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________________ अत लज्जा कारण अहवउं, राजा देखीनई अभिनवउं; प्रीतमतीनई पूछइ भेद, अकांतई मन धरतु खेद. अतथी पहिली वात हवी, तेणई समइ पणि मई नवि लही; प्रीतिमती प्रीऊनई इम कहइ, बेहु चित्ति विमासी रहइ. २७ आपण ठांणि अने रइ जस्य उं, ईहां सहु ऋषि करस्य इ हसुं; इम चिंति सूतां निसि समइ, जाग्यां बेहु प्रह वहिसी जिमइ. २८ जूइ तु तापस को नही, सूनी दीठी आश्रम-मही; सर सूकउं पंखी जिम तिजइ, नीरसथी श्रोता ऊ भजइ. मंदिरि जातउ मुनिवर अंक, जरा जीर्ण देखी सुविवेक; राजऋषि तेहना पय नमी, पूछ इ कांइ गया संयमी. ते तापस कहइ आंणी दया, तुम्ह कुकर्म देखी मुनि गया; वारि हार धटिका संगि यथा, झल्लरि सहइ प्रहारनी व्यथा. ३१ विषमिश्रित पायस जिम हेय, कुशंगति पंडित वर जेय;. वाइस-दोषि हणायउ हंस, मंद विसर्पण मत्कुण डंस. ३२ वा पणि कुष्टीनउ वर्जवउ, डाहइ कुशंगति तिम तर्जवउ; इम कही वहिलउ ते मुनि गय उ, राजऋषि विलख उथई रह्य उ ३३ निज कुकर्म निंदी ते रह्या, च्यार मास युग सरिखा थया; प्रसवी पुत्री पूरणि मासि, कल्पवेलि जंगम सविलास. ऋषिप्रसादि ) पुत्री लही, ऋषि दत्ता नामई ते कही; सूआरोगि पांमी अवसान, प्रीतिमतीना पुहता प्रांण. ते बालानइं पाल इ यती, रुपकलांइं जग जीपती आठ वरसनी कुमरी हवी, तातई सकल कला सीखवी रूपवंत जे देखी हवइ, मत को दुष्ट पणउं चींतवइ ते भणी कन्या लोच नि शुद्ध, अदृष्टीकरण मई अंजन किद्ध ते मे कन्या ते हुँ तात, अ मइ तुझ सधली कही बात, अणीइं आपइ दर्शन दीध, तुं देखीनइं मोही मुंधि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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