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तुं पिता माता गुरू सहाई, बंधू अति अभिराम. निशि दिवसि सूतां बइसतां, नई स्वप्नि सघली वेलि. जिनराज ! ताहरा ध्यांननी, मुझ चित्ति हु रंगरेलि तुझ चरणि मुझ मनि मन्न माहरू, तुझ चरण होयो लीन जां लहु सास्वत मुक्तिनां सुख, अक्षीण अमल अहीन. अहीन गुणभंडार जिननई, करइ प्रणाम ऋषि इम कही, नमो नमो भगवंत तुझ नई, आण ताहरी सिरिग्रही.
ढाल ६
राग गुडीमांहई
( चउ पइनी ढाल )
भगवंतनी इम पूजा करी, भाव भलउ मनमांहि धरी; ऋषि आवइ मंडप छइ जिहां, बइठउ राजसुत दीठउ तिहां स्नेह सकेामल कुमरी तणां, चपल चकोरां जिम लोअणां; राजकुमार मुखससिहर संगि, खेलइ उनमद रंग तरंगि मदधूमित मदनालस होइ, आडी दृष्टि इं खिणि खिणि जोइ; हसती फूल खिरइ ससिमुखी, खिणि लाजइ जोइ संमुखी. स्नेह ऊपाइ नयनई करी, हावभाव दाखइ फिरि फिरी; उरि आणइ वेणी गोफणउ, अधर डसइ जंभाई धणउ . थण भुज उदर देखाइ मिसि, तनि त्रिभंगी हुई मदवस इं सरल जिसी हुइ चांपाछोड, कुमर देखि करइ मोडामोडि. लोहसिलाका जिम चंबकइं, लागी पाछी थई नवि सकइ ; बांधी कुमर नयनदोरीई, कुमरी जांणी चित चोरी. प्रथम नयन करइ दूती पण, मननई मन पूछइ अकंग णुं; सघली परई सहीआरु करई, जीवई जीव प्रेम परिवरइ. प्रीउ स्थउं लागउ प्रेम मनिरुचइ, पापिणी लाज संतापई विचई; जांणइ सकल वस्तु अवगुणउं, रही रही जोउं मुख प्रीउ तणउं.
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