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परिशिष्ट नारी जाति नरहि मरवादि, लोक पड्या सहू मिथ्यावादि. गुरुसिउँ ठगाई पापनइ संचि, थोडि आयुखई द्वेष न मूकई, माय बेटीना गरथ जिसातई, आपणा छोरु कुखेत्रिई घाति. पापी धनी जीवई चिरकाल, संत विशेषि पामिई आल, धरम तणउ कोई मरम न जाणिई, तु कुण सीलतणां गुण माणिई. थोडू घणूं जे आपणूं राखई, ठाम नही कई माणस पाखई, बग ध्यानि बिठउं सहू माहलिई, लाजि लाज करी कोई चालि.
साचू कहितां राख ठाम नहीं कई, माणस सह रीसाई तिणई, कारणि अधिकुं न कहाई वलो, जे सील धरिई सुखवास तिहत'उ ह जाई दास. तेह खलं जे कसटि पहूंचि, सोनानी परि गुण आलोचई,
मटिङ मादल तिम सहू को जाणिई, आपणी घरि तिम सील वखाणई.” ऋषिदत्ताना अलंकारोनुं वर्णन :
"आगई ते वली सयल शंगार, तेउ नहीं कहिनि पाडि रे, राखडीई वली गोफणउ, तिलक तपई नलाडि रे. झालि झमालि झबूकती, मयण शखा करि टीलू रे, हार, दोर, करि कंकण खेलिई, कई केउरडू कोटोलू रे. चूडि तणउ चलकारउ सारउ, मेखला मउड मंडाण रे, बाहुडलीई नवा बहिरखा, भूद्रडीए मन मोहि रे. नाग नगोदर पदकडी, पान कउली करि झाली रे, नेउरडे रम रम झमकंती, ठमकंती सा चाले रे. माथई मोतीनी सरि सोहिई, सींदूरीउ सिणगार रे, आंजी अलविई आंखडो रे, खडीकाम सफार रे. कूबते झूबख झूमणा, ताकई लोचन बाण रे, ते नवि दोसि आवती, साजणनालि प्राण रे. कनकरथ रूखमणीने परणवा अयोध्यानगरीमा आवे छे त्याग्नुं वर्णनः-- "नयर अयोध्या आवीया ए, करई परवेस मंडाण तु, हाटि हाटि गूडी बहु उभवी ए, वली वन वन वाला शोभवीए. बहू चित्र विचित्र चंद्रूआ ए, अतिफार मनोहर मंडीआ ए, घण दर्पण उली झलकीअ ए, करि कंकण सोवन खलकीआ ए श्रेणि चडावी कलसनी ए, झल्लर मंगलि रुणझणई ए, सखी मोती चउक पूरावीअ ए, धूपघटी धूपावीअ ए. नवरंग तुरंगमसू खेलीअ ए, पगरभर फूल मेहिलीअ ए, रससार शंगार सगाईअ ए, वरवीणा वंस वजावीअ ए. मोति करि झुबक झूमव्या ए, हीरागल चीर कलंबव्या ए, छड छाबड कंकू नीपना ए, किम लालि झमाली कि सीपना ए. छत्र चामर चउपट गहई ए, दलि केतकी परीमल महमहि ए, इम नयर सुश्रीक विभूषीउं ए, सह फोफल पानि संतोखीउं ए.
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