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ढाल २७
राग : परजीउ. (मृगावतो राजा मनि मांनो-देशी
तथा छत्रोसोनो.) कनकरथ कुंअर चिति चिंतइ, उत्तम अंगित अह जी; प्रीयसंगम सूचक सुखकारी, आभा विण स्यउ मेह जी. १ कन. ते कि हां मुझ घरणी मनहरणी, वंछ इ संगति जास जी; तउ अ अंगित किस्यउं करस्यइ, जे मुझ करइ सरास जी. २ कन. अथवा अ प्रीय मेल क तीरथ, मनि वीसामा ठाम जी; प्रीय जन संबंधी जे कोई, ते दुख नूं विश्रांम जी.
३ कन. इम चीतवतउ निज प्रासादई, कनकरथ ते आवि जी; रिषि दत्ता मुनिवेष विराजी, ते पुष्पादिक लावि जी. ४ कन. कनक रथ स्वय हत्थई लेवइ, मुनिकर दीधा फूल जी; संचकार संगमनउ जांणे; जेहनउं जगि नहीं मूल जी. ५ कन. प्रेम सुकोमल नयने जोई, वलि वलि तसु मुख चंद जी; कनक रथ कुंअर गुणमंदिर, पांमइ अति आनंद जी. ६ कन. ऋषि दत्ता चिति प्रीऊ चाल्यउ, रिखि मिणिनइं परिणेवा जी; आश्रमि आव्य उ कुंअर मुनीस्य उं, विरची श्री जिनसेवा जी. ७ कन. मुनिनइं पूछइ कहीइं आव्या, किहांथिकउ वनि अणि जी; तापस कहइ मई आश्रम सेव्यउं, राजऋषि हरिषेणि जी. ८ कन ऋषिदत्ता तसु तनया कोई, राजकुमर गयउ परणी जी; साधी अगनि गयउ सुरलोकइ, श्री हरिषेण सविणी जी. है कन. तीरथयात्रा करतउ इणि वनि, हुं आव्य उ ततखेव जी; वरस पांच हुआं ते वातइं, करतां श्री जिनसेव जी. १० कन,
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