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________________ १६ जांणता हुंता कंचण किमहइ करि चडइ रे, पांम्य उं रयण अमूल कि तु कुंण तडफडइ रे, खांड नई ठांमइं साकर पांमो पुण्यथी रे, कल्पवेलि लहो अलवितु, कारेलो खप नहीं रे. लीबूनीर तणी परि सहुँ स्यउं सारिखु रे, ते स्यउं मांणस जसु मनि नहीं गुणपारिखु रे, फटिक सरीसां माणस तेहस्यउं कुंण मिलइ रे, ते विरला जगमांहिं कि, प्रीतई जे पलइ रे. भुजबलि उदधि उलंध न नाग खेलावना रे, खरा दोहिला होइ कि, प्रीतिका पालना रे, अंबमंजरि विण कोइलि, अवरस्यु नवि रमइ रे, जलधर विण चातक मनि, सेसजल नवि गमइ रे. शसिस्यउं नहीं ससनेही, कमलनी रवि विना रे, माणस तेह प्रमाण जे, प्रीतई अकमना रे. बइ नारीनउं कंत मनि, साचइ कहु किम चलइ रे, तिहारइं तेहनउ होइ, जिहारई जेहस्यउं रमइ रे. बहु नारीनउ वल्लभ, उपम पुरुष नई रे, सुकि तणइ पणि सालकि, प्रजलइ स्त्री मनइं रे, सूलि रुडी सउकिथी, वनिता हम भणइ रे, तु प्रिय माणसनूं मन वल्लभ कहउ किम दहइ रे. .. अहवउ चित्तइं चिंति कि नरवर सुत गुणी रे. ऋषिदत्तानइ मोहि कि, ऋखि मिणि अवगुणी रे, वनथी वल्यउ निज मंदिर भणी रे, ऋषिदत्ता वनशाथि, करइ मोकला मणी रे. Jain Education International For Private & Personal Use Only w www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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