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ढाल २
राग गुंडी (सिद्धारथ नरपति कुलइं-देशी) श्री शुभरति शुभरतिकरं , सुभ रत भूषण भूत रे ; . रथमर्द्धनपुर सुंदरं , जिहां वसइ इभ्य प्रभूत रे.
त्रूटक प्रभूत इभ्य जीमूत दानइं, रूपि परहुत सुंदरा निवसइ विलासी सदा उल्हासी, कीध दासी इंदिरा ; कामिनी गजगामिनी जिहां , यामिनीकर सममुखी , जिहां चैत्यमाला पौषधशाला,संयम मुनि पालई सुखी. हेमरथ समरथ तिणइं पुरइं , नयनिपुणो नरनाथ रे; सेवकनइं सुरतरु समु, रणि चूर्या रिपुसाथ रे.
_ त्रूटक रिपुसाथ चूरण पुण्य पूरण, सोम भीम गुणाकरो, अन्याय गंजन न्याय रंजन, गुरुगंभीरिम सागरो, परिणामि सुयशा, नामि सुयशा, पट्टदेवी भूपनी, वछंति अमरी नागकुमरी, सुभगता जसु रूपनी. २ कनकरथ तसु नंदनो, सकलकला गुणगेह रे; वनिता जन मन मोहतऊ, मनमथ आयऊ देहिं रे.
त्रुटक देहि मनमथ रूपसुंदर, गौर केतकि तनु जिस्यु, अति सुभग ससिमुख कमललोचन, सरलता चंपक हस्यउ ; अभ्यसी विद्या सकल हेला, उदय दिन दिन दीपए यौवन्नि पायउ सुय शि गायउ, रूपि त्रिभुवन जीपए.
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