सूर प्रगटयउ हुई जिस्यु, रणजित्या जिम सूर दीपति उहल्लस्यु. (३६.२) (सूर= (१) सूर्य, (२) शूरवीर) (नोंधः- उपर उदाहरणरूपे ज थोडा अलंकारो नोंध्या छे. बधा ज अलंकार व्यवस्थित रीते नोंधवानो आशय नथी.) Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-३ "ऋषिदत्ता रास"मांथी सूक्तिओ अने कहेवतो अणदीठानउं दुख नहीं, दीठउ विघटइ साल. (४. ३७) वेध तणी छई वात ज घणी, प्रांणीनई मेलइ रेवणी. (६.९) प्रांणी पीडाइ प्रेमनइ वसइ. (६.१०) प्रेम कीधउ तिहां बांध्यउ जीव. (६.१२) । मनइ मन ते एक कहायइ. (६.१४) एणई संसारई एतलउ सार, प्रेम तणउ मोटो आधार. (६.१५) वायुं न रहइ व्यसनी. (६.२१) प्रा. विण वरसई मेह भूरि. (७.१७) स्युं कहीइ सज्जननई. देव, ते उपगार करइ स्वयमेव. (७.१७) सहजई करइ परनई उपगार, स्वारथ वंछइ नहीं लगार, तेणइ सज्जनि ए सोभइ मही, रवि उगइ तस पुण्यई सही. (७.२९) वारिहारि घटिका संगि, झल्लरि सहइ प्रहारनी व्यथा. (७.३१) डाहई कुसंगति तर्जवउ. (७.३३) न रहइ ढांकयउ नेह. (८.१) दूधमांहि साकर (८.२) दूध स्यउं साकर भेली. (२९.४) गुणवंत नरनी संगतई, गुण तणउ होति प्रकाश. (८.२) रोर मनोरथ.. रही मनमाहि. (८.४) सरजित अन्यथा नवि हवई ए. (८.५) काल कुशलनइं जे छलई ए. (८.५) नहीं निमिषनउ वीसास जीवित. (८.५) खांड नई ठांमई साकर. (९.५) कल्पवेलि लही अलवि तु कारेली खप नहीं रे. (९.५) ते विरला जगमांहि कि प्रीतई जे पलइ रे. (९.६) खरा दोहिला प्रीतिका पालना रे. (९.७) माणस तेह प्रमाणि, जे प्रीतई अकमना रे. (९.८) सूली रूडी सउकिथी. (९.९) जेहवी आभां छांह कि, पाणी लीहडी रे, झबकई दाखवई छेह, विदेशी प्रीतडी रे. (९.१६) उंचा स्यउं मोह, विचक्षण कुंण करई रे, नीठर मेहलि जति कि, परदुख नवि धरई रे. (९.१७) अदेखी स्त्रीनी जाति, कूड करती नाणई भ्रांति. (११.१) अवगुण केरी खाणि, नारी एहवी निरवांणि. (११.३) जेणई जगमांहि हासुं हुवई, किम करइ उत्तम तेह ? (१३ २) Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ परिशिष्ट अवगुण सघला छावरई, जे जसु वल्लभ हुंति, सरसव जेता दोषनई, दोषी मेरू करंति. (१३. दूहा ५ ) सूकुं बलतां नीलू लागई, अन्याईनई दोषी. (१४.११) एक कोई नई अपराधईं सहुनई, कोप न कीजई चित्तई जि, भसु मांद तडिंग डांभिई, ए नहीं रूडी रीति जि. (१४.१३) जे गायन वालई, अर्जन तेह विख्यात जि. (१४.१४) आदर्श स्यउं करई कंकणई ? ( १५.१५) अवगुण सगा न होई. (१६.१७) पूर्व करम शुभाशुभ दाता, अवर स्यउं केहउ दोस रे. (१८.११) करम साथ रे कुंणई नवि चालई, करमई नडया रे अनेक जि. ( १९.१) पूरव करम उदय थकी, परिसह सहया रे अपार जि. (१९.२) पूरव पुण्य तणई वसई, मति हुई सहाई. (२०.११) पाहण पावकिं परजलई, फाटई पिण मिलई वारई, सज्जन दीठई दुख सांभरई, आवई हईडला बारई (२०.१४) पाकी बोरि अनई स्त्रीजाति रे, देखी सूनां वाहई सहु हाथ रे. (२१.५) वनिता अनई सेलडी वाड रे, देखी पुरुषां तणी गलई डाढ रे. (२१.६) शील ते स्त्रीन परम निधांन रे. (२१.७ ) कल्याण कोडि लहई सही, नर जीवता. ( २३.११ ) अबला तणईं नींसासडई, पुरुषनई पाडइ शर्म. (२४.८) जउ मां गई मान्या तणी, तउ जिवतई स्यउं कांम ? ( २४.९ ) छछउंदिरी जिम सापि साही. (२४.११) नेह खरु नारी तणउ रे, नर पूठई अवटाई, नर मिसनेही निरगुणी रे, बीजा केडई थाई. (२५.३) आभा विण स्यऊ मेह ? ( २७.१ ) कुण किणनां किहांथी मिलई हो, पूरव प्रेम -संयोग, एक देखी मन उहलसई हो, एक दीठइ करई शोक. (२८.६ ) प्रीति नयनां सरिखी कहाई. (२९.५ ) उत्तमनई नेह नीच स्यउ रे, जिम मिरीआं कपूरो रे. (३०.६) जेह स्थउं मन मिल्यउ रे, ते विगुणाई सुरंग. (३०.७) रोर घरि जेम निधान (३१.६ ) स्वारथ सहू सपरांणउ. (३२.२) पी न सकुं ढोली सकु (३२.४) अमीई मेह वूठऊ. (३२.९) वेई पीडा आपणी, परनी करई उथापणी, जिम ढोला नई मारूंणी, विचि अंतराई मालविणी. (३३.९) Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट १०७ पुरुष मरई स्त्री कारणई, ए तठ अवली रीति. (३३. दूहो ६) विसमी विरहनी वेदना, रांम लहई जगि सोई. (३३. दूहो ७) दोहिलउ प्रेम विवहार. (३४. १) युवतीजाति हुई अदेखी, परनी न सहई प्रशंसा रे, आपण। अधिकेरुं मवावि, ओछी अति नृशंसा रे. (४०.३) हसतां आलई कर्म उपराजई, दोहिलउ तास विपाक रे. (४०.७) निंदक ते चांडाल सहुथी, नरगि सहई संताप रे. (४०.१०) विलंब न करई लवलेस जे उत्तम, जांणी अथिर संसार, जे जे वेलां धरम संयोगई, ते ते कहीई सार. (४१.२) Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट- ४ " ऋषिदत्ता रास" मांनां केटलांक वर्णनोनी सूचि स्थळोनां वर्णन : रथमर्द्दनपुर (२.१). काबेरी नगरी ( ३.१ ). मित्रतावती नगरी (६.१८ ). सरोवर (४. १-५) बगीचो ( ४.१३ - १८) जिनमन्दिर (४.४१-४७), पात्रोनां वर्णन : राजा हेमरथ (२.२) राजा सुन्दरपाणि (३.२), राजा हरिषेण (६.१८) तापस विश्व - भूति (७.६), गुरु भद्रयशेो ( ३८.४), कुंवर कनकरथ ( २.३ ) कुंवर अजितसेन (६.१९ ) कुंवर सिंहरथ ( ३७.५,४१.२) पटराणी सुयशा (२.२), पटराणी वसुधा (३.३), राणी प्रियदर्शना (६.१९). कुंवरी रुखमणी ( ३.४, ३२. १ ). महासती चंद्रयशा (३९.४), साध्वी संगा (४०.१ अने ५) नायिका ऋषिदत्ता (४.७, ४.१९,२९, ५.१,९.१-४,३१,२-५,३६.३-८) योगिनी सुलसा ( ११.७, १५.१-७) अन्य वर्णनो : कनकरथ ऋषिदत्ता परणीने आव्यां त्यारे रथमर्दनपुरमा उत्सव (१०.१-६) रथमर्दनपुरमा सुसाए मचावेलो उत्पात (१२.१--९) ऋषिदत्ताने अपमानित करी गाम बहार काढवी ( १७.५ - १३ ) ऋषिदत्तानो विलाप (१८) कर्मनियम अफर छे ते जणाववा दृष्टांतो (१९) असहाय दशामा जंगलमा रखडती ऋषिदत्ता (२०.१ - १० ) कनकरथ विलाप (२२) कनकरथनी विरहदशा ( २३.१ - ९ ) काबेरीमां कनकरथनुं आगमन अने लग्न (२९.६-८) Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-५ जयवंतमूरिमां न होय तेवां पुरोगामीओओ आपेलां वर्णनोमांथी किंचित्' आख्यानकमणिकोष : रथमर्दननगरनुं वर्णन : मध्यदेशमां रथमर्दननगर छे. जेमा विलास करता रथो छे अने चक्रवाकनी शोभाथी युक्त सरोवर छे. ज्यां स्वजनोनो विरह नथी. जेमां फीणनां जेवां धोळां मंदिरो छे. जेणे पाताना पगना स्पर्शथी पृथ्वी पवित्र करी छे अने जेओ शास्त्रना भावने जाणनारा छे तेवा मुनिओ त्यां वसे छे. ज्यां कोई जातनो उपद्रव नथी अने जे धनधान्यथी भरपूर छे अ तमाम देशोमा शिरोमणि छे. ज्यां श्रावकोए पोताना बाहुबळवडे धन पेदा कयु छे अने दान देवामां तेओ कल्पवृक्षना माहात्म्यने पण नीचे पाडनारा छे. त्यांना राजा शक्तिशाली छे तेमज गयेली संपत्ति पाछी मेळववामां रस धरावनारा छे. तेमणे भारे पराक्रमथी शत्रुओने हराव्या छे. एवा एमना पराक्रमथी लाल थयेला नखोमां नमस्कार करतां सामंत लोको धन्यता अनुभवे छे. काबेरीनगरीनुं वर्णन : - काबेरी नदीथी जेनी शोभा वधेली छे. जेना महेलो आकाशने चाटे छे. जे नगरी धनधान्य तेमज मनुष्यथी युक्त छे. ज्यांना माणसो पासे चकचकतां पद्मरागनां रत्नो छे अने मोती, शंख तेमज परवाळां अढळक छे तेवी काबेरीनगरी छे. तेनुं वर्णन कोण करी शके ? सरोवरन वर्णन : ए सरोवर घणां झाडोथी युक्त छे ने तेनी आसपास वन छे. वनमां विस्तीर्ण शाखावाळां, पांदडावाळां ने सारा फळवाळां अनेक वृक्षो, संतापने हरनारां अनेक दृश्यो अने नयन तेमज मनने हरे तेवी मोहकता छे. सरोवर पोताना पाणीनी लहेरोवडे जाणे के कुमारने भेटतुं न होय ! अंदरनां कमळो जाणे के कुमारने अर्ध्य न आपतां होय ! अंदर तरता कलहंसोनो मनोहर अवाज अने गुंजारव जाणे कुमारना गुणगान न गातो होय ! हरिषेण तापसनु वर्णन : तापस फळ-फूल ने कंदनो आहार करतो. पोताना नियममां चुस्त हतो. घडपणथी एनां अंग ढीलां पडी गयां हतां. एना माथा उपर शरदना चन्द्र जेवा धोळा वाळ हता. माथानी जटा जाणे के पक्षीना आश्रय माटेनुं कल्पवृक्ष न होय ! शरीर उपर शरदना वादळ जेवी भस्म लगाडतो. ते एवी लागती जाणे के शरीर उपर पुण्यलक्षमी ना आवी होय ! आ तापस आश्रमनो संरक्षक हतो अने तत्त्वज्ञानना प्रकाश करनारो हतो. पोतानी मर्यादाने पाळनारो-खूब सत्त्ववाळो-मेरु पर्वत जेवो भारे अने लोकोमा मध्यस्थ हतो. १. संस्कृत-प्राकृत रचनाओमाथी गुजरातीमा सार आप्यो छे. Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० परिशिष्ट श्मशाननुं वर्णन : श्मशानमां शियाळना भयंकर अवाज थाय छे. कायर माणसो डरी जाय छे. कोल्हुनी डाढथी मुडदांना मांस चुथाय छे: वेतालना भय घणो देखाय छे. कोइक ठेकाणे मुडदां बळे छे तेनी दुर्गध आवे छे. कोईक ठेकाणे भूत हाथ ऊंचा करी नाचे छे. कोइ ठेकाणे वीरपुरुपना देहना वे कटका पड्या छे. कोईक ठेकाणे कापालिको विद्या साधे छे. कनकरथ रूखमणीने परणीने ऋषिदत्ताने साथे लइने पोतानी नगरीमां पाछो फरे छे त्यारे डाबी बाजु ऋषिदत्ता ने जमणी बाजु रूखमणी एं वच्चे कनकरथ उत्तम हाथीना स्कंध उपर बेठो छे. आम बे प्रियाथी हाथीनी उपर रति ने प्रीति वच्चे जेम कामदेव शोभे तेम शोभे छे. एना उपर सुधानी धाराथी अभिवृद्धि थाय छे. लज्जा अने श्री वच्चे जेम कोइ शोभे तेम ते शोभे छे, गंगा अने सिंधु वच्चे मध्यदेश जेवो, उत्तरकुरु अने देवकुरु वच्चे सुवर्णना मेरु पर्वत जेवो, सीतानदी अने सीतोदा वच्चे महाविदेह शोभे, दर्शन अने ज्ञान वच्चे कोई - मोक्षगामी जीव शोभे तेम ते शोभे छे. ऋषिदत्ताना शयनगृहनु वर्णन : बहु किंमती, विशिष्ट प्रकारना अने बराबर मजबूत लाकडाथी बनावेलुं एनुं वासभवन छे. सुन्दर वस्त्रना चन्दरवा बांधेला छे. भीतो पर पंचरंगनी भातोवाळां चित्रो लटकावेलां छे. धूपसळीनी सुगन्धथी घर सुगन्धित बन्युं छे. तांबुल-पुष्प वगेरे भोगसामग्री छे. जेनु कोमल ओशीकुं गंगानदीना कांठानी रेती जेवु सुंवाळु छे, एवी सुवाळी शय्यामां ऋषिदत्ता सूए छे. धर्मनु व आ संसार इन्द्रजाळ जेवो छे. पिता-माता, पुत्र, बळ ने राज्य सर्व क्षणभंगुर छे. विषयमां मोहित थयेला माणसो धर्मर्नु आचरण करता नथी. जे प्रमाणे मृगो झांझवाना नीरने पाणी मानी एनी पाछळ भम्या करे छे तेवीज रीते माणसो संसारनी मोहजाळमां फसाई भवमां भम्या करे छे. किंपाकनु फळ देखावमा सुन्दर होय छे परन्तु स्वादमां कडवं होय छे, ते ज रीते विषयो शरुआतमां मधुर परन्तु परिणामे भयानक होय छे. जे रीते बिलाडो दूधने ज जए छे परन्तु पासे लाकडी लईने उभेलाने जोती नथी तेम मनुष्य विषयसुखने ज जु) छे भविष्यना दुःखशल्यने जोतो नथी. पांच इन्द्रिय होवी ते मनुष्यभवमा उत्तम छे अने सारा कुळमां जन्मीने साधुसमागम थवो ते वधारे उत्तम छे. हे भव्य जीवो ! आ बधा गुणो मेळववा दुर्लभ छे. माटे जिनधर्ममां उद्यत थाओ. संसारमा जीवो आठ प्रकारनां कर्मथी भमे छे. आयुष्य, नाम, गोत्र, वेदनीय, अंतराय, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय अने मोहनीय कर्म. इच्छाओने मर्यादामा राखवी जोईए. हिंसा, परिग्रह, मांसाहार-आ बधा नरकनां कारणो छे. ओ नरकमां तेत्रीस सागरोपमनुं आयुष्य व्यतीत करवु पडे. त्यांथी नीकळीने तिर्यंचगतिमां जीव जाय. त्यारपछी मनुष्यभव मळे. मनुष्यभवमा मानसिक शुद्धि थई शके. परंतु जे माणसो रागमां मर्थित थयेला होय छे. परलोकथी पराङ्मुख अने बहु ज प्रमादी रागद्वेषथी युक्त होय छे. तेओ भवमा भम्या करे छे. ज्यारे अशेष कर्मना क्षय थाय त्यारे मोक्ष प्राप्त थाय. दुष्ट प्रवृत्ति, अविरति, मिथ्यात्वनो त्याग करो त्यारे समकित प्राप्त थाय. सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्रथी अविरतिना नाश थई शके. 'मुक्तावस्थामां अनंतगुणु सुख छे. तमाम कर्मोना नाश थाय छे. जीव केवळज्ञान केवळदर्शन अनुभवे छे. मनुष्य तेमज देवोने जे सुख नथी ते सुख सिद्धने छे. Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट - १११ विवेकमंजरी अन्तर्गत वर्णनोकनकरथं अरिदमन साये युद्ध करवा चाल्यो त्यारनु वर्णनः ___ लश्करे जयारे प्रयाण कर्यु त्यारे सूर्य ढंकाई गयो. पवनवेगी घोडा लश्करमा हता. आकाशरूपी वक्षस्थलमां जाणे स्तनरूपी घोडा दोडता न होय तेम तेओ चाल्या. आश्रमनु वर्णन : राजा हरिषेण जे आश्रममा गयो ते आश्रममा विश्वभूति तापस हता. त्यां पोपटो तापसना शिष्योने प्रेरणा करता हता के “अतिथिy आतिथ्य करो" हरणांओना मोढामांथी खाधा पछी आवेला धानना ढगला पडल्या हता ने मोढामां फीण आव्यां हता. मुनिना खोळामां बच्चां बेठां हतां. वृक्षोनी छायामां तापसमंडळ बेठेलु हतुं ने कुलपति शिष्योथी वोटळायेला हता. अज्ञातकविकृत कथामां आवतां वर्णनो : पंचतीर्थंकरोनु वर्णन : - जे तीर्थ पासे राजाओना मुकुट नमेला छे. प्रकाशरूप नदीना प्रवाहथी जेना पग धोवायेला छे, कंचनना पांच मेरुनां फूल जेना पर चढेलां छे एवां पंचतीर्थंकर भविपुरुषोना कल्याण माटे लक्ष्मी आपनारां थाओ. (१) उछळता भ्रमर समान तरंगोवाळा मागध नामना आनंद आपनारा तीर्थना पाणी वडे स्फुरायमान योजनप्रमाण नाळचावाळा कळशोवडे देवोवडे जेओ अभिषेक कराया, नृत्य करती कुम्भस्थल समान श्रेष्ठ (स्तनवाली) अने नम्र श्रेष्ठ होठवाळी अप्सराओवडे जन्ममहोत्सवमा स्तुति करायेला ते वृषभ प्रभु कष्टोथी तमारु रक्षण करो.. (२) भूत, प्रेत, विकराल अने श्यामवर्णवाळो विलास करतो वेताल, काळज्वर, अंधकारमा भमती राक्षसीओ. वनमा फरती दुष्ट डाकिनीओ, शाकिनीओ, शक्तिशाळी एवी पिशाचनी श्रेणीओ, दुष्ट देवीओ, पामर स्त्रीओ आ बधांने, स्फुरायमान छे नयनी श्रेणी जेमां एवं श्री शांतिनाथनु स्मरण शांतपणाने पमाडे छे. (३) विकस्वर रात्रिविकासी कमळना कोमळ अने उज्ज्वल पत्र समान श्यामवर्णवाळा; स्त्रीओना मननी क्रीडाने माटे क्रीडागृह समान अजोड निर्मळ गणना समदायवाळा. पवित्र आत्मावाळा, स्फुरायमान यादववंशरूपी मानस सरोवरमां राजहंस सरखी शोभावाळा, भव एटले संसारमा इष्ट मनुष्योने विलास करतु छे रूप जेमनु एवा, श्री नेमिनाथ भगवानने नमस्कार थाओ. (४) स्पष्ट (सुन्दर) रूपवाळा, अत्यंत बळवान महान नागराजवडे धारण करायु छे छत्र जेमने एवा, विकस्वर पद्म, विशाळ कुवलय अने कमळ सरखा विकसित नेत्रवाळा जेमने जोईने सुंदर नम्र, अप्सराओ सहित श्रीनागराज तथा तेमनी देवीओनो समुदाय सेवानी प्रार्थना करे छे ते आ श्री अश्वसेन राजाना पुत्र पार्श्वनाथ भगवान भव्य जीवोनी समृद्धिने माटे थाओ.. (५) वास्तविक जेमनी स्तुति करवाथी आधि, विरोध, केदीपणु विगेरे विपत्तिओ नाश पामे छे, वळी वाघ, दुष्टहस्ति, पाणी, अग्नि, वायु विगेरे महान विध्नोनो समुदाय क्षय पामे Jain Edècation International Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ परिशिष्ट छे. आ लोकमां हाथी, घोडा सहित साम्राज्यना भोगनी लक्ष्मीओ भोगवाय छे, हाथी समान गतिवाळा, सुन्दर मतिवाळा अने स्फुरायमान छे (धर्म) मार्ग जेमनो एवा श्री वीरभगवन्त जय पामो. रथमर्दनपुरनु वर्णन : जंबूद्वीपमां भरतक्षेत्रमा मध्यदेशमां रथमर्दनपुर नगर छे. जे लक्ष्मीना घर जेवु अने क्लेश वगरनु छे. ज्यां मकानो पहाड जेवां ऊंचां छे ने आकाशने चाटे छे. जेनी पासे देवतानां मन्दिरो तो कांईज विसातमां नथी. आ देशमा केळना बगीचा होय तेवां गामो ने शहेरो छे. तेमां खूब पाणीना कयारा छे. आ देशमा वेपारीओनो समागम छे. त्यां बहु पुण्यवाळा लोको रहे छे. त्यां करीआणांथी भरेला बजारो छे. लावण्यमयी स्त्रीओ छे. त्यां अनेक हाथीओ तथा चंचळ घोडाओ छे. त्यां किल्ला तेमज मोटी मोटी पोळो छे. त्यां देवना समूहथी युक्त मन्दिरो तेमज अनेक सद्गुरुओ छे. त्यां मोटा मोटा विहारो छे. मन्दिरमां घंटडीओ वागे छे ते जाणे कहेती न होय के "लक्ष्मी, जीवन, यौवन आ बधुंज चंचळ छे. भगवाननुं भजन करो." कनकरथ- काबेरी तरफ प्रयाण : शुभ मुहूर्तमा कनकरथ परणवा चाल्यो. गाममां ढोल-नोसाण वाग्यां. आ समये लाटदेशना राजानु वदन खिन्न थई गयु. भोट देशनो राजा कडवी वाणी बोलवा मांडयो. कर्णाटक देशना राजाए देशना दरवाजा बंध करी दीधा. नागदेशना राजाए मोढामां आंगळी नांखी दीधो. कलिंग देशनो राजा झांखो थई गयो. कुरुदेश विनय वगरनो थई गयो. अने मालवा देशना राजानुं मोढुं काळु थई गयु.. युद्धमा हारेला अरिदमन राजाना पश्चात्तापनु वर्णनः कनकरथे अरिदमन राजाने हराव्यो, पकडयो ने पछी छोडी मूक्यो. त्यारे अरिदमन राजा विचारे छे के : "हवे शुं करुं ? क्यां जाउं ? राज्य केवी रीते करुं ? संसार तो असार छे. जीवन संध्याना रंग जेवू छे. रूप वीजळीना झबकारा जेवू छे. यौवन झाकळना टीपां जेवू छे. साम्राज्य, परिणाम नरक जेवं छे. एक घांची दश कतलखानां भेगां करीए ने जेटलं पाप थाय तेटलुं पाप करे छे. दश घांची जेटलं पाप करे तेटलं पाप एक ध्वजवाळो (कलाल) करे. दश ध्वजवाळा भेगा थाय ने जेटलु पाप करे तेटलं एक वेश्या करे ने दश वेश्या भेगी थाय ने जेटलुं पाप करे तेटलुं एक राजा राज्य करे त्यारे थाय. घरेणां यौवन शय्या मिष्टान्न बधुं ज देहने माटे नकामुं छे. गमे तेटलुं सारु खवडावो पीवडावो छेवटे सडी जाय छे. विधिए जे ललाटमां लख्यु होय छे ते ज बने छे. जेमके केरडांना वृक्षने पान नथी होतां तेमां वसंतनो शो दोष ? धुवडने देखाय नहि तेमां सूर्यनो शो दोष ? चातक मोड़े फाडीने बेटुं होय तेमां मेघनो शो दोष ? आ राज्य, रथ, घोडा बधा ज किंपाकना फळ जेवां छे.” अरिदमन राजाए गुरु पासे सांभळेली वाणी : जन्म-मरण वगरनी वीतरागे बे धर्म कहया छे. (१) साधुओनो धर्म, (२) श्रावकनो धर्म. जे धर्म पाळीने लोको सिद्ध थई गया छे, थवाना छे ने थाय छे. धर्म त्रणे जगतना आधार जेवो छे. सूर्य-चंद्र-वर्षा बधु ज धर्मने ताबे छे. धर्मनी कृपाथी ज सुर-असुरनी संपत्ति मळे छे. धर्म रत्नचिंतामणि जेवो अने कल्पवृक्ष समान छे. साधुधर्म खूब ज कठण छे. कोई माणस मेरुपर्वतने त्राजवामां तोले, दरियो हाथथी तरी जाय, लोढाना जव मीणना दांतथी खाय, तलवार उपर पगेथी चाले, रेतीना फाकडा भरे, एनाथी Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ११३ पण कठण धर्म दीक्षानो छे. जे प्राणी एक दिवस दीक्षा पाळे ते मोक्षे न जाय तो छेवटे देव तो थाय ज. तीर्थनां दर्शन करवामां लाखगणु, देवालयमा जवाथी कोटिगणु, गुरु पासे जवाथी अनेकगणु पुण्य थाय छे. साधुना दर्शनथी जेम काणा हाथमांथी पाणी वही जाय तेम पाप वही जाय छे. पद्मिनी स्त्री, राजहंसो तेमज तपस्वी साधुओ जे देशमां होय ते देशमा सुख होय छे. आगममां लख्यु छे के साधुमहाराजने जोईने ऊभा थq. आवता जोइए तो सामे जंवू, आसन आपq. गुरुना बेठा पछी ज बेसबुं, एमने वंदन करवू, उपासना करवी, गुरु विहार करे त्यारे वळाववा जवू, गुरु समक्ष पग उपर पग चढावीने न बेसवू, तेमज ऊंचा सादथी बोलवु नहि. मनुष्य जन्म दुर्लभ छे. जेवी रीते साग लाकडु उत्तम छे, रत्नचिंतामणि उत्तम छे, तेवो ज रीते मनुष्यभव बधा ज भवमां उत्तम छे. एक लाख योजननो जंबूद्वीप छे. तेने फरतो बे लाख योजनना लवण समुद्र छे. एमां बे मोई नाखी होय तो कोईक ज वार भेगी थाय, तेवी ज रीते मनुष्यभव कोइक ज वार उपलब्ध थाय छे. मनुष्यभव जे हारी जाय तेने एवो पस्तावो थाय जेवो पस्तावो हाथी कादवमां खूची जाय त्यारे एने थाय. माछलो लोटना आकर्षणे जाळमा फसाई जाय त्यारे जेवो थाय तेवो, बाज बीजा पक्षीने पकडे त्यारे पक्षीने थार तेवो, शेठने गामडामां रहेवू पडे त्यारे जेवो थाय तेवो, युवान घरडो थाय त्यारे, देवता स्वर्ग छोडी दे त्यारे, आदर. पात्र अपूजित थाय त्यारे, ने मानो अपमानित थाय त्यारे जेवो पस्तावो एमने थाय तेवो ज भव हारी जवाथी थाय. चौदराजलोकना मापवाळा जगतनी अंदर एवं एकेय स्थान नथी जे आपणे न अनुभव्यु होय. चोराशी लाख योनिमां एवी एके योनि नथी जेमां धर्म-आळसु माणस न गयो होय. आपणे देव-तिर्यंच-मनुष्य वगेरे गतिमां अनंतवार भम्या छीए. जिन भगवाने जे पुद्गलपरावर्त कहया छे तेमां जोव अनंतवार भम्यो छे. प्रथम जीव अव्यवहार राशिमां होय छे. पछी घणा लांबा समय पछी व्यवहारराशिमां आवे छे. एमांथी आर्यक्षेत्रमा आवे छे. कुळ-रूप आरोग्य सारु मेलवे छे. परंतु धर्म पर श्रद्धा बेसती नथी. चार प्रकारनो धर्म-सुपात्रे दान-शील-तप-भावना पाळवो जोईए. आ पाळवाथी विनय-व्यवहार -विद्या-भोगो मळे. बारमा स्वर्गे जवाय, नवग्रैवेयके जवाय, अनुत्तर विमानमा जवाय ने मोक्षप्राप्ति पण थाय. कुमार कनकरथ ज्यारे ऋषिदत्ताने जोवा सेवके दर्शावेला मार्गमां जाय छे त्यारे एना प्रयाण समयनुं वर्णन:-ज्यारे ढोल वाग्यो त्यारे घेलो गुर्जरदेश जुए तो एने ताव ज आवी जाय. कर्णाटक राजवीने तो कानमां अग्नि लागी जाय. द्रविड राजानो गर्व गळी जाय. चोल राजाने ऊंघ आवी जाय. शत्रुनी स्त्रीओनो आनंद थंभी जाय. सहजसुंदररचित ऋषिदत्ताचरित्रमा आवतां वर्णनो : महावीर भगवान श्रेणिक महाराजाने ऋषिदत्ता चरित्र संभलावे छे त्यारे कलियुगनुं वर्णन करे छे: "कूडकपट केरु ए काल, चाड चवाड धाडीनूं छाल, न्यायि रीति उठी पहुवीतलि, राजवरग माहि पणि भांभलि. जडीमूली रस तणि प्रभावि, चंचल चपल थया गरु कहाविई, वहूयर सासू बेटि कमाई, खंध बले गुरु चेला जाई. माया परगट पाप करती, वाछ काछ विण लोक फिरंति, Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ परिशिष्ट नारी जाति नरहि मरवादि, लोक पड्या सहू मिथ्यावादि. गुरुसिउँ ठगाई पापनइ संचि, थोडि आयुखई द्वेष न मूकई, माय बेटीना गरथ जिसातई, आपणा छोरु कुखेत्रिई घाति. पापी धनी जीवई चिरकाल, संत विशेषि पामिई आल, धरम तणउ कोई मरम न जाणिई, तु कुण सीलतणां गुण माणिई. थोडू घणूं जे आपणूं राखई, ठाम नही कई माणस पाखई, बग ध्यानि बिठउं सहू माहलिई, लाजि लाज करी कोई चालि. साचू कहितां राख ठाम नहीं कई, माणस सह रीसाई तिणई, कारणि अधिकुं न कहाई वलो, जे सील धरिई सुखवास तिहत'उ ह जाई दास. तेह खलं जे कसटि पहूंचि, सोनानी परि गुण आलोचई, मटिङ मादल तिम सहू को जाणिई, आपणी घरि तिम सील वखाणई.” ऋषिदत्ताना अलंकारोनुं वर्णन : "आगई ते वली सयल शंगार, तेउ नहीं कहिनि पाडि रे, राखडीई वली गोफणउ, तिलक तपई नलाडि रे. झालि झमालि झबूकती, मयण शखा करि टीलू रे, हार, दोर, करि कंकण खेलिई, कई केउरडू कोटोलू रे. चूडि तणउ चलकारउ सारउ, मेखला मउड मंडाण रे, बाहुडलीई नवा बहिरखा, भूद्रडीए मन मोहि रे. नाग नगोदर पदकडी, पान कउली करि झाली रे, नेउरडे रम रम झमकंती, ठमकंती सा चाले रे. माथई मोतीनी सरि सोहिई, सींदूरीउ सिणगार रे, आंजी अलविई आंखडो रे, खडीकाम सफार रे. कूबते झूबख झूमणा, ताकई लोचन बाण रे, ते नवि दोसि आवती, साजणनालि प्राण रे. कनकरथ रूखमणीने परणवा अयोध्यानगरीमा आवे छे त्याग्नुं वर्णनः-- "नयर अयोध्या आवीया ए, करई परवेस मंडाण तु, हाटि हाटि गूडी बहु उभवी ए, वली वन वन वाला शोभवीए. बहू चित्र विचित्र चंद्रूआ ए, अतिफार मनोहर मंडीआ ए, घण दर्पण उली झलकीअ ए, करि कंकण सोवन खलकीआ ए श्रेणि चडावी कलसनी ए, झल्लर मंगलि रुणझणई ए, सखी मोती चउक पूरावीअ ए, धूपघटी धूपावीअ ए. नवरंग तुरंगमसू खेलीअ ए, पगरभर फूल मेहिलीअ ए, रससार शंगार सगाईअ ए, वरवीणा वंस वजावीअ ए. मोति करि झुबक झूमव्या ए, हीरागल चीर कलंबव्या ए, छड छाबड कंकू नीपना ए, किम लालि झमाली कि सीपना ए. छत्र चामर चउपट गहई ए, दलि केतकी परीमल महमहि ए, इम नयर सुश्रीक विभूषीउं ए, सह फोफल पानि संतोखीउं ए. Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ११५ गजकोटि घूधर सामटा ए, झगझाग तुरंगम सरिवटा ए. एक धाई हार जि ऋटितई ए, एक वेणी दंडसु छूटतई ए, सखी नेउर पासे फटितई ए, एक अतिमादल कूटितइ ए. एक आविई ढोल ज ढमढमाटि, वली वाजा केरां गुमगुमाटि, रण तूरण तेजे रणरणाटि, घरि पहुतु उछव घमघमाटि. सही टोले रूपणि हरखतीए, नयणे वलो प्रीय प्रीय नरखतीए, हेविई आवी वेला वहिलडीए, बिहूं पामे रोपई केलडीए. देवकलशरचित कथामा आवतां वर्णनो :---- कनकरथ रुखमणीने परणवा जाय छे त्यारचं वर्णन :"तात वचन कुंअर सामहियु, तिणि परि गह गाढउ गहिगहिउ, मंत्रीसर सामहणो करइ, धन धानि करहादिक भरई. गयवर शतगडीयई माल्हता, जाण करि पव्वेत चालता, पंचवर्ण हयवर पाखर्या, दिनकर वाहनथी अपर्या. जेहे रथि सोवनमई धुरी, तेहे रथि जूता छई तुरी, बीजा वाहननउं स्य कहउ, पायक सुभट पार नवि लहं. ढोल ददामां सुसर नीसांण, सांभलि वईरी तिजई परांण, झल्लरि मद्दल भेरी ताल, रीझई अबला बाल गोपाल. नफेरी सरणाई संखा, अवरतणी जाणू नवि संखा, ईणिइं रिद्धि करी परिवरिउ, भला सुकन वली सेसिं भरिउ. करई भट्टचारण कईवार, दीजई दान वंछित अनिवार, परिहं परिई संतोष्या सह, तिणि आसीस दिई तेहनई बहू, कीयां कनकमई कुंडलवांनि, नवसर हार हीई नव वांनि, हाथि खडग सिरि सोवन टोप, वालिउ कुमर करी आटोप" कनकरथ ऋषिदत्ताने परणीने पोताना नगरमां पाछो फरे छे त्यारे हेमरथ राजा उत्सव करे छे त्यारन वर्णन : "माहि वधावलं जाई, नरपति हरखित थाई; नयर शंगारीईए, उच्छव कारीयई ए. तलीया तोरण बारि, लुहकई जोध अपारि; चंदन चरच्यां ए, नाटक विरच्यां ए. हाटे घरे चित्रामा, कीजई दीजई दांम; भूमि पवित्र करइंए, कचवर अपहरई ए. परिघल सौरभ वारि, छांटई सेवक नारि; धूप सुमहमहई ए, भोगी गहगहई ए. कीआ चंद्रोदय चंग, फूल पगर नवरंग; वन वन बालिका ए, बांधई बालिकाए. एम करी भूपाल, सज थाइ ततकाल; परिगह परिवरिउ ए, साम्हउ सांचरिउ ए. आवत देखी तात, पूछिई मात संघात; घरणि सहित नमई ए, माडी मनि गमई ए. सिंघासनि बईसारि, मिली सुहासणि नारि; बेउ न्हवारीई ए, विघन निवारीई ए. पहिरणि पट्टदुकूल, दैव तिहां अनुकूल; कुमर सिंगारीई ए, भगतिई भारीइ ए. मस्तकि मुकट सफार, काने कुंडल सार; बाहिई बहिरखाए, नवि किहि सारिखाए. in Education International Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट रत्नजडित सिरि बोर, कहिडिई कनकमई दोर; हाथे मुंद्रडी ए, हीरे ...जडी ए. हवई कुंयरि सिंगार, उरि नव नव परि हार; मस्तकि राखडी ए, आंजी आंखडी ए. श्रवणे झालि झलाल, कंचूकि सिणि विशाल; गलई निगोदरु ए, विचि विचि मोरु ए. रिमिझिमि नेउर पाय, जाणे हंस चालतु जाई, कंकण चूडीने बांहिं रुडी ए. . सोहई तिलक ललाट, उढिउ सूहवघाट; कटि मेखल घरी ए, तिह घमकइ घूघरीए. बिहूं तंबोलह रंग, जाणे आदन दाडिम भंग; एम सिंगारीया ए, कुंजर चाडीया ए. परिवरीउ परिवारि, आवई नगर मझारि; ढलई चमर सिरि छत्र, नाचई बहु परि पात्र. मागत दीजई दांन, बीजा फोफल पान; नारी मंगल गावई, मोती लेई वधावई. बहिनर लूण उतारई, कुंकम तिलक वधारइं; सरुआ वाजिंत्र वाजई, जे वर आगलि छाजई. चंदन भरीय कचोली, छांटई भंभर भोली; पहिरणि नवरंग चोली, तेवडातेवड टोली. साथिं सहसकुमार, सिणगार्या तोणी वार; याचक करई कईवार, अवसर विनोद अपार. हयरथ आवई जाई, साम्हा गयवर थाई; हसमिसि लोक उजाई, हीयडई हरखिं न माई. भोजन अन्न अवारी, कीजई घर घर बारी; दीजई कुंकमि हाथ, जाणे मनमथ भांथ. कहीई किसिउं मंडाण, नवि दीसई तिह भांण; देखी हरख ईह रांण, कोई न लोपई आंण. ए इम उच्छ्व जोतउ, वासभवनि वर पुहतु; विषयादिक सुख मांणई, जातउ काल ना जाणई. परिशिष्ट-६ जीमूतवाहननी कथा (कथासरितसागरमांथी) दानवीर, दयाळु, पितृभक्त, बोधिसत्त्वना अंशावतार एवा विद्याधर राजकुमार जीमूतवाहने वंशपरंपरागत कल्पवृक्षने लोको, दारिद्रय दूर करवा मोकली दीधुं. तेनी कीर्तिनी ईर्ष्याथी पितराइओनो राज्य पडावी लेवानो ईरादो जाणी, रक्तपात अटकाववा जीमूतवाहन राज्यत्याग करी माता पिता साथे मलय पर्वत पर आश्रम बांधीने रहयो. एकवार पोताना मित्र सिद्धकुमारे मित्रावसुनी बहेन मलयवतीने गौरीमंदिरमां जोइ. परस्पर प्रत्ये अनुराग. विरहपीडित मलयवतीने फांसो खातां अटकावीने आकाशवाणीए कहयु, “विद्याधर चक्रवर्ती जीमूतवाहन तारो पति थशे.” त्यां जीमूतवाहन आव्यो ने मलयवती बची. मित्रावसुना कहेवाथी मलयवतीने जीमतवाहन जोडे परणावो. एक वार वनमां भमतां जीमूतवाहने हाडकानो ढग जोयो. मित्रावसुए खलासो कर्योः पोतानी माताने नागमाता कद्रए दासी बनावेली तेनं वेर लेवा गरुड पातालमा गमे त्यारे जईने नागोनो कच्चरघाण काढतो. छेवटे नागराज वासुकिए दररोज एक नागनो भक्ष्य दक्षिण समुद्रने कांठे गरुड माटे मोकलवानी शरत स्वीकारी. ए रीते गरुडे खाघेला नागोनां हाडकांनो त्यां ढग थयो. ____ जीमूतवाहननु हृदय द्रव्यु. ते त्यां रोकायो. ते दिवसे शंखचूड नागनो वारो हतो. विलाप करती तेनी माता तेने वळाववा साथे आवी. शंखचूडने बदले पोते भक्ष्य थवानी जीमूतवाहननी तत्परता. एवा पापना भागी थवानी बनेनी ना. माता पाछी फरी. शंखचूड गोकर्णना मन्दिरे अन्तिम दर्शन करवा गयो. त्यां गरुड आवतो जणायो. वध्यशिला पर जइ ऊभेला जीमूतवाहनने चांचनो प्रहार करी, पकडीने गरुड झाड पर जइ बेठो. जीमूतवाहननो नीचे पडी गयेलो ने लोहीमा तणाइ आवेलो चूडामणि मलयवतीए जोयो. सासु ससरा साथे ते शोधमां Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट नीकळी. शंखचूड पण लोही जोइ जीमूतवाहनने बचाववा गरुडनी शोधमा दोडयो. जीमूतवाहनने परार्थे प्राणत्यागमां आनन्द बतावतो जोईने गरुडने शंका गई के आ नाग नथी. त्यां शंखचूड आवी पहोंच्यो. तेणे कहयु. "तें पकडयो तेने छोड, नाग तो हुँ छु, मने खा" एटलामां अर्धा खाधेला जीमूतवाहनना प्राण ऊडी गया. मलयवतीए देवीने संबोधीने भविष्यवाणीनी याद आणे. देवीए अमृत छांटी जीमूतवाहनने सजीवन कर्मो ने विद्याधरचक्रवर्ती स्थाप्यो. गरुड पासे नागभ क्षण बंध करवान ने मारेला नागो सजोवन करवान वरदान मेळव्यु विद्याधरोए हिमालय लइ जइ जीमूतवाहननो राज्याभिषेक कर्यो. Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-७ कवि जयवंतसूरिए काव्यप्रकाशनी टीकानी नकलने अंते आपेल प्रशस्ति : टीका जयन्तमुख्या विलोक्य तत्संग्रहरसमास्वाद्य । सहृदयमुदे प्रयत्नाच्छ्रीगुणसौभाग्यसूरिवरः ।। इति साहित्यचक्रवतिलौहित्यभट्टगोपालविरचितायां साहित्यचूडामणौ काव्यप्रकाशविमर्शिन्या दशम उल्लास: ॥ आसन् वृद्धतपोगणे सुगुरवः श्रीधर्मरत्नाह्वया-- स्तच्छिष्या विनयादिमण्डनवरास्तेषां विनेयान्तिमः । सूरिः श्रीजयवन्त एष गुणसौभाग्योऽपराह्वोऽस्ति य श्चित्कोशे समलीलिखद् विवरणं काव्यप्रकाशस्य सः ॥ १ ।। श्रीविनयमण्डनगुरोगिरा शिशुत्वेऽप्यवाप्तचारित्रा । आर्या विवेकपूर्वा प्रवर्तिनी सुन्दरी जज्ञे ॥ २॥ विवेकलक्ष्मीस्तत्सेवाहेवाकिन्यप्यजायत । तद्विनेया विजयिनी धर्मलक्ष्मीः प्रवर्तिनी ।। ३ ।। टीका काव्यप्रकाशस्य सा लिलेख प्रमोदतः ।। गुणसौभाग्यसूरीणां गुरूणां प्राप्य शासनम् ।। ४ ।। संवत १६५२ वर्षे पोषसुदि १३ बुधे समाप्तोऽयं ग्रन्थः ।। Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दसूची अगर-(४.१ ४.४७) (सं.अगुरु) अगर नामर्नु ____ अभ्याख्यान (सं.) (४०. ८) आरोप मूकवो सुगन्धी काष्ठ अने तेमाथी बनेलो धूप. ते, आळ चडावq ते. . अचरिज-(१३. (दू. ६) २) अभ्यसी (२.३) अभ्यास करीने. ___(सं. आश्चर्य, प्रा. अच्छरिअ), अचरज. अमरी (२.२) देवी. अचंभउ- (१३. ३) (सं. अत्यद्भुत, अमी (३२. ९) (सं. अमृत, प्रा. अमिय) प्रा. अच्चब्भुअ) अचंबो. अमृत. अजूआलऊं - (७.१७) सं. (उज्ज्वलकम्) अरणी (सं.) (१२.४) अग्नि पेदा करनार अजवालं. काष्ठ. अणआलोई-(४०.११) आलोचना विना- अरहुं परहुं (१७.२१) (सं. अर्वाक्-पराक्) गुरु समक्ष दोषनो स्वीकार कर्या विना. आगळ-पाछळ. अणगार (४१.३) घर विनाना, साधु. अरुणी (३३.६) (सं. प्रा. अरुण) ज्वाला, अणसणि (४०.१२) (सं. अनशन) उपवास. लालिमा, लालाश. अणसरई (७ १८) (सं. अनुसर्रात, प्रा. अणु- अर्घपाद (सं.) (६.१७) पग धोवा वगेरे सरई) अनुकरण करेछे, पाछळ जाय छे. ___ सत्कार सामग्रो. अतिखूत (४.९) अत्यन्त खूपी गयेलो. अलका (१२, १४) (सं. प्रा. अलक) वाळनी अतिम डाणई (२९.६) (सं. अतिमण्डन) लट. मोटा पाया उपर. अलख (१५.८) (सं. अलक्ष्य, प्रा. अलअतिलील (६.९) अतिसुन्दर. क्ख) योगी द्वारा उच्चारातो शब्द.. अतिसंता (२०.१२) (सं. अतिश्रान्ता, प्रा. अलगा (३८.३) (सं. अलग्न, प्रा. अलग्ग) अइसंता) अत्यंत थाकेल. जुदा, छूटा. अतिसंमदा (३७.३) घणो हर्ष. अलवि (९.५) अनायासे, सहजभावे. अत्र-अमुत्र (४१.४) (सं.) अलाभइ (३१. ९) लाभ न मळतां. __ आ लोकमां अने परलोकमां. अलि (सं.) (६.१०) भमरो. अथगी (१७. २२) (देश्यधातु थक्क) अवकाशा (१२.५) प्रसंग, अवसर. ___अटकया विना. अवगुणऊं (६.८) गुण वगरनुं. अनेरइ (७. २८) (सं.अन्यतर, प्रा. अन्नयर) अवटाई (१६.८, २५. ३) मुंझाईने. अनेरु, बीजु. अवदात (सं.) (६.१८,१६.१०) वृत्तान्त. अपाया (४०.१३) संकटो. अवधूत (४.९) हाली ऊठ्यो. अबीह (८.२) (सं. अ+भी, प्रा. अ+चीह) अविकत्थना (९. ३) बडाश न मारवी ते, . __बोक वगरन-निर्भय. असंभम (३.१८) (सं. असंभव) जेनो संभव अभंग (१.३,४.३ ०,१०.९) निरंतर, न होय ते, असंभवित. अभ्याख्यान (४०.८) आळ, तहोमत, अढार असूर (१७.१४) (सं. उत्सूर, प्रा. उस्सूर) पापस्थानकमान एक. सांज, मोडु. Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० शब्दसूची असेस (१८.६) पूर्ण. अहिठांण ( ३.१७ ) (सं.अधिष्ठान, प्रा. __ अहिट्ठाण) स्थान. अहिनांणी (२०.१३) (सं. अभिज्ञान, प्रा. अहिन्नाण) एंधाणी. अहीआसइ (४०.५) (सं. अधि+आसू प्रा. अहिआसइ) सहन करे छे. अंगित (८.१) (सं. इंगित) संकेत, ईशारो. अंगीकरी (११.१६) स्वीकार करोने. अंगीठडी (२०.२) (सं. अग्निष्ठिका, प्रा. अग्गिठिआ) अंगीठी, शगडी. अंच (८.१) (स.) जांकी आंखे. अंतराई ( ३३.८ ) (सं. अन्तराय) विघ्न, अडचण. अंतरालि (३.१४) (सं. अन्तराल) वच्चे. अंत्यज (सं.) (३३.४) नीच. आकइंधण (८.२.) (सं. अर्क+इन्धन, प्रा. , अकइन्धण) आकडा, बलतण. आकरसो (११.९) (सं. आ+कृष् ) आकर्षीने, खेंचीने. आकलऊ (३४.११) (सं. आकुल, प्रा. आ ऊल) अस्वस्थ. आखडी (८.१) बाधा, मानता. आगम (४१.६) आप्तवाणी, भगवान महा वीरनी वाणीनो संग्रह. आगर (३.. २) (आकर) नगर. आयउ (२.३) (सं. आगत, प्रा. आगअ) आयो-आव्यो.. आड (१५.३) (कपाळमां) आड. आण (५.२) (सं. आज्ञा, प्रा. आणा) आज्ञा. आवस (३३.६) घर(१) 'आभा (२७.१ ) (सं. अभ्र, प्रा. अब्भ) वादळ. आपोह (२.१३) (सं. प्रा. अपोह) विचा रणा. आमोदइ (४.४७) (सं. आमोद, प्रा. आ. मोअ) सुगंध वडे. आराधइ (९.१) (सं. आ+राध् ) आराधना करे, भजे. आरोही (१७.७) (सं. आ+ रुह) बेसाडी. आसडी (३२.३) (सं. आशा) आशा. आहणी (३३.१०) छाती कूटीने. आंतरु (९.३) (सं. अन्तर) आड; बाधा. आमिष (६.१०) (सं.) मांस. इंणि (३.१) (सं. एतत्) ए. इभ्य (२.१) (सं.) धनाढ्य शेठ. इम (६.१) (सं. एवम्, प्रा. एवं) एम, आ प्रमाणे. इंदिरा (२.१) (सं.) लक्ष्मी . ईश (१९.९) महादेव, शंकर. उच्चरइ (७.१२) (सं. उद्+चर्) उचरे छे, बोले छे. उछाहि (७.२१) (३४. ७) (सं. उत्साह, प्रा. ऊच्छाह,) उत्साह वडे, होशथी. उच्छंगइ (३०.७) (सं. उत्संग, प्रा. उच्छंग) खोळामां. उटवऊ (६.१७) (सं. उटज, प्रा. उडय) पर्णशाला, झुपडं. उतरीअ (१३. दू. ६.) ३) (स. उत्तरीय) उपर ओढवानुं वस्त्र. उतभ (३५.६) (सं. उत्+स्तम्भ) ऊंचा नीचा थवू, चेन न पडवू. उदंत (८.४) (सं. उदन्त) हकीकत, समाचार, उन्नयऊ (८.१) (सं. उन्नत, प्रा. उन्नय.) ऊंचे चढी आवेलो. उपसमवासी (४०.५) (उप+शम) कषायोना उपशम भावमा रहेनार, कषायोने दाबी देनार. उपाइ (४.३९) (सं. उत्+पद्) उत्पन्न करीने. Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दसूची १२१ उमाह (८.२) (सं. उन्माथ ?) उत्साहथी, उमंगथी. उरु (४.२८) (सं.) साथळ. उलटि (३६.९) उलट थी, उत्साहही. उल्लोच (४.४५) (सं.) चंदरवो. ऊकाटा (१३.९) ऊबका. ऊछांछली (३२.१) (सं. उच्चंचल) उछांछळी. ऊठावई (१२.९) (सं. उत्+स्था) ऊभी करे छे, नचावे छे. ऊतारा (२९.६) (सं. उत्+तृ) उतारो. ऊथापणी ( ३३.८ ) ( सं. उत्थापन, प्रा. उत्थावण) स्थानभ्रष्ट करवु, घर बहार काढी मूकवु ते. ऊधाणह (३.१५) तोफानी वरसाद. ऊपराजइ (४०. ७) (सं. उप+अर्ज) उपार्जन करवु, प्राप्त करे छे. ऊभजइ (७.२९) जतुं करे, कंटाळी चाली जाय. ऊभाभली (३९.५) मुंझायेली, ऊंचा मनवाळी. ऊरण (२४. ७) (सं. अनृण) देवामुक्त. ऊवेखी (२२.२,४.३९) (स उप+ईक्ष) उपेक्षा करोने. ऋषभजिणंद (५.१,७.१०) जैनोना प्रथम तीर्थकर. एकमना (९.८) (सं.) एकमनवालु, सरखे। सरखा मनवाळू, एकाग्र. एणीनयणि (३६.८) हरिणी जेवी आंखोवाळी, मृगाक्षी. एतलडं (६.१५) (सं. एतावत् प्रा. एत्तिल) कणयर (४.१५) (सं. कर्णिकार, प्रा. कणेर) करेणनु झाड. कदही (१२.१३) क्यारेय पण, कन्हई (३५.९) कने, पासे. कबरी (४.७) सं. अंबोडो, विशेष प्रकारनी __ केशरचना. करणी (३३.४) कार्य, आचरण. करणो (६.१०) (सं. करिणी) हस्तिनी, हाथणी. करभि (७.२०) सांढणी. करंक (१२.३) (सं.) हाड पिंजर, हाडकां. करंड (३७.१) (सं.) करंडियो. करिकुंभा (४.४६) (सं.करिकुम्भ) हाथीनो कुंभस्थळ. कर्मनिकाय (४१.४) कर्मसमूह. कलकंठी (४.२५) (सं.) कोयल. कलम (३१.९) (मं.) चोखानी एक जात. कलहंसा (४.३) (सं.) हंस. . कलोल (३५.२) (सं. प्रा. कल्लोल) आनंद. कहणइ (१६.१७) (सं. कथने, प्रा. कहणे) कहेवामां. कहा (१२.११) (सं. कथा, प्रा. कहा) कथा. कहायई (६.१४) (सं. कथ्यते, प्रा. कहीअइ) ___कहेवाय छे. कंक (४.३) (सं. बगलो. कंथा (१५.४) कंथा गोदडी. कंदुक (४.४५) (सं.) दडो. कातरणी (३३.६) (सं. कर्तरी, प्रा. कत्तरी) कातर. कारुण्ण (२१.३) (सं. कारुण्य, प्रा. कारुण्ण) करुणा. कालपराण (८.५) (सं. कालप्राण) काळबळ. कालभुयंगम (३२.६) (सं. कालभुजंगम, प्रा. _कालभुयंगम) काळरूप साप. कावडीया (१४.८) (सं. कार्पटिक, प्रा. काव डिय) कपट करनारा, लुच्चाई करनारा. एटलं. एला (४.१३) (सं.) इलायची. ओलंभा (२२.८) (सं. उपालम्भ) ठपको. ओली (४.४३) (३२.८) (सं. आवली, प्रा. ___ओली) पंक्ति, श्रेणी. कडि (३०.३) (सं. कटि, प्रा. कडि) केड, कमर. Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ शब्दसूची काश्मीरमुदा (१५.२) कश्मीरना केसर (?) नी कानसळा. काहाली (१७.१२) (सं. काहल, प्रा. काह लिआ) काँसाजोडी (वाद्य). कांइ (७.३०) (सं. क्वचित्, क्व, प्रा. कहिं.) कयांइ. किस्यइ (४.३५) (सं. कीदृश, प्रा. केरिस) केवी रीते. किंगाई (४.९) (सं. केकायते, प्रा. केगायइ) ___ केकारव करे छे. कीध (७.६) (सं. कृत, प्रा. किअ) कीg, कयु. कुटी (११.३) (सं. कुटिनो प्रा. कुट्टिणी) कुटणी-दूती-वेश्यानी दलाली करनार स्त्री. कुणप (१२.५) (सं.) मडq. कुरचक (४.१६) (सं.) एक प्रकारचें झाड. कुरंगो (३०.७) (सं. कुरंग) हरण. कुलकरणी (२९.८) (स.) कुलना आचार के रिवाज. कुलबाला (३.१०) (सं). खानदान कुटुंबनी स्त्रीओ. कुष्टीनउ(७.३३) (सं. कुष्ठिन् , प्रा. कुट्ठि) कोढियानो. कुशअग्रई (३८.२) (सं. कुशाग्र, प्रा. कुस ग्ग) कुश=डाभ-डाभनी अणी उपर. कुहुनइ (६. ११) कोईने. कुंकमरोला (१०.४) मंगल माटे ज्यां कंकु रेलावेलुं होय ते. कूई (४.४४) (सं. कूपी) कुई, वीरडी. क्ली (४.२८) (सं. कोमलो) कुमळी, सुंवाळी. कृतारथ (५.१) (सं. कृतार्थ) कृतार्थ. कृशतणुं (६.१३) (सं. कृशतनु) दुर्बळ, सूकुं शरीर. कृष्णागुरु (१०.४, (सं. कृष्ण अगुरु) काला अगरनो धूप. केकि (४.३.९) (सं. केकिन् ) केका करे ते केकी-मोर. केतु-केतई (७.२३,३.१७) (सं. कियत् प्रा. __ केत्तिअ) केट-केटलो. केरडी (३८.२) केरी ('नी' प्रत्ययने स्थाने). केलवए (१.६) केळवे, सुन्दर घाट आपे. केलीशुक (९.१३) (सं.) रमतनो पोपट. केवलज्ञान (१.८) (सं.) वीतरागने थतुं सर्व पदार्थोनुं ज्ञान. केसइ (१७.२) (सं. केश) वाळमां. केहइ (८.४) (सं. केचित् , प्रा. केई) कोई, केटलाक. केहवी (३२.३) (सं. कीदृशी, प्रा केरिसी, कईसी) केवो. कोदिरा (३१.९) (सं. कोद्रव, प्रा. कोद्दव) कोदरा. कौअचि (२२.४) कौवच नामनी वनस्पति जेनो स्पर्श थतां शरीरमां खूब खंजवाळ आवे. क्षामोदरि (२२.६) कृशोदरी. खटकइ (१३.३) (अपभ्रंश खडुक्कइ) खटके छे. खमयो (९.१७) (सं. क्षम् , प्रा. खम.) खमजो, क्षमा करजो. खयां (३८.३) (सं. क्षया, प्रा. खय) श्रीण थवा लाग्या. खरइ (६.३ ) (सं. क्षरति, प्रा. खरइ ) खरे छे. खरइ (१७.७) (सं. खर) गधेडा पर. खलकति (१५.२) (अनुकरण शब्द) ___ खखडे छे, रणकार थाय छे. खंच (८.१) खंचकावु, रोकवु ते. खंजन (४.२२) (सं.) एक जातनु पक्षी. खंडोखंडि (१४.३) टुकडेटुकडा. खंपण (१६.१) एब, खांपण. खांमइ (३७.४) (सं. क्षम्, प्रा. खम) खमावे छे, क्षमा मागे छे. खिणमांहिं (४.३८) (सं. क्षणमध्ये, प्रा. खि णमझे) क्षणमा. Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दसूची १२३ खेलइ (६.२) (सं. खेल, प्रा. खेल) खेले छे, आनंद करे छे. खेव (१७.१६) (सं. क्षेप) कालक्षेप, विलंब. खेवइ (१२.७) (स. क्षिप्) नाखे छे. फेंके छे. खोवे (४.८) (सं. क्षिप्रम्, प्रा. खिप्पं) शीघ्र. [ गुजरातीमा खेपियो शब्द छे तेनो सम्बन्ध आ खिप्प साथे छे. खेपियो जल्दी चालनारो होय छे.] खेस (१७.१) खार, द्वेष, रीस. खोह (२०.७) खो, गुफा. खोहि (दुहा-३३.८) (सं. क्षपयिष्यति, प्रा. खवइ) खोइश. गउखि (१०.६) (सं. गवाक्ष, प्रा. गवक्ख) गोखमां, झरूखामां. गणधर (३९.१) तीर्थकरना प्रधान शिष्य. गभार (५.१) (गर्भागार) गभारो, गर्भगृह. गमीआं (१९.९) गुमाव्यां. गयण (११.१०) (सं. गगन, प्रा. गयण) गगन, आकाश. गरव (१८.१) (सं. गर्व, प्रा. गारव) गर्व, अभिमान. गलइ (२१.६) (सं. गल्) गळे छे, टपके छे, मोढामां पाणी आवे छे. गह (१९.९) ग्रह. गहगहयउ (७.३) आनंदित थयो. गहिंबर्यउ ( २०.१३ ) गाभरूं बनी गयु, गभरायु. गंजन(२.२) (सं.) तिरस्कार, अवज्ञा. गंभीरिम (२.२, १९.६) (सं. गम्भीरिमा, प्रा. गंभीरिमा) गंभीरता, ऊंडाण. गुणगेह (७ १८) (सं.) गुणगृह, गुणोनुं घर. गुणाकरो (२.२,४.५) (सं. गुणाकर, प्रा. गुणायर) गुणनो आकर-खाण. गूझ (१६.५) (सं. गुह्य, प्रा. गुज्झ) छान राखवा जेवु. गेह (२.३) गृह, घर. गोफण (४.१९.६.४) वेणी ऊपर अंबोडामां पहेरवानो अलंकार. गोरडी (३१.२) (सं. गौरी, प्रा. गोरी गौरी, सुन्दर युवती. गोरस (३१.६) (सं.) दूध-दही. घटतउ (३६.१०) (सं. घटित) योग्य. घणउ (६.४) (सं. घन, प्रा. घण) घj. घरणी (१६.१४) (स. गृहिणी, प्रा. घरिणी) पत्नी . घाडि सईनी (३८.२) (1) घातीकर्म (२१.९) आत्माना गुणोनो घात करनार कर्म. घार्यऊ (२२.२१) घेरायेलो. घूक (२०.६) (सं.) घूवड, घूघूइ (२०.६) घूघवे छे, अवाज करे छे. घोरोपसर्ग (१९.३) देव, दानव के मानव कृत कठोर विध्न के आपदा. चऊकी-(४.४५) (सं. चतुष्की, प्रा. चउक्की) चारखूणावाळी चोकी. चउबारउ-(४.४३) (सं. चतुरिक, प्रा. चउ ब्बारअ) चार बारणावाळो. चकोरडी-(८.१) (सं. चकोरा, प्रा. चओरा) चकोर स्त्री. चतुरंगि-(६.२०) चार अंग (गज, रथ, प दाति, अश्व)वाळी सेना. चरण-करण (४१.३) व्रतो अने तेनी पुष्टि __माटेना नियमो, मूल अने उत्तर गुणो. चंग, चंगा, चंगु (१.३, ५.१, ४०.१, ४. १४) सुंदर. चंदूआ-(१०.३) चंदरवो. चंबकइ -(६.६, २८.४) (सं. चुम्बक. प्रा. चुम्बअ) लोहचुम्बक वडे. चिपुट-(२५.२) (सं. चिपिट, प्रा. चिविड) . चपटु, बेसी गयेलु. Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ शब्दसूची चिमिचिमि (१५.५) चमचम अवाज. चिहुदिसि-(४.४३) (सं. चतुर्दिक्) चारे दिशामां. चूर्या (२.२) चूरेचूरा करी नाख्या. चेट-चेटी (६.२०,११.५) (सं. चेट, प्रा. चेड) दास-दासी. चेत (१७.२०) चैतन्य. चैत्यमाला-(२.१, ४.४४) जैन देरासरोनी हार. छछउंदिरी-(२४.११) छडूंदर. छटकी-(१२.८) छांटणां. छंडई-(२६.९) (सं. छद्) छांडर्बु-छोडवु. छावरइ-(१३ (दू. ६. ५) ढांके छे. छाह-(३३.१) (सं.) छाया. छाहार-(३७.३) छार, राख. छेह (१.८) छेडो, अंत. छेहडइ-(२५.७) छेडो. जगीस-(१०.७) जिज्ञासा-इच्छा. जटाजूटी-(१५.१) (सं. जटाजूट) माथामां बांधेली जटा. जरतीनई-(४.१०) डोशी. वृद्धाने. जराकुमर-(१९.५) विशेषनाम. जल्यां-(३५.८) जस्यउं-(९.२८) जईशु. जति (९.१७) जाती. जपई-(११.८) (सं. जल्पति,प्रा. जपई) बोले छे. जंबू-(४.१२) (स.) जांबुडानुं वृक्ष. जंभाइ (४.६,१२.१४) बगासु खाय छे. जातउ-(७.३०) (सं. या) जतो. जातीसमरण-(४१.१) पूर्वजन्मना वृत्तांतनुं स्मरण. जाम-(४.३५) (सं. यावत्, प्रा. जाव) ज्यारे. जायवउ-(२८.८) (सं. या) जावु-जवानु. जांणह-(३.१५) जेना. जिमई-(७.२८) जेम. जिमघरि-(३५.२, ३७.२) (सं. यमगृह. यमने घेर. जिमूत-(२ १) मेघ. जिस्यु-(२.३) जेवु. जीपती-(९.३६) जीतती. जीपिवा -(२२.१५) जीतवा माटे. जूली-४.२८) युगल-जोडी. जे. कसि-(३४.२) जे कोई. जेहनइ (१.१) जेने, जेना. जेहवउ-(६.२०) जेवो. जोतउ (७.२) जोतो. जोरी (१२.६) जोरजुलम. जोसीइ (२९.७) जोषीए. ज्ञानातिशय -(३९.१) उत्कृष्ट ज्ञान, केवल ज्ञान. मुख्य चार अतिशय छे; (१) ज्ञानातिशय (२) पूजातिशय (३) वचना तिशय (४) अपायापगमातिशय. झलकंती-(३.४) झळकती. झल्लरि-(७.३१) (सं. प्रा.) झालर. झाल-(११.१४) (सं. ज्वाला) अंतरनी बळ तरा. झांटा-(२०.३) डाभनी अणीओ. झीलंती-(२६.३) स्नान करती. झूरई-(१७.२३) झूरे छे, खेद करे छे. झुबख-(१७.६) (सं. युग्मक, प्रा. जुम्मय) झूमखो. टलवलइ-(८.३) टळवळे. ठवी (१७.५,३७.५) (सं. स्थापयित्वा, प्रा. ___ठवेऊण) स्थापीने. ठाय-(७.९,१३,२२.९.) स्थान. ठारणहार-(१८.१०) ठारनार. ठाहारि (१७.११) ठहेरो, थोभो. ठाणइ-(१७.१८. १९,७.२८) (सं. स्थान प्रा. ठाण) स्थाने, ठेकाणे. ठांमोठामई (१४.७) ठेकाणे ठेकाणे. डर पाणी- (३.२) डरी गई. डंस-(७.३२, ६.४,७.१४) (सं. दंश.) दंश. Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ शब्दसूची डाभनां-(२०.३) (सं. दर्भ, प्रा. डब्भ) तेहभणी-(२८.९) ते प्रत्ये. डाभनां. त्रिकरणशुध्धई- (५.१) (३७.५) मन, वचन डाही-(२०.११) डाबी तरफ. __ अने काया ए त्रणे करणनी शुद्धिवडे. डांभीई-(१४.१३) डांभवू, डाम देवोट. त्रिप्त-(७.४) (सं. तृप्त, प्रा. तृप्त) धरायेल ढीक-(४.३) एक प्रकारनु पक्षी. त्रिभंगी-(६.५) (सं. त्रिभंगी) देहना त्रण ढोलानई-(३३.८) ढोलाने. मरोड. तई-(१.३) (सं. त्वया) तें. - त्रिवलो-(४.२७,७.२५,१६.११) शरीरनी तगर-(४.१४) (स.) एक प्रकारचें वृक्ष. - सुंदरता सूचक त्रिवली. (पेट उपर पडती तडिंग-(१४.१३) पखाली, पखाल. त्रण वळो.) ततखेव-(२७.१०) ते ज क्षणे. थण-(६.५) (सं. स्तन) स्तन. तबके-(९.१२) (सं. स्तबक) गुच्छ वडे. थलि-(४.४०) (सं. स्थल, प्रा. थल स्थळे. तमाल-(४.१३) (सं.) तमाल जातिनुं वृक्ष. थाग-(१३.८) (सं. स्ताघ, प्रा. थाह) ताग, तरस-(९.४) (स'. तृषा), तीव्र इच्छा . तळियु, छेडो. तलार-(१४.२) (दे. तलवार) गामतळने सा- थांनक-(३.१८, ९.१४) (सं. स्थानक, चवनार, कोटवाळ. प्रा. थाणय, ठाणय) थानक, स्थळ. तलीआ-(१०.२) एक जातनां तोरण. थोक-(३६.९) थोकडो, समूह.. तंबोल-(३६.६) (स'. ताम्बूल) तंबोळ-नाग- दमई-(१५.१४) (सं. दम् ) दमन करे, रवेलनु पान. हेरान करे. ताम-(४ ३५) (स. तावत् , प्रा. ताव) दरवेश-(१४.१०) ईस्लामी फकीर. __ त्यारे. दरसनि-(५.१) (सं. दर्शन, प्रा. दरिसण) ताल-(४.१३) (सं. प्रा. ताल) ताडनुं वृक्ष. दर्शन वडे, दर्शनथी. तिरथि (८.४) (सं. तीर्थ) तीर्थमां. दर्शनी-(१४.१०) तत्त्वज्ञानी, दार्शनिक. तिलकुशम-(४.२३) (स. प्रा. तिलकुसुम) दसनि-(४.२४) (सं. दशन, प्रा. दसण) तलना छोडनु फूल. __ दांतमां. तिहां-(६.१) त्यां. दहनकुं-(१२.५) (सं. दहन) दहन-बाळतीने-(२६.२) तेणीए. वाने माटे. तुखारा-(३.११) तुखार देशनो वेगीलो दंद-(१६.१८) (सं. द्वन्द्व) उपाधि, कलेश. घोडो. दंदोला-(१२.३) तोफान, धांधल. (कच्छी तुझनई-(५.२) तुजने. शब्द) तुरंगमि-(६.२१) (स. तुरङ्गम) घोडा दाखई-६.४) (सं. दर्शयति, प्रा. दक्खई) उपर. देखाडे छे. तुरुणी-(३३.७) (सं. प्रा. तरुणी) तरुणी, दाणी-(१८.५) देवादार. युवती. दाय-(२४.२) (सं. प्रा. दाय) दाव. तूठउ-(३२.९) (सं. तुष्ट, प्रा. तुट्ठ) संतोष दाह-(१३. दू. ६) (सं.) बळतरा-पीडा. पाम्यो. दिणिहारि-(९.३) देनारी. तूर-(२९.५) ए नामनुं वाद्य. दिव्व-(१३.११) (सं. दिव्य) अग्निमां पडवू तृणकर्म-(४१.४) तरणां समान हळवां कर्म. वगेरे एक प्रकारनी कसोटी. Jhin Education International Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ शब्दसूची दीन-(८.३) (सं. दीन) दीन, अनाथ. तेथी ते आधारे कुलनु नाम. दीह-(८.२) (सं. दिवस) दिवस. निकाय-(४१.४) पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउदुरिया-(१२.१२) (सं. दुरिता, प्रा दुरिता) काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, अने त्रसदुरिता, खराब. काय. ए छ प्रकारना जीवोनो समूह. दूतीपणउं-(६.७) दूतीपणु. निभ-(४.२८) (सं.) सरखा. दूहती (१८.४) दूभती. निभालई-(३.१३) (सं. निभालयति, प्रा. देशना (३८.४) उपदेश, धर्मोपदेश. __णिहालइ) निहाळे छे. दोई-(१०.१) बने जणां. निरति-( ६.३, ४.७) तपास, पत्तो. (१) दोला-(४.६) (सं.) हिंडोळो, हीचको. निरवाणि-(९.४) निर्माण, भावी, भाग्य. दोहिलई-(६.१३) दुःखीथी भरेल. निरख्यंजन-(१७.२१) निर्जन, दोहिली-(१६.४) कपरी (वेळा). निराकरी-(३७.४) (सं. निराकृत्य) दूर करीने. घउ- (३९.६) आपो. निवसइ-(२.१, २८.१०) (सं. निवसति, प्रा. ये-(११.१६) दे. निवसइ) रहे छे. धरमध्यान-(२१.१०) चार ध्यान मांहेर्नु ए निवांण-(३.१७) नवाण, झरो. नामर्नु एक ध्यान. निसुणी-(४.३५) सांभळीने. धसमस्या-(४.१) धसारो कर्यो. निस्संगा-(४०.१) (सं. निस्संगा) संग-राग धांम-(४.१८) धाम, स्थान. वगरनी. धायई-(१२.६) (धेतृप्तौ) धराई जाय. नीपाई-(२२.१३) निपजावीने, उत्पन्न करीने. धायउ-(२२.२१) दोड्यो. नीभंडी-(१४.१५) ? धीठी-(११.२) (सं. धृष्ट) निर्लज्ज, बेशरम. नीसत-(२१.२) (सं. निःसत्त्व) कस विनानु. धीरणा-(२३.११) धीरज. नींसाणह-(३.१५) निशानना. धुर-(१३.८, ३३.९, ४१.५) (१) मूळथी नींगमइ-(६.१३) वीतावे छे. ... (२) मुख्य, अग्रणी. नींगमी-(६.१३) दूर करी. धूजतउ-( ४.२) धूजतो. नेउरि -(५.१) (सं. नूपुर, प्रा. णेउर) धूत्यउ-( ४.८) धूती लीधु', ठगी लीधुं. ___ झांझरथी. धूसर-( ५.३) (सं. प्रा.) भूखरा रंगनुं. न्यापित- (१६.१६) (सं. नापित, प्रा. पहानवकार-(८.३) पंच परमेष्ठीने नमस्कार विअ) हजाम. करवाना सूत्रमा नव पद होवाथी ते नव- पईठ -(२६.२) (सं. प्रविष्ट, प्रा. पविठ्ठ) पेठी, कार कहेवाय छे.- "नमो अरिहंताणं, नमो प्रवेश कर्यो. सिध्धाण, नमो आयरियाणं, नमो उव- पखाली-(४.४) (सं. प्र+क्षल) धोईने. ज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं, एसो पगर-(१०.४, ४.२४) गुच्छ. पंचनमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं । पगि पगि-(२६.७) पगले पगले. च सव्वेसि, पढमं हवइ मंगलं" आ पठाई-(१२.१) (सं. प्रस्थापित) मोकलेल. नव पदो छ पठावी-(३.७) (सं. प्रस्थाप्य, प्रा. पहानाभिकुलोदधि-(७.७) नाभि राजाना कुल- वीअ) प्रस्थान करावीने, मोकलीने. रूपी समुद्र. जैनोना प्रथम तीर्थंकर ऋष- परई-(१.६, ६.७) (सं. प्रकार) पेरे, पेठे, भदेवना पितानुं नाम नाभिकुलकर हतुं. जेम. Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दसूची १२७ परजलइ-(२०.१४) (सं. प्रज्वलति, प्रा. पज्जलइ) खूब बळे छे. परतखि-(१२.१३, ६.५) (सं. प्रत्यक्ष) प्रत्यक्ष. परनई (७.१९) पारकाने. परनाली-(४.१९) (सं. प्रणाली) परनाळ, पाणी जवानो मार्ग. परवर्यउ-(६.२०) (सं. परिवृत, प्रा. परिव रिअ) घेरायेल. परवार -(२३.१०) परिवार. पराणि-(३३.दू.७.८) पराणे, बळात्कारे. परि-(४.४२) पेरे, पेठे, समान, जेम. परिदेवन-(१२.१०) (सं. खेद) दुःख, शोक. परिपरि-(३३. दू. २,४.८, (१४.७) फरी ___फरी, अनेक प्रकारे. परिवरई-(६.७) वोटळाय. परी-(३७.१) दूर, बहार. परीअंचि-(३५.१०) पडदो (?) परोखया-(३७.२) पारख्या. पहरी-(१७.२) प्रहार करीने, (१) मार मारीने (?) पहलांण-(३.११) घोडा उपर पलाण, चडवू पाडूई-(१३.१०) पाड्या. पात्र-१०.५) योग्य, नाटक भजवनार. पाथरि-(२०.९) पथ्थरमां. पामेवा-(३.९) पामवा. पायउ-(२.३) प्राप्त कयु. पारिखउ-(६.१५) पारखं. पालई-(२.३) (सं. पालयति) पाळे छे. पालवउं-(११.१०) नवपल्लवित करूं. पालवउ-पल्लवित-करूं. पाली-(१३.९) पाळी, पालिआ दे-तलवा रनी मूठ. पावकि-(२०.१४) (सं. पावक) अग्निमां. पावडीआरां-(४.४२) पगथियांनी. पावति (१२.५) पामे. परीसह-(१९.२) टाढ, तडका, भूख, तरस वगेरे बावीस प्रकारना श्रमणोए सहवानां कष्टो. पाहण-(२०.१४) (सं. पाषाण, प्रा. पाहाण) पाषाण, पथ्थर. पांच परमेष्ठी-(१.१) पांच परमेष्ठी ते अरिहंत, सिध्ध, आचार्य, उपाध्याय अने सर्व साधुओ. पाहनी-(७.२५) (सं. पार्णि) पगनी पानी. पांहि-(२०.१०) थी, करतां. पाहुणी-(३३.१०) (सं. प्राघूर्णिकी, प्रा. पाहुणिआ) परोणो थयेली, महेमान थयेली. पीआंण-(३.१७) (सं. प्रयाण, प्रा. पयाण) प्रयाण. पीतपटोली-(४.२९ (सं. पीत पटकूली) पीळा ___ रंगनु नानु पटोळु. पुरहूत-(२.१) (सं. पुरुहूत) इन्द्र. पुहचई-(३४.२) पुहती-(१०.७) (सं. प्रभवति, प्रा. पहुच्चइ) पहोंचे छे. पूठई-(२५.३) (सं. पृष्ठ, प्रा. पुट्ठ) पूंठे, पाछळ. पहिरणि-(३६.५) (सं. परि+धा) पहेरवामां. पंकजनाला-(४.२७) कमळनो डांडो. पंति-(४.४२) (सं. पंक्ति, प्रा. पंति) पांत, पंगत, हार, श्रेणी. पाखई-(२१.२) (सं. पक्ष, प्रा. पक्ख) विना. पाखती-(९.१५) जोती. पाखरीआ-३.११)(दे. पक्खर) पाखर एटले घोडानु बखतर, पाखरवाळा. पाठीन-(४.४) (सं.) भयानक, ते नामनु . - जलचर प्राणी. पाडल-(४.१७, ८.२) (सं. पाटल, प्रा. पाडल) पाटला वृक्षनु लाल रंगर्नु फूल. Pain Education International Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ शब्दसूची पूरणी-(३३.६) पूरनारी. बन्धन, जे व्यसन जीवन सुधी टकनारं पोढी-(४.४३) (दे.) घरवडे. होय तेने बंधाण कहेवामां आवे छे. पोलि-(४.४३) (सं. प्रतोलि) पोळ, शेरी. बंधुर-(३९.१, ४.२४) (सं.) सुंदर. पौषधशाला-(२.१) उपाश्रय, अपाशरो. बाउल-(४.१३) (सं. बब्बूल) बावळनुं वृक्ष. प्रतई-(२८.५) (सं. प्रति) प्रत्ये. बांध्यउ-(६.१२) बांध्यो. प्रतिपाल-(३५.९) (सं.) बोलेलं वचन पाळनार.. बीट -(२०.८) फूलना दीट. प्रमाणि-(१.४) (सं. प्रमाणेन) प्रमाणे. बूझवी-(९.१) (६.११) बोध पमाडी, समप्रवाला-(४.२७) (सं.) परवाळां. जावी. प्रसवी-(७.३४) (सं. प्रसूता) प्रसव आप्यो, भई-(३६.४) थई. जन्म आप्यो. भईसु-(१४.१३) भेंसो, पाडो. प्रह-(७.२८) प्रभात. भए-(१२.४) थयो. प्रियाल-(४.१५) रायणनुं वृक्ष. भगतई-(११.८) (सं. भक्ति) भक्तिथी. प्रीअंगु-(४.१४) (सं. प्रियङ्गु) घउलानुं झाड, भजई-(३७.१) (भ्राज्) प्रकाशे छे, शोभे कांगना छोड प्रीउस्यउं-(६.८) प्रियतममां. भमती-(४.४७) मंदिरमांनी प्रदक्षिणानो मार्ग. प्रीछवई-(२३.१०) समजावे छे. भमाड उं-(११.१०) भमाड्यो. फेरव्यो. प्रीयमेलक-(२७.३) प्रियने मेळवी आपनार. भमुहि-(४.२०) भवां, भ्रकुटि. फटिकमई-(४२.४, ९.६) (सं. स्फटिकमयी) भरणी-(३३.४) (सं.) भरणी नक्षत्र. _स्फटिक रत्नथी बनावेली. भलउ-(६.१) भलो, सारो, उत्तम. फणपति-(४.७) नाग. भंगिनउ-(१५.५) भांगनो. फणी-(३३.१) साप, फणीधर (साप). भागई-(११.८) भाग्यमां. फरसतउ-(८.४) स्पर्श करतो, पंपाळतो. भातितणा-(१०.३) भातना. फरुकई-(२६.७) (सं. स्फुरति) फरके छे. भाल-(३४.११) भाळ, समाचार, पत्तो. फलयो-(४१.६) फळजो. भालवी-(३७.५) भळावी, सोंपीने. फार-(१०.३) (सं. स्फार, प्रा. फार) घणु, भावठि-(३६.४) मानसिक दुःख, मुश्केली. खुब, पुष्कळ (मराठीमां आ शब्द 'घणा' भांति-(३६.५) (सं. भक्ति, प्रा. भत्ति) अर्थमा प्रचलित छे). साडला वगेरेनी भात. फिरई-(७.२) फरे छे. भुयंगम-(४.१९) (सं. भुजंगम) साप. फिरीफिरी-(६.४) फरी फरी, वारंवार. . भूमिहर- (३३.६) (सं. भूमिगृह) भोयरुं. फूलपगर-(४.२४) फूलोनो जथ्थो, दगलो. भूयाल-(७.१, २२) (सं. भूपाल) पृथ्वीफेकारई-(२०.६) (शियाळ) अवाज करे छे. पालक, राजा. फेरु-(२०.६) फेरु, शियाळ. मेलेवा-(२२.१४) लूंटवा. बईठउ-(३८.१) (सं. उपविष्ट, प्रा. उवविद्य) भोगिनि-(१२.६) सर्पिणी. बेठो, भोरई-(१२.१०) वहेली प्रभाते, प्हो फाटतां. बंदई-(३.१०) बंदी, भाटचारण. मच्छर-(३२.१) (सं. मत्सर, प्रा. मच्छर) बंदिजन-(५.१) भाटचारणो. मत्सर, द्वेष, अदेखाई. बंधाण-(३४.२) (सं. बन्धन, प्रा. बंधणो मच्छेदराय-(१९.६) मत्स्यदेशनो राजेश्वर. Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दसूची १२९ मटकउं-(३८.४) मटकुं, कटाक्ष. मेलई-(६.९) मूके. मत्कुण-(७.३२) (सं.) मांकड. मेह-(२१.१) (सं. मेघ, प्रा. मेह) वादळ. मदनशाल-(४.३) मेना. मेहलंतउ-(३१.१) मेलतो, मूकतो... मनमथ-(२.३, ८.१) (३७.५) (सं. मोडामोडि-(६.५) मोकलं (१८.२) दे. मन्मथ) मनने मथनार, कामदेव. मोकळु. छूटथी लटका करवा ते.. मनि-(७.८, १.२) (सं. मनसि,) मनमां. मोतीन-(३६.६) (सं. मौक्तिक, प्रा. मुत्तिअ) मनीषित-(९.४) सं. मनमा इच्छेल. मोती. मयगल-(३.१२) (सं. मदकल, प्रा. मयगल) मोरई (४.३२) मारे. ___ मद झरतो, मकनो हाथी. .. मोरु-(११.५) मारो. मया-(२४.५) (सं. मत) इष्ट, अभीष्ट. मोहणवेलि (४.७, ३०.३) मोह पमाडे मरकलडां-(४.३९, ८.१) मरकाट, स्मित, एवी वेल. मलकाट. मोहतउ-(२.३) मोह पमाडतो. मवावि-(४०.३) मपावी, गणी. मोहनसाग-(४.२६) मोह पमाडनारी. मषीई-(१७.९) (सं. मषी) मेंश वडे. यतीपतो-(३८.४) (सं. यतिपति, प्रा. जई. महेलीयां-(३१.७) महिलाओ, स्त्रीओ. वई) यतिओना पति, स्वामी, आचार्य. मंडई-(४.४१) (दे.) मांडे छे. याचई-(४१.१) याचे छे. मंडाण-(३४.२) आरंभ. यामिनीकर-(२.१) (स.) चंद्र. मागध-(३६.९। स्तुतिपाठक, भाट चारणो. रडवडई-(२०.९) रवडे, अथडाय.. मायताय-(१०.७) (सं. मातृ तात, प्रा. रणीउ-(२२.२) (सं. ऋणिन्, प्रा. रिणि) ___मायताय) मातापिता. __ ऋणवाळो, देवादार. मारंणी-(३३.८) मारु देशनी स्त्री. रती-(१४.७.८) (सं. रति) सुखचेन, आनंद. मालविणी-(३३.८) मालवदेशनी स्त्री. रत्नत्रय-(४१.५) (१) सम्यग् दर्शन (२) मांणउ--(७.८) (सं. मा+आ+नी) न लावशो. - सम्यग्ज्ञान (३) सम्यक् चारित्र. मांम-(२४.९) (सं. माहात्म्य, प्रा. माहप्प रमिझिमि-(५.१) रुमझुम अवाजथी. प्रतिष्ठा, आबरु. ग्लई (३३५) रोळाय, अटवाय. मिच्छादुककडं-(४१.६) (मिथ्या दुष्कृतं) रलीआयत-(७.३) आनंदित. __मारुं दुष्कृत्य मिथ्या थाओ. रवाडीई -(६.२०) क्रोडा करवा (१) मिसि-(६.५) (सं. मिष, प्रा. मिस) बहाने. रसना-(४०.६) (सं.) जीभ. रंगरेली-(२९.४) आनंदनी रेलमठेल. मीहनति (२२.७) महेनत वडे. रंभा-(४.२८) (सं.) केळ. मुगधा-(१३.४) (सं. मुग्धा) मोह पामेली स्त्री. रांनई-(१८.२) (सं. अरण्य, प्रा. रण) मुधि (७.३८) (सं. मुग्धा) मुग्ध कन्या. अरण्यमां, रानमां. रिपुसाथ-(२.२) (सं. रिपुसार्थ, प्रा. रिउमूढ-(३८ २) (सं.) जड, पशु जेवु. सत्थ) शत्रुओनो समूह. मूर्खाणी-(१७.१७) मूछित थई गई, बेभान थई. रुठउ-(१७.१) (सं. रुष्ट, प्रा. रुट्ठ) रूठ्यो, क्रोधे भरायो. मृगजीता-(४.२२) मृगोने जीतनार. मेखल-(१५.२) कंदोरो. रुल्या-(१९.८) रोळथा. Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को . १३० शब्दसूची रूंध्यउं-(८.१) (सं. रुद्ध प्रा. रुधिअ) अट- लोई-(३५.७) (सं. लोक, प्रा. लोअ) लोकमां. कावेलो, ढंकायेल. वउलानी- (१६.१) वळावीने, विदाय करीने. रेवणी-(६.९) खेदानमेदान, अस्तव्यस्त. वजडावी-(१४.९) वगडावीने. रेहा-(२२.१३) (सं. रेखा, प्रा. रेहा) रेखा, वडतपागच्छ-(४ १.५) ए नामनो एक जैन लीटी. संघनो गच्छ. रोमंच्यउ-(३७.३) (सं. रोमाञ्चित, प्रा. रोमं वधावई (१०.७, ३.१६) (सं. वर्धापयति, चिअ) रोमांचवाळो. प्रा. वद्धावेई) वधावे छे. रोर-(३१.६) रांक, गरीब. वयर-(४.३२, ६.१२) (सं. वैर, प्रा. वईर) वेर. रोल्या-(१७.२) रोळी नारया, पायमाल वरसालउ-(२२.११) (सं. वर्षाकाल) वर सादनो काळ. रोवति-(१८.२) (सं. रोदिति, प्रा. रोवइ) रुवे छे. वरांसती-(३९.४) विपर्यास--ऊलटुं करती (?) रोहिणी-(३७.१) (सं. प्रा. राहिणी) चंद्रनी वर्जवउ-(७.३३) तज्यो. वसू-(१०.७) साधु-सज्जन. पत्नी. वहिसी-(७.२८) वही गयुं (?) लघुकरमी-(४१.१) जेना को हळवां छे वछंति-(२.२, ३४.५) वांछा करती. ते, मंद फळ आपनारा कर्मवाळो. वाचाला-(३.१०, ४.३) (सं. वाचाल) लवलेस-(४०.१३) (सं. लवलेश, प्रा. लवलेस) वाचाळ, चारण लोको. __ थोडामां थोड़े. वाणही-(१५.५) वाणी (नववधूनी मोजडी). लहईतु-(२२.८) लहेतो, मेळवतो. वार्यउ-(६.२१) (सं. वारित, प्रा. वारिअ). लहकई-(१५.२) लहेके छे. लहिउँ-(५.२) प्राप्त कर्यु. __ वारेलो, अटकावेलो. लहुं-(५.२) मेळवु. वारिहारि-(७.३७) (सं.) समय बतावनाएं लंकीली-(३०.३) कमरना मरोडवाळी, सुंदर. सछिद्र घटिकायंत्र. लागउ-(६.८) (सं. लग्न, प्रा. लग्ग) लाग्यो, वारोवारि-(५.१) वारंवार. लागेलो. वालउ-(४.११) चणकबाबनो छोड, वाळो. लाजई (६.३) (सं. लज्जते, प्रा. लज्जइ) वाहइ-(२१.५) (सं. वह्) ताणे छे, खेंचे लाजे छे. शरमाय छे. लाडगहिली-(८३) लाडघेली. वाही-(२६.४) (सं. वहू) खेंची, ताणी. लाधउ-(४०.१३) (सं. लब्ध) लाध्यो, मळ्यो. वायु-(१४.२) तणायेल, खेंचायेल. लायउ-(१८.२, २२.२१) लाग्यो (?) वाहु छउ-(३४.८ ) लई जाउं छं. लिगार (१८.१) थोडं, लगार. विघटइ-(विघटते, प्रा. विघडए), नाश करे छे. लीहडी-३८.२) (सं. लेखा, प्रा. लेहा) विचई-(६.८) वच्चे. रेखा, लीटी. वितिकर-(३७.१) (सं. व्यतिकर, प्रा. वइलुबधउ-(८.१, १३.४) (सं. लुब्ध) लल अर) वृत्तांत, हकीकत. चायेलो, लोभायेलो. लोअणां-(६.२, ९.११) (सं. लोचन, प्रा. विधुरी (१७.५) दुःखी, आकुळव्याकुळ, लोअण) आंख. गभरायेलो. । थाइ. Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विन्नांणी - ( ३.५, ८.५) (सं. विज्ञानिन्, प्रा. विन्नाणी) विशेष जाणकार . विमासी - ( ७.२७, १५.१६) (सं. विमृश्य) विचार करी. विलखउ - (४.३६, १६.१५) (सं. विलक्ष, प्रा. विलक्ख) विलखो, लज्जित, खिन्न. विलघी- (२४.८) विहोणी. विलपतउ - (८.१३, १८.११, २२.२१, २५. ५) विलाप करतो. विलसई - ( ७.२२) विलास करे छे. विलोल - ( ३५.२) (सं.) विशेष चंचळ. विवहार - ( ३४.१) (सं. व्यवहार, प्रा. वव हार) व्यवहार. विवाई ( ४१.१) (सं. विपाक, प्रा. विवाग ) कर्मना विपाके. विषन्न - ( १७.९) (सं. विषण्ण) खिन्न. विसनी - (६.२१) (सं. व्यसनी, प्रा. वसणी) व्यसनी. विसराल (४.३७, ३८.१) फोक, विसर्जन. विहडई-(३८.३) (सं. वि + घट्, प्रा. वि + घड्) विघटे, बगडे, विनाश थाय. वीसवा वसई - ( १६.४) वसवसो करीने. वूठउ - (४.३४, ३२.९) (सं. वृष्ट, प्रा. वुड) वरस्यो. वेई - ( ३३.८) (सं विद्) जाणी. वेगइ - (७.२०) (सं. वेग, प्रा. वेअ) वेगे, उतावळे. वेदाली (१२.२) कजियाखोर. वेण - ( ३०.४ ) वचन वडे. वेध्यउ - (६.९) वींधायेलो. वेलां–(४१.१) (सं. प्रा. वेला) वेळा, समय. वेलू - (२०.२) वेळु रेती. शापि - ( ४.३१) (सं. शाप) शाप वडे. शांमा - (९.४) (सं. श्यामा) सुंदर स्त्री. शिलाका - ( १९.३) (सं. शलाका) सळीयो. शिवरमणी - ( ३७.५) (सं.) मुक्तिरूपी रमणी. शील - ( २१.७) अहिंसा आदि पांच व्रतोनी शब्दसूची १३१ पुष्टि माटे पाळवामां आवतां बीजां व्रतो. सउकि - (९.९) (सं. सपत्नी, प्रा. सवक्की) शोक्य. सगबग - (१२.१४) वेरविखेर. सघलूं - (४.४०) सघळु. सपरांणी - ( ३.३, ११.१६, ३२.२) (सं. सप्राण) बळवान. सपी आरा - ( २८.२) प्रीतिवाळा, प्यावाळा. समति - गुपति - ( ३९.४ ) ( सं . समिति - गुप्ति) ईर्या समिति, भाषासमिति वगेरे पांच समिति छे. गुसि एटले गोपवधुं दमन कर. मन, वचन अने कायाने काबूमां राखवा ते. (सं. सकल, प्रा. सगल ) समरपंथी ( १४.१०) एक प्रकारना बावाओ. समरि-समरि - ( २३.१) स्मरण करीने. समरी - (४.३२) (सं. स्मरी) कामदेवनी पत्नी. समांणउ - (२२.५) (सं. समान) सरखो. सयगुण - ( ४०.९ ) ( सं. शतगुण, प्रा. सयगुण ) सोगं. सरजित-(८.५) सरजायेलं. सरभ - ( ३२.५) (सं. शरभ ) सरभ नामनुं जंगली पशु जे सिंहनी सामे थाय तो सिंह पण भय पामे छे. सरास - (२७.२) राशसहित, बंधनसहित. सरिस- (८.५) (सं. सदृश, प्रा. सरिस ) सरखं. सलूंगा - (३४.१) (सं. सलावण्य) लावण्यसहित. सविकहिन इं- ( ३.७) सहु कोई. ससिर- (७.२) (सं. शिशिर, प्रा. सिसिर ) ठंडुं. सहाई - (२०११) सहाय, मददगार सहिजई - (७.१९) सहजभावे, स्वाभाविक रीते. सहीअ - (९.१२) (सं. सखी, प्रा. सही) सखी. सही आरु - (६.७) चित्रता. संकाश - ( १६.१६) (सं.) सरखो. संखेव-(१७.१६) (सं. संक्षेप, प्रा. संखेव ) टू कमां. Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ संगि- (६.२) (सं. सङ्ग) सोबतथी. संघात (१६.९) सं. समूह. संचर्यउ - (६.२०, प्रयाण कर्यु. १९.१) संचर्यो, चाल्यो, संचकार - (२७.५) संकेत. संता - ( २०.१२) शांत. संमदा - ( ३७.३) हर्ष, अभिमान. संवेग - ( ३८.३) संवेगिणी - ( ३८.५) वैरागी. साजण - ( २८.२) (सं. सज्जन) सज्जन. सात धात - (६.११) (सं. सप्तधातु) शरीरमां सात धातुओ रहेली छे. (१) रस ( २ ) रक्त (३) मांस ( ४ ) मेद (५) अस्थि (६) मज्जा (७) शुक्र. साधी - ( २७.९) साधीने, प्रवेश करीने. सानिधइ - ( ३७.५) (सं. संनिधि) पासे. साम - ( १७.२१) श्यामा, सुंदरी. सार - ( ७.१०) संभाळ. सारिखउ - (६.१५) (सं. सदृश, प्रा. सरिक्ख) सरखु. साल- (४.३७, ९.९, २०.२७) (सं. शल्य, प्रा. सल्ल) शल्य, नडतर. सालही - (२२.११) (दे.) मेना. सासई - सासई - (९.१) श्वासे श्वासे. सासन्न - (५.२) (सं. शासन) आज्ञा. साहल - ( ४.१३) शालवृक्ष (?) साही - ( २४.११, ६.१६, २६.४) पकडीने, साधने. शब्दसूची (सं. संवेग) वैराग्य. सांकल्यउ - ( २८.८) (सं. शङ्खलित, प्रा. संकलिअ ) बंधायेलो. सांसही - (३१.६) सहन कर्यु, सांख्युं. सिरि- (५.२) शिर उपर, माथे. सिरोमणि - ( ७.१६) (सं.) श्रेष्ठ. सीकोतरी - ( १५.१७) ते नामनी देवी. सीख - (९.१३) विदाय, आशीर्वाद, शिखामण. सीम - सीमाडा - ( ३.१६, ६.२१) सीमाडा, हद. सीमंत ( ४.२० ) माथानी पांथी. सीस. (४१.५ ) (सं. शिष्य) चेलो सौंगिण - ( ४.२० ) (सं. शृंगिणी ) धनुष. सुकमाल - ( १६.१५) (सं. सुकुमार) सुंवाळु, खूब नाजुक. सुकं तई - ( ३०.५) उत्तम कांति के शोभाथी. सुकुलीणी - ( १३.१) (सं. सुकुलिनी) सारा कुळवाळी. सुगुणी ( ३३. १) सोगणी. सुगेह - ( २६.५) सारं घर. सुधी - ( ११.१५) सुधी, पर्यंत. सुभाव - ( २३.८) (सं. स्वभाव ) प्रकृति. सुरंग - ( ३६.७) सारा रंगवाळा. सुरतर - (२.२) (सं. सुरतरु) कल्पवृक्ष. सुविणी - ( २७.९ ) सारां वेण बोलनार. सुविहित - ( ४१.५ ) (सं.) उत्तम रीते स्थापित. सुहाई - (२२.४ ) सुख आपे. सुहासगि. - ( २९.७) (सं.) सौभाग्यवन्ती. सूआरोगि - (७.३५) थतो रोग. स्त्रीओने प्रसूति पछी सूडा - (२२.११) (सं. शुक) शुक, पोपट. सूधी - ( ३४.११) शोध, भाळ. सूधी (१६.२०) चोकूखी, पूरेपूरी. सूर - (३६.२) सूर्य. सेजडी (२२.३) (सं. शय्या, प्रा. सिज्जा ) सेज, पथारी. सेवई - ( ७.२४) (सं. सेवते ) सेवे छे. सोई (५.१, ७.१२) ते. सोभई - (७.१९) (सं. शोभते) शोभे छे. सोम - (२.२) (सं.) चंद्र. सोरई ( १२.१० ) (सं. स्वर) शोर बकोरथी. सोविन - ( ४.४१ ) (सं. सुवर्ण) सोनानु.. सोषी - ( १८.९) सूकवी नाखी. सोहकरी - (१.२, ३६.३ ) शोभा करनारी. सोहंत - ( ३६.६ ) ( प्रा. सोहन) शोभता. सोहा कर - ( ३९.२) (सं. शोभाकर, प्रा. सोहायर) शोभानी खाण. हटकी - ( १२.८) आनंदित थई. हडबडई - (२०.७) कमकमी ऊठे. Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दसूची हणस्यई-(१७.१६) हणशे. हसु-(७.२८) हांसी. हत्थई-(२७.५) हाथे. हारी-(१२.७) पकडीने, ऊंचकीने. हय-(६.२०) (सं.) घोडो. हासुं-(३४.८) हास्य, उपहास. हई-(७.११) (प्रा. हरइ) दूर करे छे. हुआं-(२७.१०) (सं. भूत, प्रा. हूअ) थयां. हरख्यउ-(३.८) हर्षित थयो. हेजि-(४.२४, २२.१०) सहज (?) हरिलंकी-(४.२७) सिंहनी केड समान हेलां-(२.३) (सं. हेला) अनायास. पातळी कमरवाळी.. हेषारा-(३.११) (सं. हेषारव) हणणाट. हवई-(१.१) (सं. भवति, प्रा. हवइ) थाय छे. होयो-(५.२) (सं. भवतु, प्रा. होज्जउ) हवी-(७.६) (सं. भूता, प्रा. हविआ) हुई, - होजो, थजो. होस्यई-(३. १४) (सं. भविष्यति, होस्सइ) थई. हसारथ-(३३.६६) उपहास, मश्करी. . हशे-थशे. tion International Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढील ३ शुद्धि सम सुंदर सुंदरपणई सविकहिन ठामोठांम चंपक नई जोवा भणी घरणी कहितणइ ढाल ४ " " ढाल ५ ढाल ६ शुद्धिपत्रक अशुद्धि कर्ड। ६ समसुंदर कंडी ७ सुंदर पणई कडी ८ सवि कहिनई कडी १६ ठामो ठांभ कडी १६ चंपकनई कडी ३१ जोवाभणी कडी ३४ धरणी कडी १ कहि तगइ कडी २त्रूटक हु कडी ७ एकंगणु कडी १७ अलाद कडी २० अकथितकारीचेट कडी २१ विसनी कडी २ ससिर कडी ३ प्रीयु मुख कडी ७ घउ कडी १६ धणउ कडी २४ गर्भवृद्धि कडी ३० जरा जीर्ण कडी ५ न बिचलइ कडी २ धरि कडी ७ उलंधनं कडी ७ सेसजल कडी ९ सालकि कडी ९ कडी १० वनशाथि कडी १० मोकला मणीरे कडी ११ सुंदरि कडी ११ संमार कडी १५ उच्छंगिकि कडी १७ मेहलोजंति कडी ४ फूल-फगर कडी ६ वृंदाजी एकगणु आह्लाद अकथितकारी चेट व्यसनी सिसिर प्रीयुमुख द्यउ ढाल ८ ढाल ९ घणउ गर्भ वृद्धि जराजीर्ण नवि चलइ घरि उलंघन सेस जल साल कि इम वम शाथि मोकलामणी रे सुंदर संभार उच्छंगि कि मेहली जंति फूल पगर वृंदजी ढाल १० Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्रक सोहर ढाल १० ढाल ११ कडी ५ रूठी अतिहि आप सवाद प्रसिधि सीकोत्तरि सुलसा नांमई पाड ढाल १२ सेरी सेरी खेवई मृतजनके जंभा कलिकां उत्तम ढाल १३ अशुद्धि कडी ६ सोहइ कडी २ होइ कडी २ रूढी अति हि कडी ६ आपसवाद कडी ७ प्रसिधी कडी ७ सीकोतरि नांमइ कडी १४ पाठउं कडी १६ द्ये कडी ३ सेर सेरी कडी ७ लेवई कडी १० भृतजनके कडी १४ जभा कडी १४ यु कडी १४ कुलिका कडी २ उतम कडी ४ धर कडी ८ भाग कडी १० हु कडी ६ धणी कडी ६ देख कडी ९ ठामी कडी १० पडीआ कडी १० उसेस कडी १४ बालइ कडी १५ नउ कडी १५ नीभेडी कडी १. योगिना कडी १ जटा-जूटा कडी २ नाश कडी ५ बाणही कडी ७ जयइ कडी ७ जास्यइ नासी कडी ११ मारो घर माग ܕܕ ܕܕ घणी ", दूहा ६ ढाल १४ " " " " देव जी ठामि जडीआ असेस वालइ " " " " ढाल १५ नीमेडीजी योगिनी जटाजटा नाशा वाणही जपई जास्यइ नासी मारि " " Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ शुद्धिपत्रक शुद्धि अशुद्धि ढाल १६ कडी १ बउलावी वउलावी कडी १ ए कस्यु एक स्यु कडी २ चरि धरि कडी ४ प्रांण प्रीआनई प्राणप्रीआनइ कडी ९ धात घात कडी ९ संधात संघात कडी १० दोसई दीसई कडी ११ जे कडी १३ धांणी घाणी कडी १४ धरणी घरणी कडी १५ बिलखउ विलखउ ढाल १६ कडी १६ पछी आवती एक कडी छापवानी ज रही गई छे जे आ प्रमाणे छे. तव कोपांज(ध)ल राजा बोल्यउ, रे रे स्त्रीना दास; प्रत्यक्ष इम अवगुण छावरतां, तुं न्यापित संकाश. ढाल १७ कडी २ भुंडीनई भंडीनई कडी. २ केसई केसई ढाल २४ कडी ८ आस्या-विलधी आस्या विलूधी ढाल २५ कडी ४ .प्रांण न दीधी प्रांण न दीधां दाल २९ कडी ४ बहू कडी ६ सुंदरिपांणइ सुन्दरपाणइ ढाल ३० कडी. ३ कइस्य कई स्याउ ढाल ३३ कडी ५ निरापराध निरपराध कडी ७ लुटा ढाल ३४ कडी १ कनक-कुमार कनककुमार " " , १ प्रेम-विवहार प्रेमविवहार ढाल ३५ कडी १ बलतउं वलतउं कडी ८ एणी नयणि एणीनयणि कडी १० कुमर गिणी कुमर गणी ढाल ४० कडी ६ संवादई रे सवादइ रे ढाल ४१ कडी १ त्रूटक साधवउ ही साधवउ हो पानु ६० लीटी ८ खिलितं लिखितं लुटी Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भग्रंथसूची अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत, जूनी गुजराती, अर्वाचीन गुजराती, हिन्दी पुस्तको. 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The Natyadarpana of Ramcardra and 30-00 Gunacandra : A Study. 30-00 *१०. *१४,२१. विशेषावश्यकभाष्य-स्वोपज्ञवृत्ति जिनभद्रसूरि भाग १,२,३. १५-२०-२१ 11 Akalanka's criticism of Dharmakirti's Philosophy 30-00 १२. रत्नाकरावतारिकाद्यश्लोकशतार्थी. जिनमाणिक्यगणिकत. । * १३. शब्दानुशासन. आचार्यमलयगिरिकृत १७. कल्पलताविवेक. १८ निघंटशेष हेमचंद्रकृत. श्रीवल्लभगणिकतवृत्तिसह ३०-०० १९. योगबिन्दु. आचार्यहरिभद्रसूरिकृत. अंग्रेजी अनुवादसह. २२. शास्त्रवार्तासमुच्चय. आचार्यहरिभद्रसूरिकृत. हिंदी अनुवादसह. २३. तिलकमंजरी. पल्लीपाल धनपालकृत. १२-०० २५. ३३. नेमिनाहचरिउ, आचार्यहरिभद्रसूरिकृत. भाग १-२. ८०-०० 26. A Critical study of Mahapurana of Puspadanta. 30-00 २७. योगदृष्टिसमुच्चय हरिभद्रसूरिकृत. अंग्रेजी अनुवादसह 28. 37. Dictionary of Prakrit Proper Names Part 1-2. 67-00 २९. प्रमाणवार्तिकभाष्यकारिकार्धपादसूची ८-०० ३०. प्राकृत जैन कथा साहित्य. ले. डॉ. जगदीशचंद्र जैन. १०-०० 31. Jaina Oatology by Dr. K. K. Dixit. 30-00 32. The Philosophy of Sri Svaminarayana by Dr. j. A. Yajnik 30-00 ३४. अध्यात्मबिन्दु. उपाध्याय हर्षवर्द्धनकृत. ६-२० ३५. न्यायमंजरीग्रन्थिभंग. चक्रधरकृत. ३६-०० ३६. जेसलमेरस्थ हस्तप्रत केटलोग ४०-०० 38. Karma and Rebirth 6--00 ३९ मदनरेखा आख्यायिका. जिनभद्रसूरिकृत २५-०० ४०. प्राचीन गूर्जरकाव्यसंचय १६-०० 41. Jaina Philosophical Tracts 16-00 ४२. सणतुकुमारचरिय ८-०० 43. The Jaina Conception of Omniscience by Dr. Ram Jee Singh 30-00 * Out of Print Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० 44 Tattvārthasū'ra; Com. by Pt. Sukhlalji. Eng. Translation 32-00 ४५. इसिभासियाई १६-०० ४६. हैमनाममालाशिलोञ्छ '१६-०० 47. A Mod:rn understanding of Advaita Ved inta 6-00 by Dr. Kalidas Bhattācbārya ४८. न्यायमंजरी-गुजराती अनुवाद. भा.१ । 49. Atonomens in the Ancient Ritual of the Jaina Monks. by Dr. Colette Cailla". 30-00 50. The Upabrmhana and the Rgveda Interpretation rof. T. G. Mainker. 600 ५३. ऋषिदत्तारास. जयवंतसूरि. संबोधि (त्रैमासिक) भा. १,२,३,४, ८०-००. In the Press १. गाहारयणकोस-जिनेश्वरसूरि. २. शृंगारमंजरी-जयवंतसूरि ३. विलासवईकहा-साहारण कवि. ४. लघुतत्त्वस्फोट (अंग्रेजी अनुवाद) ५. प्राचीन गुजराती हस्तप्रत सूची 6. Fundamentals of Ancient Indian Music and Dance ७. वसुदेवहिंडी-मज्झिमखड-धर्मसेनगणि ८. न्यायसिद्धांतदीप-सटिप्पनक. ९. भुवनभानुकेवलिचरिय-इन्द्रहंसगणि १०. तरंगलोला-(गुजराती अनुवाद सह) Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________