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________________ ढाल २८ · राग : सींधूउ-गउडी. (सपीआरा नेमजी-देशी अथवा नयर राजग्रह जांणीइ जी- देशी.) कनकरथ इं इम सांभली हो, बोलइ मधुरी वाणि; सुणउ ऋषि तुम्ह मुख दीठडइ हो, अह ठर्या मुझ प्रांण. १ द्रूपद. सपीआरा साजण भलइं रे, मइ तुम्ह भेटि; जिम उन्हालइ छांहडी हो, जिम साय रमांहि बेट. २ सपी. तुम्ह मुख जोतां नयणनी हो, तरस न छीपइ अह; तउ जांणउं तुम्हस्य उं खरु हो, पूरव जनम सनेह. न जाणउं तुम्हे स्युं कर्यउं हो, कांमण देख त खेव ; चंबक लोहतणी परई हो, आकरस्य उं चित हेव. ४ सपी. तव मुनि कुमर प्रतई भणइ हो, तुम्ह बोल्य उ सवि साच; मन ई मन तउ अंक मिलइ हो, अहवी छइ जिनवाच. ५ सपी. कुण किहांना किहांथी मिलइ हो, पूरव प्रेम संयोग; अक देखी मन उहलसइ हो, अक दीठ इ करइ शोक. जिम तुम्हनई तिम मुहनइं हो, देख त लागउ प्रेम ; नयण वयण मन साखीआ हो, साचइ नेहइ तेम. कुमर कहइ हुं सांकल्य उ हो, तुम्ह नेहइं रिषि राज ; बीजं काबेरी जाय वउ हो, तिहांनउं करवलं काज. तेह भणी कृपा करी हो, तुम्हे आवउ मुझ साथ; बलतुं जे तुम्हनई गमइ हो, ते करयो मुनिनाथ. ६ सपी. तउ ऋषि कहइ अम्ह मत करु हो, आदर अणी वाति; राजसंगति मुनि नवि करइ हो, ते निवसइ अकंति. १० सपी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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