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________________ आ रासनां महत्त्वनां बधां पात्रोने ध्यानमा लईओ तो प्रणयनां कटलांक बीजां स्वरूपो पण आ रासमां जोवा म छे दा.त. पिता-पुत्रीनो अटले के हरिषेण -ऋषिदत्तानो प्रेम अने कुंवर कनकरथ अने तापसवेषी ऋषिदत्तानो मित्रप्रेम. राजा हेमस्थनो पुत्रप्रेम अत्यंत गौण स्वरूपे मके छे अने ते नायक-नायिकाना मूळ प्रेममा बाधक बनतो होवाथी रुचिकर नीवडतो नथी. प्रणयत्रिकोण रचाय छे कुंअर कनकरथ, ऋषिदत्ता अने रुखमणी बच्चे. अमां कनकस्थ अने ऋषिदत्ता कथानां नायक-नायिका छे ज्यारे रुखमणीने कहेवी होय तो उपनायिका कही शकाय. जोके अक रीते तो ओ मूळ नायिका साथे स्पर्धामां ऊतरती अने कावादावाथी तेना जीवनने कलुषित बनावती स्त्री छे. पण नायिकानु अहित सीधी रीते अने हाथे नथी थयु. ते तो थयु छे सुलसायोगिणि द्वारा. अटले खलपात्र तरीके तो सुलसानु नाम ज आगळ करी शकाय अने कविन्याय मुजब जे कडक शिक्षा खलपात्रने खमवी पडे ते खमवी पडे छे सुलसाने ज. प्रणयनो मार्ग कांटाळो गणायो छे. जगतनो व्यवहार ज कोईक अवा प्रकारनो छ के जमा साचा प्रायने हमेशा सहन करचुपडतु होय छे. प्रणयीओ हमेशा आकरी कसोटीओ चडे अने ओ कसोटीमाथी अओ पूरपूरा पार ऊतरे त पछी ज अपना प्रणायनी कदर जगत करी शके छे. परिस्थिति आवी होबाने कारणे आपणा कवि जुद जुद रथळे प्रणयनी प्रसंगोचित मीमांसा करे छ. ऋषिदताने जंगलमा प्रथम्बार जोता व कुंवर. कनकरथ अना प्रेमी पडे छ. ऋषिदत्तानु सौंदर्य जोई मोह पामेलो कुवर “नाई बध्या नाग जिम लय पांम्गउ अभंग" करा उपायथी अने प्राप्त करवी अदो अे विचार कर छे त्यां तो ऋषिदत्ता अदृश्य थई जाय छ अने कुचरनु हेयु ओना फरी दर्शन्ने माटे तलसी रहे छे. थोडा ज समय बाद मंदिरमा फरी अकवार, कनकस्थ अने तापस हरिषेणनी साथे जुझे छे. आ प्रसंग कुंवरने जोईने ऋषिदत्ताना अंतरमा प्रेन जागे छे. अने कवि लद्री लालमां कडी ३ श्री . मां ऋषिदत्तानी प्रणयचेष्टाओनु ताशा निरूपण कर छे. अ वर्णन बाद कवि नवमी कडीमां वधनी वात न्यारी छे अम दर्शाववा जुदां जुदा उदाहरणो आपे छे अने कडी ११-१४ मां प्रेमनी पीडानु वर्णन करे छे. ते पन्छी लखे छ : " बेहनई प्रेम हुए साखिड, पूरव पुण्यतणउ पारिखउ, मेणई संसारई अतल सार, प्रेमतणउ मोटउ आधार. " (६.५) अहीं कवि आ प्रथमदृष्टिना प्रणयने माटे पूर्वजन्मना पुण्यनां पारखानी वात कर छे. आन कनकरथ अने ऋषिदत्ता बन्नेना पूर्वजन्म अमना आ प्रथम पश्चियना प्रणयना मूळमा छ तेवू जणाय छे. पण जयवंतसूरिओ अतमां केवल ऋषिदत्ताना ज पूर्वजन्मनी कथा आपी छे अने ते पण अने आगला जन्मनां कयां पाप नड्यां ते जणांववा माटे कनकरथनो पूर्वभव अमणे जणाव्या नथी. अटले कनकस्थ ऋषिदत्ता बकचेनी प्रणयोत्पत्ति माटे पूर्वजन्मनु कोई कथानक अही सहायभूत बनत नथी. वनकरथने तापस हरिषेण ऋषिदत्ताना जन्मनी कथा कहे छे, अने तेषां पोते भिवतावतीनो राजा हतो, अमुक संजोगोमां तेणे तापसद्रत ग्रहण कर्यु अने ते पछी ऋषिदत्ता जन्मी, सूआरोगमा तेनी माता कृत्यु पामतां पोते तेने उच्छेरी मोटी करी वगेरे बाबतो स्पष्ट करे के आम ऋषिद वरसो सुधी जाणे तास हरिषेगनां ध्यान केन्द्र बनी रहे छे. ते पछी तेने पाणावी कनकस्थने सोप्या बाद अनो विरह सही सकवानी पोतानी अशक्ति जाहेर करी दे छ अने सरवाळे अग्निप्रवेश करी आपघात करे छ, आम अकले हाथे पुत्रीने उछेरवानां माता तेम ज पिता बन्नेनु कार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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