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वेध तणी छ ई वात ज घणी, प्रांणीनइ मेलइ रेवणी; नाद इं वेध्यउ मृगलउ पडइ, पतंग दीवामां तडफडइ. करणी वेध्यउ गज सहइ दाहि, अलि पीडाइ पंकज मांहि; मीन म रइ आंमिषनई रसई, प्रांणी पीडाइ प्रेमनइ विसइं. कुहुंनइं कही न जाइ वात, मांहिथी प्रजलइ सातइ धात; लागु प्रेमतण उ संताप, ते दुख बूझइ आपोआपि. वयर वसायुं कीधऊ नेह, नयणांनइं सिरि पातक अह; निसिदिन चिंता दहइ अतीव, प्रेम कीधउ तिहां बांध्य उ जीव. १२ भूख तरस निद्रा नींगमी, जांणे तप साधइ संयमी; बोल्यऊं चाल्य उं कहिस्य उ नवि ग म इ , कृश तनु दोहिलइ दिन नींगम इ १३ खांची राख इ आंसू नीर, सुंदरि मनमाहे आंणी धीर; कुमरनई पिण अे परि थाई, मनइं मन ते एक कहायइ. १४ बेहुन इं प्रेम हु उ सारिख उ, पूरव पुण्यतणउ पारिख उ; अणइ संसारइं एतलउं सार, प्रेमतणउ मोटउ आधार पुण्यवत मनि जे चितवई, ते ते आगलिथी तसु हुवइ; हिव ते तापस साही हाथि, कुमरनइं तेडी आव्यउ साथि. चैत्यथ की उत्तरनई पासि, उढ वउं एक अछइ सुप्रकासि; कुमरनइं तिहां देई अर्घपाद, पमाड्यउ अधिकउ अह्लाद. कहिवा लागउ अपूरव वात, सुणि नृपनंदन मुझ अवदात; उत्तम नगरी मित्रतावती, हरिषेण राजा तिहां सुभमती. राणी तेहनइं प्रीयदर्शना, अति गुणवंती प्रीयदर्शना; अजितसेन उत्तम सुत तास, मदन मूरति अति लीलविलास राय रवाडीइं संचर्यउ, इक दिनि चतुरंगि दलि परवर्यउ ; शुकल हय एहवइ आव्यउ भेटि- जेहवउ अकथितकारीचेट राजा तेणई थयउ असवार तुरंगमि कीधउ गति विस्तार वार्यउ न रहइ विसनी जेम, उल्लंध्या पुर पत्तन सीम.
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