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________________ कनकस्थने परणवा उत्सुक रखमणी रखडी पडी, ऋषिदत्ताना सौभाग्य अना मानसने विकृत करी मूक्यु अने अणे कूडकपटनो आशरोलीधो. आ तकनी लाभ लई कवि स्त्रीनिंदा करे छे ते नेधिपात्र बने छे. "स्त्रीनी जात अंदेखी छ" ओम कहीने अटकी गया होत तो बांधो नहोतो. पण अमणे तो स्त्रीने गाळो ज भांडी छे. " लोभिणी लंपटि लूटी, निसनेही नीठर कुटी, अवगुण करी खांणि, नारी अहवी निरवांणि.' (११.३) । हताशाथी पेदा थता उश्कराटमा रुखमणी प्रतिज्ञा करी बेस छे के " ऊतार जउ तमु नाद, तउ हुँ साची नारी." पण साची नारीना अंतरनी उदारता ने प्रिय पात्रने सुखी जोवा माटनी अनी झखना ते केटलां वधां जुदा छे ते तो आपणने ऋषिदत्ताना पात्रमाथी ज समजाय रे, सुलसायोगिणी जाते स्त्री छे. ऋषिदत्ताजे अनु कशु ज बगाड्य नथी छतां रुखमणीने पक्ष रही ऋषिदत्तानो सर्वनाश करवा तत्पर थाय छे. ते करतां पहेलां स्थमर्दनपुरमा भरकी फलावी हाहाकार मचावी द छे अने मायसो मारती वखते स्त्रीओ अने वाळकोने पण दूर राखती नथी. मुलसा निष्ठुर नारीहदयनी साक्षात् प्रतिमा छे. पण ओ निष्ठुरता पण बाषिदत्ताना अद्भुत सौंदर्य अने निर्दोषता आगळ क्षणभर दूर थती जणाय छे. पोताने हाथ मुलसा ऋषिदत्ताने मारी शकती नथी. मात्र अना पर आक चढावीने संतोष माने छे. सुलसाना कपटनी ऋषिदत्ता भांग बनी अने अना अधर उपरन लाही तथा वस्त्रो परना छांटा वगेरे जोईने कनकरथे अने करेला प्रश्नना जवाबमां पोतानी निर्दोषता सहजभावे जाहेर करे छे. मन, वचन अने कायाथी पोते कथारेय कोईने दूभव्यु नी अम जणावी आ परिस्थिति पूर्वकर्मनो विपाक छे ओम ओ कहे छे. आम कर्म अने पुनर्जन्मना सिद्धांतने ऋषिदत्ताना पात्र द्वारा अना प्रणयना आलेखननी साथीसाथ कवि रजू करता रहे छे. कनकरथ प्रेमपूर्वक पत्नीनु मां लूछी नांखी टाढामीठा बोलथी अने आश्वासन आपे छे. रखने से मुग्धा दुःखी थाय अवुविचारी तेनी मुश्केलीओ दूर करवाने तत्पर रहे छे. कवि लखे छे : " अवगुण सघला छावरई, जे जसु वल्लभ हुति, सरसब जेता दोषनई, दोषी मेरु करंति.” (१३. दू. ५) । ऋषिदत्ता उपर सुलसा आळ चढाव्यु अने राजा हेमरथ कोप्यो. अणे कनकरथने पोतानी पासे बोलावी लीधो अने जासूस मारफते ऋषिदत्तानी तपास करावी. विषम परिस्थितिमा मूकायेलो कनकस्थ विचारे छे. " माहरी वाट जोई जोईना, सूती हास्यई बाला, आज्ञा ताततणी अकपासा, अक तां प्रेम रसाला." अंक बाजु निषि ने स्नेहाळ मुग्ध पत्नी माटेनो उत्कट प्रेम ने बीजी बाजु पितानी कठोर आज्ञा. बन्ने वच्चे कनकरथ मूंझाय छे छतां सरवाळे प्रेमनोज जय थाय छे. हेमरथने अ स्पष्ट शब्दोमां कहे छे के सारी अत्यंत मुकुनार पत्नीथी आयु थई ज ना शके. हेमरथ राजा मेथी वधु गुस्मे थइने अने “ स्त्रीना दास" तरीके संबोधे छे ने रवीना प्रलक्ष अवगुण छावरवा माट ठको आप छे. स्त्रीनो बचाव करवामां पोते निष्फल गयो छे अम अ स्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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