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________________ ३४मी ढालमां " प्रेम विवहार (केवो) दोहिल” छे ते जणावे छे. साचो प्रेम प्रिय पात्रनी पाछळ प्राण आपवामां ज छे. म कनकरथ बहे छे ने प्रेमी खमीरकर जोई म जणावतां कवि लखे छे: ' छलछलीयां वहिलां ऊमटई रे, छेह लगई ऊडा नीर, जे जन न बीहड मरणथी रे, ते पालइ नेह धीर." (३४.३) .: प्रांण तिजइ तृणनी परई रे, नेहई बांध्या जेह, ओक मरतां बेहुं मरइ रे, साचउ कपोत सनेह.” (३४.४) . " स्वजन विण जे जीवीइ रे, ते जिव्यउ न कहेवाई. ” (३४.६) सरवाळे कनकरथने ऋषिदत्ता पाछी मळी. कनकरथना स्नेहनी परीक्षा जोवाने ओणे पुरषवेष लीधो हतो अब कहीने प्रषिदत्ता पतिथे पोताने आपेलां बचननी याद देवडावे छे अने कहे छ: “मारी माफक ज तमे रुखमणी उपर प्रेम राखो अने तेने स्वीकारो.” कनकरथ पासे आ टाणे कविओ सज्जन अने दुर्जन बच्चेना तफावतनी संक्षिप्त मीमांसा करावी छे अने ऋषिदत्ताना उदार मानसने व्यक्त क्यु छे. पतिना प्रेसमां अने पतिना सुखमां ज राचती से साची प्रेमिका छे अने कनकरथ जेवा संनिष्ठ प्रेमीने लायक अ ज छे अन स्पष्ट थई जाय छे. कनकस्थ-ऋषिदत्ता-रुखमणी रथमईनपुरमा पाछां फरे हे त्यारपछी साची परिस्थितिनी जाण थतां न्यायप्रिय राजा हेमरथ, जेणे अगाउ पुत्रवधून आळ साचुं गणी तेने प्रजाना हितमा हणवानो आदेश आप्यो हतो ते पुत्रवधूनी पोताना अपराध माटे फरी फरी क्षमा याचे छे. हेमस्थनी न्याय. प्रियता अने ओना अंतरनी निखालसता बन्ने अहीं प्रत्यक्ष थाय छे. अना जेबो निर्मक अंत:करणवाळो उमदा खमीरवंत राजवी झटपट दीक्षा लई ले ते पण आ परिस्थितिनु स्वाभाविक परिणाम लागे छे. ढाल ३८सी संसारनी क्षणभंगुरतानो चितार आपे छे अने साथे साथे ऋषिदत्तानी पूर्वकर्मनी विगतो भाटेनी जिज्ञासा रजू करे छे. मुनि भद्रयशोसूरि पूर्वभवकथा रजू करे छे अने ते द्वारा कर्म अने पुनर्जन्मना सिद्धांत साबित करे छे. ढाळ ४०मां कवि कथाकथन करतां उपदेशकथन वधारे करे छे. अभ्याख्यान, वध-मारण, परधन नाश वगेरे दुष्ट कार्यानो विषम विधाक थाय छे. कर्मनो लवलेश रहयो होय तो ते भोगवी कर्म खपाव्ये ज छूटको. कर्म खपी जतां मुक्तिनो मार्ग खुल्लो थई जाय छे. सद्गुरुना उपदेशनु श्रवण ओ माटे उत्तमोत्तम साधन बनी रहे छे. आम, प्रणयकथा रचतां रचतां कविले स्त्रीपुरुषना प्रणयनी दखतोदखत मीमांसा करी छे. अने जीवनमां ऊभी थती चोकस परिस्थितिओनी पाछळ पूर्वजन्मनां को ज रहेलां छे अम अमने ठसाववानु छे. आ वात ध्यानमा रहे तो लोको दुष्ट कर्म करता अटके. जेणे कर्म खवावी दीधां छे तेमने माटे ज मुक्तिनो मार्ग खुल्लो थई शके. ऋषिदत्तानी कथा “ अभ्याख्यान "ने आगळ करीने लखाई छ. "निंदक ते चांडाल सहुथी" अम जणावी कवि जगतां बहु सामान्य थई पडेल निंदाप्रियता तरफ लालबत्ती धरे छे अने धमेपिदेशक तरीके लोकोने आ कथानक द्वारा धर्म अने नीतिने मार्गे वाळवानो प्रयास करे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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