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त्रुटक जे छलइ कालपराण, ते नहीं कोइ विनांण, नवि गणइ जांण अजांण, अ दैव सरिस प्रमाण; जेहवउ संध्याराग, कुश अग्रे जलबिदु भाग, जेहवउ च चल सास, नहो निमिषनउ वीसास; नहीं निमिषनउ वीसास जीवित, अहवउं जांणी करी; वलंब म करु आत्मसाधनि, निपुण शोक ज परिहरी.
ढाल ६
राग मल्हार
( मसवाडानी पहिली - ओ देशी) ऋषिदता इम कंति कि, बूझ वी गुणवती रे, आराधइ जिनधर्म, विवेकिणि सा सती रे; प्रेमइं पूरी पदमनि, पीऊ सासई ससइ रे, नयण वयण सुप्रसन्न कि, पीउ मनि अति वसइ रे प्रीयचरिता प्रियभाषिणि अकुटिल मन सदा रे अचपल अतिहिं उदार कि, विनयवती मुदा रे हित वाछल्य करइ अति, पति परिवार नई रे । कल्पवेलि जाणे जंगम, आवी धरि बारणइ रे गंभीरा गुण जाणि, सदा अविकत्थना रे, संतोषिणि सोभागि णि, धरमनी वासना रे, उदय तणी दिणि हारि कि, नही मनि आंतरं रे, कुमर लहइ पुण्य पूरव, प्रगट्यउं माहरूं. सती ससनेही ससिमुखी, सुभग सुलक्षणा रे, शांमा सर्वागसुंदरी पांमी, अंगना रें, हिवइ स्यउ माहरइ न्यून, मनीषित सवि फल्यउ रे, जें हवानी हुंती तरस कि, तेहवउं ए मिल्यउं रे.
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