SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ परिशिष्ट छे. आ लोकमां हाथी, घोडा सहित साम्राज्यना भोगनी लक्ष्मीओ भोगवाय छे, हाथी समान गतिवाळा, सुन्दर मतिवाळा अने स्फुरायमान छे (धर्म) मार्ग जेमनो एवा श्री वीरभगवन्त जय पामो. रथमर्दनपुरनु वर्णन : जंबूद्वीपमां भरतक्षेत्रमा मध्यदेशमां रथमर्दनपुर नगर छे. जे लक्ष्मीना घर जेवु अने क्लेश वगरनु छे. ज्यां मकानो पहाड जेवां ऊंचां छे ने आकाशने चाटे छे. जेनी पासे देवतानां मन्दिरो तो कांईज विसातमां नथी. आ देशमा केळना बगीचा होय तेवां गामो ने शहेरो छे. तेमां खूब पाणीना कयारा छे. आ देशमा वेपारीओनो समागम छे. त्यां बहु पुण्यवाळा लोको रहे छे. त्यां करीआणांथी भरेला बजारो छे. लावण्यमयी स्त्रीओ छे. त्यां अनेक हाथीओ तथा चंचळ घोडाओ छे. त्यां किल्ला तेमज मोटी मोटी पोळो छे. त्यां देवना समूहथी युक्त मन्दिरो तेमज अनेक सद्गुरुओ छे. त्यां मोटा मोटा विहारो छे. मन्दिरमां घंटडीओ वागे छे ते जाणे कहेती न होय के "लक्ष्मी, जीवन, यौवन आ बधुंज चंचळ छे. भगवाननुं भजन करो." कनकरथ- काबेरी तरफ प्रयाण : शुभ मुहूर्तमा कनकरथ परणवा चाल्यो. गाममां ढोल-नोसाण वाग्यां. आ समये लाटदेशना राजानु वदन खिन्न थई गयु. भोट देशनो राजा कडवी वाणी बोलवा मांडयो. कर्णाटक देशना राजाए देशना दरवाजा बंध करी दीधा. नागदेशना राजाए मोढामां आंगळी नांखी दीधो. कलिंग देशनो राजा झांखो थई गयो. कुरुदेश विनय वगरनो थई गयो. अने मालवा देशना राजानुं मोढुं काळु थई गयु.. युद्धमा हारेला अरिदमन राजाना पश्चात्तापनु वर्णनः कनकरथे अरिदमन राजाने हराव्यो, पकडयो ने पछी छोडी मूक्यो. त्यारे अरिदमन राजा विचारे छे के : "हवे शुं करुं ? क्यां जाउं ? राज्य केवी रीते करुं ? संसार तो असार छे. जीवन संध्याना रंग जेवू छे. रूप वीजळीना झबकारा जेवू छे. यौवन झाकळना टीपां जेवू छे. साम्राज्य, परिणाम नरक जेवं छे. एक घांची दश कतलखानां भेगां करीए ने जेटलं पाप थाय तेटलुं पाप करे छे. दश घांची जेटलं पाप करे तेटलं पाप एक ध्वजवाळो (कलाल) करे. दश ध्वजवाळा भेगा थाय ने जेटलु पाप करे तेटलं एक वेश्या करे ने दश वेश्या भेगी थाय ने जेटलुं पाप करे तेटलुं एक राजा राज्य करे त्यारे थाय. घरेणां यौवन शय्या मिष्टान्न बधुं ज देहने माटे नकामुं छे. गमे तेटलुं सारु खवडावो पीवडावो छेवटे सडी जाय छे. विधिए जे ललाटमां लख्यु होय छे ते ज बने छे. जेमके केरडांना वृक्षने पान नथी होतां तेमां वसंतनो शो दोष ? धुवडने देखाय नहि तेमां सूर्यनो शो दोष ? चातक मोड़े फाडीने बेटुं होय तेमां मेघनो शो दोष ? आ राज्य, रथ, घोडा बधा ज किंपाकना फळ जेवां छे.” अरिदमन राजाए गुरु पासे सांभळेली वाणी : जन्म-मरण वगरनी वीतरागे बे धर्म कहया छे. (१) साधुओनो धर्म, (२) श्रावकनो धर्म. जे धर्म पाळीने लोको सिद्ध थई गया छे, थवाना छे ने थाय छे. धर्म त्रणे जगतना आधार जेवो छे. सूर्य-चंद्र-वर्षा बधु ज धर्मने ताबे छे. धर्मनी कृपाथी ज सुर-असुरनी संपत्ति मळे छे. धर्म रत्नचिंतामणि जेवो अने कल्पवृक्ष समान छे. साधुधर्म खूब ज कठण छे. कोई माणस मेरुपर्वतने त्राजवामां तोले, दरियो हाथथी तरी जाय, लोढाना जव मीणना दांतथी खाय, तलवार उपर पगेथी चाले, रेतीना फाकडा भरे, एनाथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy