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परिशिष्ट
११३ पण कठण धर्म दीक्षानो छे. जे प्राणी एक दिवस दीक्षा पाळे ते मोक्षे न जाय तो छेवटे देव तो थाय ज. तीर्थनां दर्शन करवामां लाखगणु, देवालयमा जवाथी कोटिगणु, गुरु पासे जवाथी अनेकगणु पुण्य थाय छे. साधुना दर्शनथी जेम काणा हाथमांथी पाणी वही जाय तेम पाप वही जाय छे. पद्मिनी स्त्री, राजहंसो तेमज तपस्वी साधुओ जे देशमां होय ते देशमा सुख होय छे. आगममां लख्यु छे के साधुमहाराजने जोईने ऊभा थq. आवता जोइए तो सामे जंवू, आसन आपq. गुरुना बेठा पछी ज बेसबुं, एमने वंदन करवू, उपासना करवी, गुरु विहार करे त्यारे वळाववा जवू, गुरु समक्ष पग उपर पग चढावीने न बेसवू, तेमज ऊंचा सादथी बोलवु नहि. मनुष्य जन्म दुर्लभ छे. जेवी रीते साग लाकडु उत्तम छे, रत्नचिंतामणि उत्तम छे, तेवो ज रीते मनुष्यभव बधा ज भवमां उत्तम छे. एक लाख योजननो जंबूद्वीप छे. तेने फरतो बे लाख योजनना लवण समुद्र छे. एमां बे मोई नाखी होय तो कोईक ज वार भेगी थाय, तेवी ज रीते मनुष्यभव कोइक ज वार उपलब्ध थाय छे. मनुष्यभव जे हारी जाय तेने एवो पस्तावो थाय जेवो पस्तावो हाथी कादवमां खूची जाय त्यारे एने थाय. माछलो लोटना आकर्षणे जाळमा फसाई जाय त्यारे जेवो थाय तेवो, बाज बीजा पक्षीने पकडे त्यारे पक्षीने थार तेवो, शेठने गामडामां रहेवू पडे त्यारे जेवो थाय तेवो, युवान घरडो थाय त्यारे, देवता स्वर्ग छोडी दे त्यारे, आदर. पात्र अपूजित थाय त्यारे, ने मानो अपमानित थाय त्यारे जेवो पस्तावो एमने थाय तेवो ज भव हारी जवाथी थाय. चौदराजलोकना मापवाळा जगतनी अंदर एवं एकेय स्थान नथी जे आपणे न अनुभव्यु होय. चोराशी लाख योनिमां एवी एके योनि नथी जेमां धर्म-आळसु माणस न गयो होय. आपणे देव-तिर्यंच-मनुष्य वगेरे गतिमां अनंतवार भम्या छीए. जिन भगवाने जे पुद्गलपरावर्त कहया छे तेमां जोव अनंतवार भम्यो छे. प्रथम जीव अव्यवहार राशिमां होय छे. पछी घणा लांबा समय पछी व्यवहारराशिमां आवे छे. एमांथी आर्यक्षेत्रमा आवे छे. कुळ-रूप आरोग्य सारु मेलवे छे. परंतु धर्म पर श्रद्धा बेसती नथी. चार प्रकारनो धर्म-सुपात्रे दान-शील-तप-भावना पाळवो जोईए. आ पाळवाथी विनय-व्यवहार -विद्या-भोगो मळे. बारमा स्वर्गे जवाय, नवग्रैवेयके जवाय, अनुत्तर विमानमा जवाय ने मोक्षप्राप्ति पण थाय.
कुमार कनकरथ ज्यारे ऋषिदत्ताने जोवा सेवके दर्शावेला मार्गमां जाय छे त्यारे एना प्रयाण समयनुं वर्णन:-ज्यारे ढोल वाग्यो त्यारे घेलो गुर्जरदेश जुए तो एने ताव ज आवी जाय. कर्णाटक राजवीने तो कानमां अग्नि लागी जाय. द्रविड राजानो गर्व गळी जाय. चोल राजाने ऊंघ आवी जाय. शत्रुनी स्त्रीओनो आनंद थंभी जाय.
सहजसुंदररचित ऋषिदत्ताचरित्रमा आवतां वर्णनो : महावीर भगवान श्रेणिक महाराजाने ऋषिदत्ता चरित्र संभलावे छे त्यारे कलियुगनुं वर्णन करे छे:
"कूडकपट केरु ए काल, चाड चवाड धाडीनूं छाल, न्यायि रीति उठी पहुवीतलि, राजवरग माहि पणि भांभलि. जडीमूली रस तणि प्रभावि, चंचल चपल थया गरु कहाविई, वहूयर सासू बेटि कमाई, खंध बले गुरु चेला जाई. माया परगट पाप करती, वाछ काछ विण लोक फिरंति,
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