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किस्यइ उपाइं अहनई बोलावलं, अहवउ चिंतइ जांम. सैन्य तणउ कोलाहल निसुणी, अदृष्ट थई सा तांम.
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तव नृपसुत विलख उ थयउ, जव सा थई अलोप; निधि देखाडी जिम हरइ, पाडइ गिरि आरोपि. अणदीठानउं दुख नही, दीठ उ विघट इ साल; भूख्यां भोजन दाखवी, जिम को करि विसराल.
चालि विश्राल करइ खिणमांहिं मेलो, हा हा देव तु पापी; प्रीतिवेलि नयने आरोपी, अंकूरइथी कापी. मरकलडा देती मृगनयणी, वार वार मुझ देखी; आगलिथी पहिलू मोह ऊपाई, हवइ रही कांई ऊवेखी. प्रांण तिजउं जु ते नवि पांमउं, एहवउं चित्ति विचारी; जोवा लागउ कानन सघलू, तिणि थलि सैन्य ऊतारी. जोतउ जोतउ दूरि गयउ जव, तव दीठउ प्रासाद; त्रिकलस सोविन दंड पताका, गगन स्यउं मंडइ वाद.
दहा चंद्र कंति परि ऊजलउ, मणि तोरण झलकति; अटोत्तरशत फटिकम इ, पावडीआरां पंति. चिहुँदिसि सरिखी झलहल इ, वाताय ननी उलि; चउबार उ प्रासाद ते, पाढी दीपइ पालि.
चालि पालि प्रवेश कीयउ जव कौतकि, देखी चैत्य - सजाई; हरख्य उ तिम जिम सागर मध्य इं, मीठी कूई पाई, मणिमय थंभ चउकी रतनाली, विविधि भाति उल्लोच; मणिमय कंदुक मोतीमाला, नहीं विज्ञान सकोच. वरमणिमंडित सेविन दंडई, चांमरमाला साहइ; पूतली उभी करि ग्रही दीवी, तेजई त्रिभुवन मोहइ. केसर कपूर अगर आमोदई, वासी दसइ दिसि सार; भमतीइं देई प्रदक्षिणा, पांम्यउ हरख अपार.
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