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रुखमणीने परणवा जतां फरी अक बार आश्रममां बनकरथ अने तापसदेषा ऋषितानामिलन वखते कवि लखे छे :
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कुण किहांना किहांथो मिलइ हो, पूरवप्रेम संयोग,
अक देखी मन उहलसर हो, अंक दीठड़ करइ शोक. (२८.६)
आ पंक्तिओमां जे प्रेमनो उल्लेख छे ते मैत्रीभावतो. जगतां अमुक व्यक्तिओ प्रत्ये माणसने निष्कारण प्रेम जागे छे तो अमुक व्यक्ति प्रत्ये निष्कारण तिरस्कार पण जन्मे छे. पूर्वजन्मना संस्कारो आ परिस्थितिने माटे जवाबदार छे अम कवि मानता जगाय छे.
कनकरथ रुखमणीने परणे छे. पत्नीनो हक भोगवती रुखमणी कलकरथने तेणे ओक तापसकन्या साथे शा माटे प्रणय कर्यो ओबो प्रश्न करी बेसे छे. उंचनीचना ने राय- रंकना भेद प्रणयनी बाबतमां पण आडा आवे से बात अना प्रश्न परथी समजाय छे. पण कवि तरत ज नीचेना शब्दमां समाधान पण करे छे :
कनकरथे करेलां ऋषिदत्तानां वखाण रुखमणी सही शकती नथी. गुस्सामां ने गुस्सामां अ कही नांखे छे के ओणे ज सुलसा द्वारा पित्ताने मागणी नखावी. सुलसाने माटे अहोभाव अनुभवती ते बोले छे :
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● अथवा जेहस्यउ मन मिल्यउरे, ते विगुणाई सुरंग,
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धतुरु हरनई रुचर रे, ससि उच्छंगई कुरंगो रे. (३०.७)
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"धन धन सुलसा भगवती, पूरव जनमनी साय,
माहारइ कहइणि जेणीई, कीधा सयक उपाये. (३२.७)
दीकरीने सुखी करवा माटे माता गमे ते उपाय करे अने तेने मुखी जुओ त्यारे संतोष पामे ते जाणीती वात छे. अहीं सुलसा रुखमणीने देनो प्रीतम मेळवी आप्यो तेथी रुखमणी अने पूर्वजन्मनी माता गणे छे अने आम आ जन्मनो क्षणिक संबंध पण पूर्वजन्मना कोईक गाढ संबंधनुं परिणाम छे तेवुं सूचवे छे.
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माणस आ जन्मे खोटुं करे तो आवते भवे अने दुष्ट कर्मनां फळ भोगवां ज पडे तेवी स्वाभाविक मान्यता प्रवर्ते छे से मान्यताने आधारे कनकरथ रुखमणीने कहे छे :
" परभवनउ भय अवगुणी, कीघई अंत्यजन् करणी,
असुभ हेतु जेहवी भरणी, मई विण जांण्यइ तुं परणी. " (३३.४) कर्म अने पुनर्जन्म तेम ज कर्मविपाकना सिद्धांतो आम मूळ प्रणयकथा जोडे संकळाईने आगळ व छे. कनकरथ ऋषिदत्तानो विरह सही शकतो नथी. दिवंगत प्रियतमा पासे जतां अने कोई रोके नहि ओवी इच्छा से प्रगट करे छे. ओ कहे छे :
" सिमी विरहनी वेदना, रांग लहइ जगि सोई. ' (३३. दू. ३)
आवा उत्कट प्रणयीने आघात करतो बचावा माटे आपघात धर्मविरुद्ध छे अने आपघात करनार व्यक्ति अनंत भत्र दुःखी थाय छे ओम तापसवेषी ऋषिताने मुखे कवि कहेवडावे छे. वळी पुरुष मरइ स्त्रीकारणई ओ तो अवळी रीति होम पण होने कलेवामां आवे छे. अने वनकरथ
अटके छे.
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