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奉送
" ऋषिदत्ता रास "मांथी खडुं तु तत्कालीन समाजचित्र
आपणे जोयुं ते प्रमाणे ऋषिदत्ता रासनां मुख्य पात्रो राजकुटुंबनां ज छे अने ते पण राजाओराणीओ-राजकुंवर-राजकुंवरीओ छे. आ उपरांत कथानो मुख्य विषय प्रणय - त्रिकोणनुं निरूपण करवानो छे. अमां त्रण लग्ननी वात आवे छे. कविने से बधानी रजुआत करतां जे कई कद्देवानुं थयुं छे तेमांथी तत्कालीन जीवननी केटलीक आछी पातळी रेखाओ उपलब्ध थाय छे. ओ रेखाओ जेवी मळे छे तेवी आपणे जोईओ.
रथमर्दनपुरना वर्णनमां कवि से नगरीने सुंदर कहे छे. त्यां मोटा प्रमाणमां धनाढ्य शेठियाओ वसे छे. अमांना घणा दानवीरो छे. पुरुषो अत्यंत देखावा अने विलासमां राचनारा छे. स्त्रीओ गौरवर्णी अने गजगामिनी छे. शरमां अनेक चेत्यो अने पौधशाला छे अने मुनिओ त्यां संयम पाळता सुखपूर्वक जीवन वितावे छे. अलबत्त गाम होय त्यां बधी ज जातनी वस्ती होय भेटले
नगरमां घणा पाखंडीओ, कामणरमण करनाराओ, समरपंथी जोगीओ, गणिकाओ, दरवेशो, मठवासीओ, संन्यासीओ वगेरे पण छे. पंडितो ने जोशीओ पण नगरमां छे. नगरना रक्षण मांटे तलार के नगररक्षकनी योजना जणाय छे अने गाममां कशुं अनिष्ट थाय तो तेने माटेनी जवाबदारी ओनी छे. कोई पण गुनो न पकडातो होय तो राजा तलारने बोलावीने तेने ततडावी नांखतो जणाय छे.
उत्सव टाणे नगरवासीओ जातजातनी रीते आनंद करता जणाय छे. राजाने त्यां लग्नोत्सव होय ते प्रसंगे आखा नगरमा उत्सवनुं वातावरण जामे छे मोटा मोटा मंडप बांधवामां आवे छे अने उत्तम जातनां तोरणोथी- कमानोथी शहेर शोभी ऊठे छे. रंगबेरंगी पताकाओ मंडप उपर लहेराय छे. भातृभातना चंदवा वैधाय छे. कुंकुमना छांटा देवाय छे, फूल - पगरनी सुगंधथी वातावरण मघमघे छे. कृष्णागरना धूप थाय छे. प्रबंधो गवाय छे. याचकोने मनवांछित दान अपाय छे. नाचनारीओ ठामेठाम नाचे छे अने वार्जित्रोनो ध्वनि व्यापी रहे छे. भाटचारणो बिरुदावली वोले छे. सुहासिणी नारीओ टोळे वळी गीतो गाय छे. बीजी अनेक स्त्रीओ गोखे चढीने वरघोडो जोवाने माटे उत्सुक बनती होय छे. वरघोडो आवतां वर-कन्याने मोतीना थाळ भरी वधाववामां आवे छे. साधुओ आशिष आपे छे. ओम सर्वत्र आनंद आनंद थई रहे छे.
लग्नो विचार करीए तो मोटे भागे माता-पिता ज ते नक्की करतां जणाय छे. कन्यापक्ष मागुं मोकले छे. कयारेक एवंय बनतुं लागे छे के छोकरा - छोकरीने परस्पर प्रेम उद्भवे ने परिस्थिति सानुकूल होय तो तेओ परणी जाय छे. अलबत्त आवां लग्ननी बाबतमां छोकरो वधारे स्वतंत्र लागे छे. राजा हरिषेण प्रीतिमतीने साप करड्यो तेनुं झेर उतारे छे अने उपकारवश थई प्रीतिमतो हरिषेणने ज परणे छे. ओ पण अक नोधनात्र हकीकत छे. राजवीओ अकथी वधु पत्नी करी शकता, पण कवि बहुपत्नीत्वनो विरोध करे छे—स्त्रीना सुखनी दृष्टि. कहे छे : "सूली रूडी सउकिथी ” अकाकिनी अने निराधार स्त्रीने हमेशां पुरुषोनो डर रहेतो, अने लग्न अ दृष्टि आवश्यक बनी जतां पुरुष स्त्रीविरहे आपघात करवा जाय तो ते हांसीपात्र गणातुं. तेमज नक्की थयेल कन्या जो कोई बीजाने वरे तो ते लज्जास्पद गणातुं.
राजाओनी बावतमां ओम जणाय छे के तेओ प्रजावत्सल राजवीओ छे. हेमरथराजाने न्यायनिपुरा - न्यायरंजन अन्यायगंजन तरीके वर्णत्रवामां आव्यो छे. राजा सुंदरपाणिने तो
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