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... कनकरथ ऋषिदत्ताने परणी गयो छे से वात ज्यारे रुखमणीना काने पहांची त्यारे ते गांडी जेवी बनी गई. सुलसा योगिणी रस्तामा रुखमणीने मळी जाय छे. रुखमणी पोताने घेर अने' लावे छे. पिता सुदरपाणि अने आश्रय आपे छे अने सार सार खावापीवान आपे छे. पछी रुखमणी अने ऋषिदत्ता उपर आळ चढाववानु कहे छे. आवी विगत विवेकमंजरीमां आवे छे.
नेमिचन्द्रसूरि अवु जणावे छे के सुलसा योगिणी फरती फरती रुखमणी पासे आवे छे. रुखमणीने उदास जोई पूछे छे के “ तु रति जेत्री सुदर छे छतां वर वगरनी कम छे ? देवोने दुर्लभ अवु यौवन अळे केम जवा दे छे ? ” रुखमणी जवाब आपे छ : “ मारा पतिने तापस कन्याओ वश को छे, तो हवे हुं शुं करे?" सुलसा पूछे छे : “ हु अवो प्रयत्न कर जेथी कनकरथ तारे वश थाय ?" आम सुलसा सामेथी रुखमणीने पूछे छे. ... कनकरथ ऋषिदत्ताने - परणी जाय छे से वात रुखमणीना काने पहोंचे छे त्यारे रुखमणी
त करे छ. मे विचारे छ: “जो अपने मारा उपर शाक्य लावली हती तो परमेश्वरे ने
। शा माटे में कोई कई करस कीध हतके कोईना पर आळ चहाव्यं हतु के कोई बाळकने विछोड्यां हतां के पछी काची डाळो मोडी हती, जथी मारे नशीब आबु बन्युं ? अल्यारे
वेश धारण को छत गसतो नथी. मस्तक जे मोड घाल्यो छे ते माथे झाड जेवो लागे छे. पटोलु जे शरीरे धारण कयु छे ते जाणे संतापर्नु मूळ होय अम लागे छे. बळी चूडो तेम ज सर्वे शणगारनो भार लागे छे." आयु अनु कल्पांत सांभळी सर्व सखीओ टोळे मळी. पछी सखीओना कहेवाथी मुलसाने साधे छे. आवी विगत सहजसुंदर कवि आपे छे. . रुखमणी मोकलेली मुलसा रथमर्दनपुरमां आवे छे. ऋषिदनाने ओळखी ले छे. अनु अप्रतिम सौदर्य निहाळी मुग्ध थई. जाय छे. विचारे छे, “ आवी सौदर्यवती निखालस स्त्रीने केम सराय ? पाछी हठी जाय छे. वळी पाछो विचार आवे छे, . " रुखमणी आ. कार्य सेप्यु छे तो करी ज नाखु. नहीं तो मेने शु मोटु बतावीश?' आम विचारी ऋषिदत्ताना अधर लोहीमांसथी खरडे छे. आवी विगत विवेकमंजरीमां आपीछे.
सुलसा योगिणी ऋषिदत्ता पर आळ चढाववा माटे अना मुख उपर लोहीमांस खरडे छे. आ वातनी राजाने खबर पडे छे. चरो पासे तपास करावे छ ने ऋषिदत्ता ज राक्षसी छे अर्बु साबित थाय छे. राजा अने मारी नांखवानो हुकम आपे छे. राजानी आज्ञाथी सेवको मेने शूली पासे लावे छे. चोरने जेन बांधवामां आवे तेम अने बांधवामां आवी. लोको हाहाकार मचाव्यो. आ शोरबकोर सांभळी ऋषिदत्ता मूळ पामी. लोकोओ मेने मरेली जाणी छोडी दीधी, आकी वात सहजसुंदरनी कथामां आवे छे.
आख्यानकमणिकोषमां अवु आवे छे के ऋषिदत्तानो विकृत वेश करी अने स्मशानमा लाववामां आवी. ज्यारे माराओमांयी ओके तलवार खेंची त्यारे ओ विनंति करवा लागी. “ हे पिता ! हे भाई ! हुं तमने पगे लागु छु. मने ना मारो. मारां घरेणां लई लो ने मने जीवती मूको." आ सांभळी एक चांडाळे कहा, " आ छोकरी दुष्ट काप्त करे तेवी लागती नथी. माटे मारो जीव लई लो ने अने छोडी दो." आ सांभळी बधाओ ऋषिदत्ताने कहा: " अमे तने छोडी दईओ छीओ. पाछी देखाती नहीं. तु ज्यां जाय त्यां तारी कोईने जाण न थाय. जो तु देखाशे
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