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" मुजने
समक्ष ज जाहेर करे छे त्यारे ऋषिदत्ता अने धीरज आपे छे अने फरी अकवार कहे छे : करम प्रमांण " ढाल १७ अने ढाल १८ मां कवि कर्मनो भहिमा वर्णवे छे. कर्म रंकने जनहि पण रायने पण रोळी नाखे छे. ऋषिदत्ता जेत्री निर्दोष सतीने पण << " ने कारणे भयंकर अपमान अने शिक्षा सहेवां पंडे छे. कवि उपदेश पण आधी दे छे :
पूव करम
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मत करयो रे मत करयो रे कोई गरव लिगार
(१८.१ )
आश्वासनरूप
पूर्व करम शुभाशुभ दाता, अवरस्य केहर दोस रे. " ( १८.११) पूर्वकर्मनोआ सिद्धांतऋत्ताने पोतानी आवी कपरी अवदशा वखते पण बनी रहे छे. पोतानी जातने अ आ सिद्धांतने बळे ज धीरज आपे छे. १९मी ढाल आखी कर्मनो महिमा ज प्रत्यक्ष करे छे. कवि लखे छे :
" करम साथइ रे कुणइ नवि चलई, करमि नड्या रे अनेक जी. "
अमे आ अनेकमा कवि, श्री ऋषभेश्वर, श्री रामचन्द्र, श्री वासुदेव, पांडवो, मत्स्येन्द्रराय, सत्यवादी, राजा हरिचन्द्र, रावण, सूर्य-चंद्र वगेरेने गणांवे छे. पण विपत्तिनी वेळा पूर्वना पुण्यने वश अवी बुद्धि माणसने सहायरूप बने ज छे अने ते रीते पोतानी अकलवायी अने असहाय दशामां पोते अगाऊ रोपेलां झाडनी घाणीओ पिताना आश्रममां ऋषिदत्ता पाछी आवी शके छे. ओकली असहाय दशायां बनना अकांतमां ऋषिदत्ता शी रीते रही शके ? समाजमां तो अवी परिस्थिति प्रवते छे के
" पाकी बोरी अन स्त्रीजाति र देखी सूनां सहु बाहई हाथ रे, वनिता अनई मेलडी वाडरे, देखी पुरुषांतणी गलई डाढ रे, ( २१.५-६)
"शील ते स्त्रीनइ' परस निधान" होवाथी सावधान बनीने ऋषिदत्ता पोतानुं शील जाळवा मथे छे अने तेमां पिताओ देखाडेली औषधि अने "स्त्री फीटी नर" बनवामां मद्दरूप बनी जाय छे.
बावीसमी दालनां कवि ऋषिदत्ताना विरहमां कनकरथे करेलो विलाप आलेखे छे जे आपणने कालिदासना “अजविलाप "नु स्मरण करावे छे. अनो पत्नी मांटनो प्रेम केटलो वधो उत्कट छे ते तो पत्नी पाछ से मरवा तैयार थाय छे ते उपस्थी जगाई आवे छे. कनकरथनी आवी दशा जोई रथ है खूब दाझे छे. शु करतां पुत्र पाछो आनंदमां आवे अनी अ मथामण करतो होय छेत्री ओक बार रुखनगी माटे कण आवे छे अने में पुत्रने समजावे छे.
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" आशा विधी रुखमणी, उखतां नहीं धर्म,
अबला तगड़' नीसासडइ, पुरुषलाई पाउई शर्मा. (२४.७)
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" नर अवर जड को तमु वरई, तर आपणी नहीं मांग, जय मां गई मांन्यातणी, तर जीवत स्यऊं कांम. "
(२४.८)
पालन करवु पडे छे अने
आ परिस्थितिनो
1. मन मानतुं नथी छत कवकाने वितानी आज्ञानु लाभ लई कबि २५मो ढालमा पुरवना अने स्त्रीना प्रेममा रहेलो तफावत कनकरथने मोंढे रज करता लखे छे :
" नेह खरु नारी तर र, नरपूउई अवटाई,
नर मिसनेही निरगुणी रे, बीजी केड थाई. (२५३)
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