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________________ ... गुनेगारने थती आकरी शिक्षाना प्रकार पण अहीं मळे छे. राक्षसी गणाती ऋषिदत्ताने अप. मानित करी तेने हणवानो हुकम हेमरथ आपे छे. ते पछी ऋषिदत्ताने पकडी तेने माथे सात पाटा. पाडवामां आवे छे, माथे चूनो चोपडवामां आवे छे. बीलांनु झुमखु त्यां राखवामां आवे छे, विकृत वेश करवामां आवे छे. सूपडान छत्र धरवामां आवे छे, गधेडे बेसाडवामां आवे छे, लीमडानां पांदडानी माछा पहेराववामां आवे छे. शरीरे हींगनो लेप करवामां आवे छे. मां पर मेंश चोपडवामां आवे छे अने गाममां फेरवी स्मशानमां वध माटे लई जवामां आवे छे. वाताना पाछळना भागमां सुलसायोगिनी अपराधी जणातां राजा सुंदरपाणि तेनु नाक कपावीने तेने नगरनी बहार काढी मूके छे. ... कोई महत्त्वनी जाहेरात करवानी होय तो राजा गाममां ढोल पिटावी ते करतो जणाय छे. - लोको धर्ममां अत्यंत श्रद्धावाळा जणाय छे. साधु-साध्वीओ प्रत्ये अमने अत्यन्त पूज्यमाव छे. याचकोने शुभ प्रसंगे दान आपवानी चाल जणाय छे. पैसादारो पोताना द्रव्यनो व्यय मंदिरो बंधाववामां पण करता होय अम जणाय छे. - अकंदरे प्रजाजीवन सुखी अने समृद्ध हतु अने राजा प्रजाना संबंधी घणा सारा हता अवी छाप आ रास ऊभी करे छे. . जंगलमां आश्रम बांधी रहेता तापसो प्रत्ये लोकोने अने खुद राजाओने पण बहुमान जणाय छे. मुख्य तापसनी रजा विना राजा पण आश्रममा प्रवेशतो नथी. आगंतुकोनु उत्तम आतिथ्य तापसो करे छे. पोताना आचारविचारनी बाबतमा तेओ खूब ज कडक जणाय छे, अने आश्रमने अभडावे तेवो काइ दोष थतां आश्रम छोडी जाय छे. आचार से प्रथम धर्म छे अने परम धर्म छे सेवी आवणी रूढ मान्यता अहीं प्रगट थाय छे. - पुत्रो उमरलायक थतां व्यवहारभार तेमने सेपी माबाप कोई आश्रममा जई शेष जीवन दीक्षा लई चरित्र पाळवा-पूर्वक वितावी अंते मुक्तिने वरतां देखाय छे. आम बाळक ने कौमारदशामां विद्याभ्यास, जुवानीमां गृहस्थाश्रम अने घडपणमां वानप्रस्थाश्रमनी व्यक्तिजीवननी पुराणी घरेड अही रजू थई छे. ऋषिदत्ता रास रचवा पाछळनो कवि जयवंतसूरिनो उद्देश : कवि जयवंतसूरि ऋषिदत्ता जेवी सतीनुं सत्चरित्र रसिकजनोना आग्रहे रचे छे. अमनी काव्य. रचनाना आ प्रेरकबळनो उल्लेख असणे प्रथम ढालनी सातमी कडीमां अने छेल्ली ४१ मी ढालनी पांचमी कडीनां को छे. सतीचरित्र सुणतां अने भणतां जन्म पवित्र थई जाय छे अने मनमां उत्तम धर्मलाभ सेवतां उत्तम जनो आ लोकमां अने परलोकमां बधां सुख प्राप्त करे छे अम ओमणे कहयु छे. आम ऋषिदत्तानु कथानक साची रीते छे तो ओक सतीना सत्चरित्रनु रोमांचक चित्र, रोमांचक अटला माटे के पूर्वजन्मोना कमेना आधारे आ जन्ममां पण चारित्र्यशील मनुष्योने अनेक जातनां काटो सहन करवा पडे छे तेनु से उदाहरण छे. पूर्वजन्मना कर्मने परिणामे निर्दोष ऋषिदत्ता उपर आळ आव्यु अने अने भयंकर अपमान सहेवु पड्युओ आ कथानो मुख्य मुद्दो गणी शकाय. ण कविणे जे रोचक रीते आ काव्यनी रचना करी छे ते जोतां आपणे आने प्रणयत्रिकोणना कथानक तरीके पण ओळखावी शकी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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