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________________ ढाल ५ राग रामगिरी (ईश्वरना वोवाहलानी) तब गभारइ मूरति दीठी रे, ऋषभजिगंदनी दरसनि मीठी रे; पांम्य उ कुंअर आनंद पूर रे, जिम शसि देखी चतुर चकोर रे. त्रूटक चकोर जिम ससि देखि हरखइ, तिम ते राजकु मार; त्रिकरण शुद्धधई प्रणांम करीनइं, स्तवन करइ वारोवारि. पूजा करीनइं रंगमंडपई, कुमर बइठउ सोई , करि ग्रही कुमरी एक तापस, आव्यउ तिहांकिणि कोई. ते कुमरी रमझिमि नेउरि करती, चंद्रवदनी चंग, नयन भावि आरोपती सा, कूमर हैडइ रंग. प्रणांम ऋषिनइं करइ कुंअर, आसोस देई ऋषि भणइ, किहां थकी आव्या तुम्हे सज्जन, अवतरोआ कुल कहि तणइ. तव कुमरनी वंशावली कहइ, बंदिजन सुविचार, ऋषि कहइ कुमरनइं, तुम्ह दरिसनि, थया कृता रथ सार. सार पूछइ कुमर ऋषिन उ, विनय बहुविध अणुसरी, तुम्ह पासि स्वामी कुंण कन्या, वात अहनी कहउ खरी. चालि ऋषि कहई मोटी अह छइ वात रे, जिनपूजानई म हउ व्याघात रे; इम कही श्रीजिनपूजा काजइं रे, वेगइ पुहतु ते ऋषि राज रे. त्रुटक ऋषिराज पूजा जिनतणी ते. करइ विविध प्रकार, गंभीर घन धुनि चैत्य वंद न, स्तवन करइ उदार. सफल जीवित सफल तन मन, सफल मुझ अवतार, सासन्न ताहरू' जउ लहिउ, तउ टल्यउ दुःख प्रचार. तूं देव बाता तत्व जीवित, तुं हि जिगति मति स्वांमि. १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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