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चालि
अति गंभीर सजल सरोवर, पंकजवन अभिरांम; जांणे आव्यउ अभि नव जलनिधि, तरस्यानउ विश्राम. १ खेलइ सी हंस उदारा, चकवा चकवी जोडि; चंचल चालि चलइ वलि खंजन, चतुर चकोरां कोडि. २ चातुक केकी ढींक बलाका, मदनशाल सुकमाल ; शुक पिक कंक कुटिल कलहंसा, केलि करई वाचाला. ३ पीन मीन पाठीन अदीना, धाई नीर तरंगई; कच्छप जलचर जोव अनेरा, दीसइ करता रंगई,
दूहा आगई सरोवर विमल जल, सीतल पादप छांह; जाणे सुंदर मधुर सर, विद्याधन उच्छाहि. सरोवर पालई अंबवन, दोलाकेलि करंति; तिहां दीठी एक सुंदरी, त्रिभुवनि रूप जयंति. त्रिभुवन रुप जयंती बाली, चालती मोहणवेलि ; अवगुणी अमरी फणपतिकुमरी, चमरी कबरी बेलि. सहसा अलोप थई सा सुंदरि, अम्हनई देखत खेवि ; परि परि जोई काननमांहि, पणि नवि दीठी हेव. अहवां वचन सुणी सेव कनां, कुमर थयऊ अवधूत ; जिम घन गरजई केकि किंगाइ, प्रेमपंकि अतिखूत. सेवक-दर्शित मारगि चाल्य उ, सुंदरि जोवा काजइं; जांणइ जउ तसु मुखशशि देखें, तउ मुझ भागइ दाझि. १०
दूहा नांम सुण्य उं जव तेहनउं, श्रवणि सुधारस धार; तब लगि. मन मोह उपनउ, जाणे मिलउं किवार. नाम मात्र जसु सांभल्यइ, नरनइं लागइ मोह; : स्त्री साची मोहनलता, ए कीधउ आपोह.
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