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________________ ४८ वाक्यखंडो अळे छे पण सुलसायोगिणि जेवा पाये जे उत्पात रथपर्दनपुरमां मचाव्यो तेनुं आलेखन पात्रने ध्यानमा राखीने कविओ हिन्दीमा रजू करीने बीभत्स अने अद्भुत समर्थ रीते अक ज डाळमां आलेल्यां छे. कोईक शब्द अवा आवे छे के जेथी आपणने मराठी शब्दो याद आवे छे. दा.त. चंग, फार, पाहुणी, धरी (=पकडी). “मोरु नाह" जेवा प्रयोगमां आपणने राजस्थानीनो अणसार आवे छे. डरपांणी-मूर्खाणी-भरांणी जेबा शब्दो सौराष्ट्री छांटनो अनुभव करावे छे तो "दंदोला” जेवा कोई शब्द कच्छी सुधी आपणने पहचाडे छे. कयारेक 'मिहनति' जेदो उर्दू शब्द अन्यथा संस्कृतमय भाषामां उचित स्थाने वपरायेलो देखाय छे. कालिदासनी असर अगाउ लख्या प्रमाणे आ कवि उपर छ ज अने जे केटलांक सुभाषितो अहीं मळे छ तेमां पण अवां ज ओ अर्थनां संस्कृत सुभाषितोनी असर जणाय छे. गुजराती तळपदा शब्दो पण अहीं सारा प्रमाणनां छे ज अने विभक्ति प्रत्ययोनो विचार करीजे त्यारे गुजराती भाषाना विकासना भिन्न भिन्न तबकाओ अहीं जोवा मळे छे. आ कथानकमां संवादनु तत्त्व वधारे नथी, पण ज्यां ज्यां छे त्यां त्यां भाषा पात्र अने प्रसंग बन्नेने अनुरूप वापरवानो ज कविले आग्रह राख्यो छे. ... रसदृष्टिले जोई तो अहीं वीर अने हास्य सिवायना बीजा बधा ज रसो सांपडे छे अने भिन्न भिन्न रसोनु आलेखन पण कविने हाथे खूब कुशलतापूर्वक थयु छे. बातानो आस्वाद माणीओ तेनी साथे साची साहित्यिक कृति वांच्यानो आहलाद आपणे अनुभवी छीओ अनु आ पण अक कारण छे. कविले वर्णनोनी बाबतोमा पण काव्योचित संयम जाळव्यो छे. नगरोनां वर्णन अत्यंत दूंकां छे. राजा-राणीओनी बाबतमां पण तेमना केटलाक आगवा गुणोनो उल्लेख करी कवि अटकी गया छे. मात्र नायक-नायिकानी बाबतमां-खास करीने तो नायिकाना स्वरूपनु आलेखन करती वखते--बे के वण स्थळे विस्तार का छे अने ते सहेतुक जणाय छे. मुख्य पात्र उपर ज वाचकनु ध्यान आली कथा दरम्यान केन्द्रित थईने रहे से जातनु निरूपण कविनु छे. ज्यां विस्तार छे अवां वर्णनोमां ४थी ढाळला आवतां सरोवर अने बगीचानां वर्णनो परंपरागत शैलीनां यादीरूप छे, छतां अमां रहेला शब्दालंकारने कारणे कंटाळो नथी आपतां. कनकरथ अने ऋषिदत्ता परणीने आव्यां त्यारे रथामर्दनपुरमा जे उत्सवढं वातावरण जास्यु तेनु दसमी ढालनां मळतु वर्णन ओज नगरीमा सुलसाओ मचावेलां उत्पातना बारमी बाळमां मळतां वर्णननी साथे वांची तो भिन्न भिन्न वातावरणो अने रसो सांववानी कविनी शक्तिनो उत्तम परिचय आपणने थई जाय छे. करुणरसना आलेखन कवि कमाल करता जणाय छे. १८मी ढाळमां मळतो ऋषिदत्तानो विलाप, २०मी ढाळमां निरूपाती जंगलमां रखडती ऋषिदत्तानी असहाय दशा, २२मी ढाळमां आवतो कनरथनो विलाप अने २३मी ढाळमां निरूपायेली कलकरथनी विरहदशा कविनी करुणना आलेखननी शक्ति केवी प्रगाढ छे ते बतावे छे. आमांनु प्रत्येक वर्णन मर्मभेदक बने छे. ऋषिदत्ताने माथे सुलसा आऊ चढावीने पछी राजा हेमस्थ आगळ फरियाद करवा राजसभामा जाय छे. त्यारनु सुलसानु वर्णन भयानक रस सर्ने छे. अंतसां उपराने कारणे उत्पन्न थतो शांतरस पण अटली ज स्वाभानिकताथी निरूपायो छे. साहित्यिक दृष्टिो संपन्न अवा आ रासमां ओक-बे विगतो खं वे तेवी छे. ते विगतो हरि. पेणना वृत्तांतने लगती छे. हरिषेण राजाने अक राणी हती के बे तेवो प्रश्न ऊभो थाय छे. जयवंतसूरि प्रमाणे प्रियदर्शना अने प्रीतिमती ओवी बे पत्नी हरिषेणने हती ओम लागे छे; ज्यारे अन्यत्र प्रियदर्शन राजानी राणी प्रियदर्शना ने तेनी पुत्री ते प्रीतिमती अबी विगत मळे छे. पुत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001581
Book TitleRushidattras
Original Sutra AuthorJayvantasuri
AuthorNipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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