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तो राजा अमारो जीव लई लेशे.". आम कही ऋषिदत्ताने छोडी दीधी, अने चांडाळो राजा फासे गया ने ऋषिदत्ताना जेवू ज बीज़ा कोईनु मडदु बताव्यु, जेधी राजा समजी गयो के ऋषिदत्ता मृत्यु पामी छे. -- कनकरथ ऋषिदत्ता मृत्यु पामी छे अम जाणी रुखमणीने परणवा जाय छे. पोते सुलसा योगिणीने पण पोतानी साथे ज लई जाय छे. कनकरथनो तापसमुनि ऋषिदत्ता साथे मेळाप थाय छे. अने ऋषिदत्ता पर स्नेह जागे छे. मित्रभावे पोतानी साथे का बेरी आववा आमंत्रण आपे छे ने पोताना निवासस्थाने चाल्यो जाय छे. त्यार बाद मुलसा योगिणी आश्रममा प्रवेशे छे. तापस. रूप ऋषिदत्ताने पूछे छे, " हे भगवन् ! तारी आवी प्रथम युवावस्था होवा छतां भयंकर वनमां तु ओकलो कर रहे छ?" आ प्रश्न सांभको तरत ज कनकरथे वर्णवेला वर्णन परथी ऋषिदत्ताने अनुमान थई जाय छ के आ पेली ज योगिगि छे जेणे मारा पर आळ चढाव्युं छे. मे कहे छे : " हुँ गुरुना उपदेश प्रमाणे वर्तु छु'. सारा उपर औषधि-तप-विद्या कोईनु कई ज चालवानुनथी." अणे योगिणीनो भाव जाणवा पूछ्युं. “ तुं पण अकली शा माटे फरे छे ? कोनी चेली छे ?" सुलसा विचारे छे, “हुं आने कहुं तो मने अनी पासे जे विद्या हशे ते आपशे." अटले अणे कहा, “मारी पासे अवस्वापिनी तेम ज तालोद्घाटनी विद्या छे. जो तुं मने तारी पासे जे विद्या होय ते आपे तो हूं तने आ बे विद्या आपु." ऋषिदत्ता अबे विद्यार्नु माहात्म्य पूछ्यु. तेना उत्तरमा सुलसाओ जवाब आष्यो, " मारी विद्याथी हु रथमर्दनपुर आवी अने त्यां अवस्वामिनी विद्याथी कुमार कनकरथनी पत्नी ऋषिदत्ताने राक्षसी टेरवी मारी नखावी. हवे हं कुमार साथै आवी छु अने कुमार रुखमणीने परणवा मने साथे लई जाय छे से माहात्म्य छे." आ जवाब सांभळी ऋषिदसाओ कह यु. "मारे तारी आवी पापी विद्या नथी जोईती." सुळसा निराश थई चाली जाय छे. आबी बधाथी तद्वन जुदी विगत आख्यानकमणिकोशमां आपी छे. आम अधवच्चे ऋषिदत्ता जाणी जाय छे के पोते साचे ज कलंकरहित छ ज, अने सुलसा अना आळ माटे जवाबदार छे तो मेने जिज्ञासा न ज रहे, अने से बधु जाण्या पछी मे कनकरथ साथे काबेरी जाय से स्वाभाविक नथी लागतु. जयवंतसूरिसे आलेखेल विगतो ज योग्य लागे छे.
कुमारे तापस मुनिने पोतानी साथे आववानु आमंत्रण आप्यु. बहु समय सुधी अनी प्रतीक्षा करी तो पण से आव्यो नहि. अटले कुमार अने बोलावबा गयो. जईने जुझे छे तो मुनि ध्यानमां बेटेलो हो. कनकरथ विवेकपूर्वक अने पोताना पडावमां लई जाय छे. रात्रे बन्ने पासे पासे सूई जाय छे अने खूब स्नेहथी वातो करे छे. आ सनये तापस ऋषिदत्ताओ कुमार कनकरथने पूछ्यु, " ते ऋषिदत्ता केवी हती जेना माटे तने आटलो बधो स्नेह छे अने तुं दुःख पामे छे?" कुमारे कयु, “अक जीभवी वर्णवी न शकाय अवी अने प्रजापतिले वनावेली छे." आम वातो करता करता प्रातःकाळ थयो ने तापस ऋषिदत्ता कनकरथ साथे काबेरी तरफ प्रयाण करे छे. आवो प्रसंग अज्ञातकविकृत कथामां आवे छे.
रुखमणी कनकरथने परणे छे. प्रियतम पोताने वश थयो छे जाणी ऋषिदना उपर पोते ज आळ चढाव्यु ने मारी नांखी छे अबु अ स्पष्ट कद्दे छे. कनकरथ आ सांभळी खूब ज गुस्से शय छे. रुखमणीने कहे छे, " तेज मारी प्रियाने मारी नांखी छे तो तुज हवे मने पाछी आप. नहि तो तारा हाथ कापी नांखीश." कुंधरे तो कागारोळ करवा आंडी. कोईनु कह माने
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