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अरूण अधुर बंधुर नवपल्लव, दसनि वसइ मणि भूरि; हेजि हसंती जांणे वरसइ, फूलपगरनउ पूर.
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श्रवणपासि सोहइ सदा, मयण तणा सुविशाल; जीती वीणा मधुरिमा, कल कंठी सुकमाल.
चालि कलकंठी सूकमाल शरीरा, पीन गौर कुचभारा; कनक कलश जीता करिकुंभा, युवजन, मोहनसारा. सरल गौर भुज पंकज नाला, अंगुली जेम प्रवाला; क्षामोदरि सुंदरि हरिलंकी, त्रिवली नितंब विशाला. रंभाथंभ निभ उरु मनोहर, कोमल जंघा जूली; उन्नत चरण अरुण नखमंडित, अकुटिल अंगुली कूली. अनुपम गति जीता गजहंसा, कल्पवेलि अवतारा; पहिरी चोली पाट पटोली, सोहइ सकल शृगारा.
दूहा कुमरी रूप देखी करी, मोह्यउ कुमर सुरंग; नादई वेध्या नाग जिम, लय पांम्यउ अभंग. चिंतइ ए को अवतरी. अमरी मुनिवर शापि; कइ कौतक जोवाभणी, आवी आपाआपि.
चालि आवी आपाआपई कुमरी, जीवाडंती काम; मोहनीरुपि वसी मनि मोरइ, अनुपम अद्भुत धाम नय नबारिथी मत ए जाइ, सुदरि सुभग सरूप; कुमरनइं प्रेमवती थई एहवी, जिम जल लह्यउं अनूपि. अक पुरुष ते त्रिभुवनमांहिं, जस धरि धरणी अह; नयन सफल थयां मे दरसनि, अमीइं वूठउ मेह.
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