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________________ ३९ केवळ तलवार बहादुर ज कहेवामां आव्यो छे, ज्यारे हरिषेण माटे 'शुभमति' भेवु भेक ज विशेषण कवि मूक्युं छे. प्रजा पीडाती होय त्यारे राजा पीडानु कारण शोधवाने मथे छे अने कारण जणाय तो ते तत्काळ गमे ते भोगे पण दूर करवा माटे मथतो होय छे. ऋषिदत्ता उपर आवेलु आळ साचु लागतां हेमरथ राजा ते पोतानी पुत्रवधू छे से विचारे अटकतो नथी पण अने देहांतदंडनी भारेमां भारे शिक्षा फरमावे छे. ऋषिदत्ताना बचाव करवा माटे तत्पर थयेला पोताना पुत्रने लब धक्के ले छे अने तेने न्यायना मार्गमां आडे आवतो अटकावे छे. अ ज प्रमाणे रासना पाछळना भागमां रुखमणीओ सुलसा द्वारा ऋषिदत्ताने हेरान करी हती ते भेद खूली जतां जमाई बनेला कनकरथने तथा ऋषिदत्ताने सत्कारवा उपरांत सुंदरपाणि पोतानी पुत्रीने टपको पण आपे छे. आ राजवीओ बधा ज हैयाना उदार छे अने स्वभावे निखालस जणाय छे. तापस बनी चूकेलो हरिषेण राजा कनकरथना प्रश्नना जवाबमां ऋषिदत्तानी उत्पत्ति अंगे पोतानो पूर्व इतिहास निखालसभावे रजू करे छे. ऋषिदत्ता निर्दोष छे अने पोते तेने खोटी रीते आकरी शिक्षा करी तेनो अपराध कर्या छे ऐम लागतां राजा हेमरथ ते पुत्रवधूनी वारंवार क्षमा याचे छे. पटराणीओ केवळ रूपसुंदर होवा उपरांत कथानकमां कशो सक्रिय भाग नथी लेती ते उपरथी अम तावी शकाय के समाजमां खोओनो दरज्जो नीचो हतो अने दीकरा - दीकरीने परणाववानी बाबतमां पण अमनो अभिप्राय नहोतो पुछातो. लाइघेली राजकुंवरीओ पिताना वात्सल्यने बळे धा करती अने करावती जणाय छे. रुखमणी जेवी कुंवरी मनोवांछितनी सिद्धि माटे सुलसा योगिनीने साधे छे ने ऋषिदत्तानो कांटो काढी कनकरथने परणे छे त्यारे ज जंपे छे. कनकरथ परणवा जाय छे त्यारे कुलीन युवतीओं मंगलगीतो गाय छे. कुंवर पोतानी साथे चतुरंग सेना लईने परणवा माटे काबेरी तरफ प्रयाण करे छे. अनां मातापिता अने परणाववा नथी जतां, पण अ परणीने आवे त्यारे अनो सत्कार करी उत्सव मनावे छे खरां कनकरथने जोवा मार्गमां लोको भेगा मळे छे अने अने जातजातनी भेट आपे छे. कन्यापक्षे सुंदरपाणि राजा सामे आवीने सामैयुं करे छे अने कुंवरने सारी जगाओ उतारो आपे छे अने उत्तम मंडपम जोशीओओ काढी आपला शुभ मुहूर्तमां पोतानी कन्याने परणावे छे अने जमाईराजने थोडो वखत पोताने त्यांज राखे छे. आ पहेला ज्यारे कनकरथ ऋषिदत्ताने परण्यो हतो अने तेने सासरे वळाववानी हती त्यारे तापस हरिषेण पुत्रीने सासरवासने लायक शिखामण आपे छे अने जमाईने पोतानी दीकरीनी संभाळ राखवानुं कहे छे. आ बधा प्रसंगो आपणा जूना लग्नटाणाना रीतरिवाजो अने ते वखते अनुभवाता वातावरणनो ख्याल आपे छे. ते जमानामा लोको शुकन - अपशुकन, कामण-टूमण, चमत्कारो, स्वप्न वगेरेमां श्रद्धा राखता जणाय छे. कनकरथना लग्न माटेना प्रस्थान वखते अने जमणु अंग फरकवा जेबा शुभ शुकन थाय छे. तो ऋषिदत्ता उपर आळ आववानुं छे ते ठाणे अपशुकनियाळ बीना बने छे. सुलसा कामणहम पारधी छे अने रथमर्दनपुर आखाने हेरान-परेशान करी मूकी अनेक लोकोनो भोग ले छे. हेमरथ राजानी पासे सभामा जवानी परवानगी मेत्री लई त्यां जईने ते पोताने आवेला स्वप्ननी बात द्वारा ऋषिदत्ताने कलंकिनी ठरावे छे. ऋषिदत्ता औषधिने बळे रूपपरिवर्तन करी शके छे, अने 'तापस तरीके ते दिवंगत गगाती ऋषिदत्ताने पोताना तपने प्रभावे यमघेरथी पाछी आणी आपवानु बीडुं झडपे छे. आ बधामां तत्कालीन लोकमान्यतानां दर्शन थाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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