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________________ “ ऋषिदत्ता रास "नी समालोचना ऋषिदत्तानी कथा नथी ऐतिहासिक के नथी पौराणिक. अने आपणे धर्माभिनिवेशी लोकाख्यान कही शकीओ. __पोतानी प्रौढावस्थामां जयवंतसूरिसे रचेल ऋषिदत्ता रास रासनां लगभग बधां लक्षणों धरावे छे. अनी रचना प्रासयुक्त पद्यमां थई छे अने अनी ४१ ढाला राग-रागिणीओ के देशीओ. मां रचाई छे गसन वस्त सती-चरित्र हे. प्रत्यक्ष कथनात्मक शैलीमा पत साहित्यिक भाषामां ओ रजू थाय छे अने अनेा उद्देश नीति अने धर्म, महत्त्व जीवनमा स्थापवानो छे. समकालीन देश्य स्थितिन ओ केटलेक अंशे भान करावे छे अने मध्यकालीन गुजराती भाषानां ठीक ठीक लक्षणो अमां प्रत्यक्ष थाय छे. आ रास गेय तो छ ज अने आख्याननी साफक अ श्रोताओ आगळ रजू थतो हशे अन मानी शकाय. नृत्य साथे अने संबंध नथी, पण बक्ता अने साभिनय रजू करे तो सारा माणभट्रोनी कथानी माफक लोकमेइनीने आकर्षी शके तेम छे. रसनां उदोपक वर्णना खास नथी, पण कथानी नायिकाना सौंदर्यनु वर्णन बेथी त्रण वखत आपनामां आव्यु छे अने ओ रीते से नायिका उपर ज ध्यान केन्द्रित करवामां आव्यु छे. कथानु शीर्षक पण नायिकाना नामे अपायु छे. ऋषिदत्ता सोल सतीओमांनी अक जाणीती सती छे अने ओना चरित्रन श्रवण श्रोताओ हां हांशे करे, केमके ते चरित्रद्वारा शील अने सात्त्विकतानो जीवनमां विजय कवि निरूपे छे. वार्तानां नायक-नायिकाने संसारनी क्षणभंगुरता समजाय छे त्यारे तेओ गुरुना उपदेशन श्रवण करीने दीक्षा लई ले छे अने केवळज्ञान प्राप्त करी मुक्ति मेळवे छे. जैनकथाओमां अंते प्रगट थतुं आ सामान्य तत्त्व छे आने से दर्शावे छे के आवी काव्यरचनानो हेतु आमजनताने धर्माभिमुख करवानो छे. नायक के नायिकाना पूर्वभवनी आवती कथा पूर्वकर्म अने तेना विपाकनी विगतो रजू करे छे अने तेम करतां सहजभावे कुशळ वार्ताकार नीतिनो उपदेश पण साथे साथे रजू करी दे छे. आवो उपदेश आ रासमां होवा छतां आ रास वांचतां केवळ धर्मकथा यांच्यानो संतोष नथी अनुभवातो, परंतु कोई प्रतिभाशाली कविनी साहित्य-सृष्टिमां रममाण थतां होवानो अनेरो आनंद अनुभवी शकाय छे. आ रास प्रणयकथा छे तेवी धर्म कथा पण छे. आ रासनी भाषानो विचार करीओ त्यारे अनी संस्कृतमयता तरत ज ध्यानमां आवे छे. संरकृत तत्सम शब्दोनो कविओ छुट्थी उपयोग को छे, अटलं ज नहि परतु केटलाक संस्कृत समासो पण ओमणे अहीं वापर्या छे. प्रासयुक्त पद्यमां घणी ढाको रचाई छे अने तेमां अंत्यानुप्रास उपरांत आंतरप्रास पण महत्त्वनो भाग भजवता जणाय छे. झडझमक ने वर्णसगाई कविने ज्यां तेमनी जरुर लागी छे त्यां आणवामां आव्यां छे. पोतानी समक्ष भेगा थयेला रसिकजनोने शु अने केटलु गमशे अनो अंदाज कविने छ ज. उपमा, रूपक अने उत्प्रेक्षा जेवा सामान्य अलंकारो आ कृतिमां बहु मोटा प्रमाणमां छे. क्यारेक क्यारेक समुचित दृष्टांत अने अर्थान्तरन्यासी कथनो आइलादक बनी जाय छे तो क्यारेक कवि कल्पना काव्यलिंग के विभावनानो पण आशरो करी बेसे छे. श्लेष अने सजीवारोपण क्यारेक वर्णसगाईनी साथोसाथ आवतां भाषामां अक नवी ज झलक पेदा करे छे. व्यतिरेक ने विशेषोक्तिनो उपयोग नायिकाना सौन्दर्य माटे खास करवामां आव्यो छे. भाषानो विचार करतां कविओ १२मी हाक हिन्दीमां ज रची छे ते अक नोंधवा जेवी हकीकत छे. आखी कृतिमां क्यांक कच्चे वच्चे गुजराती अने हिन्दी बन्ने भाषामां खपे अवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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