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तास हरिषेग करे छे अने पुषीनो भात्रि विह सही ज सकतो नथी अ अना पिता तीकेना वात्सल्यनी पराकाष्ठा बतावे छे. ऋषिदत्तानो जिप्रेम पण अबोज जलन छे. जन्मतां माता गुमावी अटले मातानां तो बिलकुल स्मरणो ने नथी, परंतु केवळ पिताना सान्निध्यमां अमना पूर्ण वात्सल्यनो अनुभव कर्या बाद परणतां वेत अ तेने गुमावे ते अने माटे बीजो जबरो आघात छे. पिताना मृत्यु पछीनो अनो विलाप कवि आठमी ढाळमां त्रीजी कडीथी आगळ जे निरूप्यो छे ते हेयं बलोवी नांखनारो छ. पण पतिन सांत्वन ओने आ प्रसंगे स्वस्थ करी शके छे.
कनकरथ-ऋषिदत्ताना सुखी दांपत्यनु चित्र कवि नवमी द्वाळमां खड़ करे छे, अने त्यां प्रणयपात्र अंगेनी केटलीक लीटीओ नेांधपात्र बने छ :
" खांडनई ठांमइ साकर, पांमी पुण्यथी रे, कल्पवेलि लही अलवि तु, कारेली खर नहीं रे. लींबू नीर तणी परि, सहू स्यर सारिखु र. ते स्यउ माणस जमु मनि, नहीं गुण पारिखु रे, फटिक सरीखां मांणस, तेह स्यउ कुंग मिलई रे, ते विरला. जगमांहिं कि, प्रीतिइ जे पलई रे. भुजबलि उदधि उल्लंबन, नाग खेलावना रे. खरा दोहिला तेहथी, प्रीतिका पालना रे. शसि स्यड नहीं सनेह, कमलिनी रवि विना रे, माणस तेह प्रमाण जे, प्रीतई अकमना रे.
(हाल २.५-८) आ स्थळे कवि बे नारीना कंपनी प्रेमी तरीके विचारणा कर छ अने अवो प्रेमी साचो न होय अम भारपूर्वक जणावे छे. बहु नारीनो वल्लभ स्त्रीनी अवदशा करे छे केम के स्त्रीने माटे तो "शोक्यना साल करतां शूळी वधारे सारी." जे माणस पोतानी पत्नीने खरेखर चाहतो होय तेने अंगे बीजी पत्नीनी शक्यता ज नथी.
आम तो कनकरथ रखमणीने परणवा जतो होय छे पण मार्गमां ऋषिदत्ताने जोई अने तेने परिणामे अंतरमा प्रेम जागतां ते तेने ज परणे छे अने रुखमणी पासे जवान मांडी वाळे छे. कवि आम बहुपत्नीत्वना विरोधी जणाय छे अने साचो प्रेम ओक पत्नी पूरतो मर्यादित होय अम अहीं जणावे छे.
ऋषिदत्ता बननां पशु-पंखी-वृक्षो-वलीओ बगैरेनी विदाय लेती वखते पोतानी जातने "परदेसिणि" गणावे के अने पोतानी जातनो तिरस्कार करती ते कहे छ:
" जेहवी आभा छांह कि, पांणी लीहडी रे,
झबकई दाखवई छेह, विदेशी प्रीतडी रे.” (९.१६) आज स्थळे असपान व्यक्तिओ वञ्चेना प्रेमने अंगे पण कवि टहुको कर्या वगर रही शकता नथी. लम्बे ले :
" ऊच ऊस्यउं मोह, विचक्षण कुंण करइ रे, नीठर मेहली जति कि, परदुख नवि धरइ रे.” (९.१७)
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